नई दिल्ली: फरीदाबाद में रहने वाले सात साल के दिपांशु 7 महीने पहले तक जब भी ज्यादा देर दौड़ते तो उनकी सांस फूलने लगती थी. अब वो अपने घर के पीछे वाले मैदान में खूब भाग-दौड़ करते हैं और क्रिकेट भी खेलते हैं. 7 महीने पहले ही उनका हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ है जिसके बाद वो अच्छे से खेल कूद रहे हैं और उन्हें फिलहाल कोई परेशानी भी नहीं है.
दिल्ली की रहने वाली 63 साल की पार्वती देवी ने भी 7 साल पहले अपना हार्ट ट्रांसप्लांट कराया था. अब पूरी तरह स्वस्थ हैं.
दोनों ही मरीजों को अपने ट्रांसप्लांट के लिए चेन्नई जाना पड़ा था. चेन्नई के एमजीएम हेल्थ केयर में जाकर दोनों मरीजों ने अपना ट्रांसप्लांट कराया था. कुछ ऐसा ही मामला है फरीदाबाद के रहने वाले खड़ग सिंह बंधाना का. खड़ग सिंह का सात साल पहले हार्ट ट्रांसप्लांट हुआ था. खड़ग बताते हैं कि पिछले दो साल से चल रही महामारी में वो कोविड की चपेट में भी आए और ट्रांसप्लांट के बाद ही उनका बाई पास भी हुआ. वह कहते हैं अगर आपका इलाज सही हुआ है तो आप सुरक्षित हैं. ट्रांसप्लांट के मरीजों की उम्र एक साल बढ़ने की बात भी यहां खारिज हो गई. अगर पोस्ट ऑपरेशन मरीज की ठीक से देखभाल होती है तो मरीज लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं.
हालांकि देश में सबसे अधिक ऑर्गन ट्रांसप्लांट दक्षिण भारत में किया जाता है लेकिन अब उत्तर भारत में अच्छे ट्रांसप्लांट सेंटर और ऑर्गन डॉनर्स की कमी के कारण मरीजों को चेन्नई जाकर ट्रांसप्लांट कराने जाना पड़ता है. लेकिन अब दिल्ली से सटे फरीदाबाद में चेन्नई के एमजीएम हेल्थ केयर के साथ एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइस ने एमओयू साइन किया है.
डॉ नरेंद्र कुमार पांडेय बताते हैं कि उत्तरी भारत के लोग दक्षिण भारत में जाकर ट्रांसप्लांट कराते हैं जिससे मरीजों के असुविधा भी बढ़ती है और खर्च में भी इजाफा होता है.
मरीजों को ऐसी सुविधा से बचाने के लिए एमजीएम हेल्थ केयर ने एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के साथ मिलकर फरीदाबाद में एक ट्रांसप्लांट सेंटर खुला है जिससे ट्रांसप्लांट कराने वाले मरीजों को मदद मिलेगी.
ट्रांसप्लांट के मोटे खर्च को लेकर डॉ नरेंद्र कुमार पांडेय कहते हैं,’ हर किसी को इस दुनिया में जीने का अधिकार है. हमारा देश डेवेल्पिंग कंट्री से डेवल्पड कंट्री की ओर बढ़ रहे है. ऐसे में देश में बीमारियां भी बढ़ेंगी और बीमार भी.’
‘सरकार को प्राइवेंट सेंटर के साथ मिलकर प्रोग्राम की शुरुआत करनी चाहिए ताकि ट्रांसप्लांट का खर्च थोड़ा कम हो सके. वो बताते हैं कि खर्च सिर्फ ट्रांसप्लांट का नहीं बल्कि उसके बाद की देखरेख पर भी होता है.
बता दे कि देश में डायबिटीज और हाइपरटेंशन के मरीज 30 फीसदी हैं और इन बीमारियों का सीधा असर हार्ट और लंग पर पड़ता है. और एक आंकड़े के मुताबिक 7 से 8 लाख मरीज हार्ट फेल्योर के शिकार होते हैं उसमें बच्चे भी शामिल हैं. ऐसे में सरकार और प्राइवेट पार्टनरशिप हो गुड क्रिटिकल केयर की जरूरत है. आंध्रा और तमिल सरकार तो अपने ऐसे मरीजों की वित्तीय मदद कर रही है लेकिन जरूरत है कि केंद्र सरकार इसपर अहम रोल निभा सकती है.
डॉ. पांडेय ने कहा कि देश में ऑर्गन ट्रांसप्लांट के लिए डोनर्स की जरूरत है..लोगों को जागरूक करने की जरूरत है कि वह अपना अंग दान करें जिससे कोई दूसरा इस दुनिया को लंबे समय तक देख सके.
एमजीएम हेल्थकेयर के डायरेक्टर डॉ केआर बालाकृष्णन भारत में हार्ट ट्रांसप्लांट करने वाले विशेषज्ञों में से एक हैं. वे 500 के आस-पास ट्रांसप्लांट कर चुके हैं. डॉ बाला ने कहा कि सरकार को शवों के अंगों की उपलब्धता और ऑर्गन डॉनर्स को लेकर सुधार करने की जरूर है.
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