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Sunday, 3 November, 2024
होमहेल्थकोविड, जागरूकता की कमी, टीके को लेकर झिझक – क्यों खसरे के प्रकोप से जूझ रही है मुंबई

कोविड, जागरूकता की कमी, टीके को लेकर झिझक – क्यों खसरे के प्रकोप से जूझ रही है मुंबई

2019-20 में 92 फीसदी टीकाकरण हुआ था. लेकिन 2021-22 में पहली डोज लेने वाले बच्चों की संख्या घटकर 74 फीसदी हो गई. इस साल अक्टूबर तक, मुंबई में सिर्फ 43 प्रतिशत बच्चों को पहली खुराक मिल पाई थी.

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मुंबई: जब 14 महीने के फजल खान को अक्टूबर के बीच के कुछ दिनों में बुखार चढ़ा, तो मुंबई के गोवंडी इलाके के रफी नगर में रहने वाला उसका परिवार शुरू में उसका इलाज घर पर ही करता रहा. जब बात नहीं बनी तो पास के एक डॉक्टर के पास ले गये. लेकिन न तो उसका बुखार कम हुआ और न ही उसके शरीर के चकत्ते कम हुए. और 27 अक्टूबर की सुबह उसकी मौत हो गई. सांस लेने में तकलीफ के चलते उसे एक दिन पहले ही बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के राजावाड़ी अस्पताल में भर्ती कराया गया था.

कुछ ही दिनों में मरने वाले तीन चचेरे भाइयों में से फजल दूसरे थे. और तीनों की एक ही बीमारी – खसरे से मौत हुई थी. इनमें से किसी भी बच्चे की उम्र पांच साल से ज्यादा नहीं थी. बीएमसी के मुताबिक, वे मुंबई और महाराष्ट्र के कई अन्य हिस्सों में फैल चुकी इस बीमारी के पहले हताहतों में से थे.

उधर इन बच्चों के माता-पिता ने लापरवाही का आरोप लगाते हुए अस्पताल को दोषी ठहराया है. बीएमसी के कार्यकारी स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मंगला गोमारे ने दिप्रिंट से कहा, ‘बच्चों की पूरी देखभाल की गई थी. लेकिन वे बच्चे को बहुत देर से अस्पताल लाए थे. काफी प्रयासों के बावजूद हम उन्हें बचा नहीं सके.’

बीएमसी द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, शुक्रवार तक मुंबई में इस साल खसरे के 252 पुष्ट मामले सामने आए. और इसकी वजह से 8 मौतें हुई हैं.

फ़ज़ल को एमएमआर (खसरा, मम्प्स और रूबेला) का टीका नहीं लगा था, जिसकी पहली खुराक नौ महीने की उम्र में दी जाती है.

फ़ज़ल की मां शाहीन खान ने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरी सेहत ठीक नहीं थी. इसलिए जब वह नौ महीने का था तब मैं उसे टीका नहीं लगवा पाई. मेरी बहन उसकी देखभाल कर रही थी. उसे इन टीकों के बारे में कुछ पता ही नहीं था. जब वह छह महीने का था तब उसे सिर्फ एक इंजेक्शन दिया गया था. उसे सर्दी और खांसी भी थी.’

अक्टूबर में इस बीमारी के फैलने बाद बीएमसी ने इस महीने की शुरुआत में एक टीकाकरण अभियान शुरू किया है. बीएमसी अधिकारियों ने कहा कि पिछले दो सालों से कोविड-19 महामारी के चलते ज्यादा टीके नहीं लग पाए थे. अचानक से इस बीमारी के तेजी से फैलने का यह मुख्य कारण रहा है.

डॉ. गोमारे ने बताया, ‘पिछले दो सालों से बहुत से बच्चों का टीकाकरण नहीं हो पाया है. कुछ माता-पिता को लगा कि यह टीकाकरण का समय नहीं है या फिर वे डरते थे. कुछ इलाकों में टीके को लेकर झिझक भी थी. और इन सभी कारणों से टीका न लगवाने वाली आबादी में इजाफा हुआ है.’

सिर्फ मुंबई में ही नहीं, महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों में खसरे के मरीजों की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है. राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, मालेगांव, भिवंडी, ठाणे और वसई-विरार से खसरे के मामले सामने आए हैं.

कोविड, खसरा जैसे हवा से फैलने वाले इस संक्रमण का अनुमानित R0 12-18 है. यानी एक व्यक्ति 12-18 लोगों के बीच इस संक्रमण को फैला सकता है. यह बीमारी आमतौर पर पांच साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करती है. R0 संक्रामकता का सूचकांक है, जो बताता है कि एक संक्रमित व्यक्ति कितने लोगों के बीच इस संक्रमण को फैला सकता है.

2019 में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि टीकाकरण कवर में वृद्धि के बाद से 1990-2015 में खसरे से मरने वालों के औसत अनुपात में काफी कमी आई थी, जो फिलहाल अनुमानित रूप से 2.2 प्रतिशत है.

पिछले कुछ हफ्तों में महाराष्ट्र, झारखंड, केरल और गुजरात के कई हिस्सों से स्थानीयकृत खसरे के प्रकोप की सूचना मिली है. जब किसी क्षेत्र में चार सप्ताह के भीतर पांच से ज्यादा संदिग्ध मरीजों की संख्या मिलती है और उनमें से दो मरीजों में बीमारी की पुष्टि हो जाती है, तो उसे ‘आउटब्रेक’ या प्रकोप कहा जाता है.

राज्य के स्वास्थ्य विभाग की ओर से साझा किए आंकड़ों के मुताबिक, इस साल महाराष्ट्र में खसरे के प्रकोप वाले 50 क्षेत्रों की सूचना मिली है, जबकि ऐसे क्षेत्रों की संख्या 2021 में एक, 2020 में दो और 2019 में तीन थी.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, कम टीकाकरण कवर के बावजूद पिछले दो सालों से खसरे के न फैलने के पीछे कोविड महामारी थी. दरअसल महामारी की वजह से जरूरी सामाजिक दूरी का पालन किया गया था, जिसकी वजह से यह बीमारी भी नियंत्रण में बनी रही.


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प्रकोप की जांच

नवंबर में बीएमसी की तरफ से किए गए एक सर्वे के अनुसार, मुंबई में लगभग 20,000 बच्चों (0 से पांच साल की उम्र के) को या तो आंशिक रूप से खसरा का टीका लगाया गया था या बिल्कुल भी टीका नहीं लगाया गया था.

राज्य के स्वास्थ्य विभाग द्वारा सरकार को प्रस्तुत किए गए डेटा में बताया गया है कि अक्टूबर में मौजूदा प्रकोप के समय, मुंबई में सिर्फ लगभग 43 फीसदी बच्चों को टीके की पहली डोज मिली थी, जबकि 41 फीसदी का पूरा टीकाकरण किया गया था. दिप्रिंट के पास भी इन आंकड़ों की एक प्रति है. इसका मतलब यह है कि 1,71,890 बच्चों की कुल लक्षित आबादी में से सिर्फ 73,120 को पहली डोज मिली थी, जबकि लक्षित 1.69,728 में से केवल 70,102 को ही दोनों डोज दी गई थीं.

Graphic by Ramandeep Kaur, ThePrint
ग्राफिक: रमनदीप कौर, दिप्रिंट

यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम के अंतर्गत एक बच्चे को खसरे के टीके की पहली डोज 9 से 12 महीने के बीच मिलती है और दूसरी खुराक 16-24 महीने की उम्र में दी जाती है.

राज्य के आंकड़ों के मुताबिक, 2019-20 में लक्षित बच्चों में से 92 फीसदी को टीके की पहली खुराक दी गई थी, जबकि 90 फीसदी बच्चों को दूसरी खुराक मिली थी.

महामारी की शुरुआत के साथ यह संख्या कम हो गई, हालांकि 2020-21 में 87 प्रतिशत ने पहली और दूसरी दोनों डोज ली थीं. 2021 में यह ग्राफ और नीचे चला गया, जिसमें 74 फीसदी को पहली डोज दी गई. जबकि लक्षित समूह के 82 फीसदी बच्चों को दोनों डोज मिली थीं.

फिलहाल फैली इस बीमारी की जांच के लिए बीएमसी ने अब त्रि-आयामी दृष्टिकोण अपनाया है. गोमारे ने कहा कि पहला कदम संदिग्ध मामलों की पहचान के लिए डोर-टू-डोर अभियान है. बुखार और दाने वाले सभी लोगों को 24 घंटे के अंतराल के भीतर विटामिन-ए की दो खुराक दी जा रही है.

जिन बच्चों को मेडिकल अटेंशन की जरूरत है, उन्हें पास के बाल रोग विशेषज्ञों और डिस्पेंसरी में भेजा जा रहा है. जबकि दस्त, आंखों का लाल होना, चकत्ते जैसे लक्षणों वाले मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी जा रही है.


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गरीबी और कम टीकाकरण

इधर पूर्वोत्तर मुंबई में एक झुग्गी बस्ती रफी नगर पिछले कुछ हफ्तों से प्रकोप के प्रभाव में है.

बीएमसी के एम-ईस्ट वार्ड का एक हिस्सा, रफ़ी नगर एक बड़ी प्रवासी आबादी का घर है, जिसमें ज्यादातर लोग रोज कमाने और खाने वाले मजदूर हैं. टीकाकरण के बारे में कम जागरूकता का स्तर यहां कम टीकाकरण संख्या का एक कारण है. दूसरा कारण टीका लगवाने में हिचकिचाहट है.

दिप्रिंट ने यहां जिन माता-पिता से बात की, उन्होंने अपने बच्चों को टीका लगाने पर बुखार या अन्य कोई परेशानी आने की आशंका व्यक्त की थी.

तीन बच्चों की मां शबीना शेख ने कहा, ‘मुझे डर था कि बच्चे को बुखार हो जाएगा. मेरी सास ने भी यह सोचकर मेरे किसी बच्चे को टीका नहीं लगवाने दिया कि अब ऐसे में उनकी देखभाल कौन करेगा.’ शबीना के एक बच्चे की उम्र एक साल है, तो वहीं दूसरा और तीसरा बच्चा क्रमशः दो और चार साल के हैं.

जब दिप्रिंट ने गुरुवार को शबीना से बात की थी, तो उनकी सबसे छोटा बच्चा तीन दिनों से सर्दी, बुखार और दस्त से जूझ रहा था.

गोवंडी के संजय नगर में क्लीनिक चलाने वाले डॉक्टर राजेश प्रजापति ने कहा, ‘यह संदिग्ध खसरे का मामला है. अगर ऐसे मरीज को क्लिनिक में देर से लाया जाता है तो इलाज में देरी हो जाती है. गोल्डन आवर (जिस समय के दौरान उपचार के सफल होने की सबसे अधिक संभावना है) बीत जाता है और जटिलताएं बढ़ सकती हैं.’

स्वास्थ्य अधिकारी और विशेषज्ञ इस प्रकोप के लिए कुपोषण के साथ-साथ कम टीकाकरण को एक बड़ा जिम्मेदार ठहराते हैं.

अरमान अंसारी अपनी एक साल की बेटी के साथ इसी क्लिनिक में आए हुए थे. उन्होंने स्वीकार किया कि बच्चे को खसरे का टीका नहीं लगाया गया था. उसे बुखार था और शरीर पर लाल चकते के निशान थे. उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा ‘मैं इसके (वैक्सीन) के बारे में नहीं जानता था. मुझे पता होता तो मैं लगवा देता. किसी ने मुझे इसके बारे में बताया ही नहीं.’

गोवंडी न्यू संगम वेलफेयर सोसाइटी एनजीओ के अध्यक्ष शेख फैयाज आलम के अनुसार, यहां की आबादी के बीच जागरूकता की कमी एक बड़ा मसला है.

उन्होंने कहा, ‘जब कभी आंगनवाड़ी या बीएमसी अधिकारी झोंपड़ियों में जाते हैं, तो यहां रहने वाले लोग सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं देते. एम-ईस्ट वार्ड में लगभग 250 स्लम पॉकेट हैं जहां स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है और स्वच्छता और प्रदूषण भी एक बड़ा मसला है.’

शबीना के मुताबिक, फजल को जब बुखार चढ़ा तो सबसे पहले उसे घर पर ही एक पेरासिटामोल दे दी थी. 15 अक्टूबर को उसका तेज हो गया था, मगर फिर उतर भी गया. उसे कई दिन तक बुखार लगातार बना रहा तो हम उसे पास के डॉक्टर के पास ले गए .’

26 अक्टूबर को फ़ज़ल के चचेरे भाई नूरैन की सांस लेने में तकलीफ होने के कारण मौत हो गई. वह उनके पड़ोस में ही रहते थे. उन्हें अस्पताल ले जाया गया और ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया और बाद में वेंटिलेटर पर रखा गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका. इसके एक दिन बाद ही फजल की भी मौत हो गई.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य)
(संपादन: अलमिना)


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