यमुनानगर: देशभर की तरह हरियाणा के यमुनानगर जिले में भी कोविड-19 के नए मामलों में उछाल आया है, जहां 15 अप्रैल को 174 लोग टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए. जिले को अब न केवल टेस्ट का बढ़ता भार झेलना पड़ रहा है बल्कि नतीजों को लेकर लोगों के अविश्वास से निपटना भी एक चुनौती जैसा है.
जिले में नोडल कोविड फैसिलिटी मुकुंद लाल सिविल अस्पताल में एक मॉलीक्यूलर लैब है, जहां पड़ोसी जिले कुरुक्षेत्र से भी सैंपल आते हैं. लैब में हर 24 घंटे में 2,000 नमूने टेस्ट करने की क्षमता है लेकिन मरीज देरी की शिकायत के साथ नतीजों की ‘विश्वसनीयता’ पर भी संदेह करते हैं.
अस्पताल में लोग उस पर्चे का इंतजार करते हुए एक-दूसरे के काफी करीब खड़े रहते हैं, जो यह बताएगा कि उनके रिश्तेदार कोरोनोवायरस से संक्रमित हैं या नहीं. हालांकि, दिप्रिंट ने पाया कि कतार में वो लोग भी इंतजार कर रहे थे जिन्होंने कोविड संक्रमण के संदेह में खुद अपना टेस्ट कराया था.
अनिल कुमार (32 वर्ष) का टेस्ट 10 अप्रैल को किया गया था, लेकिन रिपोर्ट आखिरकार गुरुवार को मिली जब उन्हें अस्पताल की तरफ से बुलाया गया. रिपोर्ट निगेटिव रही लेकिन उसने बताया कि टेस्ट कराने के बाद से वह लगातार अपने काम पर जा रहा था.
यमुनानगर में 1 से 14 अप्रैल के बीच उच्चतम कोविड पॉजिटिविटी रेट—12 प्रतिशत—दर्ज किया गया. जिले के सिविल सर्जन/मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) के कार्यालय की तरफ से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, सबसे कम 0.82 प्रतिशत पॉजिटिविटी रेट फरवरी में रहा था.
जिले के सीएमओ डॉ. विजय दहिया ने कहा, ‘26 फरवरी को जिले में कोविड के केवल 40 सक्रिय केस थे. हालांकि, मार्च में मामले बढ़ने लगे और पॉजिटिविटी रेट बढ़कर 6.18 प्रतिशत हो गया.’
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टेस्टिंग में देरी क्यों?
यमुनानगर निवासी गिरीश शर्मा ने 10 अप्रैल को अपनी बेटी का कोविड टेस्ट कराया था. उन्होंने बताया कि मुकंद लाल सिविल अस्पताल से उन्हें आखिरकार 15 अप्रैल को रिपोर्ट मिली जबकि टेस्ट कराने के बाद लगातार तीन दिनों तक वहां जाने का कोई फायदा नहीं हुआ.
शर्मा ने बताया, ‘मेरी बेटी को अब कोविड पॉजिटिव बताया गया है, लेकिन उसमें कोई लक्षण नहीं हैं. हमने उसे घर में ही आइसोलेट रखा था, लेकिन रिपोर्ट देर से आई.’
शहर के एक और निवासी 22 वर्षीय प्रिंस से गुरुवार को जब दिप्रिंट ने बात की तो वह अपने पिता की कोविड रिपोर्ट हासिल करने के लिए लाइन में इंतजार कर रहा था. उसने बताया कि सैंपल रविवार को लिया गया था.
प्रिंस ने कहा, ‘मैं उम्मीद कर रहा था कि रिपोर्ट जल्द आ जाए ताकि हम उसका इलाज करा सकें. लक्षण भी बदलते रहते हैं, इसलिए यह पता चलना ही ठीक होगा कि मरीज कोविड पॉजिटिव हैं या नहीं.’
हालांकि, सीएमओ दहिया ने जोर देकर कहा कि मुकुंद लाल अस्पताल में मॉलीक्यूलर लैब अच्छी तरह काम कर रही है. दहिया ने दिप्रिंट को बताया, ‘नतीजे आने का समय 36 घंटे है. लेकिन कुछ मामलों में हम अलग-अलग सैंपल को एक साथ पूल करते हैं और यदि एक सैंपल रिपोर्ट अनिर्णायक हो जाती है, तो सैंपल फिर से जमा करना पड़ता है, जो देरी का कारण बनता है.’
उन्होंने आगे बताया, ‘हमें कुरुक्षेत्र से रोजाना 700-800 नमूने मिलते हैं क्योंकि जिले में मॉलीक्यूलर लैब नहीं है, और हमें अपने ही जिले से लगभग 1,200 से 1,300 नमूने मिलते हैं. यदि नमूनों की संख्या बढ़ती है, तो हम कुरुक्षेत्र को अपने नमूने कहीं और भेजने के लिए कहेंगे.’
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निजी केंद्र भी नमूने सरकारी लैब में भेजते हैं
यमुनानगर में तीन कोविड अस्पताल हैं—इनमें एक सरकार की तरफ से सिविल अस्पताल है और दो निजी अस्पताल गाबा अस्पताल और संतोष अस्पताल है. सरकारी अस्पतालों में नौ डिस्ट्रिक्ट कोविड केंद्र हैं और 22 निजी अस्पतालों में हैं. इन फैसिलिटी में कुल मिलाकर 3,000 बेड का इंतजाम है.
हालांकि, सीएमओ दहिया ने पुष्टि की कि यमुनानगर में कोविड के लगभग 95 फीसदी नमूने सरकारी लैब में टेस्ट किए जाते हैं. दहिया ने कहा, ‘सरकार की ओर से मान्यता प्राप्त निजी लैब भी हैं लेकिन ज्यादातर अस्पताल सरकारी लैब को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि यहां मुफ्त सुविधा उपलब्ध है.
खुद सीएमओ और निजी अस्पतालों के मुताबिक, जो नमूने सरकारी लैब में नहीं जाते, उन्हें गुरुग्राम स्थित एक निजी फैसिलिटी में भेजा जाता है, जो राज्य में एकदम दूसरे छोर पर है.
दहिया ने कहा कि महामारी के शुरुआती दिनों में कुछ निजी अस्पताल कोविड टेस्ट के मामले संभालने के अनिच्छुक थे और बंद होने लगे थे. लेकिन अब, उनमें से ज्यादातर सरकार के साथ सहयोग कर रहे हैं और काम कर रहे हैं.
हालांकि, गाबा अस्पताल के कुछ मरीजों का कहना है कि उनकी रिपोर्टें कहीं नहीं मिल रहीं, जहां यह निजी अस्पताल उन्हें रिपोर्ट के लिए सिविल अस्पताल में भेज रहा था, वहीं सिविल अस्पताल के पास उनके नमूनों का कोई रिकॉर्ड नहीं है.
गाबा अस्पताल के निदेशक डॉ. बी.एस. गाबा का कहना है कि यह सब उनके बुनियादी ढांचे पर जबर्दस्त दबाव की वजह से हुआ है. उन्होंने कहा, ‘हमारे ऊपर जरूरत से ज्यादा भार है. हमारी क्षमता 50 बेड की थी, लेकिन हमने यहां आने वाले कोविड मरीजों के मद्देनजर इसे बढ़ाकर 80 बेड तक कर दिया है. ऐसी विकट स्थिति में थोड़ी गलतफहमी और संवादहीनता स्वाभाविक है. लेकिन इस तरह की घटनाओं से हमारे अग्रणी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरना नहीं चाहिए.’
रिपोर्ट की विश्वसनीयता
कुछ मरीजों ने टेस्ट रिपोर्ट की विश्वसनीयता को लेकर भी संदेह जताया. कजिंदर सिंह (45) अपनी 16 वर्षीय बेटी की रिपोर्ट लेने के लिए सिविल अस्पताल आए थे, जिसे स्कूल जाते रहने के लिए एक निगेटिव नतीजे वाली रिपोर्ट की दरकार थी. सिंह ने बताया कि उन्हें छह दिन की देरी से अपनी बेटी की रिपोर्ट मिली है, लेकिन इसमें उसे एक्टिव केस बताया गया है जबकि उसमें कोई भी लक्षण नहीं है. उन्होंने कहा, ‘यह पता लगाने के लिए मैं फिर से टेस्ट कराऊंगा कि क्या वह वास्तव में पॉजिटिव है.’
वहीं, एक अन्य स्थानीय निवासी, जो अपना नाम नहीं बताना चाहता था, ने कहा कि उसकी पत्नी पिछले शुक्रवार को टेस्ट में पॉजिटिव निकली थी लेकिन अब उसकी दूसरी रिपोर्ट निगेटिव आई है, और वह नहीं जानता कि ‘किस रिपोर्ट पर भरोसा करे.’
डॉ. दहिया ने कहा कि कई केस में मरीजों के लिए यह भरोसा करना मुश्किल होता है कि उनके रिश्तेदार या परिजनों का टेस्ट पॉजिटिव रहा है.
सीएमओ ने इसे कुछ इस तरह स्पष्ट किया, ‘यह एक तालाब से मछली पकड़ने जैसा है. यदि हम दस कोशिशों के बाद एक मछली पकड़ते हैं और नौ में से कोई और नहीं पकड़ते हैं, तो हम यह नहीं कह सकते कि तालाब में मछली नहीं है. नमूने लेना एक अंधी प्रक्रिया है, अगर वायरस नाक में नहीं है और शरीर के अंदर कहीं और है तो यह पहली बार स्वैब टेस्ट में पकड़ में नहीं आएगा. यही कारण है कि हम किसी भी मरीज के कोविड पॉजिटिव निकलने पर बाद के दिनों में उनकी रिपोर्ट निगेटिव आने पर भी पॉजिटिव ही मानते हैं.’
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