नई दिल्ली: कोविड-19 टीकों से जुड़ी एडवर्स इवेंट्स फॉलोइंग इम्युनाइज़ेशन (एईएफआई) पर सरकार की ताज़ा रिपोर्ट में पता चला है कि विश्लेषण की गई 61 प्रतिशत घटनाएं कारणपूर्वक टीकाकरण से जुड़ीं थीं. लेकिन, रिपोर्ट में कहा गया है कि उनमें से कोई भी घातक नहीं थी, यानी मौत नहीं हुई थी.
रिपोर्ट का निष्कर्ष था: ‘78 में से 48 मामले जिनके लिए कारणता मूल्यांकन किया गया है, उनका टीकाकरण से निरंतर कारणात्मक जुड़ाव पाया गया. इन 48 में से 28 मामले वैक्सीन-उत्पाद से जुड़ी प्रतिक्रिया के थे और 20 टीकाकरण चिंता से जुड़ीं प्रतिक्रियाएं थीं. 22 मामलों में टीकाकरण से अस्थिर कारणात्मक जुड़ाव पाया गया (आकस्मिक-टीकाकरण से संबंध नहीं) जिसमें 7 मौतें थीं. 7 मामले अनिश्चित श्रेणी में थे, जिनमें 2 मौतों के मामले भी थे. 1 मौत का मामला ऐसा था, जो अवर्गीकृत श्रेणी में था.
वैक्सीन-उत्पाद से संबंधित प्रतिक्रियाएं, जैसे कि नाम से ज़ाहिर है, वो होती हैं जिन्हें कारणात्मक रूप से वैक्सीन से जोड़ा जा सकता है. इन्हें आमतौर से दर्ज किया जाता है, और इनमें बुख़ार, बदन दर्द, एलर्जिक रिएक्शंस और एनाफिलेक्सिस आदि होते हैं. लेकिन, एईएफआई का मूल्यांकन करने वाली कमेटी, आमतौर पर बुख़ार और बदन दर्द जैसे मामूली रिएक्शंस को नहीं, बल्कि गंभीर प्रतिकूल प्रभावों को देखती हैं.
अनिश्चित प्रतिक्रियाएं वो हैं जो टीकाकरण के फौरन बाद होती हैं, लेकिन जिन्हें उपलब्ध वैज्ञानिक सुबूतों के आधार पर, कारणात्मक रूप से टीके से नहीं जोड़ा जा सकता. उस संबंध को स्थापित करने के लिए और स्टडी की ज़रूरत होती है. अवर्गीकृत घटनाएं वो होती हैं जिन पर किसी निर्णायक फैसले पर नहीं पहुंचा जा सका, चूंकि आवश्यक जानकारी उपलब्ध नहीं थी.
आकस्मिक घटनाएं वो होती हैं, जिनकी ख़बर टीकाकरण के बाद मिलती है, लेकिन जिनके लिए टीकाकरण के अलावा किसी और कारण का पता, जांच के बाद लगाया जा सकता है.
टीकाकरण के बाद की सभी घटनाएं जिनका विश्लेषण किया गया, वो कोविशील्ड या कोवैक्सीन लगाए जाने के बाद की थीं. हालांकि भारत स्पूतनिक 5 का आयात करता है, लेकिन उसकी संख्या बहुत कम है.
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रिपोर्ट के अनुसार: ‘कुल मिलाकर, टीकाकरण के फायदे इसके नुक़सान के जोखिम से कहीं ज़्यादा हैं. लेकिन, अत्यधिक सावधानी के तौर पर, सामने आ रहे नुक़सान के सभी संकेतों पर लगातार नज़र रखी जा रही है, और समय समय पर उनकी समीक्षा की जा रही है’.
नेशनल टेक्निकल एडवाइज़री ग्रुप ऑन इम्युनाइज़ेशन की एईएफआई कमेटी के सदस्यों ने कहा कि भारत में प्रतिकूल घटनाओं की रिपोर्टिंग बहुत मज़बूत नहीं है, और इसलिए न केवल रिपोर्ट आने में देरी होती है, बल्कि ये भी मुमकिन है कि ऐसी बहुत सी घटनाएं, जिनमें संभवत: गंभीर मामले भी होते हैं, पता ही नहीं चल पाते.
रिपोर्ट जारी होने में लंबा अंतराल
एईएफआई कमेटी केवल गंभीर प्रतिकूल घटनाओं को देखती है, और संबंधित वैक्सीन से संभावित जुड़ाव की जांच के लिए, उनका विश्लेषण करती है.
पूर्व कथित रिपोर्ट में वो निष्कर्ष दिए गए हैं, जो कमेटी ने 3 अगस्त की अपनी बैठक में निकाले थे. हालांकि विश्लेषण एक जारी प्रक्रिया है, लेकिन रिपोर्ट एक ख़ासे लंबे अंतराल के बाद आती है; पिछली रिपोर्ट 12 जुलाई को आई थी. उसके बाद से देशभर में 48 करोड़ से अधिक टीके लगाए जा चुके हैं.
देरी के बारे में पूछे जाने पर, स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘रिपोर्ट्स आती रहती हैं लेकिन उनके विश्लेषण में समय लगता है. सभी रिकॉर्ड्स बारीकी से देखने पड़ते हैं, कभी कभी अस्पताल से कागज़ात भी मंगाने पड़ते हैं. वो अक्सर मांगे गए दस्तावेज़ जल्दी से नहीं भेजते, इसलिए आपको उनके पीछे लगना पड़ता है. असली चीज़ विश्लेषण है. बिना विश्लेषण किए रिपोर्ट्स को सार्वजनिक नहीं करना चाहिए, क्योंकि लोग उन्हें समझने में ग़लती कर सकते हैं, और ख़तरों का ग़लत मतलब निकाल सकते हैं’.
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