scorecardresearch
Tuesday, 10 December, 2024
होमहेल्थजीएम फूड की मंजूरी की आशंका के बीच FSSAI को मिल रहे हैं 'हेट ईमेल'

जीएम फूड की मंजूरी की आशंका के बीच FSSAI को मिल रहे हैं ‘हेट ईमेल’

नवंबर 2021 में नोटिफिकेशन जारी किया गया था. पिछले महीने एक अन्य अनुच्छेद जोड़कर यह प्रस्तावित किया गया कि जीएम मूल के एंजाइम को भी रेगुलेट किया जाए.

Text Size:

नई दिल्ली: फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) को रोजाना नफरत भरे मेल मिल रहे हैं. FSSAI ने तीन महीने पहले एक ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया था जिसके बाद इस तरह के मेल आने शुरू हुए. जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) खाद्य पदार्थों के आयात और बिक्री के रेगुलेशन को लेकर यह ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया गया था. FSSAI ने नोटिफिकेशन जारी करके सलाह मांगी थी.

मेल भेजने वाले कार्यकर्ताओं का आरोप है कि FSSAI, जीएम फूड को ‘इसकी वजह से होने वाले खतरों को नजरअंदाज करके’ वैधता दे रही है. हालांकि, प्राधिकरण का कहना है कि कुछ लोगों को जीएम फूड को लेकर चिंताएं थी, इसलिए इसका रेगुलेशन करना ज़रूरी था, ताकि पक्का किया जा सके कि हर तरह के जीएम फूड को देश में बेचने से रोका जा सके.

इससे पहले, नवंबर 2021 में नोटिफिकेशन जारी किया गया था. पिछले महीने एक अन्य अनुच्छेद जोड़कर यह प्रस्तावित किया गया कि जीएम मूल के एंजाइम को भी रेगुलेट किया जाए.

FSSAI के एक अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमें रोजाना 10,000-20,000 नफरत भरे ईमेल मिल रहे हैं. इनमें से ज्यादातर एक ही तरह के कॉन्टेंट वाले मिलते-जुलते ईमेल होते हैं जिन्हें अलग-अलग आईडी से भेजा जाता है, जिनमें हम पर लोगों और पर्यावरण को होने वाले खतरों की अनदेखी करते हुए जीएम फूड आइटमों को वैध करने का आरोप लगाया जाता है.’

अधिकारी ने कहा, ‘कुछ जीएम आइटम पहले से ही उपलब्ध हैं, उदाहरण के लिए, हम जीएम सोयाबीन के तेल का इस्तेमाल करते हैं. इसके साथ ही फूड इंडस्ट्री में कई तरह के जीएम एंजाइम का इस्तेमाल किया जाता है. जब तक हम कोई मानक नहीं बनाते हैं तबतक हम उसे रेगुलेट नहीं कर सकते हैं. ऐसा नहीं है कि रेगुलेशन के अभाव में इन्हें बेचा नहीं जा रहा है.’

अधिकारी ने कहा कि आमतौर पर नोटिफिकेशन जारी होने के दो महीनों तक सलाह मांगी जाती है. लेकिन कुछ लोगों ने मेल भेजकर कहा कि उन्हें छह महीने का समय चाहिए. बतौर अधिकारी यह संभव नहीं है.

ड्राफ्ट नोटिफिकेशन के मुताबिक, कोई भी खाद्य सामग्री या उनके अवयव जिन्हें अनुवांशिक तौर पर संशोधित या मॉडर्न बायोटेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से तैयार किए गए इंजीनियर्ड आर्गेनिज्म के इस्तेमाल से बनाया गया हो या जिनमें ऐसे तत्व मौजूद हों, उन्हें जीएम फूड आइटम के तौर पर वर्गीकृत किया जा सकता है और उन्हें रेगुलेट किया जा सकता है. इस कैटेगरी में उन फूड और फूड के अवयवों को भी शामिल किया गया है जिन्हें जेनेटिकली मोडिफाइड या मॉडर्न बायोटेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके तैयार किए गए इंजीनियर्ड ऑर्गेनिज्म से बनाया गया हो, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि वे इनमें शामिल हों.


यह भी पढ़ें: परिजनों और मित्रों को UP में हमें वोट देने के लिए मनाइए, दिल्ली में रह रहे पूर्वांचलियों से BJP की अपील


बीटी कॉटन एक मात्र फसल है जिसे भारत में अनुमति दी गई है.

 साल 2002 में भारत सरकार ने देश में बीटी कॉटन लगाने की अनुमति दी. यह एक जेनेटिकली मोडिफाइड फसल है.

साल 2020 में प्रेस इन्फॉरमेशन ऑफ ब्यूरो (पीआईबी) की ओर से जारी कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के बयान में कहा गया है, ‘आईसीएमआर (भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान) की ओर से बीटी कॉटन के प्रभाव पर लंबे समय तक किए गए अध्ययनों में मिट्टी, माइक्रोफ्लोरा (मिट्टी के सूक्ष्म संगठन) और पशुओं के स्वास्थ्य पर किसी भी तरह के खराब असर देखने को नहीं मिला है.

हालांकि, इसमें कहा गया है कि, ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण और वन पर संसद की स्थायी समिति ने 25 अगस्त, 2017 को संसद में पेश किए गए ‘आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों और पर्यावरण पर इसके प्रभाव’ पर अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि जीएम फसलों के फायदों और सुरक्षा की सघन वैज्ञानिक जांच करने के बाद ही देश में इसके इस्तेमाल की अनुमति दी जानी चाहिए. साथ ही, जीएम फसलों के निष्पक्ष मूल्यांकन के लिए रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को फिर से बनाने का सुझाव भी दिया गया.’

बयान में कहा गया है कि जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रैज़ल कमिटी (जीईएसी) ने 2020-23 के बीच आठ राज्यों में स्वदेशी रूप से विकसित बीटी बैंगन की दो नई ट्रांसजेनिक किस्मों के जैव सुरक्षा से जुड़े अनुसंधान के लिए फील्ड ट्रायल की अनुमति दी थी. ऐसा करने के लिए संबंधित राज्य से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) लेना ज़रूरी था. फील्ड ट्रायल के लिए यह भी ज़रूरी था कि इसके लिए राज्य के पास ऐसी जमीन हो जिसका संपर्क बाकी जमीनों से न हो. जीईएसी मॉडिफाइड इंजीनियरिंग को रेगुलेट करने वाली देश की शीर्ष संस्था है.

हालांकि, देश में  रेडीमेड जीएम आइटमों के आयात और उसकी बिक्री पर कोई नियंत्रण नहीं है. सिर्फ़ कृषि पैदावारों जैसे लिविंग मोडिफाइड ऑर्गेनिज्म (एलएमओ) के लिए ही जीईएसी का अप्रूवल लेना होता है.


यह भी पढ़ें: ‘यूक्रेन में तेजी से बढ़ा तनाव..’ भारत लौटी एक स्टूडेंट ने कहा- दुकानों के बाहर हैं लंबी कतारें


रेगुलेशन का ड्राफ्ट

पिछले साल FSSAI की ओर से जारी ड्राफ्ट रेगुलेशन में कहा गया है कि FSSAI, अप्रूवल का आवेदन मिलने पर, एलएमओ रहित जेनेटिकली मॉडिफाइड या इंजीनियर्ड फूड आइटम के अप्रूवल देने से पहले, उससे जुड़े अतिरिक्त डेटा या इससे जुड़े दस्तावेज की मांग, सुरक्षा जांच के लिए कर सकती है.

देश में ऐसे फूड आइटम के आयात को लेकर ड्राफ्ट में कहा गया है कि संबंधित कंपनी FSSAI को एक संपूर्ण डोजियर (प्रमाणो और सबूतों का दस्तावेज) देगी.

इसके मुताबिक, ‘जिस देश से निर्यात किया जा रहा है वहां की रेगुलेटरी एजेंसी को सबमिट और अप्रूव किया गया संपूर्ण डोजियर या आवेदनकर्ता की ओर से बनाया गया संपूर्ण डोजियर, जिस देश में यह जीएम फूड विकसित हुआ है वहां पर उसके सुरक्षित इस्तेमाल से जुड़े डेटा और खाने के उद्देश्य से जीएमओ/एलएमओ प्रोडक्ट के निर्यात के सबूत जिसमें निर्यात की मात्रा और जिस देश या जिन देशों में ये आयात किया गया हो उनके नाम शामिल हों.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें : पहली और दूसरी लहरों के कोविड मरीज़ों के कानों में अब भी महसूस होती है गूंज, डॉक्टरों ने जताई चिंता


share & View comments