नई दिल्ली: सेमाग्लूटाइड और टिरजेपेटाइड से आगे बढ़ते हुए, रेटट्रूटाइड में प्रवेश करने का समय आ गया है – यह वजन घटाने वाली दवाओं के क्षेत्र में उभरने वाला नवीनतम और सबसे आशाजनक दावेदार है.
फार्मास्युटिकल कंपनी एली लिली द्वारा सोमवार को जारी चरण-2 क्लिनिकल परीक्षण डेटा के अनुसार, दवा लेने वाले मोटापे से ग्रस्त मरीजों का वजन 48 सप्ताह में 24 प्रतिशत तक कम हो गया, जो औसतन लगभग 26.3 किलोग्राम के बराबर है.
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित लेख से पता चला कि परीक्षण में करीब 338 प्रतिभागी शामिल हुए थे.
द लैंसेट में सोमवार को प्रकाशित एक अलग पेपर में मोटापे और मधुमेह दोनों से पीड़ित लोगों पर दवा के प्रभाव का विश्लेषण किया और पाया कि “ग्लाइसेमिक नियंत्रण में नैदानिक रूप से सार्थक सुधार और शरीर के वजन में तेजी से कमी” दिखाई दी.
दोनों पेपर इस सप्ताह सैन डिएगो में अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन साइंटिफिक सेशन में प्रस्तुत किए गए, जिसका भारत सहित चिकित्सकों और मधुमेह विशेषज्ञों ने जबरदस्त स्वागत किया है.
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत और मैक्स हॉस्पिटल, गुरुग्राम के अध्यक्ष और प्रमुख – एंडोक्राइनोलॉजी और मधुमेह, डॉ अंबरीश मिठल ने दिप्रिंट से सैन डिएगो जहां उन्होंने सम्मेलन में भाग लिया से बात करते हुए कहा, “यह आश्चर्यजनक डेटा है – कुछ ऐसा जो पहले किसी दवा ने नहीं दिखाया था और कुछ साल पहले इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.”
दिल्ली के फोर्टिस-सी-डीओसी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर डायबिटीज, मेटाबॉलिक डिजीज और एंडोक्रिनोलॉजी के अध्यक्ष डॉ. अनूप मिश्रा ने भी कहा कि हालांकि ये शुरुआती चरण के परीक्षण हैं, लेकिन इस तरह का वजन कम होना पहले किसी भी दवा के साथ नहीं देखा गया है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “अगर आगे के शोध से इसकी पुष्टि हो जाती है और यह सुरक्षित साबित हो जाती है तो यह एक जादुई दवा होगी.”
रेटाट्रूटाइड अपने पूर्ववर्ती सेमाग्लूटाइड और टिरजेपेटाइड के समान तरीके से काम करता है. इसे हफ्ते में एक बार इंजेक्शन के रूप में दिया जाता है और विशिष्ट आंत हार्मोन की नकल करके रोगियों की खाने की आदतों में बदलाव लाता है.
वजन घटाने वाले सितारे राज कर रहे हैं
अब तक, दो अन्य दवाएं जो आंत हार्मोन पर काम करती हैं, अपने वजन घटाने के प्रभावों के लिए विश्व स्तर पर सुर्खियां बटोर रही हैं.
पहला सेमाग्लूटाइड है, जिसे डेनिश दवा निर्माता नोवो नॉर्डिस्क द्वारा विकसित किया गया है और इसे ओज़ेम्पिक, वेगोवी और रायबेल्सस ब्रांड नामों के तहत बेचा जाता है.
दूसरा एली लिली का टिरजेपेटाइड है, जिसे पिछले साल कुछ देशों में चिकित्सा उपयोग के लिए अनुमोदित किया गया था और मौन्जारो ब्रांड नाम के तहत बेचा गया था.
इन दवाओं के विभिन्न फॉर्मूलेशन, ज्यादातर साप्ताहिक इंजेक्शन के रूप में, टाइप -2 मधुमेह के इलाज के लिए संकेतित और अनुमोदित किए गए हैं, लेकिन मोटापे से निपटने में भी आशाजनक परिणाम सामने आए हैं.
एली लिली ने मौन्जारो को विशेष रूप से वजन घटाने वाली दवा के रूप में पेश करने के लिए अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासक (यूएसएफडीए) से मंजूरी मांगी है, इस प्रकार यह बिना मधुमेह वाले लोगों को भी लक्षित करेगी.
मिठल ने कहा, राइबेल्सस ब्रांड नाम के तहत सेमाग्लूटाइड का एक मौखिक संस्करण भारत में 3 मिलीग्राम, 7 मिलीग्राम और 14 मिलीग्राम फॉर्मूलेशन में भी उपलब्ध है.
भारत में, इस दवा को केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन द्वारा केवल टाइप -2 मधुमेह के इलाज के लिए संकेत दिया गया है.
केरल स्थित चिकित्सक और चिकित्सा शोधकर्ता डॉ. राजीव जयदेवन के अनुसार, सेमाग्लूटाइड, टिरजेपेटाइड और रेटट्रूटाइड जैसी दवाएं विभिन्न आंत हार्मोन के रिसेप्टर्स से जुड़कर काम करती हैं.
ये रिसेप्टर्स अग्नाशयी हार्मोन के स्राव के साथ-साथ आंत के कार्य को भी नियंत्रित करते हैं, और उनकी खराबी टाइप 2 मधुमेह और मोटापे को बढ़ाती है.
दवाओं का प्रभाव लंबे समय तक पेट भरे होने की भावना पैदा करता है और इस प्रकार भूख कम हो जाती है.
जयदेवन ने कहा, “माना जाता है कि वजन में कमी केंद्रीय स्तर (हाइपोथैलेमस) पर होती है, जहां वे भूख कम करते हैं और शीघ्र तृप्ति को बढ़ावा देते हैं.”
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क्या चीज़ रेटाट्रूटाइड को उसके क्लास की दूसरी दवाओं से अलग करती है?
जबकि सेमाग्लूटाइड ग्लूकागन-जैसे पेप्टाइड-1 (जीएलपी-1) नामक रिसेप्टर को लक्षित करता है, टिर्ज़ेपेटाइड जीएलपी-1 और गैस्ट्रिक इनहिबिटरी पॉलीपेप्टाइड (जीआईपी) दोनों पर काम करता है. दूसरी ओर, रेटट्रूटाइड तीन रिसेप्टर्स पर काम करता है.
सबसे पहले आया सेमाग्लूटाइड (ओज़ेम्पिक).
मिठल ने कहा, “पिछले कुछ वर्षों में ओज़ेम्पिक जैसी जो दवाएं विकसित की गई हैं, उन्होंने ज्यादातर जीएलपी-1 रिसेप्टर्स को लक्षित किया है.” “ऐसी दवाएं किसी भी अन्य दवा की तुलना में अधिक वजन घटाने में सक्षम थीं.”
इसके बाद तिर्ज़ेपेटाइड (मौन्जारो) फिर सीन में आया .
मिठल ने बताया, “मौन्जारो एक दोहरी रिसेप्टर एगोनिस्ट है जो जीएलपी -1 और जीआईपी और मौन्जारो दोनों को लक्षित करता है. मिठल ने बताया, “पहली बार, शोधकर्ता विशेष रूप से उन लोगों में लगभग 20 प्रतिशत वजन घटाने के करीब पहुंच सके, जिन्हें मधुमेह नहीं है.”
अब, रेटाट्रूडाइड खेल को फिर से बदल रहा है.
मिठल ने कहा, “रेटाट्रूटाइड का रिजल्ट एक बड़ी प्रगति के रूप में सामने आया है क्योंकि यह एक ट्रिपल रिसेप्टर एगोनिस्ट है जो ग्लूकागन, जीएलपी -1 और जीआईपी को टार्गेट करता है.” “यह शानदार है क्योंकि इससे वजन में 24-25 फीसदी की कमी देखी गई है.”
एनईजेएम में प्रकाशित फेज 2 क्लीनिकल आंकड़ों के अनुसार, 338 वयस्क जो मोटे या अधिक वजन वाले थे, उन्होंने अध्ययन में भाग लिया. स्वयंसेवकों को प्लेसबो या रेटट्रूटाइड की चार खुराकों में से एक प्राप्त करने के लिए रैंडम किया गया था. दवा हफ्ते में एकबार इंजेक्शन के रूप में दी गई थी.
24 हप्ते के बाद, हाइएस्ट डोज़ – 12 मिलीग्राम – लेने वाले प्रतिभागियों के शरीर का वजन औसतन 17.5 प्रतिशत कम हो गया. 48 हफ्ते तक, शरीर के वजन घटने की दर 24.2 प्रतिशत तक बढ़ गई.
इसकी तुलना में, नोवो नॉर्डिस्क के सेमाग्लूटाइड ने 68 सप्ताह के बाद शरीर के वजन को औसतन लगभग 15 प्रतिशत कम किया . तिर्ज़ेपेटाइड या मौन्जारो को 72 सप्ताह के बाद शरीर के वजन को औसतन 22.5 प्रतिशत कम किया.
‘गेम चेंजर’
ज़ैंड्रा हेल्थकेयर के अध्यक्ष, मुंबई स्थित मधुमेह विशेषज्ञ डॉ. राजीव कोविल ने रेटट्रूटाइड के परिणामों को “अभूतपूर्व और संभावित गेम-चेंजर” कहा.
उन्होंने कहा, “मोटापा सभी विकारों और विशेष रूप से गैर-संचारी रोगों (नॉन कम्यूनीकेबल) की जननी है.
उन्होंने आगे कहा, ”यह वैश्विक स्तर पर मधुमेह, उच्च रक्तचाप, डिस्लिपिडेमिया (उच्च कोलेस्ट्रॉल), कैंसर, गैर-अल्कोहल फैटी लीवर रोग और क्रोनिक किडनी रोगों को बढ़ाता है.”
डॉ कोविल ने कहा, ”अगर बड़ी आबादी पर मोटापे का बोझ कम किया जा सकता है, तो इन सभी एनसीडी का बोझ कम कर सकते है.”
कोविल ने कहा कि मधुमेह के रोगियों को संभवतः दवा से काफी फायदा हो सकता है.
कोविल ने कहा, “रेटाट्रूटाइड परीक्षण का सबसे अच्छा परिणाम यह रहा कि उच्च खुराक के साथ लगभग 83 प्रतिशत प्रतिभागियों ने शरीर के वजन का लगभग 15 प्रतिशत कम कर दिया – जो मधुमेह के लिए काफी अच्छा है और पेनक्रियाज में रूपात्मक परिवर्तन भी करता है, जिससे यह बहुत बेहतर काम करता है.
उन्होंने बताया कि एक और महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह था कि 48 सप्ताह के अंत में प्रतिभागियों का वजन कम नहीं हुआ था. उन्होंने कहा, “तो, दवा संभावित रूप से परीक्षण से अब तक जो दिखाया गया है उससे अधिक हासिल कर सकती है.”
कीमत, दुष्प्रभावों को लेकर चिंताएं
जबकि सेमाग्लूटाइड, टिरजेपेटाइड और अब रेटट्रूटाइड जैसी दवाओं ने आशाजनक परिणाम दिखाए हैं, डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि इसके दुष्प्रभाव भी आ सकते हैं.
ऐसी दवाएं सस्ती भी नहीं आतीं. उदाहरण के लिए, भारत में राइबेल्सस टैबलेट के ब्लिस्टर पैक की कीमत भी कुछ हजार रुपये है और डॉक्टरों का दावा है कि कुछ मरीज़ विदेश से इंजेक्शन मंगाते हैं.
जयदेवन ने कहा कि रिसेप्टर प्रोटीन के खिलाफ काम करने वाली दवाएं कई वर्षों से मौजूद हैं.
उन्होंने कहा, “लगभग ये सभी दवाएं महंगे इंजेक्शन हैं, और इनसे भारत में मधुमेह से पीड़ित धनी और मोटे रोगियों को वजन कम करने और बल्ड शुगर पर बेहतर नियंत्रण पाने में मदद मिली है.”
जयदेवन के अनुसार, दुष्प्रभाव आम हैं, विशेष रूप से मितली, उल्टी, अपच, दस्त, गैस और सूजन.
उन्होंने बताया, “इसके अलावा, जब इंजेक्शन बंद कर दिए जाते हैं, तो मरीजों का वजन फिर से बढ़ने लगता है, खासकर अगर उनका भोजन सेवन पिछले स्तर पर वापस आ जाता है.”
मिठल ने कहा कि एक और चिंता यह है कि यह दवाएं कुछ हद तक मांसपेशियों को कमजोर कर देती हैं, गिरने का जोखिम बना रहता है और फ्रैक्चर का भी जोखिम हो सकता है, और यह लंबे समय तक मोबिलिटी को भी प्रभावित कर सकता है.
उन्होंने अंत में कहा “इन चीजों को बेहतर ढंग से समझने के लिए, हमें दवा के बारे में अधिक डेटा कीजरूरत है,”
(संपादन: पूजा मेहरोत्रा )
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