नई दिल्ली: असहनीय दर्द, कई बार सर्जरी, 30 लाख रुपये से अधिक का मेडिकल बिल और फिर भी बीमारी से पूरी तरह उबरना बाकी—33 वर्षीय गुजरात के इंटीरियर डिजाइनर सिद्धार्थ गोहिल के लिए कोविड-19 से उबर जाना ही मुश्किलों का अंत नहीं था. इलाज के दौरान स्टेरॉयड के अत्यधिक इस्तेमाल और शरीर की प्रतिरक्षा कमजोर होने के कारण म्यूकोर्माइकोसिस जैसा एक जानलेवा रोग हो गया, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह ‘जंगल में आग’ की तरह फैलता है.
उनके डॉक्टर डॉ. तनु सिंघल, जो कोकिलाबेन अस्पताल, मुंबई में संक्रामक रोग मामलों के कंसल्टेंट है, का मानना है कि गोहिल भाग्यशाली हैं कि वह संक्रमण से बच गए, क्योंकि इसने उनके मस्तिष्क को संक्रमित नहीं किया.
कोविड से उबरने के बाद होने वाली दिक्कतों के ताजा मामलों को देखते हुए डॉक्टरों ने मरीजों में जानलेवा फंगल इंफेक्शन के बढ़ते मामलों पर चिंता जताई है, जो इलाज के दौरान लंबे समय तक या हाई-डोज में स्टेरॉयड दिए जाने के कारण होता है. इनमें दुर्लभ किस्म का फंगल संक्रमण म्यूकोर्माइकोसिस, जो नाक के साइनस में होता है और देखते-देखते चेहरे के बाकी हिस्सों से मस्तिष्क तक पहुंच जाता है और एस्परगिलोसिस शामिल है. म्यूकोर्माइकोसिस की तुलना में एस्परगिलोसिस कम घातक होता है और फेफड़ों में संक्रमण का कारण बनता है. ग्लूकोमा के कारण आंखों की रोशनी चले जाने के मामले भी सामने आए हैं—इसमें ऑप्टिक नर्व को क्षति पहुंचने के कारण आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली जाती है.
तीनों समस्याएं डायबिटीज के मरीजों में ज्यादा हो रही हैं.
विशेषज्ञों ने चेताया है कि यद्यपि स्टेरॉयड—जैसे डेक्सामेथासोन और मेथिलप्रेडिसोलोन—कोविड के कारण होने वाली मौतों को घटाने में अहम भूमिका निभाते हैं लेकिन इनका लंबे समय तक उपयोग या फिर इनकी हाई डोज दिया जाना कोविड मरीजों में जटिल बीमारियों का कारण बन सकता है.
इस बीच, केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कोविड पर एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि इस तरह का फंगल इंफेक्शन नैसर्गिक है और म्यूकोर्माइकोसिस और कोविड-19 के बीच सह-संबंध में कोई नई बात नहीं है.
नीति आयोग सदस्य (स्वास्थ्य) वी.के पॉल कहते हैं, ‘यह एक तरह का फंगस है जिसका प्रजनन नम सतहों पर होता है. उन मरीजों में इसका होना एकदम असामान्य है जो डायबिटीज से पीड़ित हैं. कोविड-19 मरीजों में इस तरह के फंगल इंफेक्शन की जानकारी सामने आई है. लेकिन मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि ये बड़े पैमाने पर फैलने जैसी कोई बात नहीं है और हम अपने स्तर पर मामले को देख रहे हैं.’
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हालांकि, डॉक्टर इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हाल के महीनों में संक्रमण की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं.
गुरुग्राम स्थित नारायणा अस्पताल के नेत्र विभाग के प्रमुख डॉ. दिग्विजय सिंह ने कहा, ‘एम्स में दशक भर, 2002-2014 के बीच, के कार्यकाल के दौरान मुझे साल में सिर्फ दो-तीन बार म्यूकोर्माइसिस के मामले दिखते थे. आज, मैं हर महीने दो-तीन ऐसे मामलों का इलाज कर रहा हूं.’
सिंह ने आगे कहा कि ‘यद्यपि स्टेरॉयड कोविड से होने वाली मौतों को रोकने के लिए एक अहम दवा के तौर पर काम करते हैं, हम उन मरीजों में म्यूकोर्माइसिस, ग्लूकोमा और मोतियाबिंद के बढ़ते मामलों के प्रति आगाह करते हैं जिन्हें कोविड के इलाज के दौरान स्टेरॉयड दिया गया. इन मरीजों में से अधिकांश को डायबिटीज रहा है.’
अन्य चिकित्सा विशेषज्ञ भी इसी तरह की चिंता जताते हैं.
मुंबई स्थित सेवन स्टार अस्पताल के डायरेक्टर और सिर और गर्दन के कैंसर मामलों के सर्जन डॉ. शैलेश कोठलकर ने दिप्रिंट को बताया कि ‘पिछले दो दशकों में मैंने केवल एक दर्जन मरीजों का म्यूकोर्माइसिसस का ऑपरेशन किया है. लेकिन, पिछले दो महीनों में मैं हर दिन म्यूकोर्माइसिस से जुड़ी तीन से चार सर्जरी कर रहा हूं. यह वृद्धि अभूतपूर्व है.’
विशेषज्ञों ने इस पर जोर दिया है कि जो लोग कोविड-19 से उबर चुके हैं, उन्हें म्यूकोर्माइसिस के लक्षणों पर नजर रखनी चाहिए जिसमें नाक बंद होगा, सिर में दर्द, मुंह के अंदर ऊपरी हिस्से में काले घाव, चेहरे में दर्द और आंख की रोशनी जाना आदि शामिल हैं. एस्परगिलोसिस के सामान्य लक्षणों में सांस फूलना, खांसी और थकान शामिल हैं. आंखों की पुतलियों में दबाव महसूस होना और लगातार सिरदर्द ग्लूकोमा के शुरुआती लक्षण हैं.
म्यूकोर्माइसिस और इससे बचाव के उपाय
म्यूकोर्माइसिस से जीवन को खतरा होने के बारे में बात करते हुए डॉ. सिंघल ने कहा, ‘आमतौर पर यह संक्रमण कुछ ही दिनों में मस्तिष्क तक फैल जाता है, और फिर रोगी को बचाना असंभव हो जाता है.’
मुंबई के डॉक्टर ने कहा कि अब हर महीने इस तरह के फंगल इंफेक्शन के कम से कम 15 मरीजों का इलाज किया जा रहा है. उन्होंने कहा, ‘सभी मरीज कोविड से उबरे हैं और उन्हें उपचार के दौरान स्टेरॉयड दिया गया था. यह एक प्रमुख ट्रेंड है. कोविड उपचार के दो से चार सप्ताह बाद म्यूकोर्माइसिस के लक्षण दिखाई देते हैं. और इसमें मृत्यु दर बहुत अधिक है, लगभग 50 प्रतिशत.’
डॉक्टरों की सलाह है कि स्टेरॉयड की हाई डोज को त्वरित आधार पर नियंत्रित किया जाना चाहिए और इन्हें उपचार प्रोटोकॉल के अनुसार ही दिया जाना चाहिए, केवल तब जबकि मरीज गंभीर रूप से कोविड से पीड़ित हो.
गुरुग्राम स्थित फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर और हेड, न्यूरोलॉजी डॉ. प्रवीण गुप्ता ने कहा, ‘हम ऐसे मरीजों को भी देख रहे हैं जिन्होंने स्थानीय डॉक्टरों के पर्चे के आधार बीमारी के शुरुआती स्तर पर ही स्टेरॉयड का सेवन शुरू कर दिया था या फिर जिन्हें लंबी अवधि तक स्टेरॉयड की हाई डोज दी गई थी. यह सब स्टेरॉयड संबंधी दुष्प्रभावों से जुड़े मामलों को बढ़ा रहा है.’
एस्परगिलोसिस और अन्य जटिलताएं
डॉक्टरों ने एक अन्य फंगल इंफेक्शन एस्परगिलोसिस के मामले बढ़ने की भी जानकारी दी है. गुरुग्राम स्थित मेदांता इंटरनल मेडिसिन कंसल्टेंट नेहा गुप्ता ने बताया, ‘गुजरात और महाराष्ट्र में इस समय एस्परगिलोसिस के 1,000 से अधिक मरीज हैं. एस्परगिलोसिस से हालांकि जीवन को खतरा नहीं है क्योंकि यह म्यूकोर्माइसिस की तरह तेजी से नहीं फैलता है.’
स्टेरॉयड के इस्तेमाल के कारण और भी कई स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं सामने आती हैं.
गुप्ता ने कहा, ‘यदि फंगल इंफेक्शन नहीं होता तो भी स्टेरॉयड के इस्तेमाल से वजन बढ़ने, कैल्शियम घटने, प्रतिरक्षा कमजोर होने और एसिडिटी की समस्या होती है. यह डायबिटीज के मरीजों में जटिलताएं और मृत्यु दर को भी बढ़ाती है.
नारायणा हेल्थ से जुड़े डॉ. सिंह ने कहा कि पिछले एक महीने में उनके पास ग्लूकोमा के दो मामले आए थे जिनका कोविड के लिए इलाज चल रहा था. उन्होंने स्पष्ट किया, ‘मरीजों को आम तौर पर आंखों में अत्यधिक दबाव महसूस होता है, खासकर पुतलियों में. स्टेरॉयड का दुष्प्रभाव ग्लूकोमा ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचाता है और आंखों की रोशनी जाने का कारण बन जाता है.’
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