scorecardresearch
Friday, 3 May, 2024
होमहेल्थवैक्सीन नहीं लगी? फिर भी आपका बच्चा स्कूल जा सकता है—अमेरिकी संक्रामक रोग विशेषज्ञ की राय

वैक्सीन नहीं लगी? फिर भी आपका बच्चा स्कूल जा सकता है—अमेरिकी संक्रामक रोग विशेषज्ञ की राय

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. मोनिका गांधी का कहना है कि भारत में तीसरी लहर के कहर के आसार कम ही हैं क्योंकि दूसरी लहर ने तमाम लोगों में नेचुरल इम्युनिटी पैदा कर दी होगी.

Text Size:

नई दिल्ली: देश के अधिकांश राज्यों ने जहां तीसरी लहर के खतरे के मद्देनजर स्कूल खोले जाने की संभावनाओं पर विराम लगा दिया है, वहीं सैन फ्रांसिस्को स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में मेडिसिन की प्रोफेसर डॉ. मोनिका गांधी का कहना है कि बच्चे पूरी तरह सेफ्टी प्रोटोकॉल के साथ फिजिकल कक्षाओं में लौट सकते हैं, यहां तक कि कोविड-19 के खिलाफ टीका लगे बिना भी.

संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. गांधी ने कहा कि मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और वेंटिलेशन की उपयुक्त व्यवस्था जैसे प्रोटोकॉल के साथ स्कूलों को फिर से खोला जा सकता है क्योंकि लंबे समय तक इनका बंद रहना बच्चों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है.

उन्होंने दिप्रिंट को दिए एक खास इंटरव्यू में कहा, ‘बच्चे काफी हद तक कोविड-19 के प्रभाव से बचे रहे हैं, बच्चों के लिए एक वैक्सीन का अभी परीक्षण किया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर लंबे समय तक स्कूल बंद रहना बच्चों को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है. यूनिसेफ ने हाल ही में एक रिपोर्ट पेश की है. बच्चे मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, खानपान से जुड़ी दिक्कतों और सीखने-समझने में समस्या आने से पीड़ित हैं.’

उन्होंने कहा, ‘सभी जगह, भारत सहित, पुख्ता सुरक्षा उपायों के साथ बच्चे टीकाकरण से पहले ही स्कूल लौट सकते हैं. मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग और वेंटिलेशन की उपयुक्त व्यवस्था आदि प्रमुख उपाय हैं. भारत में बहुत सारे दरवाजे और खिड़कियों की व्यवस्था होती है इसलिए बच्चे टीकाकरण से पहले ही स्कूल जा सकते हैं.’

भारत में स्कूल मार्च 2020 में बंद हो गए और तबसे सभी कक्षाएं ऑनलाइन ही चल रही हैं. केंद्र सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में स्कूलों को फिर से खोलने की अनुमति दी थी, लेकिन बढ़ते मामलों और अंततः काफी भयावह साबित हुई दूसरी लहर के कारण इस साल मार्च के अंत में उन्हें फिर से बंद कर दिया गया.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

गांधी के मुताबिक, जब और जैसे ही मंजूरी मिलती है बच्चों का टीकाकरण होना भी बेहद अहम है, खासकर भारतीय संदर्भ में जहां एक ही घर में कई वे कई पीढ़ी के लोगों के साथ रहते हैं.

अभी भारत में केवल वयस्कों के लिए कोविड के टीके स्वीकृत किए गए हैं, हालांकि कई कंपनियां कम उम्र के लोगों पर अपने टीकों का परीक्षण कर रही हैं. भारत बायोटेक ने बच्चों पर कोवैक्सीन ट्रायल शुरू किया है और जाइडस कैडिला भी कम उम्र के लोगों के बीच ट्रायल कर रही है.


यह भी पढ़ें: 2020 में Covid के चलते भारत में लाखों बच्चों के छूट गए होंगे नियमित टीके : WHO


वैक्सीन की कमी के लिए बड़ी फार्मा कंपनियां, अमीर देश जिम्मेदार

महामारी के खात्मे के लिए टीकों की ताकत पर पूरा भरोसा रखने वाली डॉ. गांधी ने भारत सहित दुनियाभर में टीकाकरण की धीमी गति को लेकर भी चिंता जताई.

उन्होंने कहा, ‘यह देखते हुए कि भारत पहले भारतीय लोगों का ख्याल किए बिना टीकों का निर्यात कर रहा है, सचमुच एक त्रासदी है. भारत काफी बड़ा देश है, यहां 1.37 अरब लोग हैं. मुझे लगता है कि यह दुखद है कि भारत ने तेजी से (पर्याप्त) टीकाकरण नहीं किया.’

प्रोफेसर गांधी ने देश में वैक्सीन की मौजूदा कमी के लिए बड़ी फार्मा कंपनियों और अमीर देशों को भी जिम्मेदार ठहराया.

भारत और दक्षिण अफ्रीका की तरफ से कोविड टीकों के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए विश्व व्यापार संगठन से मांगी गई पेटेंट छूट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं दुनिया को भी दोषी मानती हूं.’ छूट को अंततः ठुकरा दिया गया था.

डॉ. गांधी ने कहा, ‘राष्ट्रपति बिडेन के पदभार संभालने के तुरंत बाद फार्मा कंपनियों ने उन्हें इसके खिलाफ लिखा था क्योंकि इससे उनका मुनाफा घटेगा. बाइडेन ने (पेटेंट) छूट का फैसला किया लेकिन दुर्भाग्य से यूरोपीय संघ ने ऐसा नहीं किया. भारत ने वास्तव में ये स्थिति टालने के लिए बहुत सक्रियता दिखाई और यह दुनिया की गलती है कि उसने उस समय वैक्सीन मुहैया कराने के लिए पूरी ताकत नहीं लगाई जब हम 2021 में जो हुआ, उसका अनुमान लगा सकते थे.

वर्षों से एचआईवी पर काम कर रहीं और इसलिए किसी महामारी को लेकर अनुभव रखने वाली डॉ. गांधी बतौर एचआईवी डॉक्टर वर्षों तक बड़ी फार्मा कंपनियों के साथ अपने अनुभव और पेटेंट छूट को लेकर उनके अड़ियल रुख को भी रेखांकित किया.

उन्होंने कहा, जब अमीर देशों में दवाएं उपलब्ध हो चुकी थीं, तब भी भारत और दक्षिण अफ्रीका में एचआईवी से हजारों लोगों की मौत हुई.

उन्होंने कहा, ‘मैं फार्मा कंपनियों को दोषी मानती हूं, मैं डब्ल्यूटीओ को दोषी मानती हूं और मैं अमीर देशों को भी दोषी मानती हूं.’

उन्होंने यह भी कहा कि वास्तव में भारत सिर्फ इसलिए तीसरी लहर से बच नहीं सकता क्योंकि काफी भयावह रही दूसरी लहर से कुछ प्रतिरक्षा हासिल हो चुकी है.

उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि इस भयानक दूसरी लहर के कारण भारत में तीसरी लहर नहीं आ रही है…जिसके कारण व्यापक स्तर पर नेचुरल इम्युनिटी हासिल हुई है और टीकाकरण भी हो रहा है. हालांकि तीसरी लहर से बचा जा सकता है.’


यह भी पढ़ें: हेटेरो का दावा- कोविड के हल्के लक्षण वाले रोगियों को जल्द ठीक होने में मदद करता है मोलनुपिराविर


टीके म्यूटेंट के खिलाफ असरदार होते हैं

डॉ. गांधी ने इन आशंकाओं को भी खारिज कर दिया कि टीके म्यूटेंट वैरिएंट के खिलाफ असरदार नहीं होते हैं.

प्रोफेसर ने कहा कि बहुआयामी ह्यूमन इम्यून सिस्टम एक बार टीके के संपर्क में आने के बाद वैरिएंट से लड़ने के लिए बेहतर ढंग से तैयार हो सकता है. और यही कारण है कि भारत में टीकाकरण की धीमी गति चिंताजनक है.

गांधी ने कहा कि इम्यून सिस्टम के दो हिस्से होते हैं—टी-कोशिकाएं और बी-कोशिकाएं, और टीके दोनों तरह की प्रतिक्रियाओं को सक्रिय करते हैं.

उन्होंने कहा कि यही वजह है कि यह पता करने के लिए क्या वैक्सीन ने काम किया है केवल एक एंटीबॉडी परीक्षण करना, इस तरह का आकलन करने का सही तरीका नहीं है कि क्या वैक्सीन ने कोई इम्यून रिस्पांस उत्पन्न किया.

गांधी ने कहा, ‘किसी भी म्यूटेंट के लिए टी-सेल इम्युनिटी से बचना कठिन है. डेल्टा के 10 या डेल्टा प्लस के 11 म्यूटेशन (और यहां तक कि वे भी) टी-कोशिकाओं से बच नहीं सकते. लेकिन बी-सेल एंटीबॉडी में ऐसा नहीं है. उदाहरण के तौर पर डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ हम कम एंटीबॉडी रिस्पांस पा रहे हैं. इसलिए हम दो खुराक के साथ डेल्टा वैरिएंट का मुकाबला कर सकते हैं लेकिन हम दो खुराक वाले टीके की एक खुराक से ऐसा हासिल नहीं कर सकते.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अल्फा (सबसे पहले यूके में पाए गए वैरिएंट) के मामले में ऐसा नहीं था, हम एक खुराक से इससे निपट सकते थे. एंटीबॉडी ट्रांसमिशन रोकते हैं और हल्के स्तर पर बीमारी से बचाने में भी मदद करते हैं. ऐसे में अगर हम ट्रांसमिशन नहीं भी रोक पाते हैं तो भी कुछ थोड़ी-बहुत सफलता तो हासिल ही करेंगे.’

गांधी के मुताबिक, इम्यूनिटी हासिल करने में अक्षम और बुजुर्ग लोगों को जल्द बूस्टर शॉट की जरूरत पड़ सकती है, लेकिन बाकी लोगों में टीके से मिली इम्यूनिटी काफी समय तक बनी रह सकती है.

उन्होंने कहा कि लेकिन पूरी तरह टीकाकरण करा लेने वाले लोगों के लिए भी मास्क जरूरी है, जब समुदाय में संक्रमण के काफी व्यापक स्तर पर फैला हो.

संक्रामक रोग विशेषज्ञ ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि बेहतर ढंग से इम्यूनिटी हासिल कर लेने वाले लोगों को जल्द बूस्टर डोज की जरूरत पड़ेगी. निकट भविष्य में, संभवत: पांच साल (या) दस साल में. मुझे अभी इसकी अवधि तो नहीं पता, लेकिन वार्षिक आधार पर इसकी संभावना नहीं है…पहले क्लीनिकल ट्रायल में शामिल लोगों की अब भी निगरानी की जा रही है और हम उन मरीजों में ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन नहीं देख रहे हैं.’ ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन का मतलब टीकाकरण वाले लोगों के रोग की चपेट आने वाले मामले होते हैं.

गांधी ने आगे कहा कि फिलहाल तो यही लगता है कि सभी म्यूटेंट के साथ भी, संक्रमण की चपेट में आ चुके लोग भी टीका लगवा चुके लोगों की तरह ही सुरक्षित हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें शॉट लेने की जरूरत नहीं है.

म्यूटेशन वो गलतियां होती है जो एक वायरस तब करता है जब वह तेजी से अपनी प्रतिकृतियां बना रहा होता है और नेचुरल सेलेक्शन उन गलतियों के साथ वायरस पार्टिकल की तरजीही प्रतिकृति होती है जो किसी स्थिति में इसका अस्तित्व बचे रहने के लिए सबसे अनुकूल है. ऐसे में सेलेक्शन प्रेशर वायरस को उसे चुनौती देने वाली परिस्थितियों के एकदम सामने ला देता है और यही ऐसी प्रतिकूलता से जूझने में सक्षम वैरिएंट के विकास का कारण बनता है.

गांधी इस सिद्धांत से सहमत नहीं हैं कि स्पाइक प्रोटीन को टारगेट करने वाले टीकों के कारण सेलेक्शन प्रेशर वायरस को अधिक संक्रामक बना रहा है.

डॉ. गांधी ने कहा, ‘अध्ययनों से पता चलता है कि टीके वायरस को म्यूटेट होने से से रोकते हैं. इसकी प्रतिकृति बनने और इतनी तेजी से बदलने का कारण यह है कि हमारे पास पर्याप्त टीके नहीं हैं. मुझे नहीं लगता कि टीके वायरस म्यूटेट होने के लिए सेलेक्शन प्रेशर डाल रहे हैं, जैसा कि एंटीबायोटिक दवाओं के साथ होता है. यह इम्यूनोलॉजी में एक बहुत ही अलग फिनोमिना है.’

हालांकि, कोई एक पसंदीदा टीका बताने से इनकार करते हुए, गांधी ने स्पष्ट किया कि वह इस दावे का समर्थन करती हैं कि कोवैक्सीन में म्यूटेंट से लड़ने की बेहतर क्षमता है, क्योंकि इसे पूरी तरह से निष्क्रिय विषाणु से तैयार किया गया है.

उन्होंने कहा, ‘अच्छी बात यह है कि यह वास्तव में पूरी तरह से निष्क्रिय वायरस है. इसे वायरस के कई हिस्सों के खिलाफ टी-सेल और बी-सेल रिस्पांस मिलता है. यह (चूंकि म्यूटेशन केवल वायरस के एक छोटे से हिस्से में होता है, यह म्यूटेंट के खिलाफ काम करता है) एक ठोस तर्क है. यही नहीं, यहां तक कि एमआरएनए टीके भी वैरिएंट के खिलाफ काम कर रहे हैं.’

डॉ. गांधी ने कहा, ‘आपके पास जो भी टीका है, उसे लगाओ. कोवैक्सीन एक अच्छा टीका है, अन्य सारे भी अच्छे हैं. किसी को भी वैक्सीन देने के लिए हम जो कुछ भी कर सकते हैं, करें, इससे महामारी का फैलना रुकेगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


य़ह भी पढ़ें: आखिरकार मोदी सरकार ने बढ़ाई टीके की कीमत, कोविशील्ड के लिए 215 और कोवैक्सीन के लिए देगी 225 रुपए


 

share & View comments