scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होमदेशदिल्ली सरकार पहले कोविड मौतें कम बता रही थी. अब ज़्यादा गिन रही है

दिल्ली सरकार पहले कोविड मौतें कम बता रही थी. अब ज़्यादा गिन रही है

केजरीवाल सरकार के स्वास्थ्य बुलेटिन में, 15 से 21 मई के बीच हर दिन जितनी मौतें बताई गईं, वो इसी अवधि के दौरान, दिल्ली नगर निगमों की ओर से दी गई संख्या से अधिक थी.

Text Size:

नई दिल्ली: अभी तक मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार पर आरोप लगाए जा रहे थे, कि वो राष्ट्रीय राजधानी में कोविड-19 से हुई, मौतों की संख्या कम करके बता रही थी.

लेकिन ऐसा लगता है कि कहानी पूरी तरह बदल गई है. अब ऐसा लगता है कि दैनिक मौतों की तालिका में गिनती बढ़ाकर, सरकार उसकी भरपाई करती नज़र आ रही है.

दिप्रिंट के हाथ लगे डेटा के अनुसार, दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य बुलेटिन में, 15 से 21 मई के बीच हर दिन जितनी मौतें बताई गईं, वो इसी अवधि के दौरान, दिल्ली नगर निगमों की ओर से दी गई संख्या से अधिक थी, जो श्मशान घरों और क़ब्रिस्तानों का प्रबंधन करते हैं.

सभी कोविड-नामित श्मशानों से मिले आंकड़ों का मिलान करने से पता चला, कि 15 मई को 308 मौतें दिखाई गईं थीं, जबकि सरकारी आंकड़ा 337 मौतों का था- 29 (9 प्रतिशत) का अंतर. एक दिन के बाद, ये अंतर 86 मौतों का हो गया.

आंकड़ों से पता चला कि 18,19, 20 और 21 मई को ये अंतर, क्रमश: 40, 29, 10 और 92 मौतों का था. 22 मई को ये संख्या क्रमश: 156 और 182 मौतें थीं.

चित्रण: रमनदीप कौर/ दिप्रिंट
चित्रण: रमनदीप कौर/ दिप्रिंट
चित्रण: रमनदीप कौर/ दिप्रिंट
चित्रण: रमनदीप कौर/ दिप्रिंट

 

चित्रण: रमनदीप कौर/ दिप्रिंट
चित्रण: रमनदीप कौर/ दिप्रिंट

ये इसलिए और भी अहम हो जाता है, क्योंकि पिछले साल महामारी के शुरू होने के बाद से, राष्ट्रीय राजधानी में मौतों को कम बताए जाने की ख़बरें मिलती रही हैं, ख़ासकर ज़्यादा घातक दूसरी लहर के दौरान, जो पिछले महीने शुरू हुई.

अप्रैल के अंत और इस महीने के शुरू में, कई श्मशान घरों और क़ब्रिस्तानों में शवों के अंतिम संस्कार या दफन के लिए जगह नहीं बची. इसके बाद, पार्किंग स्थलों का इस्तेमाल करने के अलावा, अस्थाई श्मशान घर भी स्थापित करने पड़े.

ताज़ा विसंगति ने दिल्ली में कोविड-19 से जुड़े आंकड़ों की, वास्तविकता पर फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं.

‘इस विसंगति के दो मतलब हो सकते हैं: या तो शवों का अंतिम संस्कार नहीं किया जा रहा है, या फिर दिल्ली सरकार, अब उन मौतों की भरपाई कर रही है, जिनकी पहले ख़बर नहीं दी गई थी, यानी पिछले महीनों में मौतों की संख्या कम बताई गई,’ ये कहना था एक नगर निगम के मुख्य ज़िला चिकित्सा अधिकारी का, जो अप्रैल 2020 से कोविड मौतों के आंकड़ों के रख-रखाव से जुड़े रहे हैं.

अधिकारी ने, नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘शव आख़िर कहां जाएंगे, अगर उनका अंतिम संस्कार नहीं होगा, चूंकि एक शव को आख़िरकार श्मशान घर, या क़ब्रिस्तान आना होता है. इसलिए सरकार अगर लगातार, श्मशान घरों और क़ब्रिस्तानों की संख्या से अधिक, आंकड़े दे रही है तो उससे ज़ाहिर होता है, कि बुलेटिन में मौतों की संख्या सही नहीं बताई जा रही’.

इस विसंगति के बारे में पूछे जाने पर, दिल्ली सरकार की स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक नूतन मुंडेजा ने कहा: ‘आंकड़ों में (अब) विसंगति का एक बड़ा कारण है व्यस्त शेड्यूल…अस्पतालों ने हमें अपने ताज़ा आंकड़े भेजने में देरी की है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘वो ऐसे मरीज़ों की पहचान में लगे हैं, जिनकी मौत शायद पिछले हफ्ते, या अस्पताल से छुट्टी के कुछ समय बाद हुई होगी. और इसी तरह वो हमें आंकड़े भेजते हैं, जो हमारे अधिकारिक बुलेटिन में नज़र आते हैं’.

मुंडेजा ने कहा कि ये वो मौतें हो सकती हैं, जो पहले हुई होंगी लेकिन जिनकी समय रहते ख़बरें नहीं दी गई होंगी.


यह भी पढ़ें: कोरोना से जान गंवाने वाले डॉक्टरों के परिवारों को 1 करोड़ रुपए देगी दिल्ली सरकार, फिर बढ़ा लॉकडाउन


क्या कहते हैं नगर निगम

ये विसंगति सिटी-स्टेट की राजनीति के बीच भी फंस रही है, जिसमें भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नियंत्रित नगर निगम, इस बेमेलपन के लिए सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं.

उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) के मेयर जय प्रकाश ने कहा, ‘हमें अब ताज्जुब नहीं होना चाहिए, चूंकि दिल्ली सरकार पहले दिन से ही, मौतों के अपने आंकड़ों को लेकर, पारदर्शी नहीं रही है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘ये ताज़ा अंतर साफ तौर पर दिखाता है, कि वो उन मौतों की भरपाई कर रहे हैं, जो उन्होंने पहले कम बताईं थीं, और अब उन्हें हर रोज़ की मौतों के सरकारी आंकड़ों में शामिल कर रहे हैं’.

ग्राउंड स्टाफ ने कहा काम का बोझ घटा

दिप्रिंट ने स्थानीय क़ब्रिस्तानों और श्मशान घरों के एंबुलेंस ड्राइवरों तथा प्रभारी अधिकारियों से बात की, ये समझने के लिए कि क्या पिछले कुछ दिनों में, अंतिम संस्कारों और दफ्नाने के बोझ में कुछ कमी आई है.

65 वर्षीय कबीर, जो पहले मुफ्त में एक एंबुलेंस सेवा लाते थे, कहा: ‘बहुत फर्क़ आ गया है, चूंकि पहले तो मेरी एंबुलेंस में हर समय शव रखे रहते थे, चूंकि हमें जगह नहीं मिलती थी, इसलिए मैं अस्पताल से एक श्मशान जाता था, और वहां से दूसरे श्मशान जाता था. कभी कभी तो कोई शव पूरी रात, मेरी एंबुलेंस में रखा रहता था’.

उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन पिछले दो हफ्तों से ऐसा नहीं हुआ है, और मुझे दिन भर में सिर्फ चार या पांच शवों के लिए कॉल आती है, और शुक्र है कि हम जिस जगह भी शव को लेकर गए, हमें वहां जगह मिल गई’.

अवदेश शर्मा ने भी, जो एनडीएमसी में तीन श्मशान घरों के इंचार्ज हैं, इस बात की पुष्टि की, कि हाल ही में रोज़ाना का बोझ कम हुआ है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘रहस्यमयी वायरस’ के खात्मे के लिए हरियाणा के जींद में 50 जड़ी-बूटियों के साथ चल रहा है मोबाइल ‘कोरोना हवन’


 

share & View comments