नई दिल्ली: इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-नेशनल ऑफ न्यूट्रिशन (आईसीएमआर-एनआईएन) के पिछले सप्ताह के आहार दिशानिर्देशों की एक प्रमुख विशेषता एथलीटों सहित सभी जनसंख्या समूहों के लिए प्रोटीन सप्लीमेंट के उपयोग से बचना है.
एनआईएन की निदेशक डॉ. हेमलता आर. ने दिप्रिंट को बताया कि दिशानिर्देश आधुनिक विज्ञान और बढ़ते सबूतों के अनुरूप हैं कि एथलीटों सहित हर कोई सही खाद्य पदार्थों के माध्यम से प्रोटीन की अनुशंसित मात्रा प्राप्त कर सकता है.
“ज्यादातर एथलीट बिना किसी सप्लीमेंट के उपयोग के अकेले भोजन के माध्यम से अनुशंसित मात्रा में प्रोटीन प्राप्त कर सकते हैं. प्रोटीन पाउडर की आवश्यकता नहीं है,” 13 साल बाद जारी दिशानिर्देश में कहा गया है, ”इसके अलावा, बड़ी मात्रा में प्रोटीन का लंबे समय तक सेवन संभावित खतरों से जुड़ा है, जैसे हड्डियों में खनिज की कमी होना और किडनी को क्षति पहुंचना.”
इस संदेश ने भारत में प्रोटीन सप्लीमेंट की बढ़ती लोकप्रियता पर प्रकाश डाला है. बाजार के अनुमान के मुताबिक, भारत का प्रोटीन-आधारित उत्पाद बाजार 2023 में 33,000 करोड़ रुपये का था जिसके कि 2032 तक सालाना 15.8 प्रतिशत की दर से बढ़कर 1.28 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है.
यही कारण है कि कुछ न्यूट्रीशन स्पेशलिस्ट का मानना है कि एनआईएन दिशानिर्देश सही समय पर आया है और ऐसे सप्लीमेंट्स के आधिकारिक सलाह से संबंधित खालीपन को भर देंगे.
दिल्ली स्थित सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण विशेषज्ञ डॉ. सुजीत रंजन ने दिप्रिंट को बताया, “एनआईएन दिशानिर्देश बेहद उपयोगी हैं क्योंकि यह सच है कि भारतीयों में भोजन की आदतों के बारे में जागरूकता – जैसे कि प्रोटीन पर ध्यान देना और न केवल उच्च कार्बोहाइड्रेट-आधारित आहार पर – एक स्वागत योग्य बदलाव है, और सप्लीमेंट्स पर लोगों की ज़रूरत से ज्यादा निर्भरता काफी हद तक बाजार-प्रेरित है और आवश्यक रूप से विज्ञान द्वारा समर्थित नहीं है.”
भारतीय संदर्भ में, जहां आहार सप्लीमेंट्स, यहां तक कि हर्बल प्रोटीन पाउडर भी खराब तरीके से विनियमित हैं, संभावना यह है कि इन्हें लेने वाले लोग कोई लाभ पाने के बजाय अपने स्वास्थ्य और कल्याण को नुकसान पहुंचाते हैं.
भारत में बिकने वाले 36 लोकप्रिय प्रोटीन सप्लीमेंट्स का अपनी तरह का पहला विश्लेषण, जो पिछले महीने सामने आया था, से पता चला है कि 70 प्रतिशत पर गलत लेबल लगाया गया था, 14 प्रतिशत ब्रांडों में विषाक्त पदार्थ थे और 8 प्रतिशत में कीटनाशक अवशेष थे.
यह भले ही चौंकाने वाला हो, लेकिन इतना ही नहीं. महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा में फूड एंड न्यूट्रीशन विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुनीता चंदोरकर ने दिप्रिंट को बताया, बाजार में उपलब्ध ऐसे कुछ सप्लीमेंट्स और शारीरिक रूप से सक्रिय लोगों द्वारा सेवन – विशेषज्ञ की सलाह और सुपरविज़न के साथ या उसके बिना – में स्टेरॉयड जैसे प्रतिबंधित पदार्थ भी हो सकते हैं.
प्रोटीन, प्रोटीन पाउडर, और कितनी मात्रा ज्यादा है
प्रोटीन प्रत्येक जीवित कोशिका के प्राथमिक संरचनात्मक और कार्यात्मक घटक हैं. इसका लगभग आधा हिस्सा मांसपेशियों के रूप में होता है और बाकी हिस्सा हड्डियों, कार्टिलेज और त्वचा में होता है.
प्रोटीन 20 अमीनो एसिड से बने जटिल अणु होते हैं – जिनमें से नौ ‘अति आवश्यक’ होते हैं और इन्हें आहार के माध्यम से प्राप्त करना पड़ता है क्योंकि वे मानव शरीर में नहीं बनते हैं. शेष गैर-आवश्यक अमीनो एसिड हैं, जिन्हें प्रोटीन बनाने के लिए शरीर में संश्लेषित किया जा सकता है.
उम्र, शारीरिक स्थिति और तनाव के साथ प्रोटीन की आवश्यकताएं अलग-अलग होती हैं, बढ़ते शिशुओं और बच्चों, किशोरों, गर्भवती महिलाओं और संक्रमण, बीमारी और शारीरिक तनाव के दौरान व्यक्तियों को इसकी अधिक आवश्यकता होती है.
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दूध, मांस, मछली और अंडे जैसे पशु खाद्य पदार्थ और दालें जैसे पौधों के खाद्य पदार्थ प्रोटीन के समृद्ध स्रोत हैं. पशु प्रोटीन उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं क्योंकि वे जैव-उपलब्ध होते हैं और सभी आवश्यक अमीनो एसिड सही अनुपात में प्रदान करते हैं, जबकि पौधे या वनस्पति प्रोटीन में कुछ आवश्यक अमीनो एसिड की मात्रा कम होती है.
हालांकि, एनआईएन दिशानिर्देश कहते हैं कि अनाज, बाजरा और दालों का कॉम्बिनेशन अधिकांश अमीनो एसिड प्रदान करता है.
चंदोरकर के अनुसार, 2020 में भारतीयों के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकताओं पर एनआईएन के अद्यतन दिशानिर्देशों में प्रोटीन के अनुशंसित आहार भत्ते (आरडीए) को 1 ग्राम/किलो शरीर के वजन से घटाकर 0.83 ग्राम/किलो शरीर के वजन तक करने की सलाह दी गई, जो 97.5 प्रतिशत आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करता है. इस बीच, अनुमानित औसत आवश्यकता 0.66 प्रतिशत थी, जो 50 प्रतिशत आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करती है.
आरडीए आवश्यक पोषक तत्वों के सेवन के स्तर हैं जिन्हें व्यावहारिक रूप से सभी स्वस्थ व्यक्तियों की ज्ञात पोषक तत्वों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त माना जाता है. इसके विपरीत, ईएआर पोषक तत्वों के सेवन का औसत दैनिक स्तर है जो 50 प्रतिशत स्वस्थ व्यक्तियों की आवश्यकताओं को पूरा करने का अनुमान है.
जबकि आरडीए आदर्श है, ईएआर न्यूनतम आवश्यकता है.
उन्होंने कहा, “यह भारत के बड़े जनसंख्या समूहों पर किए गए अध्ययनों पर आधारित था. यह डेटा पहले गायब था. इसके अलावा, मिश्रित शाकाहारी भारतीय आहार से प्रोटीन की गुणवत्ता या जैविक मूल्य या प्रोटीन की उपलब्धता पर डेटा (तब तक) उपलब्ध था और यह महसूस किया गया कि आवश्यकताओं को कम करने की आवश्यकता है.”
केरल स्थित चिकित्सा शोधकर्ता डॉ. राजीव जयदेवन ने कहा कि 60 किलोग्राम वजन वाले वयस्क को शारीरिक गतिविधि के स्तर के आधार पर प्रतिदिन 50-80 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है.
प्रोटीन पाउडर अंडे, डेयरी दूध, व्हे, या सोयाबीन, मटर और चावल जैसे पौधों के स्रोतों से बनाए जाते हैं.
सप्लीमेंट्स के रूप में पैकेजिंग करके बेचे जाने वाले कुछ पाउडर में कई स्रोतों से प्राप्त प्रोटीन होता है. एनआईएन के अनुसार, इनमें से कुछ उत्पादों में अतिरिक्त शर्करा, गैर-कैलोरी स्वीटनर और आर्टिफिशियल फ्लेवरिंग जैसे एडिटिव्स भी शामिल हो सकते हैं, और नियमित आधार पर इसकी सलाह नहीं दी जाती है.
एजेंसी का कहना है कि यहां तक कि व्हे प्रोटीन भी ब्रांच्ड-चेन अमीनो एसिड (बीसीएए) से भरपूर होता है. गौरतलब है कि हाल के साक्ष्यों से पता चलता है कि बीसीएए कुछ गैर-संचारी (Non-Communicable) रोगों के खतरे को बढ़ा सकता है.
दिशानिर्देश इस बात पर भी जोर देते हैं कि सिंथेसिस और शरीर के अन्य कार्यों के लिए आहार प्रोटीन (Dietary Protein) का उपयोग करने के लिए कार्बोहाइड्रेट और वसा से पर्याप्त ऊर्जा आवश्यक है.
कई एथलीट बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन का सेवन करते हैं, अक्सर पाउडर के रूप में, लेकिन एनआईएन यह स्पष्ट करता है कि उन्हें भी प्रोटीन की उतनी जरूरत नहीं होती जितनी आमतौर पर मानी जाती हैं.
दिशानिर्देश बताते हैं, “वास्तव में, शोध के निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि स्वस्थ वयस्कों में लंबे समय तक प्रतिरोध व्यायाम प्रशिक्षण (Resistance Exercise Training, RET) के दौरान आहार प्रोटीन सप्लीमेंटेशन मांसपेशियों की ताकत और आकार में केवल थोड़ी वृद्धि के साथ जुड़ा हुआ है; और 1.6 ग्राम/किग्रा/दिन से अधिक प्रोटीन सेवन का स्तर मांसपेशियों में आरईटी-प्रेरित लाभ में कोई योगदान नहीं देता है,”
वे यह भी चेतावनी देते हैं कि बड़ी मात्रा में प्रोटीन पाउडर का लंबे समय तक सेवन या उच्च प्रोटीन सांद्रता का सेवन संभावित खतरों से जुड़ा हुआ है, जैसे कि हड्डियों में मिनरल्स का कम होना और किडनी की क्षति.
बेंगलुरु में मणिपाल अस्पताल की चीफ क्लिनिकल डायटीशियन नबनिता साहा ने सलाह का स्वागत किया, विशेष रूप से अत्यधिक प्रोटीन सप्लीमेंट से जुड़े अंतर्निहित स्वास्थ्य नुकसान, जैसे कि गुर्दे की क्षति, पाचन प्रभाव और असंतुलित पोषक तत्व सेवन को देखते हुए.
उसने कहा, “एक संपूर्ण आहार जिसमें विभिन्न प्रोटीन स्रोत शामिल हों – जैसे फलियां, नट्स, डेयरी, अंडे, मांस और मछली – सभी आयु समूहों के लिए प्रोटीन की आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं. संपूर्ण भोजन न केवल प्रोटीन देता है बल्कि आवश्यक विटामिन, खनिज और फाइबर भी देता है, जिनकी अक्सर सप्लीमेंट्स में कमी होती है.”
साहा ने यह भी कहा कि खासकर युवाओं में बिना पूरी जानकारी के फिटनेस ट्रेंड अपनाने की प्रवृत्ति है.
उन्होंने कहा, “उन्हें संतुलित और पौष्टिक आहार के महत्व और पूरक आहार पर अत्यधिक निर्भरता के नुकसान के बारे में शिक्षित करना दीर्घकालिक स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण है.”
जयदेवन ने बताया कि कई मामलों में, युवा जिम प्रशिक्षकों या पोषण में कोई विशेषज्ञता नहीं रखने वाले अपने साथियों द्वारा दी गई सलाह के आधार पर प्रोटीन और अन्य सप्लीमेंट्स लेना शुरू कर देते हैं.
उन्होंने कहा, “कई मामलों में, यह सलाह विज्ञान के बजाय निहित स्वार्थ पर आधारित होती है.”
जहां बारीकियों की आवश्यकता हो सकती है
लेकिन जबकि अधिकांश आबादी को प्रोटीन सप्लीमेंट की आवश्यकता नहीं है, इसका मतलब यह नहीं है कि किसी को भी उनकी आवश्यकता नहीं है.
जयदेवन ने कहा कि हालांकि दिशानिर्देश बुनियादी बातों को कवर करते हैं, लेकिन जरूरी नहीं कि वे प्रत्येक बारीकी को हल करें. अन्य विशेषज्ञ भी इस बात से सहमत हुए.
दिल्ली में द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ इंडिया के कार्यकारी निदेशक, विवेकानंद झा के अनुसार, ऐसी विशिष्ट परिस्थितियां और जनसंख्या समूह हो सकते हैं जहां प्रोटीन की खुराक फायदेमंद हो सकती है – यहां तक कि आवश्यक भी.
इनमें वृद्ध वयस्क शामिल हैं जो सरकोपेनिया (मांसपेशियों और ताकत की हानि) का अनुभव करते हैं, प्रोटीन की बढ़ती आवश्यकता वाले लोग जैसे कि सर्जरी, चोट या कुपोषण से उबरने वाले लोग, डायलिसिस पर रहने वाले लोग, और जो बेरिएट्रिक सर्जरी से गुजर चुके हैं, वे भी शामिल हैं.
उन्होंने कहा, “कुछ एथलीटों और गहन शारीरिक प्रशिक्षण में लगे व्यक्तियों को भी इसकी आवश्यकता हो सकती है,” उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि इन सप्लीमेंट्स को केवल चिकित्सकीय देखरेख में ही लिया जाना चाहिए.
जयदेवन ने भी कहा कि जब सप्लीमेंट्स की बात आती है, तो एक योग्य आहार विशेषज्ञ की भूमिका महत्वपूर्ण होती है जो व्यक्तिगत पोषण संबंधी जरूरतों का आकलन कर सके.
उन्होंने कहा, “जिम मालिक या ट्रेनर अक्सर प्रशिक्षित आहार विशेषज्ञ नहीं होते हैं और उन्हें पूरक आहार के बारे में सलाह का एकमात्र स्रोत नहीं होना चाहिए.”
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