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Thursday, 21 November, 2024
होमहेल्थगहराता संकटः बिस्तर नहीं, हांफते मरीज़, छत्तीसगढ़ के दुर्ग में बढ़ती मौतें

गहराता संकटः बिस्तर नहीं, हांफते मरीज़, छत्तीसगढ़ के दुर्ग में बढ़ती मौतें

कोविड मामलों में दुर्ग राज्य का दूसरा सबसे अधिक प्रभावित ज़िला है, और देश के उन 15 ज़िलों में से एक है, जहां केस लोड सबसे अधिक चल रहा है.

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दुर्ग (छत्तीसगढ़) : शंकर लाल श्रीनिवास बृहस्पतिवार को, छत्तीसगढ़ में दुर्ग सिविल अस्पताल तक पहुंच ही नहीं पाया. यहां लाने के कुछ मिनटों के भीतर ही, 42 वर्षीय शख़्स ने अस्पताल के दरवाज़े पर कोविड के सामने, ख़ामोशी से हथियार डाल दिए, जब वो ऑक्सीजन का इंतज़ार कर रहा था.

पास खड़े उसके 82 वर्षीय पिता लखन लाल श्रीनिवास, समझने की कोशिश कर रहे थे कि आख़िर हुआ क्या, और एंबुलेंस ड्राइवर डी राजू, अस्पताल के स्टाफ का ध्यान खींचने की कोशिश कर रहा था.

डी राजू ने कहा, ‘हम उन्हें अभी अभी लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल से लेकर आए थे, मुश्किल से 10-15 मिनट पहले. उसने आगे कहा, ‘अगर उन्हें ऑक्सीजन मिल गई होती, तो उन्हें बचाया जा सकता था. डॉक्टरों ने उन पर कोई तवज्जो नहीं दी’.

पिता ने बताया कि शंकर को सांस लेने में परेशानी हो रही थी. उन्होंने कहा, ‘पिछले तीन दिन से उसे सांस लेने में दिक़्क़त हो रही थी. आज हम लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल गए थे, लेकिन उन्होंने हमें यहां भेज दिया, क्योंकि वहां कोई बेड ख़ाली नहीं थे, और यहां बेड के इंतज़ार में उसकी मौत हो गई’.

पूरे ज़िले और पूरे सूबे में यही कहानी देखने को मिल रही है, जो कोविड-19 की दूसरी लहर में, सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में से एक है.

मसलन, दुर्ग सिविल अस्पताल को ही ले लीजिए. बृहस्पतिवार को दोपहर के समय टेस्टिंग सेंटर के बाहर लंबी क़तारें थीं, मरीज़ों को एंबुलेंसेज़ के भीतर ही ऑक्सीजन दी जा रही थी, जबकि दूसरे बहुत से मरीज़ एंबुलेंसेज़, ऑटो, और निजी वाहनों में, हांफते हुए पहुंच रहे थे.

थोड़ी ही दूरी पर, शवों को वाहनों में भरा जा रहा था, जो दर्शा रहा था कि महामारी ने सूबे में कितना घातक मोड़ ले लिया है.

82-year-old Lakhan Lal Srinivas, whose son Shankar Lal Srinivas succumbed to Covid-19 Thursday | Photo: Suraj Singh Bisht/ThePrint
82 साल के लखन लाल श्रीवास्तव, जिनके पुत्र शंकर लाल श्रीनिवास ने गुरुवार को कोविड-19 के सामने दम तोड़ दिया । सूरज सिंह बिष्ट । दिप्रिंट

दुर्ग में संकट

दुर्ग राज्य का दूसरा सबसे प्रभावित ज़िला है- 15 अप्रैल तक इसमें कुल 62,166 मामले, और 1,054 मौतें दर्ज की जा चुकी हैं, जबकि 40,126 मरीज़ ठीक हो चुके हैं.

15 अप्रैल तक, छत्तीसगढ़ के कुल 1,21,769 एक्टिव मामलों में से, 20,968 दुर्ग में थे, जो रायपुर के 25,394 के बाद दूसरे नंबर पर था. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, केस लोड के मामले में भी, दुर्ग देश के शीर्ष 15 ज़िलों में से एक है.

राज्यव्यापी लॉकडाउन के बाद भी, जो 6 अप्रैल को लागू किया गया था, मामलों में कोई कमी नहीं आई है. छत्तीसगढ़ सरकार के आंकड़े बताते हैं, कि केवल अप्रैल महीने में ही दुर्ग में, रोज़ाना के मामलों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है, जो 1 अप्रैल के 996 से बढ़कर, 15 अप्रैल को 1,778 पहुंच गई.

पिछले एक महीने में, दुर्ग में मामलों तथा मौतों, दोनों में ज़बर्दस्त उछाल देखा जा रहा है. 15 मार्च को जहां दुर्ग में रोज़ाना मामले 154 थे, वहीं 15 अप्रैल को ये संख्या बढ़कर 1,778 पहुंच गई. ज़िले में कुल मौतों की संख्या, जो 15 मार्च को 653 थी, 15 अप्रैल तक लगभग दोगुनी बढ़कर 1,054 पहुंच गई.


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बिस्तरों की क़िल्लत

इस उछाल के नतीजे में, दुर्ग में अस्पताल के बिस्तरों के लिए, लंबी क़तारें देखी जा रही हैं, और मौतों की संख्या बढ़ रही है.

दुर्ग ज़िले की वेबसाइट पर पड़े आंकड़ों से पता चलता है, कि ज़िले के 23 निजी अस्पतालों, चार सरकारी अस्पतालों, और तीन कोविड-16 देखभाल केंद्रों पर, कोई वेंटिलेटर बेड उपलब्ध नहीं हैं. वेबसाइट के अनुसार, इस सभी सुविधाओं में कुल मिलाकर 1,716 बिस्तर हैं, जिनमें से फिलहाल केवल 146 ख़ाली हैं.

परिणामस्वरूप, दुर्ग सिविल अस्पताल में, जो ज़िले में सबसे बड़ा है, आसपास के गांवों से बड़ी संख्या में मरीज़ आ रहे हैं. बीस किलोमीटर दूर से आए एक कॉलेज छात्र मोहम्मद नसीम ने कहा, ‘मैंने चार अस्पतालों में अपने एक पड़ोसी को भर्ती कराने की कोशिश की है, लेकिन अभी तक बेड नहीं मिला है’.

दुर्ग के एक निजी अस्पताल एसआर हॉस्पिटल के बाहर खड़े पवन धराई ने कहा, ‘कहीं भी बिस्तर उपलब्ध नहीं है. मैंने सभी निजी अस्पतालों में फोन किया है, लेकिन मेरी बहन और उसके पति को, बिस्तर नहीं मिल पाए हैं. अब हम रायपुर जाने की योजना बना रहे हैं’.

लेकिन, छत्तीसगढ़ सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 20 मार्च के बाद से कोविड-19 बिस्तर, आईसीयू बेड्स, और वेंटिलेटर्स की संख्या बढ़ाई गई है.

आंकड़ों से पता चलता है कि 20 मार्च को, 60 अस्पताल कोविड-19 का इलाज मुहैया करा रहे थे, जबकि 16 अप्रैल तक ये संख्या, बढ़ाकर 170 कर दी गई है.

15 मार्च को जहां राज्य में 2,035 कोविड-19 बेड्स, 477 आईसीयू बेड्स, और 166 वेंटिलेटर्स थे, वहीं आज 6,912 बेड्स, 1,836 आईसीयू बेड्स, और 510 वेंटिलेटर्स हैं.

दिप्रिंट से बात करते हुए, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव ने स्वीकार किया, कि आईसीयू बेड्स की अभी भी कमी है. मंत्री ने कहा, ‘मुख्य कमी आईसीयू बेड्स की है, और हमारे पास तत्काल कुछ करने की गुंजाइश भी नहीं है. संकट का एक कारण ये भी है, कि मरीज़ कुछ विशेष अस्पतालों में जाना चाहते हैं, चाहे वो रायपुर का एम्स हो या ब्रैम (भीमराव आम्बेडकर मेमोरियल) अस्पताल’. उन्होंने आगे कहा, ‘राज्य के आधे आईसीयू बेड्स अकेले रायपुर में हैं. वो एक बड़ी समस्या है और हम 1,000 अतिरिक्त आईसीयू बेड्स की मंज़ूरी लेने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन आज जो ज़रूरत है, हम उससे 20-30 दिन पीछे हैं’.

‘इस अस्पताल से कोई ज़िंदा वापस नहीं जाता’

निजी अस्पतालों के भरे होने की वजह से, मरीज़ों के सामने दुर्ग सिविल अस्पताल का रुख़ करने के अलावा, कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता.

बृहस्पतिवार दोपहर क़रीब 2 बजे, दिप्रिंट ने देखा कि अस्पताल के बाहर उस वक़्त शोरग़ुल होने लगा, जब एक शव वाहन अंदर दाख़िल हुआ, और पीपीई सबट पहने अस्पताल कर्मियों ने, वैन में कई शव लादने शुरू किए.

मरीज़ों के परिजन ये देखने के लिए जमा हो गए, कि क्या उनके रिश्तेदार भी मृतकों में शामिल थे. वो अस्पताल पर आरोप लगा रहे थे, कि वहां मरीज़ों को पर्याप्त चिकित्सकीय तवज्जो नहीं दी जा रही है.

एक परिवार के सदस्य ने रोते हुए कहा, ‘यहां जो मरीज़ भर्ती होते हैं, वो ज़िंदा वापस नहीं जाएंगे’.

ज़िला प्रशासन के एक कर्मचारी ने, जो नाम नहीं बताना चाहता था, कहा, ‘मेरी बहन की कल शाम 6 बजे मौत हुई थी, लेकिन इन्होंने अभी तक उसका शव नहीं दिया है. मैं सुबह 9 बजे से शव का इंतज़ार कर रहा हूं’. उसने आगे कहा, ‘मैंने 7 तारीख़ को जब उसे यहां भर्ती कराया था, तो अंदर उसकी सहायता के लिए कोई नर्स मौजूद नहीं थी. मुझे ख़ुद उसकी मदद करनी पड़ी, और अब वो चल बसी है’.


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Patients at the Durg Civil Hospital | Photo: Suraj Singh Bisht/ThePrint
दुर्ग के सिविल हॉस्पिटल में मरीज। सूरज सिंह बिष्ट । दिप्रिंट

अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट

बिगड़ती हुई स्थिति के बावजूद, अधिकारियों का कहना था कि वो अपनी ओर से भरसक कोशिश कर रहे हैं. दुर्ग के अतिरिक्त तहसीलदार नीलमणि दूबे ने कहा, ‘ये यहां पर पहली मौतें नहीं हैं. इस अस्पताल में हर रोज़ काफी मरीज़ मर रहे हैं. ये पहली बार है कि सरकार और आम लोग दोनों, इस तरह के स्वास्थ्य संकट से गुज़र रहे हैं’.

दुर्ग के मुख्य चिकित्सा अधिकारी, डॉ गंभीर सिंह ठाकुर ने कहा, ‘हमने सरकारी अस्पतालों में पहले ही 700 बिस्तर बढ़ा दिए हैं, और कोविड बेड्स की संख्या बढ़ाने के लिए, हम निजी अस्पतालों को भी साथ ले रहे हैं’. उन्होंने आगे कहा, ‘हम ग़ैर-कोविड निजी अस्पतालों से भी बात करने जा रहे हैं, कि दबाव करने के लिए वो कोविड मरीज़ों को लेना शुरू करें’.

टेस्टिंग को लेकर भी चिंता बढ़ रही है, क्योंकि निगेटिव रैपिड एंटिजन टेस्ट, दुर्ग में अव्यवस्था को और बढ़ा रहे हैं.

मरीज़ों ने बताया कि हालांकि उनके रैपिड एंटिजेन टेस्टों के नतीजे निगेटिव थे, लेकिन जल्द ही उन्हें सांस लेने में परेशानी होने लगी.

एक मरीज़ के परिजन ने, नाम न बताने की शर्त पर बताया, ‘मेरे भाई का ऑक्सीजन लेवल गिरकर 60 पर आ गया था, इसलिए मुझे अपने गांव से यहां आना पड़ा, जो दुर्ग से 20 किलोमीटर दूर है’. उसने आगे कहा, ‘उसने तीन दिन पहले ही एंटिजन टेस्ट कराया था, लेकिन वो निगेटिव था. मेरे गांव में आरटी-पीसीआर टेस्ट नहीं होते, इसलिए उसे ऑक्सीजन दिलाने के लिए मुझे यहां आना पड़ा’.

दिप्रिंट से बात करने वाले अधिकारियों ने कहा, कि नमूनों को रायपुर भेजकर, दुर्ग में सिविल अस्पताल का भारी बोझ कम किया जा रहा है.

ठाकुर ने कहा, ‘हम जानते हैं कि आरटी-पीसीआरमें समय लग रहा है, और एंटिजन टेस्टिंग के नतीजे सही नहीं आ रहे हैं. हमें कुछ इलाक़ों से टेस्टिंग को रोक कर, संसाधनों को कम से अधिक बोझ वाले इलाक़ों में भेजना पड़ा’. उन्होंने आगे कहा, ‘अब हमने कुछ लैब टेक्नीशियंस को तैनात किया है, जो नमूनों को दुर्ग से एम्स रायपुर लेकर जाएंगे, ताकि वहां का बोझ कम किया जा सके’.

ज़िला अधिकारियों ने ये भी कहा, कि इस अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए, वो अपनी ओर से भरसक कोशिश कर रहे हैं. दूबे ने कहा, ‘हमने पहले कभी ऐसा अनुभव नहीं किया है, लेकिन फिर भी हम बिस्तर और क्षमता बढ़ा रहे हैं, और इससे निपटने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.’

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