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Friday, 19 April, 2024
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दिल्ली में COVID से सितंबर में मौतें दोगुने से ज्यादा हुईं, लेकिन मामलों में आई कमी

कोविड मौतों में उछाल के लिए डॉक्टर्स, बुज़ुर्गों की अधिक संख्या और दूसरी बीमारियों वाले संक्रमित मरीज़ों को ज़िम्मेदार मानते हैं. उनका कहना है कि मामलों में कमी आने के साथ, आने वाले हफ्तों में मृत्यु दर भी घटेगी.

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नई दिल्ली: दिल्ली में हर रोज़ कोविड से मरने वालों की संख्या इस महीने दोगुने से भी अधिक हो गई है. एक सितंबर को 18 मौतों से बढ़कर 27 सितंबर को ये 42 पहुंच गई. पिछले शनिवार को 46 मौतें हुईं, जो पिछले 72 दिनों में सबसे अधिक थीं.

26 सितंबर तक, दिल्ली की केस मृत्यु दर 1.9 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत 1.6 प्रतिशत है. ये तब है कि जब पिछले महीने राजधानी में नए मामलों में गिरावट का रुझान देखा गया है.

जिन डॉक्टरों से दिप्रिंट ने बात की, उनका कहना था कि मौतों में बढ़ोतरी का कारण, ज़्यादा संख्या में बुज़ुर्गों और दूसरी बीमारी वाले लोगों का संक्रमण की चपेट में आना है. डॉक्टरों ने ये भी कहा कि गंभीर मरीज़, पड़ोसी राज्यों से यहां आ रहे हैं, जो दिल्ली की संख्या में दिख रहा है.

बृहस्पतिवार को, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि लगता है दिल्ली अपने दूसरे पीक से गुज़र गई है और रोज़ाना के मामलों में लगातार कमी हो रही है.

27 सितंबर तक दिल्ली में कुल 2,71,114 मामले दर्ज हो चुके थे, जिनमें 5,235 मौतें हो चुकी हैं और 2,36,651 लोग ठीक हो चुके हैं.

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रोज़ाना मौतों में इज़ाफा

दिप्रिंट ने दिल्ली सरकार के आंकड़ों का जो विश्लेषण किया, उससे पता चलता है कि राष्ट्रीय राजधानी में शनिवार को हुई मौतें (46), पिछले 72 दिनों में सबसे अधिक थीं. पिछली बार इतनी अधिक मौतें 16 जुलाई को हुईं, जब 58 मौतें दर्ज की गईं थीं.

सितंबर के महीने में राष्ट्रीय राजधानी में मरनेवालों की संख्या दोगुने से अधिक हो गई है. अकेले पिछले सप्ताह में, मरने वालों की संख्या 19 सितंबर को 38 से बढ़कर, 26 सितंबर को 46 पहुंच गई.

चित्रण : रमनदीप कौर/ दिप्रिंट

शनिवार को देश में सबसे अधिक मौतों के मामले में, दिल्ली आठवें स्थान पर रही. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने बताया, कि पिछले 24 घंटों में देश भर में कुल 1,124 मौतों में, 84 प्रतिशत केवल दस राज्यों व केंद्र-शासित क्षेत्रों से थीं, जिनमें दिल्ली आठवें नंबर पर थी.


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लेकिन, दूसरी तरफ दिल्ली सरकार ने दिप्रिंट को बताया कि मौतों में आए उछाल को अलग करके नहीं देखना चाहिए. दिल्ली की स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ नूतन मुंडेजा ने कहा, ‘मामलों की संख्या बढ़ने के साथ ही मौतें भी बढ़ेंगी. सितंबर में मामलों में उछाल आया है. शनिवार की मौतों की संख्या (46) को अलग करके नहीं देखा जा सकता.’ उन्होंने आगे कहा, ‘पूरे महीने मौतों की संख्या, 25 से 35 के बीच झूलती रही है. 46 की संख्या में पिछले कुछ दिनों के मामले शामिल हैं.’

बढ़ती मृत्यु दर को लेकर जो चीज़ चिंताजनक है, वो ये कि अगस्त में उछाल आने के बाद पिछले हफ्ते रोज़ाना मामलों में कमी देखी गई है. 19 सितंबर को रोज़ाना मामले 4,071 थे, जो 26 सितंबर को घटकर 3,292 रह गए.

बुज़ुर्गों व दूसरी बीमारियों वाले लोगों में मामलों की संख्या अधिक

दिप्रिंट ने जिन डॉक्टरों से बात की उनका कहना था, कि मौतों में बढ़ोतरी का कारण ये है कि कुल मामलों में कमी के बावजूद, बुज़ुर्ग और दूसरी बीमारियों वाले लोग, ज़्यादा संक्रमित हो रहे हैं.

दिल्ली सरकार द्वारा संचालित, राजीव गांधी सुपरस्पेशिएलिटी अस्पताल के निदेशक, डॉ बीएल शेरवाल ने कहा, ‘कमज़ोर आयु वर्ग यानी दूसरी बीमारियों वाले बुज़ुर्ग, ज़्यादा संख्या में संक्रमित हो रहे हैं, जो इन मौतों में दिख रहा है.’ उन्होंने आगे कहा, ‘इसके अलावा, हमारे पास काफी संख्या में पड़ोसी राज्यों से भी मरीज़ आ रहे हैं, जो इलाज के लिए दिल्ली आ रहे हैं, ख़ासकर निजी अस्पतालों में.’

डॉक्टर्स ने कहा कि लॉकडाउन नियमों में ढील के साथ, दूसरे राज्यों से भी गंभीर मरीज़ इलाज के लिए आ रहे हैं. डॉक्टरों ने ये भी कहा ‘सिर्फ ऐसा नहीं है कि मरीज़ दूसरे राज्यों से इलाज के लिए आ रहे हैं, लेकिन बहुत गंभीर मरीज़ आ रहे हैं, जो मौतों के आंकड़े में दिख रहा है.’

डॉक्टरों ने ये भी कहा कि मौतों की संख्या बढ़ने से ये भी ज़ाहिर होता है कि समय रहते इलाज की ज़रूरत है. केंद्र सरकार द्वारा संचालित लेडी हार्डिंग अस्पताल के निदेशक, प्रो. एनएन माथुर ने कहा, ‘हमें जटिलताओं का पूर्वानुमान करके, आक्रामक तरीक़े से उनका इलाज करना होगा, ताकि मौतों से बच सकें.’

उन्होंने कहा कि होम आईसोलेशन की वजह से, अस्पताल में भीड़ नहीं हुई है, लेकिन जिन्हें अन्य बीमारिया हैं और जो बुज़ुर्ग हैं, उन्हें तुरंत देखने की ज़रूरत होती है. डॉ चटर्जी ने कहा, ‘इसमें कोई शक नहीं कि होम आईसोलेशन से अस्पतालों को मदद मिली है, लेकिन जो लोग कमज़ोर हैं, ख़ासकर जिन्हें दूसरी बीमारियां हैं, या जो बुज़ुर्ग हैं, उन्हें जल्द से जल्द केविड केयर सुविधा में भर्ती करने की ज़रूरत होती है. अस्पतालों में भी इलाज तभी कारगर होता है, जब वो सही समय पर किया जाए.’

‘मृत्यु दर संक्रमण की घटनाओं से पीछे रहती है’

दिप्रिंट ने जिन एक्सपर्ट्स से बात की, उनका कहना था कि मौतों में इज़ाफे के बावजूद रोज़ाना मामलों में आई कमी उस्ताहजनक है. वाइरॉलजिस्ट और क्रिस्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लौर के पूर्व प्रोफेसर, डॉ टी जेकब जॉन ने कहा, ‘इन्फेक्शन और मौतों की तुलना नहीं की जा सकती. मौतों का ताल्लुक़ हमेशा उन इन्फेक्शन से होता है, जो दो तीन हफ्ते पहले दर्ज किए हुए होते हैं.’

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफआई) में, वाइस प्रेसिडेंट हेल्थ सिस्टम्स सपोर्ट, डॉ प्रीती कुमार ने कहा कि रोज़ाना मामलों में कमी से, आने वाले हफ्तों में मौतों में भी कमी होनी चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘कोविड मामले में मृत्यु दर, हमेशा इनफेक्शन की घटनाओं के पीछे रहती है. अधिकांश लोग दो हफ्ते में ठीक हो जाते हैं, लेकिन बुज़ुर्ग और कमज़ोर लोग इन दो हफ्तों के बाद ज़्यादा गंभीर हो जाते हैं और इस महीने के शुरू से मौतों में जो उछाल दिख रहा है, वो वही हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘अगर अब मामले कम हो रहे हैं, तो अपेक्षा ये है कि आने वाले कुछ हफ्तों में, मौतों की संख्या में भी कमी आएगी.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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