नई दिल्ली: कोविड में आई कमी और टीकों की मांग घटने के साथ सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) ने साल के अंत तक सर्वाइकल कैंसर के खिलाफ भारत की पहली स्वदेश निर्मित वैक्सीन लॉन्च करने पर काम करना तेज कर दिया है.
2017 में एक तकनीकी विशेषज्ञ समूह ने सर्वाइकल कैंसर के सबसे सामान्य कारणों में से एक ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) के खिलाफ टीके को सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करने की सिफारिश की थी लेकिन इसे राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया नहीं गया.
कंपनी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी एसआईआई यह वैक्सीन नवंबर में लॉन्च करने पर विचार कर रही है.
हालांकि, दिप्रिंट की तरफ से कंपनी को जो औपचारिक मेल लिखा गया था, उस पर कोई जवाब नहीं आया है. लेकिन सूत्रों ने कहा कि वैक्सीन चरणबद्ध तरीके से उपलब्ध कराई जाएगी क्योंकि कंपनी बड़े पैमाने पर भंडारण के बजाये पहले व्यावहारिक स्थिति को आंकना चाहती है.
एसआईआई ने पहले ही कोविशील्ड उत्पादन घटाने के अपने फैसले की घोषणा कर दी है.
कंपनी के इस मोर्चे पर उतरने से वैक्सीन की कीमतों में उल्लेखनीय कमी आने की उम्मीद है. हालांकि, एसआईआई अभी कीमतों का ब्योरा देने को तैयार नहीं है. अभी बाजार में एचपीवी के जो टीके उपलब्ध हैं, उनमें मर्क निर्मित टीका गार्डासिल और ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन का सरवारिक्स शामिल हैं.
सरवारिक्स एक तीन खुराक वाला टीका है जिसकी कीमत लगभग 2,100 रुपये प्रति खुराक है. गार्डासिल की एक डोज करीब 3,100 रुपये की होती है और इसे लेने वाले की उम्र के लिहाज से दो-खुराक और तीन-खुराक दी जाती हैं.
टीके के बारे में एसआईआई की वेबसाइट बताती है, ‘सर्वाइकल कैंसर दुनियाभर में कैंसर के कारण महिलाओं की मृत्यु का एक प्रमुख कारण है. सर्वाइकल कैंसर से संबंधित अधिकांश मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं, जहां नियमित रूप से स्त्री रोग संबंधी जांच के इंतजाम बेहद कम या नहीं के बराबर होते हैं.’
इसमें आगे कहा गया है, ‘सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया एक टेट्रावैलेंट एचपीवी वैक्सीन विकसित कर रहा है जिसमें 6,11,16,18 सीरोटाइप के एल1 वीएलपी (वायरस जैसे कण) शामिल हैं, जिससे विकासशील देशों में पाए जाने वाले करीब 90 प्रतिशत पेपिलोमा वायरस के खिलाफ कवरेज की उम्मीद है. टीका विकसित होने के करीब है और निकट भविष्य में उपलब्ध होगा.’
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कीमत तय करने को लेकर चिंता
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, सर्वाइकल कैंसर 95 फीसदी से अधिक मामलों में सेक्सुअली ट्रांसमिटेड एचपीवी के कारण होता है. यह विश्व स्तर पर महिलाओं में चौथा सबसे आम कैंसर है, इनमें से 90 प्रतिशत मरीज निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होते हैं.
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल एंड पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजी के 2016 के एक पेपर के मुताबिक, ‘भारत में सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में होने वाले सभी कैंसर में लगभग 6 से 29 प्रतिशत होता है. आयु के लिहाज से सर्वाइकल कैंसर होने के मामलों में व्यापक भिन्नता पाई जाती है, उदाहरण के तौर पर मिजोरम राज्य में यह उच्चतम 23.07/100,000 है और डिब्रूगढ़ जिले में सबसे कम 4.91/100,000 है.’
2017 में टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) ने लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए टीके की सिफारिश की लेकिन कहा कि लड़कियों को पहला लक्ष्य होना चाहिए क्योंकि इस बीमारी का उन पर अत्यधिक प्रभाव पड़ रहा है.
हालांकि, सिफारिश के आधार पर टीके को राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल नहीं किया गया. उस समय इस मसले से जुड़े रहे अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि तब एक चिंता वैक्सीन की कीमतों को लेकर थी. हालांकि, पंजाब, दिल्ली और सिक्किम जैसे कुछ राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने टीकाकरण कार्यक्रमों में वैक्सीन को शामिल किया है.
उद्योग से जुड़े एक सूत्र ने कहा, ‘टीके को एनटीएजीआई की तरफ से पहले ही अनुमोदित किया जा चुका है, इसलिए इसको राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल करने वाला एकमात्र फैक्टर मूल्य निर्धारण है. एक बार घरेलू खिलाड़ी के बाजार में आने से इसका समाधान निकल आएगा और उम्मीद है कि कोविड-बाद टीकों की स्वीकार्यता बढ़ने के साथ हम जल्द ही इसे राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल देखेंगे. अगर ऐसा नहीं भी होता है, तो कई अंतरराष्ट्रीय खरीदार होंगे.’
आरएसएस का सहयोगी संगठन स्वदेशी जागरण मंच वैक्सीन के खिलाफ है और एचपीवी को राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल करने का विरोध करते हुए 2018 में प्रधानमंत्री को पत्र भी लिख चुका है.
पत्र में कहा गया था, ‘हमारी चिंता यह है कि ये कार्यक्रम दुर्लभ संसाधनों को अधिक सार्थक स्वास्थ्य पहल से हटाकर एक संदिग्ध उपयोगिता वाले के इस टीके की ओर मोड़ देगा और इसके प्रतिकूल प्रभाव राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के प्रति भरोसा घटा देंगे और इस तरह से हम बच्चों को अनावश्यक जोखिम में डाल देंगे जिन्हें अधिक गंभीर बीमारियों के लिए टीके लगना जरूरी हैं.’
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