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Thursday, 25 April, 2024
होमहेल्थलांसेट में छपी स्टडी के अनुसार सुरक्षित है कोवैक्सीन, कम से कम 3 महीने रह सकता है इम्यून रेस्पॉन्स

लांसेट में छपी स्टडी के अनुसार सुरक्षित है कोवैक्सीन, कम से कम 3 महीने रह सकता है इम्यून रेस्पॉन्स

आईसीएमआर और भारत बायोटेक के शोधकर्त्ताओं की स्टडी में दूसरे दौर के ट्रायल के अंतरिम नतीजे पेश किए गए हैं और साथ ही पहले दौर के ट्रायल प्रतिभागियों के 3 महीने के फॉलो-अप का विश्लेषण भी किया गया है.

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नई दिल्ली: मंगलवार को प्रकाशित हुई एक स्टडी में दावा किया गया है कि कोविड टीका कोवैक्सीन से पैदा हुआ इम्यून रेस्पॉन्स कम से कम तीन महीने तक रहता है और वैक्सीन की दो खुराकों के बीच 14 दिन की बजाय 28 दिन का अंतराल ज़्यादा कारगर रहता है.

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) और भारत बायोटेक के रिसर्चर्स द्वारा की गई और लांसेट इनफेक्शियस डिज़ीज़ेज़ पत्रिका में छपी, इस स्टडी में वैक्सीन के दूसरे दौर के अंतरिम नतीजे पेश किए गए हैं और साथ ही पहले दौर के ट्रायल प्रतिभागियों के 3 महीने के फॉलो-अप का विश्लेषण भी किया गया है.

हैदराबाद स्थित वैक्सीन निर्माता भारत बायोटेक और आईसीएमआर के सहयोग से विकसित की गई कोवैक्सीन, भारत की पहली स्वदेशी कोविड वैक्सीन है.


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पहले और दूसरे दौर के ट्रायल्स

फेज़ 1 ट्रायल्स के दौरान प्रतिभागियों को चार समूहों में बांटा गया और हर एक समूह को वैक्सीन के अलग-अलग फॉर्मूले दिए गए. पहले ग्रुप को 3 μg और उसके साथ एलजेल-आईएमडीजी नामक एक एडजूवांट दिया गया, दूसरे ग्रुप को एलजेल-आईएमडीजी के साथ 6 μg दिए गए, तीसरे ग्रुप को खाली एलजेल के साथ 6 μg दिए गए. स्टडी में कहा गया कि आखिरी ग्रुप को बिना वैक्सीन के सिर्फ एलजेल दिया गया.

एडजूवांट एक ऐसा पदार्थ होता है, जो वैक्सीन के प्रति इम्यून रेस्पॉन्स को बढ़ाता या नियंत्रित करता है.

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फेज़ 1 ट्रायल वैक्सीनेशन कार्यक्रमों के लिए दो सबसे उपयुक्त फॉर्मूले चुनने की मंशा से किया गया था. स्वीकार्य सुरक्षा परिणामों और इम्यून रेस्पॉन्स के हिसाब से, आगे फेज़ 2 के ट्रायल के लिए 3 μg के साथ एलजेल-आईएमडीजी और 6 μg के साथ एलजेल-आईएमडीजी के फॉर्मूलों का चयन किया गया.

इसके अलावा, पहले फेज़ में 14 दिन के अंतराल से वैक्सीन की दो खुराकें दी गईं. लेकिन दूसरे फेज़ में दोनों खुराकों के बीच का अंतराल बढ़ाकर 28 दिन कर दिया गया.

दूसरे दौर के ट्रायल का उद्देश्य 3 μg के साथ एलजेल-आईएमडीजी और 6 μg के साथ एलजेल-आईएमडीजी वाले समूहों के बीच अंतर का अध्ययन करना था.

वैक्सीन दिए गए 380 वयस्कों तथा किशोरों के आंकड़ों से पता चला कि वैक्सीन इम्यून रेस्पॉन्स को बढ़ा देती है. इसके अलावा, तटस्थ करने वाला रेस्पॉन्स- जिसमें वायरस को बीमारी फैलाने से रोक दिया जाता है, उस समय कहीं अधिक था, जब दो खुराकों के बीच के अंतराल को बढ़ाकर 28 दिन कर दिया गया.

स्टडी में कहा गया कि हालांकि 3 μg तथा एलजेल-आईएमडीजी, और 6 μg तथा एलजेल-आईएमडीजी वैक्सीन के, दोनों समूहों के समान सुरक्षा परिणाम थे, लेकिन शोधकर्त्ताओं ने तीसरे दौर के वैक्सीन ट्रायल्स के लिए, 6 μg तथा एलजेल-आईएमडीजी का इस्तेमाल करने का फैसला किया क्योंकि तीन महीने के बाद, टी-सेल की मध्यस्थता वाला इम्यून रेस्पॉन्स ज़्यादा स्पष्ट था.

टीम ने बताया कि फेज़ 2 ट्रायल में सबसे आम विपरीत घटना इंजेक्शन की जगह पर दर्द था, जिसके बाद सरदर्द, थकावट और बुखार था. लेकिन कोई गंभीर या जान को खतरे वाली घटना सामने नहीं आई.

वैक्सीन्स को मोटे तौर पर, दो किस्मों में बांटा जा सकता है- निष्क्रिय किए हुए और जीवित वैक्सीन्स. कोवैक्सीन, जिसे बीबीवी-152 भी कहा जाता है, निष्क्रिय वैक्सीन्स की श्रेणी में आता है.

ऐसी वैक्सीन्स में पैथोजन को ‘निष्क्रिय’ कर दिया जाता है, ताकि वो संक्रमण पैदा न कर सके. लेकिन, शरीर का इम्यून सिस्टम फिर भी वायरस के कुछ हिस्सों को पहचान सकता है और एक इम्यून रिएक्शन पैदा कर सकता है.


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एंटीबॉडी के स्तर

स्टडी में ये भी कहा गया कि चूंकि ये ट्रायल्स ऐसे समय किए गए, जब सार्स-सीओवी-2 वायरस, आबादी के बीच व्यापक रूप से फैला हुआ था, इसलिए हो सकता है कि वैक्सीन दिए गए प्रतिभागियों के एंटीबॉडी लेवल्स कुछ बढ़े हुए हों, क्योंकि संभव है कि अनजाने में वो वायरस के संपर्क में आ गए हों.

दूसरे दौर के ट्रायल में, किसी भी समूह में कोविड-19 के मामले नहीं पाए गए. चूंकि नियमित सार्स-सीओवी-2 टेस्टिंग भी नहीं की गई इसलिए पहले और दूसरे दौर के ट्रायल्स के नतीजों के बाद, शोधकर्त्ता प्रभावकारिता का आंकलन नहीं कर पाए.

लेकिन एक हालिया बयान में भारत बायोटेक ने कहा कि उसकी वैक्सीन ने तीसरे दौर के ट्रायल में, जिसमें 25,800 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था, 81 प्रतिशत अंतरिम प्रभावकारिता दिखाई है.

असर के ये नतीजे अभी तक किसी पियर रिव्यू पत्रिका में प्रकाशित नहीं हुए हैं.

शोधकर्ताओं की टीम अभी तक इम्यून रेस्पॉन्सेज़ के पूरे स्कोप या बीमारी की गंभीरता पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन नहीं कर पाई है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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