scorecardresearch
Thursday, 19 December, 2024
होमहेल्थबायोलॉजिकल ई का दावा- कोर्बेवैक्स भारत की ‘सबसे सस्ती वैक्सीन’, भारत के खजाने को 1,500 करोड़ की बचत होगी

बायोलॉजिकल ई का दावा- कोर्बेवैक्स भारत की ‘सबसे सस्ती वैक्सीन’, भारत के खजाने को 1,500 करोड़ की बचत होगी

हैदराबाद की कंपनी बायोलॉजिकल ई की वैक्सीन की कीमत प्राइवेट बाजार में 990 रुपये है. वहीं, सरकार के लिए इसकी कीमत सिर्फ़ 145 रुपये रखी गई है. इसकी वजह से यह काफी किफायती भी है.

Text Size:

हैदराबाद: दवा कंपनी बायोलॉजिकल ई-लिमिटेड की कोर्बेवैक्स ‘भारत की सबसे सस्ती’ कोविड-19 वैक्सीन है. यह 12 से 18 साल के लोगों के लिए है. इससे भारतीय खजाने का 1,500 करोड़ रुपया बचेगा. बुधवार को ये जानकारी कंपनी की मैनेजिंग डायरेक्टर महिमा डाटला ने दी.

डाटला के मुताबिक, ‘कंपनी ने इसका प्राइवेट बाजार में मूल्य 990 रुपये रखा है. इसमें सभी तरह के कर और प्रशासनिक शुल्क शामिल हैं. वहीं, सरकार के लिए इसकी कीमत सिर्फ़ 145 रुपये रखी गई है. इसकी वजह से यह काफी किफायती भी है.’

हैदराबाद स्थित यह कंपनी 5 से 12 साल के बच्चों के लिए आपातकाल में वैक्सीन के इस्तेमाल (ईयूए) की अनुमति चाहती है. कंपनी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि नियामक संस्थाओं के पास सभी ज़रूरी अंतरिम रिपोर्ट भेज दी गई हैं. कंपनी को ‘विश्वास’ है कि इस खास उम्र के बच्चों के लिए ईयूए मिल जाएगा.

स्पेशलिटी जेनेरिक इंजेक्टेबल एंड सिंथेटिक बायॉलजी के सीईओ और ग्लोबल स्ट्रेटजी के प्रमुख नरेंद्र देव मंटेना ने कहा कि कंपनी छह महीने के नवजात के लिए भी वैक्सीन विकसित करने की योजना बना रही है. उन्होंने कहा कि यह बीमारी नए स्वरूप में आ रही है. कंपनी को विश्वास है कि वैक्सीन सुरक्षा मानकों पर खरी उतरेगी.

डाटला ने एक प्रेस वार्ता में कहा, ‘सरकारी कार्यक्रमों के लिए हमारी वैक्सीन की कीमत सिर्फ़ 145 रुपये रखी गई है, जो कि देश में सबसे कम है. इससे सरकारी खजाने को सिर्फ़ हमारी आपूर्ति से ही 1,500 करोड़ रुपये की बचत होगी. बाजार में इसकी कीमत 800 रुपये रखी गई है. टैक्स और अन्य शुल्क जोड़कर इसकी कीमत 990 रुपये होगी. इसके बावजूद, यह दुनिया की सबसे सस्ती वैक्सीन होगी. यह वैक्सीन बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए उपलब्ध है.’

डाटला ने दिप्रिंट को बताया, ‘पांच से बारह साल के बच्चों के लिए हमारा ट्रायल तकरीबन पूरा हो गया है और हम अंतरिम रिपोर्ट भेज चुके हैं. हम समीक्षा के लिए जल्द ही एसईसी (सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमिटी) से मुलाकात करने की उम्मीद कर रहे हैं.’

कंपनी के मुताबिक, हम पहले ही 30 करोड़ कोविड वैक्सीन बना चुके हैं और पांच करोड़ वैक्सीन भारत सरकार को दे चुके हैं.

बायोलॉजिकल ई. के एग्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट (टेक्निकल ऑपरेशन) डॉक्टर विक्रम पराडकर ने कहा कि कंपनी हर साल 100 करोड़ टीके तैयार करने की क्षमता हासिल कर चुकी है. कोर्बेवैक्स स्वदेश में विकसित पहली रिसेप्टर बाइंडिंग डोमेन (आरबीडी) प्रोटीन सब-यूनिट कोविड वैक्सीन है. इसे एक साल तक सुरक्षित इस्तेमाल किया जा सकता है. पिछले साल दिसंबर महीने में कंपनी की वैक्सीन के लिए वयस्कों के इस्तेमाल के लिए ईयूए जारी हुआ था. वहीं, फरवरी में 12 से 18 साल के लोगों के लिए ईयूए की मंजूरी मिली.


यह भी पढ़ेंः जंग के खिलाफ अभी तक कोई वैक्सीन नहीं और नाटो ‘थिंक टैंक’ रूस के आक्रमण के बाद यूक्रेन में घुसे


हमारी वैक्सीन सुरक्षा मानकों पर खरी है

प्रेस वार्ता में पराडकर ने कहा कि संबंधित उम्र के 3,500 लोगों पर यह किए गए ट्रायल में ‘ग्रेड 3’ या गंभीर एई (एडवर्स इफेक्ट) का कोई भी मामला, किसी भी सब्जेक्ट में देखने को नहीं मिला. उन्होंने कहा कि लंबे समय तक निगरानी में रखने के बावजूद, किसी भी सब्जेक्ट में AESI (एडवर्स इवेंट ऑफ स्पेशल इंटरेस्ट) नहीं था.

पराडकर ने कहा, ‘हमारी वैक्सीन सुरक्षा मानकों पर खरी है. यह बेहतरीन प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया और न्यूनतम प्रतिक्रियाजन्यता (reactogenicity) देता है. हमने कॉर्बीवैक्स लगवाने वाले सब्जेक्ट पर छह महीने के बाद भी एंटीबॉडी की प्रतिक्रिया देखी है. हमें वैक्सीनेशन में शामिल सबजेक्ट पर संक्रमण के कोई भी लक्षण देखने को नहीं मिले हैं.’

इसके ‘प्रभाव’ से जुड़े डेटा या वैक्सीन से संबंधित अध्ययन के बारे में पूछे जाने पर, डाटला ने दिप्रिंट को बताया कि प्रभाव से जुड़े अध्ययन आमतौर पर ‘इनोवेटर’ की ओर से किए जाते हैं. खास तौर पर तब, जब बाजार में पहले से कोई भी वैक्सीन मौजूद न हो. उन्होंने कहा कि ब्रिटेन की एमएचआरए (मेडिसिन्स एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी) की ओर से कंपनी को मिली आधिकारिक सलाह के आधार पर इम्युनो-ब्रिजिंग स्टडी (कॉम्परेटिव स्टडी) करने के लिए प्रोटोकॉल को फॉलो किया है.

प्रेस वार्ता में दिप्रिंट की ओर से पूछे गए एक सवाल के जवाब में डाटला ने कहा, ‘ब्रिटेन की एमएचआरए की सलाह के आधार पर फॉलो किए गए प्रोटोकॉल के साथ जब हमने अपने देश के ड्रग नियामक संस्थाओं से संपर्क किया, तो उन्हें हमारे इस विचार को लेकर कोई दिक्कत नहीं थी. हमारे देश के ड्रग कंट्रोलर ने पहले से मौजूद वैक्सीन से उच्च मानक या बेहतर साबित करने को कहा. ऐसा करने के लिए हमने कोविशिल्ड को चुना. 3,500 लोगों से मिले डेटा जो कि हेड-टू-हेड इम्यूनो ब्रिजिंग स्टडी पर आधारित हैं, से यह पता चलता है कि यह वैक्सीन कोविशिल्ड से बेहतर है.’

स्टडी में IgG (एंटीबॉडिज) और एंटीबॉडिज को न्यूट्रलाइज करने की क्षमता के मानकों पर इस वैक्सीन की तुलना कोविशील्ड से की गई.

डाटला ने दिप्रिंट को बताया, ‘प्रभाव से जुड़ी स्टडी तब कि जाती है, जब आपके पास कोई वैक्सीन नहीं हो और आप नाइव पॉपुलेशन पर परीक्षण कर रहे हों. (ऐसी आबादी पर परीक्षण कर रहे हों जिनमें एंटीबॉडी विकसित न हो.) इससे हमें प्लेसिबो स्टडी करन का मौका मिलता है. इसमें आबादी के एक हिस्से को इम्युनाइज किया जाता है और दूसरे को इम्युनाइज नहीं किया जाता है. मौजूदा परिस्थिति में जब संक्रमण पूरी तरह से फैल गया है ऐसा करना अनैतिक होगा.’

डाटला ने उन रिपोर्ट्स को खारिज किया जिनमें कहा गया था कि केन्द्र सरकार ने नेशनल टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन इम्युनाइजेशन क्लियरेंस की ओर से कॉर्बीवैक्स को अनुमति मिले बिना ही बच्चों को लगाने की अनुमति दे दी है. उन्होंने कहा कि कंपनी ने हर स्तर के सभी तरह के डेटा NTAGI को भेजा है और उनके साथ नियमित तौर पर मीटिंग हुई है.


यह भी पढ़ेंः कोविड-19 का वैक्सीनेशन नहीं लगवाए लोगों की लोकल ट्रेनों में यात्रा को लेकर 2 दिन में निर्णय ले सरकार- बंबई HC


आस्ट्रेलिया, अफ्रीका के बाजारों पर नजर, WHO प्रीक्वालिफिकेशन की तलाश

कंपनी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के पास प्रीक्वालिफिकेशन प्रोसेस शुरू करने का आवेदन किया है. डब्ल्यूएचओ की टीम जल्द ही कंपनी का दौरा कर सकती है. प्रीक्वालिफिकेशन से पता चलता है कि अंतरराष्ट्रीय मानकों और डब्ल्यूएचओ/यूएनपीएफए के निर्देशों के मुताबिक कंपनी सतत रूप से गुणवत्ता के साथ उत्पादन कर सकती है या नहीं.

डाटला ने कहा कि बायोलॉजिकल ई. की नजर ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के बाजारों पर भी है. उन्होंने कहा कि उनसे (कंपनी) लंबे समय तक आपूर्ति के लिए कई देशों ने संपर्क किया है.

मंटिना ने कहा, ‘हम यूएस एफडीए से भी बातचीत कर रहे हैं. लेकिन, फिलहाल हमारा ध्यान वहां के बाजार पर नहीं है, क्योंकि हमारी वैक्सीन वहां के बाजार में कोई खास दखल नहीं दे पाएंगी, वहां दूसरे निर्माता हैं. हमारी नजर ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के बाजारों पर है.’

कंपनी की ओर से कहा गया है कि वे भारतीय बाजार में वैक्सीन की आपूर्ति के लिए कुछ  प्रतिष्ठानों से बातचीत कर रही हैं. प्राइवेट बाजार में वैक्सीन की मांग दस फीसदी से भी कम रहने वाली है, क्योंकि सरकार के वैक्सीनेशन प्रोग्राम की वजह से लोगों को आसानी से वैक्सीन मिल जा रही है और आबादी के बड़े हिस्से को पहले ही वैक्सीन दे दी गई है.

बायोलॉजिकल ई. एक और क्लिनिकल ट्रायल कर रही है, ताकि कॉर्बीवैक्स का इस्तेमाल को वैक्सीन और कोविशील्ड के दो डोज के बाद बूस्टर डोज (तीसरी डोज) के तौर पर किया जा सके.

कंपनी ने दावा किया कि कॉर्बीवैक्स कोविड के डेल्टा, बीटा और ओमिक्रॉन वैरिएंट के खिलाफ न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी तैयार करने में सक्षम है. साथ ही, कंपनी भविष्य में ऐसे किसी भी नए वैरिएंट के लिए वैक्सीन का परीक्षण जारी रखेगी.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः 15-18 आयु वर्ग के 3 करोड़ से अधिक लोगों को COVID-19 की वैक्सीन लगाई गई : मनसुख मंडाविया


 

share & View comments