नई दिल्ली : आयुष यानी आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्धा, सोवा रिग्पा और होम्योपैथी के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों ने अपनी चिकित्सा पद्धतियों को ‘अवैज्ञानिक’ करार देने के लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन पर पलटवार किया है.
देश के लगभग 3.5 लाख डॉक्टरों की शीर्ष लॉबी आईएमए ने गुरुवार को कोविड-19 मरीजों के लिए वैकल्पिक दवाओं और योग को बढ़ावा देने संबंधी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन की पहल को खारिज कर दिया था, और साथ ही मंत्री को पांच सवालों का जवाब देने की चुनौती भी थी. इसमें यह सवाल भी शामिल था कि अब तक कितने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों का इलाज आयुष प्रोटोकॉल के तहत हुआ है.
वहीं, अब लगभग 300 आयुष वैज्ञानिकों -जो केंद्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीसीआरएएस) में काम करते हैं और सीसीआरएएस साइंटिस्ट्स वेलफेयर एसोसिएशन (सीएसडब्ल्यूए) का हिस्सा हैं- ने आईएमए से पांच प्रश्न पूछे हैं, कोविड-19 के उपचार प्रोटोकॉल में मलेरिया रोधी दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) के उपयोग पर एलोपैथी डॉक्टरों की ‘चुप्पी’ का सवाल भी शामिल है.
आयुष वैज्ञानिकों का कहना है, ‘मौजूदा डाटा कोविड-19 के इलाज या रोकथाम के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल का समर्थन नहीं करता है.’
उनकी तरफ से उठाए गए अन्य सवाल कोविड-19 के उपचार या रोगनिरोधक के तौर पर रेमडिसिविर और स्टेरॉयड मेथिलप्रेडिसोलोन की प्रभावकारिता आदि से जुड़े हैं.
सीएसडब्ल्यूए के अध्यक्ष वी.के. शाही ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारा इरादा एक-दूसरे के पेशे या विज्ञान की दो अलग शाखाओं को लेकर कीचड़ उछालने का नहीं है. यह पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के सम्मान और संरक्षण के लिए खड़े होने का सबसे उचित समय है. जब हम उनके शोध और पद्धतियों में भरोसा करते हैं तो तो आधुनिक विज्ञान के डॉक्टरों को भी ऐसा ही करना चाहिए.’
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आयुष दवाओं को ‘निष्क्रिय’ कहना निंदनीय
आईएमए ने मांग की थी कि इन सवालों पर ‘केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को तस्वीर साफ करनी चाहिए’, और यदि वह ऐसा नहीं करते तो इसका मतलब है कि वह ‘निष्क्रिय दवाओं को इलाज बताकर सीधे-सादे मरीजों के साथ-साथ पूरे देश को गुमराह कर रहे हैं.’
सीएसडब्ल्यूए प्रमुख शाही ने 9 अक्टूबर को ही आईएमए को पत्र लिखकर कहा था, ‘यह एक कठोर निंदनीय बयान है क्योंकि यह पूरे देश में आयुष क्षेत्र में शोध करने वाले समुदाय की कड़ी मेहनत पर पानी फेरने वाला है.’
शाही ने कहा, ‘चिकित्सा की आयुष पद्धति अनुसंधान परिषदों और राष्ट्रीय संस्थानों के माध्यम से, और विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान आदि के सहयोग से भी, अनुसंधान के क्षेत्र में सराहनीय काम कर रही है.’
शाही ने बताया, ‘पत्र में कहा गया है कि भारत में पंजीकृत 67 इंटरवेंशनल ट्रायल (9 अक्टूबर तक) में 46 या 68.70 प्रतिशत आयुष पद्धतियों पर आधारित हैं, यह ‘साबित करता है’ कि ये पद्धति ‘समय के साथ परीक्षण पर खरे शोध अध्ययनों पर आधारित’ है.
पत्र में दावा किया गया है कि शोध के नतीजे समय-समय पर जर्नल में विशेषज्ञों के रिव्यू के जरिये प्रकाशित हो रहे हैं, और अब तक 29,576 शोध पत्र प्रकाशित किए जा चुके हैं.
सीएसडब्ल्यूए के पत्र में आगे लिखा गया है कि ‘यह इस बात का सबूत है कि आयुष पद्धति मील के पत्थर जैसे प्रयासों से देश में महामारी की स्थिति से लड़ने में अपना योगदान दे रही है.’
वैज्ञानिक ‘गोल्ड स्टैंडर्ड’
आईएमए के अनुसार, दवा की प्रभावकारिता साबित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक मापदंडों में से एक ‘डबल-ब्लाइंड कंट्रोल स्टडीज’ जरूरी है. एसोसिएशन ने स्वास्थ्य मंत्री से पूछा था कि क्या इस आधार पर ‘कोविड मरीजों पर आयुष अध्ययन के बाबत किए गए दावों को लेकर कोई संतोषजनक सबूत’ है.
इसके जवाब में आयुष वैज्ञानिकों ने लिखा है, ‘हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और मिथाइलप्रेडिसोलोन के कोविड-19 के हल्के लक्षणों में कारगर होने का उल्लेख किया गया है….डबल ब्लाइंड कंट्रोल स्टडी संबंधी सवाल के संदर्भ में यह साक्ष्य अपेक्षित हैं कि कोविड-19 में एचसीक्यू और मिथाइलप्रेडिसोलोन की प्रभावकारिता को लेकर रैंडम डबल ब्लाइंड स्टडीज जैसे गोल्ड स्टैंडर्ड वाले प्रभावी साक्ष्य आपके नजरिये के अनुरूप जर्नल के पीर रिव्यू में प्रकाशित हुए हैं.
पत्र में लिखा गया है कि एचसीक्यू की ‘प्रभावकारिता’ पर कोई प्रकाशित ट्रायल नहीं है, और एचसीक्यू से इलाज को लेकर जो दो ट्रायल पब्लिक डोमेन में हैं भी, उसमें से एक नॉन-पीर रिव्यू है. इसमें कहा गया है कि ‘दोनों ही मामलों में यह ट्रायल प्रीमेच्योर था जो कि क्लीनिकल ट्रायल साइट्स में प्रकाशन के लिए निर्धारित प्रोटोकॉल से अलग है.’
सीएसडब्ल्यूए ने कहा, ‘न तो वे और न ही तीन अन्य निगेटिव ट्रायल इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं कि एचसीक्यू कोविड के हल्के लक्षणों के दौरान प्रबंधन में प्रभावी है.’
पत्र में कहा गया है, ‘… आपके संदर्भ के लिए आयुष प्रणाली के प्रतिष्ठित अनुसंधान संगठन द्वारा बीते कुछ समय में राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर माने जाने वाले रोगों पर करीब 29 डबल ब्लाइंड अध्ययन या तो पूरे कर लिए गए हैं या चल रहे हैं.’
पत्र में पूछा गया है कि क्या ‘प्रबंधन में रेमडिसिविर और एचसीक्यू का इस्तेमाल’ भी डबल ब्लाइंड कंट्रोल अध्ययन पर आधारित है.
साथ ही यह सवाल भी उठाया गया है कि क्या आईएमए को पता है कि ‘आयुष संस्थान सक्रिय कोविड सेंटर हैं’ और ‘आयुष चिकित्सा पद्धति समग्रता से जुड़ी है और व्यक्तिगत आधार पर इलाज का तरीका अपनाती है, जिसकी वजह से डबल ब्लाइंड स्टडी हमेशा संभव नहीं होती है. इसलिए, यह आयुष चिकित्सा पद्धति के लिए गोल्ड स्टैंडर्ड नहीं है.
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Allopathic ka forceful kabja desh and All humans ke liye dangerous hai..jaha ilaj ki kimat itni hoti hai ki mat puchho..aur cure ki guarantee bhi itni kam ki mat puchho
आयुष सिर्फ इम्म्युनिटी बढ़ाने के नुक्से बता रहा है… कोविद 19 के दवा बनाने पर भी काम करें.. आयुष विभाग ने आज तक भी दावे के साथ कोई बीमारी की दवा नहीं बनाई है की वह कह सके की हमारी इस दवा से आपकी बीमारी 100%ठीक होंगी.. आजतक एक भी दवा नहीं बना पाया है… सिर्फ रिसर्च सालो से हो रहा है.. नतीजा जीरो है