आगरा: आगरा के मानसिक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा संस्थान के ओपीडी में 33 वर्षीय एक महिला अपने पति के साथ उसका हाथ पकड़े बैठी है. डॉक्टर के चैंबर में जाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करने के दौरान वह अपने पति से सैनिटाइजर मांगती है और फिर उसे अपनी कुर्सी पर अच्छी तरह छिड़क देती है.
दो बच्चों की मां यह महिला हलूसनैशन, संदेह, भ्रम और अनिद्रा रोग से पीड़ित है. पिछले दो हफ्ते से उसकी हालत बिगड़ती जा रही है. उसने मंगलवार को अपने कपड़े सड़क पर ही उतार दिए, जिसके बाद उसका पति उसे भर्ती कराने के लिए यहां लेकर आया.
एक डॉक्टर गलियारे में बैठी इस महिला के पास आता है और उसकी शिक्षा, उम्र और परिवार के बारे में पूछता है. वह सारे जवाब देती है.
इसके बाद डॉक्टर उससे पूछता है कि क्या वह कोविड-19 और वैक्सीन के बारे में जानती है.
वह जवाब देती है, ‘हां, मैं कोरोना जानती हूं. हाथ धोना, सफाई रखना, स्नान करना ही इससे बचने के उपाय हैं. इस रोग से लड़ने के लिए विटामिन और जूस बेहद अहम हैं. मैं भी जल्द ही टीका लगवाऊंगी.’
फिर वह अचानक ही कुछ अजीबो-गरीब चीजों के बारे में बोलने लगी, उसका दिमाग तमाम स्थानों और घटनाओं के बीच भटक रहा था.
ऐसे समय में जब पूरा देश कोविड की दूसरी लहर से प्रभावित है और गलत धारणाओं, भ्रामक सूचनाओं और अविश्वास की भावना के कारण टीके को लेकर हिचकिचाहट एक बड़ी चिंता का विषय बनकर उभरी है, इस मानसिक स्वास्थ्य संस्थान की स्थिति काफी हद तक नियंत्रण में है.
दिप्रिंट ने मंगलवार को ये पता लगाने के लिए संस्थान का दौरा किया कि यह महामारी से कैसे निपट रहा है और मरीजों को कैसे सामाजिक दूरी, मास्क और टीकाकरण के बारे में बताया जा रहा है.
वायरस और टीकाकरण
इस संस्थान में इस समय 270 मरीज हैं- इसमें 120 महिलाएं और 150 पुरुष शामिल हैं.
ये मरीज आमतौर पर न्यूरोसिस (तनाव से जुड़े मानसिक विकार लेकिन भ्रम या हलूसनैशन नहीं), साइकोमैटिक डिसऑर्डर (शारीरिक समस्याओं के बजाये मानसिक समस्याओं के कारण बिगड़ी स्थिति) और साइकोसेक्सुअल डिसऑर्डर (यौन समस्याएं जो मूलत: मनोवैज्ञानिक होती है किसी बीमारी के कारण नहीं) के शिकार हैं.
यद्यपि पहली लहर में यहां के मरीज कोविड से अछूते रहे, लेकिन दूसरी लहर के दौरान अप्रैल मध्य में 35 से ज्यादा मरीज कोविड पॉजिटिव पाए गए थे. फिलहाल यहां कोई एक्टिव केस नहीं है.
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संस्थान में एक मनोचिकित्सक डॉ. आरती यादव कहती हैं, ‘हमारे यहां इस बार 35 से अधिक कोविड-पॉजिटिव मामले सामने आए थे. यह स्थिति ऐसे एसिम्प्टमैटिक नए मरीजों के कारण आई जिन्हें भर्ती किए जाने के दौरान शुरू में कराए गए आरटी-पीसीआर टेस्ट में रिपोर्ट निगेटिव आई थी.
यह पूछे जाने पर कि संस्थान ने संक्रमण कैसे रोका, डॉ. यादव कहती हैं, ‘हर कक्ष में 20 मरीज हैं, इसलिए जैसे ही किसी मरीज को बुखार की शिकायत हुई और रिपोर्ट पॉजिटिव आई, हमने कांट्रैक्ट ट्रेसिंग की और तुरंत उन्हें आइसोलेट कर दिया. आखिरी मरीज करीब 10 दिन पहले ठीक हुआ है. वे सभी अब स्वस्थ हैं.’
इस संस्थान ने एक पखवाड़े पहले अपने परिसर में ही वैक्सीनेशन कैंप लगाया और यहां 45 वर्ष से अधिक आयु के 37 रोगियों को कोविड वैक्सीन की पहली खुराक दी गई थी.
अगला शिविर अगले महीने की शुरुआत में लगने वाला है.
संस्थान ने मरीजों को टीका लगवाने, मास्क पहनने के लिए कैसे प्रशिक्षित किया
संस्थान के डॉक्टरों के अनुसार, बाहर की स्थितियों के विपरीत यहां के मरीजों में वैक्सीन को लेकर असुरक्षा की कोई भावना नहीं है, और वे कोविड प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन करते हैं.
नाम न छापने की शर्त पर एक सीनियर डॉक्टर ने कहा, ‘वे हम पर भरोसा करते हैं और हमारी हर बात सुनते हैं. यह अभूतपूर्व स्थिति है और हममें से कोई भी इसके लिए तैयार नहीं था. लेकिन एक ‘सामान्य, स्वस्थ व्यक्ति’, जिन्हें लगता है कि टीका उनकी जान ले लेगा और यहां तक कि उनकी प्रजनन क्षमता खत्म कर देगा, के विपरीत यहां के मरीज ऐसा कुछ भी नहीं कहते हैं. एक बार समझाने पर सभी तुरंत टीकाकरण के लिए तैयार हो जाते हैं.’
इसके अलावा, ओपीडी विभाग में हर मरीज मास्क लगाए दिखता है.
यह पूछे जाने पर कि इस संकट से निपटना और मरीजों को मास्क पहनने की अहमियत समझाना कितना मुश्किल रहा, डॉ. यादव ने कहा, ‘मैं यह तो नहीं कहूंगी कि यह सब बहुत आसान था लेकिन यहां के मरीज हम पर भरोसा करते हैं. उन्हें समझाने के लिए हम विभिन्न तरीके इस्तेमाल करते हैं- मौखिक तौर पर समझाना और जागरूक करना, मॉडलिंग के जरिये सिखाना और बार-बार याद दिलाना.
वह मॉडलिंग को ‘सबसे उपयोगी तरीका’ बताती हैं. उन्होंने कहा, ‘डॉक्टर और नर्स वार्ड और कक्ष में जाते हैं और मरीजों को दिखाते हैं कि मास्क कैसे पहनना है. हम उन्हें बताते हैं कि हम मास्क पहन रहे हैं, और दुनिया को बचाने के लिए आपको भी इसे पहनना होगा. वे जब हम लोगों को नियमित तौर पर मास्क पहने देखते हैं, तो उसकी नकल करते हैं और मास्क पहने रहते हैं.’
उन्होंने बताया, ‘डिमेंशिया के मरीजों के मामले में जरूर हमें बार-बार उनको याद दिलाना पड़ता है और कभी-कभी खुद भी मास्क पहनाना पड़ता है.’
संस्थान के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. दिनेश सिंह राठौर का कहना है कि यह एक ‘आम गलतफहमी’ है कि ऐसे मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में भर्ती मरीज ‘आक्रामक होते हैं और कोई बात सुनते नहीं हैं.’
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उन्होंने कहा, ‘उचित परामर्श, चिकित्सीकय देखभाल और पूरा ध्यान दिया जाए तो हर कोई स्वस्थ और सामान्य जीवन जी सकता है. मानसिक बीमारी के केवल 3 प्रतिशत मामले ही गंभीर होते हैं.’
लॉकडाउन के बीच तनाव के स्तर पर नज़र
उत्तर प्रदेश में कोविड के कारण लॉकडाउन लगने से मरीजों के परिवार के सदस्यों का आना-जाना कम हो गया है. हालांकि, इस संस्थान के डॉक्टरों का कहना है कि वे अब भी परिजनों को सुरक्षित दूरी से मरीजों से बातचीत करने की अनुमति देते हैं, इसलिए यह उन पर और दबाव नहीं डालता है.
डॉ. यादव ने कहा, ‘मरीजों को तनाव मुक्त रखना बेहद जरूरी है, खासकर ऐसे कठिन समय में. तनाव मानसिक स्वास्थ्य को और बिगाड़ देता है. अपने परिजनों को लंबे समय तक नहीं देख पाना समस्या को बढ़ा सकता है.’
मरीज अपने प्रियजनों को नियमित कॉल और वीडियो कॉल भी करते हैं.
इसके अलावा, यह संस्थान उन मरीजों को टेलीफोन पर परामर्श देता रहता है जो ठीक होने के बाद अपने घर जा चुके हैं, और उन अन्य लोगों को भी सलाह देता है अनिद्रा, अवसाद, चिंता आदि शिकायतों को लेकर फोन के जरिये संपर्क करते हैं.
डॉ. यादव ने कहा, ‘कोविड ने अवसाद और एंजाइटी की समस्या को और बढ़ा दिया है. बहुत से मरीज जो घर जा चुके हैं, लॉकडाउन के कारण यहां नहीं आ पाते हैं, इसलिए जहां तक संभव होता है हम कॉल के जरिये उन्हें परामर्श देने की कोशिश करते हैं.’
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