नई दिल्ली: द लैंसेट जर्नल में शनिवार को प्रकाशित एक रिपोर्ट– जिसे लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन से जुड़े शोधकर्ताओं द्वारा लिखा गया है- के अनुसार 2020 में भारत में कम से कम 3.02 मिलियन बच्चे का जन्म समय से पहले हो गया. यह पूरी दुनिया में सबसे अधिक है. यह स्टडी विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (मूल रूप से संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष, UNICEF) के सहयोग से की गई थी.
समय से पहले जन्म को 37 सप्ताह से कम के गर्भ में जन्म के रूप में परिभाषित किया जाता है. इसे नवजात मृत्यु दर के लिए मुख्य जोखिम में से एक माना जाता है. जीवन के चार सप्ताह पूरे करने से पहले जन्मे शिशु की मृत्यु प्रति 1,000 जीवित जन्मों के संदर्भ में बताई जाती है.
7 अक्टूबर को प्रकाशित स्टडी के मुताबिक देश में कुल 30,16,700 बच्चे गर्भावस्था के 37 सप्ताह पूरे होने से पहले ही पैदा हो गए.
दिप्रिंट ने इसपर प्रतिक्रिया के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से ईमेल पर संपर्क किया है, लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. प्रतिक्रिया मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.
द लैंसेट में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक समय से पहले जन्म के चलते कई अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभाव देखने को मिलते हैं. इसमें “खराब स्वास्थ्य और विकास, बौद्धिक और मानसिक विकलांगता, और पुरानी बीमारियों की जल्दी शुरुआत” आदि शामिल हैं.
चूंकि WHO के अनुसार, पांच साल से कम उम्र के बच्चों में समय से पहले जन्म मृत्यु का सबसे प्रमुख कारण है, इसलिए बचपन में सुधार के लिए समय से पहले जन्मे बच्चों की देखभाल के साथ-साथ उसके स्वास्थ्य और पोषण पर ध्यान देने की तत्काल जरूरत है.
द लैंसेट में प्रकाशित स्टडी से यह भी पता चलता है कि एक दशक में भारत में समय से पहले जन्म के प्रतिशत में बहुत कम अंतर आया है. 2020 में सभी जन्मे बच्चों में से 13 प्रतिशत बच्चे समय से पहले जन्म लिए थे वहीं 2010 में यह संख्या 13.1 प्रतिशत थी.
स्टडी के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर अनुमानित 13.4 मिलियन बच्चे 2020 में समय से पहले पैदा हुए. इस अर्थ है कि जन्म लेने वाले जीवित बच्चों में से 10 में से लगभग 1 समय से पहले जन्मे.
स्टडी के लेखकों ने इस बात पर प्रकाश डाला, “भारत में 2020 में समय से पहले जन्म की कुल संख्या सबसे अधिक (3.02 मिलियन) थी और दुनिया भर में सभी समय से पहले जन्म का 20 प्रतिशत से अधिक भारत में था. इसके बाद पाकिस्तान, नाइजीरिया, चीन, इथियोपिया, बांग्लादेश, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और संयुक्त राज्य अमेरिका का स्थान था.”
समय से पहले जन्म सबसे अधिक दक्षिणी एशियाई क्षेत्रों में ही है. बांग्लादेश में 2020 में समय से पहले जन्म की दर सबसे अधिक (16.2 प्रतिशत) थी. इसके बाद पाकिस्तान (14.4 प्रतिशत) और भारत (13 प्रतिशत) है.
समयपूर्व जन्म दर प्रति 100 जीवित जन्मों पर समय से पहले जन्मों की संख्या है.
विशेषज्ञों का सुझाव है कि भारत में समय से पहले जन्म के मुद्दे पर जल्द से हस्तक्षेप होना चाहिए.
नई दिल्ली में मधुकर रेनबो चिल्ड्रेन हॉस्पिटल के वरिष्ठ सलाहकार नियोनेटोलॉजिस्ट अनिल बत्रा ने दिप्रिंट को बताया, “निम्न सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाली महिलाएं मुख्य रूप से संक्रमण के कारण समय से पहले प्रसव पीड़ा में चली जाती हैं. और शहरी परिवेश में मध्यम और उच्च-मध्यम वर्ग की महिलाएं इन-विट्रो निषेचन और अधिक उम्र में गर्भधारण जैसे कारणों के चलते समय से पहले बच्चों को जन्म देती हैं.”
यह भी पढ़ें: ICMR ने वैज्ञानिकों से टाइफाइड का पता लगाने वाले सटीक परीक्षणों के विकास का किया आग्रह
एक दशक में थोड़ा अंतर
WHO के अनुसार, जो समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चे रहते हैं, उनके लिए समय से पहले जन्म से बड़ी बीमारियों, विकलांगता और विकास संबंधी देरी और यहां तक कि अगर वह वयस्क हो जाते हैं तो उन्हें मधुमेह और हृदय जैसी पुरानी बीमारियों से पीड़ित होने की संभावना भी काफी बढ़ जाती है.
द लैंसेट में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक, “वैश्विक स्तर पर 2010 (9.8 प्रतिशत) और 2020 (9.9 प्रतिशत) के बीच समय से पहले जन्म दर में कोई औसत दर्जे का बदलाव नहीं हुआ है.”
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2010 में वैश्विक स्तर पर 13.8 मिलियन बच्चे समय से पहले जन्मे थे, जबकि 2020 में यह आंकड़ा 13.4 मिलियन था.
भारत सरकार स्वीकार करती है कि भारत में बाल मृत्यु का सबसे बड़ा कारण समय से पहले जन्म और जन्म के समय बच्चों का काफी कम वजन है. यह भारत की कुल बाल मृत्यु दर का 29.8 प्रतिशत है. इसके बाद निमोनिया (17.1 प्रतिशत) और डायरिया संबंधी बीमारियां (8.6 प्रतिशत) हैं.
इसके बावजूद, सरकार का कहना है कि भारत ने नवजात मृत्यु अनुपात (NMR) और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर (U5MR) को कम करने में उल्लेखनीय प्रगति की है. U5MR का तात्पर्य नवजात शिशु के पांच वर्ष की आयु से पहले मरने की संभावना से संबंधित है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, जबकि NMR 2014 में 26 से घटकर 2020 में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 20 हो गया (अंतिम वर्ष जिसके लिए डेटा उपलब्ध है), U5MR 2014 में 45 से घटकर 2020 में 32 हो गया.
डॉक्टर अनिल बत्रा के अनुसार प्रारंभिक चिकित्सा से नवजात शिशुओं की मृत्यु को रोकने में मदद मिल सकती है. लेकिन भारत में स्वास्थ्य बुनियादी ढांचा और जनशक्ति – खासकर नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए आवश्यक, जैसे कि नवजात गहन देखभाल इकाइयां, नवजात शिशु विशेषज्ञ और विशेष नर्सिंग देखभाल – ने देश की बढ़ती जरूरतों के साथ अपना विस्तार नहीं किया.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “न केवल समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में जन्म के समय संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है, बल्कि उनके महत्वपूर्ण अंग भी पूरी तरह से विकसित नहीं होते हैं, जिससे उनके जीवन को अतिरिक्त खतरा होता है. इन शिशुओं को अपने जीवन की शुरुआत में काफी देखभाल की आवश्यकता होती है, जो हमेशा उसे मिल नहीं पाती है.”
(संपादन: ऋषभ राज)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: चीनी रिसर्च में कहा गया कि नाश्ता न करने से कैंसर हो सकता है, भारतीय डॉक्टर बोले- अभी और सबूत की जरूरत