आगरा: आगरा के एक निजी अस्पताल में 26 अप्रैल को कथित तौर पर 22 मरीजों की मौत का कारण बनी ‘मॉक ड्रिल’ को लेकर रहस्य दिन पर दिन गहराता जा रहा है. यद्यपि श्री पारस अस्पताल प्रबंधन का दावा है कि ऑक्सीजन की कमी थी, जिला प्रशासन ने इसका प्रतिवाद करते हुए कहा है कि उस समय शहर में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं थी. इस बीच 26-27 अप्रैल को अस्पताल में दम तोड़ने वाले मरीजों के परिजन कुछ और ही कहानी बता रहे हैं. ऐसे सात परिवारों ने सोमवार को जिला प्रशासन के समक्ष अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि मौतें ऑक्सीजन की कमी और चिकित्सकीय लापरवाही के कारण हुई हैं.
26 अप्रैल को मरे 30 वर्षीय कार्तिक लावण्या के ससुर ने दिप्रिंट को बताया, जब मैं उसका शव लेने पहुंचा तो उनके नाखून नीले हो चुके थे. डॉक्टर ने कहा कि ऑक्सीजन की कमी के कारण हालत बिगड़ने के बाद उसकी मौत हो गई. यह भ्रमित करने वाला था क्योंकि एक दिन पहले ही डॉक्टर ने कहा था कि उसका ऑक्सीजन स्तर अच्छा है और वह 92 पर बना हुआ है.’
रजत जॉली की 62 वर्षीय आंटी मीना ग्रोवर, जो अस्थमा की मरीज थीं, 25 अप्रैल की शाम तक ‘पूरी तरह ठीक’ थीं. जॉली ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन्होंने सुबह अपना नाश्ता किया था और उस दिन हमें वीडियो-कॉल भी किया था. हालांकि, 26 अप्रैल को सुबह 4 बजे मुझे उनके लिए ऑक्सीजन की व्यवस्था करने के लिए कहा गया. जब तक हम दो सिलेंडर लेकर अस्पताल पहुंचे तब तक डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया.
26-27 अप्रैल को दम तोड़ने वाले दो अन्य मरीजों के परिजनों ने भी प्रशासन के बयान पर सवाल उठाए हैं.
पिछले हफ्ते सोशल मीडिया पर साझा एक वीडियो के बाद इस मामले ने तूल पकड़ा है, जिसमें पारस अस्पताल के मालिक डॉ अरिंजय जैन ने दावा किया था कि 26 अप्रैल को शहर में ऑक्सीजन की कमी के कारण ‘मॉक ड्रिल’ के हिस्से के रूप में अस्पताल में ऑक्सीजन की आपूर्ति में कटौती की गई थी.
उन्होंने वीडियो में यह कहते सुना जा सकता है, ‘ऑक्सीजन की भारी कमी थी. हम लोगों से अपने मरीजों को डिस्चार्ज कराने को कह रहे थे लेकिन कोई तैयार नहीं था. इसलिए मैंने एक प्रयोग करना तय किया, एक मॉक ड्रिल हुई.’
वह आगे कहते हैं, ‘स्थिति इतनी खराब थी कि सीएम को भी ऑक्सीजन नहीं मिल पाती. मोदीनगर में ऑक्सीजन नहीं थी…हमने 26 अप्रैल को सुबह 7 बजे मरीजों की ऑक्सीजन आपूर्ति पांच मिनट के लिए बंद कर दी थी. 22 मरीज नीले पड़ने लगे. चढ़ गए बाइस मरीज. फिर हमने बाकी 74 मरीजों के परिजनों से ऑक्सीजन सिलेंडर लाने को कहा.’
हालांकि, जैन ने बाद में कहा कि उनकी बात को गलत समझा गया.
उन्होंने मंगलवार को दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ‘मॉक ड्रिल’ की बात जुबान से फिसल गई थी. यह सभी मरीजों की ऑक्सीजन की जरूरत का पता लगाने के लिए एक ऑक्सीजन असेसमेंट प्रक्रिया थी.’ साथ ही जोड़ा कि अभ्यास के दौरान कोई मौत नहीं हुई थी.
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जिला प्रशासन का दावा-ऑक्सीजन की कमी नहीं थी
जिला प्रशासन ने 8 जून को अस्पताल को सील कर दिया था.
उसी दिन, आगरा के डिप्टी सीएमओ डॉ. राकेश अग्निहोत्री ने भी अस्पताल प्रशासन के खिलाफ न्यू आगरा पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 188 (लोक सेवक द्वारा आदेश की अवज्ञा) और धारा 505 (सार्वजनिक गड़बड़ी पैदा करने वाला बयान), आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 52 और धारा 54 और महामारी अधिनियम 1897 की धारा 3 के तहत मामला दर्ज किया था.
आगरा के जिला मजिस्ट्रेट प्रभु नारायण सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि वीडियो में मोदीनगर संयंत्र में ऑक्सीजन की अनुपलब्धता पर जैन की टिप्पणी, जिससे शहर में ‘अफरा-तफरी फैल सकती थी’, के कारण अस्पताल को सील कर दिया गया था.
उन्होंने कहा, ‘26, 27 और 28 अप्रैल को उनके लिए आरक्षित ऑक्सीजन सिलेंडर के अलावा हमने क्रमश: 149, 117 और 121 अतिरिक्त सिलेंडर भेजे थे. यह उनके 81 से 93 के बीच मरीजों की देखभाल के लिए पर्याप्त थे.’
प्रभु नारायण सिंह ने कहा, ‘श्री पारस अस्पताल में 22 लोगों की मौत की कथित घटना सच नहीं है क्योंकि आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि 26 अप्रैल को कोविड-19 के कारण चार और 27 अप्रैल को तीन लोगों की मौत हुई थी. ये मौतें ऑक्सीजन की कमी के कारण नहीं हुई थीं.’
उन्होंन कहा, ‘हालांकि, डॉ जैन को ‘मॉक ड्रिल’ शब्द का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए था और यह नहीं कहना चाहिए था कि मोदीनगर संयंत्र में ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं है. इससे शहर में अफरा-तफरी मच सकती थी. इसीलिए हमने डॉ. जैन के खिलाफ महामारी अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज की. एडीएम (सिटी) और एडिशनल सीएमओ आने वाले दिनों में इस मामले पर गौर करते रहेंगे.’
परिजन बोले-अस्पताल ने हमसे ऑक्सीजन की व्यवस्था करने को कहा
मृत मरीजों के रिश्तेदारों ने दिप्रिंट को बताया कि अस्पताल ने उन्हें ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था करने के लिए कहा था.
मयंक चावला ने कहा, ‘मेरे चाचा ने ट्विटर पर ऑक्सीजन मुहैया कराने के लिए मदद मांगी और मैंने भी कई बार सीएम हेल्पलाइन को फोन किया, लेकिन किसी ने भी मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ाया. अस्पताल ने हमें 26 अप्रैल को सुबह 4 बजे ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था करने को कहा था. मेरी चाची का ऑक्सीजन लेवल 96 पर बना हुआ था जबकि मेरे दादा का 80 के आसपास था. वे अचानक कैसे मर सकते हैं?’
उनके 71 वर्षीय दादा वासुदेव चावला और चाची मनीषा चावला (37) की क्रमशः 26 और 27 अप्रैल को अस्पताल में मौत हो गई थी.
आगरा सिविल कोर्ट के एक वकील प्रकाश चंद, जिनके पिता दयाल चंद की अस्पताल में मृत्यु हुई थी, ने कहा कि उनके पिता को 26 अप्रैल को आईसीयू वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया था.
उन्होंने कहा, ‘जैसा प्रबंधन ने कहा था, मैंने उसी दिन दो ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था की. लेकिन 27 अप्रैल को सुबह करीब 5 बजे मुझे सूचना मिली कि मेरे पिता की मृत्यु हो गई है.’ हालांकि, उन्होंने साथ ही यह भी बताया कि जब उन्हें ऑक्सीजन लाने के लिए कहा गया था तब उन्होंने देखा था कि उस दिन अस्पताल में कई सिलेंडर आ रहे थे.
उन चार मृतकों, जिनके रिश्तेदारों से दिप्रिंट ने बातचीत की, के नाम अस्पताल द्वारा जारी सूची में शामिल नहीं थे. ये चारों परिवार उन सात परिवारों में शामिल हैं, जिन्होंने सोमवार को जिला प्रशासन के समक्ष अस्पताल की शिकायत दर्ज कराई है.
एडीएम, आगरा प्रभाकांत अवस्थी ने कहा, ‘अब तक सात परिवारों ने श्री पारस अस्पताल के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है. उन सभी ने मौत का कारण चिकित्सकीय लापरवाही और ऑक्सीजन की कमी को बताया है, जिनमें से चार कोविड पॉजिटिव थे. इन सभी मामलों की जांच की जाएगी. हम इन मामलों पर डॉ जैन का बयान भी लेंगे.’
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अस्पताल ने आरोपों निराधार बताया
कथित ऑक्सीजन असेसमेंट एक्सरसाइज के दौरान अस्पताल में कम से कम दो रेजिडेंट डॉक्टर और छह सीनियर नर्स मौजूद थी.
26 अप्रैल को ड्यूटी पर रहे डॉक्टरों में से एक उपेंद्र राजपूत ने दिप्रिंट को बताया, ‘चार कोविड-19 मरीजों को ऑक्सीजन के उच्च स्तर की जरूरत थी जिनकी 26 अप्रैल को मौत हो गई. वे या तो वेंटिलेटर या बिपैप मशीन पर थे और मौतें प्राकृतिक थीं.’
अपने और अपने अस्पताल के खिलाफ दर्ज शिकायतों के बारे में पूछे जाने पर डॉ अरिंजय जैन ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये आरोप निराधार हैं. इन परिवारों में से कोई भी 40 दिनों तक आगे क्यों नहीं आया? इसके अलावा, अगर हमारे अस्पताल में 22 लोगों की मौत हुई है तो 15 अन्य शिकायतकर्ता कहां हैं?’
वीडियो वाले अपने बयान के उलट जैन ने कहा कि अस्पताल ने पांच मिनट के लिए ऑक्सीजन आपूर्ति नहीं रोकी थी, बल्कि अलग-अलग सभी मरीजों की ऑक्सीजन की जरूरत का पता लगाने के लिए ‘ऑक्सीजन असेसमेंट प्रॉसेस’ अपनाया था.
जैन ने कहा, ‘यदि 12 लीटर ऑक्सीजन पर 94 प्रतिशत सैचुरेशन लेवल बनाए रखने वाला कोई मरीज 10 लीटर ऑक्सीजन पर 91 प्रतिशत का स्तर बनाए रखता है, तो यह अच्छा है. और इस तरह हमने अपने ऑक्सीजन बचाने की कोशिश की। इस अभ्यास के दौरान हमने 22 गंभीर रोगियों को देखा, जो हाई फ्लो ऑक्सीजन पर थे और उनके रिश्तेदारों से कहा कि अगर हमारे सिलेंडर समय पर नहीं आते तो वे ऑक्सीजन बैकअप की व्यवस्था करें.’
उन्होंने कहा कि 22 गंभीर मरीजों में से कम से कम छह की जान बचाई गई थी और बाकी मरीजों की स्थिति में भी धीरे-धीरे सुधार हो रहा है.
अभ्यास के दौरान किसी की मौत न होने का दावा करते हुए डॉ. जैन ने कहा, ‘चढ़ गए का मतलब यह नहीं है कि मर गए. इसका मतलब है कि उन्हें एक कैटेगरी में रखा गया है. सुबह सात बजे मॉक ड्रिल के दौरान या उसके तुरंत बाद किसी की मौत नहीं हुई. 26 अप्रैल को जिस पहले मरीज ने हमारे अस्पताल में दम तोड़ा उसकी मौत शाम 4:32 बजे हुई थी. कोई गंभीर मरीज नौ घंटे कैसे जिंदा रह सकता है?’
उन्होंने आगे कहा, ‘अगर कोविड संदिग्ध या गैर-कोविड मामलों को भी जोड़ दें तो 26 अप्रैल को मौतों का कुल आंकड़ा 10 के पार नहीं जाएगा.
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