नई दिल्ली: पतंजलि आयुर्वेद ने शुक्रवार को ऐलान किया कि नरेंद्र मोदी सरकार ने उसकी कोरोनिल गोली का ग्रेड बढ़ाकर, उसे कोविड-19 के लिए ‘सहायक’ उपचार का दर्जा दे दिया है.
योग गुरू रामदेव ने विश्व संवास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) से सर्टिफिकेशन ऑफ फार्मास्यूटिकल्स प्रॉडक्ट्स (सीओपीपी) प्राप्त होने की भी घोषणा की, जिससे कंपनी की दवा- दिव्य कोरोनिल गोलियां और दिव्य स्वसरी वटी- को 158 देशों में निर्यात करने की अनुमति मिल गई है.
सीओपीपी एक सर्टिफिकेट है, जो डब्ल्यूएचओ द्वारा सिफारिश किए गए फॉरमैट में जारी किया जाता है, ये स्थापित करने के लिए कि फार्मास्यूटिकल उत्पाद और उसके निर्माता, दूसरे देशों को निर्यात करने के पात्र हैं.
सीओपीपी को– जिसे डब्ल्यूएचओ के प्रमाणीकरण के तहत, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया वीजी सोमानी ने, 5 नवंबर को कंपनी को जारी किया- स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, और केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने, शुक्रवार को एक प्रेसवार्ता में प्रमोट किया.
रामदेव ने पिछले साल जून में, कोविड किट लॉन्च की थी- एक पैक जिसमें तीन चीज़ें थीं, जिनमें कोरोनिल नाम की एक दवा भी थी- और उसका नॉवल कोरोनावायरस के ‘इलाज’ के तौर पर प्रचार भी किया था, जिसका अभी तक भी कोई इलाज नहीं है, हालांकि दुनिया भर में शोधकर्ता उसकी तलाश में लगे हैं.
लेकिन, पतंजलि का ये उत्पाद जल्द ही विवादों में घिर गया, क्योंकि अपने दावे के समर्थन के लिए उसके पास क्लीनिकल ट्रायल के सही आंकड़े नहीं थे और कंपनी ने इसे खांसी, बुख़ार और इम्यूनिटी बढ़ाने की दवा के तौर पर, बेचने की अनुमति मांगी थी.
दिसंबर में, हरिद्वार स्थित फर्म ने आयुष मंत्रालय में आवेदन दिया था कि ‘कोरोनिल गोली’ के आयुष लाइसेंस को सुधारकर, इसे इम्यूनिटीवर्द्धक से कोविड-19 की दवा कर दिया जाए’.
आयुष मंत्रालय की ओर से, कंपनी को जारी एक पत्र के अनुसार, जिसे पतंजलि आयुर्वेद ने अपनी पुस्तिका में प्रकाशित किया, इस प्रस्ताव को एम्स के फार्माकॉलोजी विभाग के पूर्व प्रोफेसर, डॉ एसके मौलिक के सामने रखा गया था. 7 जनवरी को भेजे गए इस पत्र में कहा गया, ‘समिति ने आकलन किया और देखा कि तुलसी और अश्वगंधा जैसे मूल तत्व, कोविड-19 के लिए नेशनल क्लीनिकल प्रोटोकोल में शामिल किए गए हैं, और उनके प्रस्तुतीकरण के तर्कों और निष्कर्षों के आधार पर सुझाव दिया जाता है कि इसका इस्तेमाल कोविड-19 में सहायक उपाय के तौर पर किया जा सकता है’.
दिप्रिंट ने आयुष मंत्रालय से पत्र की सच्चाई की पुष्टि की है. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘पत्र तो सही है लेकिन हमने सख़्ती से कंपनी से कहा है कि वो इस दवा का प्रचार ‘इलाज’ नहीं, बल्कि ‘सहायक’ उपचार के तौर पर करें’.
अधिकारी ने समझाया, ‘इसका मतलब है कि मरीज़ों का इलाज, बुनियादी तौर पर एलोपैथिक दवाओं से किया जाएगा, जो नेशनल ट्रीटमेंट प्रोटोकोल में तय की गई है, और अगर ज़रूरत पड़े तो पतंजलि की कोरोनिल एक सहायक या पूरक दवा के रूप में दी जा सकती है’.
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प्रभाव का अध्ययन सहकर्मी समीक्षा पत्रिका में छपा: पतंजलि
कंपनी ने अपनी स्टडी का हवाला दिया है, जो सहकर्मी समीक्षा पत्रिका साइंस डायरेक्ट के अप्रैल 2021 संस्करण में छपा है.
ये स्टडी 45 ऐसे लोगों पर की गई, जिन्हें इलाज दिया गया, और 50 ऐसे लोगों पर, जिन्हें नक़ली गोलियां (प्लेसीबो) दी गईं, और इसमें ये निष्कर्ष निकाला गया कि ‘आयुर्वेदिक उपचार से वायरोलॉजिकल क्लीयरेंस में तेज़ी आ सकती है, जल्दी रिकवरी में मदद मिलती है, और साथ ही साथ वायरल फैलने का जोखिम भी कम होता है’.
स्टडी में कहा गया कि ‘सूजन के कम निशानों से पता चला कि इलाज किए जाने वाले समूह में, सार्स-सीओवी-2 संक्रमण की गंभीरता कम थी’.
‘इसके अलावा ये भी देखा गया कि इस इलाज से जुड़ा कोई विपरीत प्रभाव देखने में नहीं आया’.
कंपनी का दावा था कि उसने अपनी रिसर्च कई लोकप्रिय सहकर्मी समीक्षा पत्रिकों को भेजी है, और उसे जल्द ही शोध के प्रकाशित होने की उम्मीद है.
पूरे विश्व में फैल रहा आयुर्वेद उद्योग: हर्षवर्धन
प्रेसवार्ता में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि कोविड से पहले के दौर में भारतीय आयुर्वेद उद्योग क़रीब 30,000 करोड़ रुपए मूल्य का था, जो 15-20 प्रतिशत की गति से बढ़ रहा था.
लेकिन, उन्होंने कहा कि कोविड फैलने के बाद इसमें कई गुना वृद्धि हुई है और ताज़ा विकास दर 50-90 प्रतिशत के बीच है.
उन्होंने कहा, ‘हमें ख़ुशी है कि पतंजलि आयुर्वेद अपनी दवाओं की जांच ऐसी प्रक्रियाओं से कर रहा है, जिन्हें केवल आधुनिक चिकित्सा में अपनाया जाता है, जैसे वैध क्लीनिकल ट्रायल्स. इससे ऐसी पारंपरिक दवाओं की मांग और भरोसे में इज़ाफा होगा. हाल ही में, हम इस क्षेत्र में निर्यात और विदेशी निवेश को बढ़ता हुआ देख रहे हैं’. उन्होंने ये भी कहा कि आयुर्वेद को, एलोपैथिक दवाओं के साथ पूरक के रूप में लेना चाहिए. ‘हमें एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए’.
उन्होंने ये भी कहा कि 140 जगहों पर पिछले एक वर्ष में, पारंपरिक औषधियों पर 109 स्टडीज़ शुरू की गई हैं. ‘इनमें से 32 स्टडीज़ इलाज के पहलू पर आधारित हैं, जबकि अन्य रोकथाम के लिए हैं’.
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