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Saturday, 14 September, 2024
होमहेल्थ45% डॉक्टरों के पास नाइट शिफ्ट में नहीं होता ड्यूटी रूम, सर्वे के मुताबिक- अस्पतालों में बदतर हैं सुरक्षा-उपाय

45% डॉक्टरों के पास नाइट शिफ्ट में नहीं होता ड्यूटी रूम, सर्वे के मुताबिक- अस्पतालों में बदतर हैं सुरक्षा-उपाय

सर्वेक्षण में 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 3,885 डॉक्टरों - सरकारी और निजी अस्पतालों दोनों से - से पूछा गया. सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से लगभग 80% जूनियर डॉक्टर थे, जो ज़्यादातर रात की ड्यूटी पर होते हैं.

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नई दिल्ली: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, सरकारी और निजी दोनों अस्पतालों में रात की शिफ्ट के दौरान एक तिहाई डॉक्टर असुरक्षित महसूस करते हैं, क्योंकि 45 प्रतिशत डॉक्टर्स के लिए ड्यूटी रूम उपलब्ध नहीं है.

यह सर्वेक्षण कोलकाता के आर.जी.कर अस्पताल में रात की ड्यूटी के दौरान 31 वर्षीय ट्रेनी डॉक्टर की बलात्कार-हत्या के बाद कार्यस्थल पर बेहतर सुरक्षा की मांग को लेकर डॉक्टरों के संगठनों द्वारा देशव्यापी विरोध प्रदर्शन और सेवा बंद किए जाने के बाद किया गया है.

इस महीने आईएमए की केरल इकाई द्वारा किए गए सर्वेक्षण में 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़े 3,885 डॉक्टरों की प्रतिक्रियाओं का मूल्यांकन किया गया. सर्वेक्षण में शामिल लगभग 80 प्रतिशत जूनियर डॉक्टर थे, जो ज़्यादातर सरकारी और निजी अस्पतालों में रात की ड्यूटी पर होते हैं.

दिप्रिंट के पास सर्वेक्षण रिपोर्ट की एक प्रति है, जिसे अक्टूबर में आईएमए के केरल मेडिकल जर्नल में प्रकाशन के लिए स्वीकार किया गया है.

रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 24.1 प्रतिशत डॉक्टरों ने ‘असुरक्षित’ और अन्य 11.4 प्रतिशत ने ‘बहुत असुरक्षित’ महसूस करने की बात कही, जो कुल उत्तर देने वालों की एक तिहाई संख्या है. इसमें कहा गया है कि महिलाओं की संख्या असुरक्षित महसूस करने वालों में काफी थी.

इसके अलावा, रात की शिफ्ट के दौरान 45 प्रतिशत डॉक्टर्स के लिए ड्यूटी रूम उपलब्ध नहीं था, जबकि जिनको ड्यूटी रूम उपलब्ध था उनमें सुरक्षा की भावना अधिक थी. ड्यूटी रूम अक्सर ज्यादा लोगों के होने, गोपनीयता की कमी और ताले गायब होने के कारण उपलब्ध नहीं थे, जिससे डॉक्टरों को आराम करने के लिए किसी वैकल्पिक जगह को खोजना पड़ा.

रिपोर्ट के मुताबिक, “देश भर के डॉक्टर, विशेष रूप से महिलाएँ, रात की शिफ्ट के दौरान असुरक्षित महसूस करने की बात कहती हैं. हेल्थ केयर के मामले में सुरक्षा कर्मियों और उपकरणों में सुधार की पर्याप्त गुंजाइश है. सुरक्षित, स्वच्छ और सुलभ ड्यूटी रूम, बाथरूम, भोजन और पीने के पानी को सुनिश्चित करने के लिए बुनियादी ढाँचे में संशोधन आवश्यक है.”

इसमें कहा गया है कि डॉक्टर्स अपने काम पर पर्याप्त ध्यान दे पाएं और और उन्हें असुरक्षित महसूस न हो इसके लिए पर्याप्त स्टाफ, इलाज के लिए मरीजों की प्रभावी तरीके से जांच और रोगियों की देखभाल वाले एरिया में लोगों की बेवजह आवाजाही की कमी को सुनिश्चित करना होगा.

केरल आईएमए के अनुसंधान प्रकोष्ठ के अध्यक्ष और रिपोर्ट के मुख्य लेखक डॉ. राजीव जयदेवन ने दिप्रिंट को बताया, “प्रत्येक स्वास्थ्य सेवा प्रतिष्ठान को डॉक्टरों और अन्य कर्मचारियों के लिए सुरक्षित और आरामदायक कार्य वातावरण प्रदान करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.”

“वे सुरक्षित ड्यूटी रूम प्रदान करके, संस्थान के आकार के अनुसार पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित सिक्युरिटी प्रोफेशनल की व्यवस्था करके, आस-पास खड़े होने वाले लोगों की संख्या में कमी करके, नशे में धुत आस-पास खड़े लोगों को कैजुअल्टी (वार्ड) में प्रवेश करने से रोककर, तेजी से रोगियों के जांच की व्यवस्था शुरू करके ऐसा कर सकते हैं, जिससे डॉक्टर शांतिपूर्ण परिस्थितियों में मरीजों को देख सकें, जहां वे भीड़ के बीच में होने के बजाय अपने काम पर फोकस कर सकें.”

स्पष्ट अंतर

सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से 85 प्रतिशत डॉक्टर 35 वर्ष से कम आयु के थे, 61 प्रतिशत इंटर्न या पीजी ट्रेनी थे और महिलाओं की संख्या 63 प्रतिशत थी, जो कुछ एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में जेंडर रेशियो के अनुरूप है.

उत्तर देने वालों से सुरक्षा, ड्यूटी रूम की उपलब्धता और रात्रि ड्यूटी के दौरान बाथरूम तक पहुंच को लेकर 0-10 के स्केल पर अपनी रेटिंग साझा करने के लिए कहा गया था.

परिणामों से पता चलता है कि ड्यूटी रूम अक्सर भीड़-भाड़, गोपनीयता की कमी और ताले न होने के कारण अपर्याप्त थे, जिससे डॉक्टरों को वैकल्पिक रेस्ट एरिया खोजने के लिए मजबूर होना पड़ा; उपलब्ध ड्यूटी रूम में से एक तिहाई में उसके साथ बाथरूम नहीं था.

53 प्रतिशत मामलों में, ड्यूटी रूम वार्ड या कैजुअल्टी क्षेत्र से दूर स्थित था.

रिपोर्ट में कहा गया है कि हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स को इंटर्नशिप और स्नातकोत्तर अध्ययन के दौरान अपने ट्रेनिंग के रूप में रात की शिफ्ट करनी पड़ती है, और कहा गया है कि वे अपने पूरे करियर में निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में रात की ड्यूटी करते रहते हैं.

इसके कारण वे कार्यस्थल पर होने वाली हिंसा के विभिन्न रूपों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं.

कार्यस्थल पर हिंसा के मामले में, IMA द्वारा 2017 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि भारत में 75 प्रतिशत से अधिक डॉक्टरों ने कार्यस्थल पर हिंसा का अनुभव किया है, जबकि 62.8 प्रतिशत डॉक्टर हिंसा के डर के बिना अपने मरीजों को देखने में असमर्थ हैं.

नई रिपोर्ट के अनुसार, एक अन्य अध्ययन में बताया गया है कि 69.5 प्रतिशत रेजिडेंट डॉक्टर काम के दौरान हिंसा का सामना करते हैं. इसमें कहा गया है कि हिंसा की वजह से आने से डॉक्टरों में डर, चिंता, अवसाद और पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर की समस्या पैदा होती है.

नई रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुष डॉक्टर्स की तुलना में महिला डॉक्टर्स ज्यादा असुरक्षित महसूस करती हैं. पुरुष डॉक्टर्स के लिए यह प्रतिशत 32.5 है जबकि महिला डॉक्टर्स का प्रतिशत 36.7 है.

महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकारी स्वास्थ्य सेवा कर्मियों ने असुरक्षा के उच्च स्तर होने की बात रिपोर्ट की है, जिसमें 17.05 प्रतिशत ने ‘बहुत असुरक्षित’ और 27.4 प्रतिशत ने ‘असुरक्षित’ महसूस करने की बात कही है, जो कुल मिलाकर 44.5 प्रतिशत होता है. इसके विपरीत, केवल 5.52 प्रतिशत और 12.02 प्रतिशत निजी स्वास्थ्य सेवा कर्मियों ने ‘बहुत असुरक्षित’ और ‘असुरक्षित’ महसूस करने की बात कही है, जो कुल 17.5 प्रतिशत है.

इसी तरह, निजी स्वास्थ्य सेवा कर्मियों का एक बड़ा प्रतिशत 28.04 प्रतिशत ‘सुरक्षित’ महसूस करता है, जबकि सरकारी संस्थानों में 8.71 प्रतिशत लोग सुरक्षित महसूस करते हैं. इसके अतिरिक्त, 10.22 प्रतिशत निजी स्वास्थ्य सेवा कर्मियों ने ‘सबसे सुरक्षित’ महसूस किया, जबकि केवल 1.89 प्रतिशत सरकारी कर्मियों ने ‘सबसे सुरक्षित’ महसूस होने की बात कही.

कुल मिलाकर, 38.3 प्रतिशत निजी क्षेत्र में सुरक्षित महसूस करते हैं, जबकि सरकारी क्षेत्र में केवल 10.6 प्रतिशत सुरक्षित महसूस करते हैं.

सुझाए गए उपाय

इस बात पर ध्यान देते हुए कि बड़ी संख्या में डॉक्टरों ने अस्पताल परिसर में अपर्याप्त सुरक्षा के बारे में सूचित किया था, रिपोर्ट में कहा गया है कि अस्पताल अक्सर लागत कम करने के लिए कम वेतन वाले सुरक्षा कर्मियों को नियुक्त करते हैं.

सर्वेक्षण में शामिल कई प्रतिभागियों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि मौजूद सुरक्षाकर्मी कमजोर और दुर्बल होते हैं, जिन्हें खुद ही सुरक्षा की आवश्यकता है और वे मुसीबत के वक्त सबसे पहले खुद ही भाग जाते हैं.

इसमें कहा गया है कि डॉक्टर्स ने कैजुअल्टी व आईसीयू लॉबी जैसे हाई रिस्क एरिया में, जहां अक्सर झड़प होने की संभावना होती है, वहां सुरक्षा गार्ड के रूप में भूतपूर्व सैनिकों और बाउंसर के रूप में 30 से 40 वर्ष की आयु के मजबूत शरीर वाले पुरुषों को प्राथमिकता दी है.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि कुछ महिला डॉक्टरों ने महिला सुरक्षाकर्मियों की आवश्यकता की ओर भी इशारा किया, साथ ही अस्पताल परिसरों में पुलिस चेक पोस्ट के होने का भी सुझाव दिया है.

जयदेवन ने बताया, “हेल्थ केयर से संबंधित हिंसा एक ऐसी स्थिति है जिसके कई कारण हैं – और भविष्य में किसी भी सार्थक बदलाव के लिए उनमें से प्रत्येक को व्यवस्थित रूप से हल किया जाना चाहिए.”

उन्होंने कहा कि मेडिकल करियर के रूप में एमबीबीएस चुनने वाली महिलाओं का प्रतिशत बढ़ रहा है और केरल जैसे राज्यों में यह 67 प्रतिशत को पार कर गया है.

जयदेवन ने कहा, “काम पर रात की शिफ्ट करने वाली महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थिति प्रदान करना प्राथमिकता है, चाहे वे डॉक्टर हों या अन्य प्रोफेशनल.”

अस्पतालों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए दीर्घकालिक और अल्पकालिक उपाय सुझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर राष्ट्रीय टास्क फोर्स के गठन के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस सप्ताह राज्यों को पत्र लिखकर कई कदम उठाने की सिफारिश की है.

इनमें स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए राज्य के कानूनों और भारतीय न्याय संहिता की संबंधित धाराओं को प्रमुख स्थानों पर सज़ा या सज़ा की डिटेल्स के साथ प्रदर्शित करना, वरिष्ठ डॉक्टरों और प्रशासनिक अधिकारियों को शामिल करते हुए ‘अस्पताल सुरक्षा समिति’ और ‘हिंसा रोकथाम समिति’ का गठन करना शामिल है.

इसने राज्यों से अस्पताल के प्रमुख क्षेत्रों में आम जनता और मरीज के रिश्तेदारों के लिए प्रवेश को विनियमित करने और मरीज के परिचारकों के लिए सख्त आगंतुक पास नीति का पालन करने के अलावा रात की ड्यूटी के दौरान विभिन्न ब्लॉकों और छात्रावास भवनों और अस्पताल के अन्य क्षेत्रों में रेजिडेंट डॉक्टरों और नर्सों की सुरक्षित आवाजाही के लिए प्रावधान करने को भी कहा है.

रेज़िडेंशियल ब्लॉक, हॉस्टल ब्लॉक और अन्य अस्पताल परिसरों के सभी क्षेत्रों के अंदर रोशनी की उचित व्यवस्था सुनिश्चित करना, रात के समय अस्पताल के सभी परिसरों में नियमित सुरक्षा गश्त (पेट्रोलिंग) और अस्पतालों में 24X7 मानवयुक्त सिक्युरिटी कंट्रोल रूप स्थापित करना केंद्र द्वारा राज्यों को दिए गए कुछ अन्य निर्देश हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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