हैदराबाद: हैदराबाद के एआईजी अस्पताल द्वारा उसी शहर में स्थित संस्थान, एशियन हेल्थ फाउंडेशन के सहयोग से किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि कोविड टीकाकरण के छह महीने बाद तीस प्रतिशत लोग कोविड -19 के खिलाफ टीके द्वारा प्रदान की गई प्रतिरक्षा शक्ति गंवा देते हैं.
यह अध्ययन जिसकी अभी सहकर्मियों द्वारा समीक्षा (पीयर-रिव्यु) की जानी बाकी है, पूरी तरह से टीकाकरण करवाने वाले 1,636 स्वास्थ्य कर्मियों पर आयोजित किया गया था. इस अस्पताल ने बुधवार को एक बयान में कहा कि उसके अध्ययन में यह पाया गया कि इस सर्वे के 30 प्रतिशत प्रतिभागियों ने न्यूनतम सीमा (100 एयू / एमएल) से कम प्रतिरक्षा स्तर की सूचना दी – जिससे उन्हें अभी भी कोविड संक्रमण होने की आशंका है.
हालांकि, इस बयान में शेष 70 प्रतिशत लोगों से मिले परिणामों के बारे में विस्तार से नहीं बताया गया है लेकिन एआईजी अस्पताल के अध्यक्ष डी. नागेश्वर रेड्डी को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि नौ महीने के अंतर पर दी जा रही एहतियाती खुराक लेने से उसी 70 प्रतिशत आबादी को लाभ होता है जो 6 महीने से अधिक तक एंटीबॉडी का पर्याप्त स्तर बनाये रख सकते हैं.
हालांकि प्रतिरक्षा शक्ति खोने वालों में से अधिकांश की उम्र 40 वर्ष से अधिक बताई गई थी और उन्हें मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी कोमोर्बिडीटी (कोई अन्य गंभीर बीमारी) थीं मगर लगभग 6 प्रतिशत ने कोई भी प्रतिरक्षा विकसित हीं नहीं की थी. अध्ययन में कहा गया है कि इन 6 प्रतिशत में से भी अधिकांश 40 से ऊपर के थे और उनमें कोमोर्बिडीटी भी थी.
अध्ययन में शामिल होने वाले लोगों में 52 प्रतिशत पुरुष थे जिनकी औसत आयु 29 वर्ष थी. उनमें से 93 प्रतिशत ने कोविशील्ड वैक्सीन प्राप्त की थी, 6.2 प्रतिशत को कोवैक्सिन लगाया गया था और 1 प्रतिशत से कम को स्पुतनिक की खुराक मिली थी. बयान में कहा गया है कि लगभग 12 प्रतिशत लोगों को कोविड संक्रमण का पूर्व इतिहास था और लगभग 3 प्रतिशत व्यक्तियों को डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां थीं.
अध्ययन में शामिल शोधकर्ताओं ने 1,636 व्यक्तियों में सार्स -कोव -2 के प्रति IgG एंटी-एस 1 और IgG एंटी-एस 2 एंटीबॉडी के स्तर को मापा. डी नागेश्वर रेड्डी ने इस बयान में कहा कि यह अनुमान लगाया गया है कि 100 एयू / एमएल का एंटीबॉडी स्तर कोविड के खिलाफ सुरक्षा के लिए न्यूनतम स्तर है.
अध्ययन के अनुसार, 6 प्रतिशत (98 व्यक्तियों) में टीकाकरण की दूसरी खुराक के छह महीने बाद एस 1/ एस 2 स्पाइक-न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडीज को नकारात्मक रेंज (15 एयू/एमएल) में पाया गया. इन 98 लोगों में से 57.14 फीसदी पुरुष थे.
रेड्डी ने कहा, ‘हमारे अध्ययन के परिणाम अन्य वैश्विक अध्ययनों के समान हीं थे जहां हमने पाया कि लगभग 30 प्रतिशत व्यक्तियों में 6 महीने के बाद एंटीबॉडी का स्तर 100 एयू/एमएल के न्यूनतम सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा स्तर से नीचे था. ये लोग हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी कोमोर्बिडीटी के साथ 40 वर्ष से अधिक आयु के थे. कुल लोगों में से 6 प्रतिशत ने कभी कोई प्रतिरक्षा शक्ति विकसित हीं नहीं की.”
इस अध्ययन के परिणामों ने संकेत दिया कि प्रतिरक्षा में कमी बढ़ती उम्र के सीधे रूप से आनुपातिक है और इससे यह संकेत भी मिलता है कि वृद्ध लोगों की तुलना में युवा लोगों में एंटीबॉडी का स्तर अधिक निरंतर होता हैं.
रेड्डी ने कहा, ‘इसने यह भी दिखाया कि हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी कोमोर्बिडीटी वाली बीमारियों के साथ वाले 40 से ऊपर के लोगों में दूसरी खुराक के छह महीने के बाद काफी कम एंटीबॉडी रिस्पांस होती है. इसलिए, उन्हें बूस्टर खुराक के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए.’
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उम्र, कोमोर्बिडीटी से जुड़ा है प्रतिरक्षा शक्ति क्षीण होने का मामला
अध्ययन के अनुसार, उन व्यक्तियों की तुलना में जिनमें पता लगाने योग्य सीमा (नकारात्मक सीमा) से नीचे का एंटीबॉडी स्तर पाया गया और जिनमें न्यूनतम प्रतिरक्षा सीमा से नीचे के एंटीबॉडी स्तर की सूचना मिली, के बीच की गई तुलना में पाया गया कि उम्र बढ़ने के साथ वैक्सीन से मिलने वाली दीर्घकालिक प्रतिरक्षा कम हो गई.
उदाहरण के तौर पर, 18-39 आयु वर्ग के लगभग 28.8 प्रतिशत व्यक्तियों में न्यूनतम सीमा से कम एंटीबॉडी स्तर की सूचना मिली जबकि 40-59 आयु वर्ग के बीच व्यक्तियों के लिए यह आंकड़ा 30.7 प्रतिशत था.
रेड्डी ने इस बयान में कहा, ‘फ़िलहाल, एहतियाती खुराक के रूप में नौ महीने के अंतर पर दी जाने वाली बूस्टर डोज उस 70 प्रतिशत आबादी को लाभान्वित करती है जो 6 महीने से अधिक तक एंटीबॉडी के स्तर को बनाए रख सकते हैं. मगर, हमारे देश के पैमाने को देखते हुए अन्य 30 प्रतिशत लोगों – विशेष रूप से हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज आदि जैसी सहवर्ती बीमारियों वाले वे लोग जिन्हें पूरी तरह से टीकाकरण के 6 महीने के बाद कोविड संक्रमण विकसित होने की अधिक संभावना है – को भी एहतियाती खुराक के लिए विचार के दायरे में लाया जाना चाहिए.‘
हालांकि रोग प्रतिरक्षा केवल एंटीबॉडी की उपस्थिति तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसमें टी- सेल, मेमोरी सेल आदि भी शामिल हैं फिर भी इस अध्ययन को ह्यूमरल इम्यून रिस्पांस (प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया) यानी एंटीबॉडी स्तर, जो रक्षा की पहली पंक्ति हैं, की जांच करने के लिए डिज़ाइन किया गया था.
इस अध्ययन की मेथोडोलोजी (क्रियाप्रणाली) के बारे में पूछे जाने पर रेड्डी ने दिप्रिंट को बताया ‘उसमें भी, हमने विशेष रूप से एस 1 / एस स्पाइक न्यूट्रलाइज़िंग एंटीबॉडी की जांच के लिए अध्ययन किया जो वायरस को मारने वाले एंटीबॉडी हैं. सैद्धांतिक रूप से, जो लोग अपनी उम्र या कोमोर्बिडीटी वाली स्थितियों के कारण टीकाकरण के बाद पर्याप्त रूप से एंटीबॉडी उत्पन्न करने में असमर्थ हैं, उनकी टी-सेल प्रतिक्रिया भी कम ही होगी.’
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