scorecardresearch
Friday, 29 March, 2024
होमशासनमहिलाओं को प्रार्थना का अधिकार , सबरीमाला मंदिर के द्वार सभी महिलाओं के लिए खुलेंगे

महिलाओं को प्रार्थना का अधिकार , सबरीमाला मंदिर के द्वार सभी महिलाओं के लिए खुलेंगे

Text Size:

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 10 से 50 वर्ष के आयु के बीच की महिलाओं को पारंपरिक तौर पर मंदिर में न जाने देना मौलिक अधिकार का उल्लंघन है.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि सभी उम्र की महिलाएं केरल के सबरीमाला मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश कर सकती हैं संविधान बेंच ने 4: 1 बहुमत से फैसल लिया और बेंच की इकलौती महिला सदस्य ने विरोध में फैसला लिया.

अदालत ने कहा की 10 से 50 साल की आयु के महिलाओं की प्रविष्टि पर सबरीमाला में रोक, या जब वे मासिक धर्म का उम्र की हो, धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने कहा, “कानून और समाज को बराबरी लाने का काम दिया गया है.” उन्होंने कहा, “अयप्पा के भक्त एक अलग धार्मिक संप्रदाय को स्थापित नहीं करते है.”

खंडपीठ ने कहा कि हिंदू महिलाओं की प्रविष्टि को नकारने से धर्म का पालन करने देने के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

केरल उच्च न्यायालय के 1991 के आदेश को चुनौती देने के बाद याचिका दायर करने के 12 साल बाद फैसला सुनाया गया, जिसमें 10 से 50 वर्ष की उम्र की महिलाओं के मंदिर प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की प्रथा को बरकरार रखा गया था.

न्यायमूर्ति इंदू मल्होत्रा ने अपना विरोध जताते हुए कहा कि धर्म के निर्वाहण को समानता के अधिकार के आधार पर नहीं तोला जा सकता. ये फैसला पूजा करने वालों के, न कि अदालत के अधिकारक्षेत्र में आता है कि धर्म के लिए क्या करना ज़रूरी है.

फैसले के तुरंत बाद, मीडिया रिपोर्टों ने कार्यकर्ता राहुल ईश्वर को उद्धृत करते हुए कहा कि वे इस मामले में एक समीक्षा याचिका दायर करेंगे.


यह भी पढ़ें : Lawyers argued women are untouchables at Sabarimala, because Constitution left term vague


माना जाता है कि यह मंदिर स्वामी अयप्पा, एक नास्तिक ब्रह्मचारी का घर है. ऐसी मान्यता है कि अगर 10 से 50 वर्ष के बीच महिलाएं पठानमथिट्टा ज़िले के पहाड़ी मंदिर के दहलीज में प्रवेश करती हैं तो वे “परेशान” हो जाते है.

इंडियन यंग लॉयर एसोसिएशन के नेतृत्व ने अपनी अपील में कहा कि प्रतिबंध “पितृसत्तात्मक” विश्वास पर आधारित था कि समाज में पुरुष की प्रमुख स्थिति है. जो उसे तपस्या करने में सक्षम बनाती है, जबकि एक महिला – जो कि “ग़ुलाम ” है या एक आदमी की संपत्ति – तीर्थयात्रा से पहले आवश्यक तपस्या के लिए 41 दिनों तक शुद्ध रहने में असमर्थ रहती है.

13 अक्टूबर 2017 को भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुआई में तीन न्यायाधीशीय खंडपीठ ने इस मामले को संविधान खंडपीठ में सौंप दिया जो कानून के पांच मुद्दों पर विचार करेगा, जिसमें यह प्रैक्टिस शामिल है – जिसका आधार महिलाओं के जैविक कारक के कारण होने वाले भेदभाव है. और ये उनके मौलिक अधिकार का उलंघन करता है.

अदालत ने क्या कहा

1 अगस्त 2018 को, इस मुद्दे पर अपने फैसले को आरक्षित करते हुए, शीर्ष अदालत ने विचार व्यक्त किया था कि मंदिर के मुख्य देवता अयप्पा, एक शाश्वत नाबालिग हैं और उनके मंदिर में किए जाने वाले धार्मिक संस्कारों के संबंध में निजता के अधिकार के हकदार है.

मुख्य न्यायधीश ने तर्कों के जवाब में कहा था कि देवता के कुछ मौलिक अधिकार थे, लेकिन क्या निजता का अधिकार वही है जो एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त करता है, उस पर विचार किया जाना चाहिए ”

केरल ने क्या कहा

केरल, जिसने इस मुद्दे में अपना मत बार बार बदला है ने, अंततः कहा कि वह मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का समर्थन करता है. राज्या का तर्क था कि राज्य को न केवल मंदिरों के प्रशासन, बल्कि धार्मिक मामलों पर धर्मनिरपेक्ष मुद्दों पर कानून बनाने का अधिकार था.

राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील जयदीप गुप्ता ने संविधान खंडपीठ को बताया कि मंदिर एक विशिष्ट “सांप्रदायिक इकाई” होने का दावा नहीं कर सकता क्योंकि इसकी पहचान योग्य विशेषताएं नहीं थीं. उन्होंने कहा “इसके अलावा, ब्रहम्चर्य की स्थिति को मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को रोकने का कारण नहीं बनाया जा सकता है.

न्यायमित्र की राय

अदालत ने वरिष्ठ वकील के.राममूर्ति और राजू रामचंद्रन को अमीसी क्यूरी (‘अदालत के न्यायमित्र’) के रूप में नियुक्त किया था, जिनके इस मुद्दे पर अलग-अलग विचार थे. राममूर्ति ने महिलाओं की प्रतिबंधित प्रविष्टि का समर्थन करते हुए कहा “राज्य सरकारों ने राजनीतिक कारणों से दक्षिण भारत में मंदिरों को अपने अधीन ले लिया है क्योंकि वे राज्य में राजस्व लाते हैं. लेकिन राज्य केवल प्रबंधन से संबंधित है वह धर्मनिरपेक्ष मामलों में हस्तक्षेप कर सकता है.


यह भी पढ़ें : Women have constitutional right to enter Sabarimala temple: Supreme Court


हालांकि, रामचंद्रन ने इस प्रतिबंध को रोकने की मांग की और कहा कि : “नैतिकता में संवैधानिक नैतिकता भी नीहित है. जिस नियम को निरस्त किया जा रहा है उसको भी संवैधानिक नैतिकता के आधार पर खरा उतरना चाहिए.

Read in English : Women have a right to pray, can now enter Sabarimala Temple, rules Supreme Court

share & View comments