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Friday, 26 April, 2024
होमशासनट्विन एक्सप्रेसवे निर्माण :13 सालों में हरियाणा वह सड़क क्यों नहीं बना पाया जिसे यूपी ने 5 साल में पूरा किया

ट्विन एक्सप्रेसवे निर्माण :13 सालों में हरियाणा वह सड़क क्यों नहीं बना पाया जिसे यूपी ने 5 साल में पूरा किया

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केजीपी और केएमपी एक्सप्रेसवे की एक साथ कल्पना की गई थी। लेकिन पूर्वी राजमार्ग को हाल ही में खोला गया था, जबकि पश्चिम में इसका एक जुड़वा राजमार्ग 10 साल देरी से एक और डेडलाइन के लिए तैयार है।

नई दिल्ली, चंडीगढ़ : भारत के पहले अभिगम नियंत्रण राजमार्ग – कुंडली-गाजियाबाद-पलवल (केजीपी) एक्सप्रेसवे – को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 27 मई को जनता के लिए खोल दिया गया। इस राजमार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के द्वारा परियोजना का कार्य पूरा होने के बाद खोला गया था और इसमें लगे समय को “रिकार्ड टाइम” के नाम से जाना जाता है। लेकिन इसके जुड़वा राजमार्ग – कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेसवे – को एक दशक से अधिक विलंब और लागत में लगातार वृद्धि के बावजूद अभी भी तैयार होने में काफी समय है।

दो एक्सप्रेसवे को दिल्ली के पूर्वी और पश्चिमी किनारों से राष्ट्रीय राजमार्ग 1 और राष्ट्रीय राजमार्ग 2 से जुड़ने के लिए डिजाइन किया गया था, चूँकि उनका प्रारंभिक और अंतिम बिन्दु एक ही हैं – कुंडली और पलवल – इसलिए वे एक साथ राष्ट्रीय राजधानी के चारों ओर एक पूर्ण वृत्ताकार रोड बनाते थे।

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प्रस्तावित हाईवे का चित्रण

दिल्ली से गुजरने वाले वाहनों को एक बाईपास से होकर गुजरने की अनुमति देने और राजधानी में वाहन जनित प्रदूषण को कम करने के लिए 2004 में इस जुड़वा परियोजना की कल्पना की गई थी। वे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण द्वारा की गई सिफारिशों का एक हिस्सा थे, जिसे अप्रैल 2004 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण को कम करने के लिए एक रिपोर्ट तैयार करने के लिए निर्देशित किया गया था। पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण ने अगस्त 2004 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।

तब यह निर्णय लिया गया था कि हरियाणा राज्य औद्योगिक और बुनियादी ढांचा विकास निगम (एचएसआईआईडीसी) केएमपी परियोजना का क्रियान्वयन करेगा जबकि एनएचएआई केजीपी के लिए कार्यान्वयन एजेंसी होगी। दोनों परियोजनाओं में होने वाले काम की निगरानी सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2005 में गठित एक समिति के द्वारा की जानी चाहिए थी। शुरूआती प्रस्तावों के अनुसार, परियोजना पर निर्माण कार्य 2007 में प्रारंभ होकर 2009 के मध्य तक राजमार्गों का क्रियान्वयन किया जाना था।

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केएमपी – एक विलंबित परियोजना

2007 से 2015 के मध्य निजी क्षेत्र ने केजीपी परियोजना में अपनी रूचि नहीं दिखाई। लेकिन जब एनएचएआई ने इस परियोजना को अपने हाँथों में लिया और नवंबर 2015 में इसका निर्माण कार्य प्रारंभ किया गया तब यह परियोजना अपने प्रस्तावित 910 दिनों के बजाय महज 500 दिनों में ही पूरी हो गई थी।

इसके विपरीत, जुलाई 2006 में जुलाई 2009 की समयसीमा के साथ केएमपी एक्सप्रेसवे का निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ। लेकिन लगभग एक दशक बाद, विलंब के बावजूद, यह परियोजना अपने असली ठेकेदार (कॉन्ट्रेक्टर) के निष्कासन की साक्षी रही और इसकी लागत में भी भारी बढ़ोतरी भी हो चुकी है।

2014 तक अपनी परियोजना को पूरा करने में विफल रहने पर डी.एस. कंस्ट्रक्शन के कंसेसियनार को बर्खास्त कर दिया गया था। डी.एस. कंस्ट्रक्शन केएमपी एक्सप्रेसवे लिमिटेड का एक हिस्सा थी जो कि तीन कंपनियों में एक सहयोग कंपनी थी, दो अन्य मधुकॉन प्रॉपर्टीज और ब्रिटेन आधारित अपोलो इन्टरप्राइडेड थी जिनको 2005 में परियोजना से सम्मानित किया गया था।

एक बार कन्सेशनेर हटा दिए जाने के बाद, परियोजना को दो भागों में बांटा गया और विभिन्न कंपनियों को फिर से आवंटित किया गया। अप्रैल 2016 में सड़क के एक भाग का उद्घाटन किया गया था और दूसरे भाग पर काम सितंबर 2016 में शुरू हुआ था तथा नई कन्सेशनेर, एस्सेल इंफ्राप्रोजेक्ट्स के पास परियोजना खत्म करने के लिए फरवरी 2019 तक समय है।

हालांकि, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पिछले महीने घोषणा की थी कि केएमपी परियोजना 30 जून तक पूरी होगी। हालांकि, कुछ लोग इस बात पर विश्वास करने को तैयार हैं कि यह परियोजना अपनी नई समयसीमा पर पूरी हो जाएगी क्योंकि मुख्यमंत्री हर छह महीने में एक नई समयसीमा की घोषणा कर रहे हैं। इस तथ्य के बावजूद कि राज्य के मुख्य सचिव डी.एस. देशी ने प्रधानमंत्री कार्यालय को व्यक्तिगत रूप से यह आश्वासन दिया है कि इस महीने के अंत तक निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा।

वैसे भी किसकी परियोजना है?

केएमपी, 136 किलोमीटर लंबी छह लेन वाली राजमार्ग परियोजना, हरियाणा की दो लगातार सरकारों के लिए शर्मिंदी साबित हुई है, विशेषकर दो कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के शासनकाल के तहत।

प्रारंभ में डी.एस. कंस्ट्रक्शन की अध्यक्षता में कॉन्सॉर्टियम को 1,195 करोड़ रूपये से सम्मानित किया गया था लेकिन वर्तमान में इसको 4,000 करोड़ रूपये से अधिक की लागत से बनाया जा रहा है।

केन्द्रीय सड़क, परिवहन और राजमार्ग सचिव युध्विर सिंह मलिक, जो उस समय एचएसआईआईडीसी के प्रबंध निदेशक थे, ने दिप्रिंट को बताया कि डी.एस. कंस्ट्रक्शन के लिए अनुबंध को समाप्त करना एक कठिन निर्णय था।

उन्होने कहा कि “यह एक गैर निष्पादित इकाई थी, लेकिन हम इस अनुबंध को समाप्त करने में भी डरते थे कि उसने कन्सेशनेर को बड़े दावों की तलाश करने का मौका दिया।”

बीजेपी की केंद्र में सरकार बनने के बाद कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी ने नवंबर 2014 में घोषणा की कि केंद्र डी.एस. कंस्ट्रक्शन रद्द कर दिए जाने के बाद एक्सप्रेसवे बनाने का प्रभार लेने के लिए तैयार था। जनवरी 2015 में, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को परियोजना के लिए तीन महीने के भीतर एक नए कन्सेशनेर के लिए अनुबंध देने का निर्देश दिया और 29 मार्च 2015 को डी.एस. कंस्ट्रक्शन के साथ अनुबंध रद्द कर दिया।

चूंकि मानेसर-पलवल भाग का एक बड़ा हिस्सा पहले ही पूरा हो चुका था, इसलिए इस परियोजना को दो अलग-अलग टुकड़ो में अनुबंधित करने का निर्णय लिया गया था। केसीसी बिल्डकॉन और दिलीप बिल्डकॉन लिमिटेड के संयुक्त उद्यम को मानेसर-पलवल भाग के निर्माण कार्य को पूरा करने का काम सौंपा गया और जून 2015 तक एक्सप्रेसवे के इस हिस्से पर निर्माण फिर से शुरू हो गया था। इस भाग का उद्घाटन गडकरी द्वारा अप्रैल 2016 में किया गया था।

शेष 83 किलोमीटर के लिए, निश्चित अर्ध-वार्षिक वार्षिकियां आधार पर निविदाएं आमंत्रित की गई थीं। एस्सेल इंफ्राप्रोजेक्ट्स सबसे कम बोली लगाने वाला था और जुलाई 2015 में उसे अनुबंध से सम्मानित किया गया। जिसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने नवंबर में बचे हुए भाग के निर्माण के लिए आधारशिला रखी।

बार-बार अनुस्मारक के बावजूद, एसेल इंफ्राप्रोजेक्ट्स को भेजे गए ईमेल अनुत्तरित रहे।

क्या है विलंब का कारण?

जब 14 नवंबर 2005 को यह परियोजना कॉन्सॉर्टियम (सहायता संघ), केएमपी एक्सप्रेसवे लिमिटेड, को आवंटित की गई थी तब यह बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर मोड पर थी और 29 जुलाई 2009 इसकी समापन की तिथि निर्धारित की गई थी। जनवरी 2006 में, एचएसआईआईडीसी और केएमपी एक्सप्रेसवे लिमिटेड ने 23 साल 9 महीने के लिए एक छूट समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, इसमें निर्माण अवधि के तीन साल भी शामिल थे। केएमपी एक्सप्रेसवे लिमिटेड ने कुल लागत में से 1,149 करोड़ रूपये के कर्ज का प्रबंध आईडीबीआई लिमिटेड के नेतृत्व वाली 12 बैंकों/वित्तीय संस्थानों से किया था।
एचएसआईआईडीसी द्वारा लगभग 98 प्रतिशत भूमि का अधिग्रहण पहले ही किया जा चुका था जिसको केएमपी एक्सप्रेसवे लिमिटेड के हाँथों में सौंप दिया गया, जिसने जुलाई 2006 में इस पर निर्माण कार्य प्रारंभ किया था। परियोजना का कार्यान्वयन प्रत्येक 45 किलोमीटर के तीन पैकेजों में विभाजित कर दिया गया था। आश्वस्त कंसेसियनार (छूट पाने वाला) ने सरकार को आश्वासन दिलाया था कि जब 2010 में दिल्ली में राष्ट्रमंडल खेल प्रारंभ होंगे तब कारें इस एक्सप्रेसवे पर फर्राटा भर रही होंगी।

हालांकि परियोजना का क्रियान्वयन अड़चनों के साथ प्रारंभ हुआ, जब निर्माण कार्य पर स्टे प्राप्त करने के लिए परियोजना का एक साझेदार – मधुकॉन – दो अन्य साझेदारों को अदालत में खींच लाया। जब तक यह मामला सुलझा तब तक आठ महीने से अधिक का समय बीत चुका था। इसके साथ कंपनी वित्त का प्रबंधन करने में भी असफल रही जिसके कारण छह महीने का और भी विलंब हो गया।

2008 में, एचएसआईआईडीसी ने परियोजना के डिजाइन को थोड़ा उन्नत किया और उन सभी चार चौराहों पर बदलाव करने का फैसला लिया जहाँ एक्सप्रेसवे राष्ट्रीय राजमार्गों को काट रहा था, पहले इन स्थानों पर फ्लाईओवर बनाने की योजना थी।

निम्नलिखित कारणों – परियोजना के एक साझेदार के साथ मुकदमेबाजी, परियोजना के डिजाइन और दायरे में बदलाव, रेलवे और वन विभाग से मंजूरी में विलंब और भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली मुकदमेबाजी का हवाला देते हुए कंपनी अपनी समयसीमा 2009 में परियोजना को पूरा करने में असफल रही। फिर दिसंबर 2010 इसके लिए नई समयसीमा सुनिश्चित की गई थी।

परियोजना की समयसीमा पर कई बार असफल होने के बाद, नवंबर 2011 में पूर्ण होने वाली इस परियोजना की एक उच्च स्तरीय समिति के द्वारा निगरानी की गई और उसने छूट समझौते के अनुभाग 15.4 के तहत जुर्माना लगाने का फैसला लिया। समिति ने पाया कि कंसेसियनार ने अक्टूबर 2011 तक केवल 64 प्रतिशत की ही भौतिक प्रगति प्राप्त की थी और यह लगभग 36 प्रतिशत पीछे था। 31 दिसंबर 2012 इस परियोजना के पूर्ण होने के लिए एक संशोधित समय सीमा तय की गई थी।

आईडीबीआई बैंक ने हरियाणा को लिखा कि परियोजना के पूरा होने में अनियमित विलंब परियोजना के वर्गीकरण के संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक के प्रावधानों को गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) के रूप में आकर्षित करने के लिए उत्तरदायी थी। कंसेसियनार को महीनों तक अपने उप-ठेकेदारों को भुगतान न करने के लिए भी दोषी ठहराया गया था।

कंसेसियनार को एक आखिरी मौका दिया गया और प्राथमिकता वाले भागों को पूरा करने के लिए 30 सितंबर 2012 तथा संपूर्ण निर्माण कार्य को पूरा करने के लिए 31 मई 2013 एक नई समयसीमा निर्धारित की गई थी।

लेकिन जब 2013 में कंसेसियनार अपनी समयसीमा में निर्माण कार्य पूरा न कर सका तब इसके लिए कोई भी नई समयसीमा निर्धारित नहीं की गई और हरियाणा ने इस अनुबंध को निरस्त करने के लिए जमीनी स्तर पर कार्यवाही प्रारंभ कर दी। पूर्व कांग्रेस सरकार ने अनुबंध को समाप्त करने के लिए 1,300 करोड़ रूपये तय किए थे जिसे बाद में भाजपा सरकार द्वारा चुनौती दी गई थी लेकिन 2014 में राज्य चुनावों के कारण इसमें देरी हो गई थी।

इसके बाद, जब हरियाणा सरकार ने अनुबंध को समाप्त कर दिया तो कंसेसियनार ने निर्णय के खिलाफ मध्यस्थता (विवाचन) की माँग की।

वर्तमान स्थिति

एचएसआईआईडीसी के प्रबंध निदेशक टी.एल. सत्यप्रकाश का कहना है कि, “इस प्रोजेक्ट की वित्तीय स्थिति यह है कि 3,650 करोड़ रूपये में से 3,600 करोड़ रूपय खर्च हो चुके हैं। ओवर ब्रिजों का काम पूरा होने के विभिन्न चरणों में है।“
पहले कंसेसियनार – केएमपी एक्सप्रेसवे लिमिटेड – को 20 साल 9 माह टोल वसूलने के बाद परियोजना को राज्य को स्थानान्तरित करना था, इसके विपरीत नए कंसेसियनार को एचएसआईआईडीसी द्वारा 2.5 निर्माण वर्षों सहित 17 साल तक छमाही 157.5 करोड़ रूपये का भुगतान किया जाएगा। इसके बदले में सरकार टोल वसूल करेगी। इसके अलावा, केएमपी द्वारा निर्मित एक एक्सप्रेसवे के विपरीत यह फैसला लिया गया है कि नया एक्सप्रेसवे चार नहीं बल्कि छह लेन का होगा।

एचएसआईआईडीसी और एस्सेल के मध्य समझौते के अनुसार इस परियोजना को 2019 तक पूरा करना होगा। हालांकि, पिछले दो सालों से खट्टर शेड्यूल से पहले इस परियोजना के समापन की कई तिथियों की घोषणा कर चुके हैं। नवीनतम तिथि 30 जून है।

सत्यप्रकाश ने आगे कहा कि, “कंपनी शेड्यूल से पहले परियोजना को पूरा करना चाहती है क्योंकि एक पहल के रूप में उसको प्रतिदिन 84 लाख रूपये प्रदान किए जाएंगे कि उन्हें फरवरी 2019 से पहले परियोजना को समाप्त करना है।” सत्यप्रकाश का कहना है,” पूरे एक्सप्रेसवे पर सात टोल प्लाजा स्थापित होंगे। अभी तक टोल राशि को अंतिम रूप नहीं दिया गया है। हमने टोल राशि का निर्णय लेने से पहले यातायात तक पहुँच प्राप्त करने के लिए तीन महीने तक टोल के संचालन की निविदाएं माँगी हैं।“

Read in English: Tale of twin expressways — why Haryana can’t do in 13 years what UP did in 5

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