सोशल मीडिया पर राजनीतिक तौर पर बंटे हुए लोग नकली स्क्रीनशॉट और फोटो डाल कर अपने एजेंडे को बढ़ाने की कोशिश करते हैं और जनता इसे चुपचाप गले भी उतार लेती है.
नई दिल्ली: इंटरनेट पर उपलब्ध फ्री टूल्स के साथ अब सोशल मीडिया पर लोग एक दूसरे की पोस्ट्स के साथ आराम से छेड़छाड़ कर सकते हैं. प्रोपेगैंडा फैलाने वाले लोगों के हाथ लगने के बाद जाली स्क्रीनशॉट्स के साथ झूठ और नफरत का ज़हर, राजनीतिक फायदा उठाने का साधन बनता हुआ दिखाई दे रहा है.
यदि कोई ऐरा गैरा सोशल मीडिया पर गाली बके तो शायद ही उसे कोई तवज्जो मिले. लेकिन जब यह स्क्रीनशॉट किसी बड़े चेहरे के साथ जुड़ जाते हैं तो यह तेजी से फैल जाता है.
prankmenot.com और breakyourownnews.com जैसी कुछ वेबसाइट लोगों को बस एक फोटो और कुछ जानकारी डालने को कहती हैं, और चंद सेकेंड में फेक स्क्रीनशॉट तैयार हो जाता है.
चूंकि भारत के सोशल मीडिया यूजर गलत जानकारी को लेकर इतने जागरूक नहीं हैं. मज़ाक में डाली गई पोस्ट भी गंभीरता से देखी जाती है जिससे लोग और भी ज्यादा बंटते चले जा रहे हैं.
दोतरफा जंग
ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक ही साइड के लोग इस फेक शस्त्र का प्रयोग कर रहे हों- लिबरल विचारधारा की राणा अयूब, फेय डी सूज़ा और ध्रुव राठी से लेकर दक्षिणपंथी शेफाली वैद्य और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसका शिकार हुए हैं.
राणा अयूब का फर्जी ट्वीट
इस साल अप्रैल में पत्रकार राणा अयूब पर फेक ट्वीट से हमला किया गया जिसमें उनको बच्चों का यौन शोषण करने वालों का समर्थक बताया गया था.
The last three days there has been a concerted effort in the form of multiple fake tweets, photoshopped tweets, morphed videos on twitter / fb that even the most sensible have fallen for and have gone viral. Those asking me to clarify, please use your own discretion. pic.twitter.com/alf3qkiQSq
— Rana Ayyub (@RanaAyyub) April 23, 2018
राणा अयूब के फर्जी स्क्रीनशॉट में लिखा गया था, ‘नाबालिगों का शोषण करने वाले भी इंसान हैं, क्या उनके पास मानवाधिकार नहीं है, ये हिंदुत्ववादी सरकार इस अध्यादेश से नाबालिक बलात्कारियों को फांसी देने के बहाने से ज़्यादा संख्या में मुस्लिमों को फांसी पर लटकाना चाहती है. मुस्लिम अब इस देश में सुरक्षित नहीं.’
दक्षिणपंथी सोशल मीडिया ने इस नकली पोस्ट को आग की तरह तो फैलाया ही, साथ ही साथ उनका फोन नंबर और घर का पता भी ऑनलाइन शेयर कर दिया. राणा ने इस बात का ज़िक्र भी किया था कि उन्हें भीड़ द्वारा हत्या किये जाने का डर भी सता रहा था.
अयूब ने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरे साथ, लगभग हर महीने, आए दिन कोई न कोई फेक ट्वीट चला दी जाती है जिसमें या तो मुझे इस्लाम के नाम पर आतंकवाद का बढ़ावा देते हुए दिखाया जाता है या नाबालिगों के बलात्कारियों के पक्ष में बयान देते हुए दिखा दिया जाता है.’
फेय डीसूज़ा और बच्चों की तस्करी
इसी साल जुलाई में मिरर नाउ न्यूज़ चैनल की एग्जीक्यूटिव एडिटर फेय के साथ भी कुछ ऐसी ही घटना घटी. एक फर्जी ट्वीट के ज़रिये दिखाया गया कि फेय ईसाई मिशनरियों द्वारा की गई बच्चों की तस्करी की वकालत कर रही हैं.
Wow! This is a new low! These jerks have gotten smart enough to write "fictional tweet" at the bottom to avoid legal trouble! #Trolls i obviously didn't tweet this pic.twitter.com/e1BdigojJs
— Faye DSouza (@fayedsouza) July 9, 2018
निश्चित तौर यह ट्वीट फर्जी था, नतीजन दक्षिणपंथी पेजों से उस पोस्ट को हटा लिया गया.
ध्रुव राठी का फर्जी स्क्रीनशॉट
हाल ही में जब भारत में #MeToo मूवमेंट के जरिये मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में यौन शोषण करने या महिलाओं को प्रताड़ित करने वालों के नाम सार्वजनिक किए जा रहे थे, उसी समय यूट्यूब पर वीडियो डालने वाले ध्रुव राठी भी फर्जी स्क्रीनशॉट के शिकार हो गए. एक फर्जी ट्विटर अकाउंट ने ध्रुव राठी के साथ हुई एक बातचीत का जाली स्क्रीनशॉट बनाया जिसमें ध्रुव उससे शारीरिक संबंध बनाने की मांग करते हुए दिखाई दे रहे थे.
These IT Cell workers can fall to any level for politics!
Fake account sharing a fabricated screenshot to malign the #MeToo movement and defame me
Improve your photoshop idiots, it’s very easy to tell that you used the InstaFake app on Android to fabricate this screenshot ???? https://t.co/tr9nPvG4II
— Dhruv Rathee (@dhruv_rathee) October 14, 2018
खैर, इस फर्जी अकाउंट को डिलीट तो किया गया, लेकिन इसने ध्रुव के खिलाफ झूठी खबरें जरूर फैला दीं.
राठी ने दिप्रिंट को बताया कि बुरी नियत वाले लोग इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके किसी को भी बदनाम करने की साजिश रच सकते हैं.
ध्रुव ने कहा, ‘अगर कोई वाकई में किसी की प्रतिष्ठा को तहस-नहस करना चाहता है तो वह प्रोफेशनल तरीके से फोटोशॉप कर सकता है. यहां ये बताना लगभग नामुमकिन हो जाता है कि क्या सच है और क्या झूठ. कुल मिला कर यह सिद्ध करना कि आपने वह काम नहीं किया जिसके लिए आप बदनाम हो रहे हैं, बहुत ही ज़्यादा मुश्किल काम है.’
साहिल शाह को बना दिया यौन शोषक
मीम पेज देसी कॉमिक्स ने हास्य कलाकार साहिल शाह के नाम का एक फेक न्यूज़ स्क्रीनशॉट बनाया, जिसमें उनको एक यौन शोषक साबित किया गया और वह भी तब जब भारत में #MeToo आंदोलन चरम पर था.
हालांकि, साहिल ने पेज के एडमिन से बात करने में देर नहीं की और इस पोस्ट के वायरल होने से पहले ही हटवा लिया. दिप्रिंट ने साहिल से इस पर टिप्पणी मांगी पर उन्होंने जवाब देने से मना कर दिया क्योंकि वे उस पेज को कोई तवज्जो नहीं देना चाहते थे. पेज के एडमिन ने इस बात को स्वीकारा कि उन्होंने सिर्फ हंसी मज़ाक में इस बात को शेयर किया था.
जब जिग्नेश मेवाणी ने माफी मांगी
गुजरात से निर्दलीय विधायक और नरेंद्र मोदी के बड़े आलोचक जिग्नेश मेवाणी ने इसी साल मई में एक फोटो शेयर की. इस फोटो में फोटोशॉप का इस्तेमाल करके शेफाली वैद्य को श्री श्री रविशंकर और योगी आदित्यनाथ के साथ दिखाया गया था.
हालांकि, बाद में उन्होंने इस फोटो को डिलीट किया और माफी भी मांगी.
नरेंद्र मोदी की थाली में ज्यादा खाना
इस साल सितंबर में मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम ने एक फोटो शेयर की जिसमें फोटोशॉप के ज़रिये नरेंद्र मोदी की थाली में थोड़ा अतिरिक्त भोजन डाल दिया गया था. उस वक्त उन्होंने दिप्रिंट को बताया था कि उन्होंने ऐसा मज़ाक-मज़ाक में किया था.
जिग्नेश मेवाणी ने एक बार फिर सितंबर में एक फोटो शेयर की जिसके साथ छेड़छाड़ की गई थी. इस फोटो के जरिये मेवाणी ने प्रधानमंत्री पर निशाना साधा. इस फोटो में इंदौर में दाउदी बोहरा समुदाय के लोगों से मिलने गए प्रधानमंत्री की फोटो में उनके सिर पर एक नकली टोपी पहना दी गई थी.
ज़िम्मेवार कौन?
चोरी के मीम्स, एक फेसबुक पेज है जो ज़ाहिर तौर पर फर्जी दिखने वाली ख़बरों को शेयर करता है. उसने बताया कि आम लोग सच और झूठ के बीच के भेद को नहीं पहचानते.
पेज के एडमिन ने दिप्रिंट को जानकारी दी, ‘जब योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयागराज कर दिया था तब हमने तैमूर (करीना और सैफ के पुत्र) के ऊपर एक मज़ाक़िया न्यूज़ डाली जिसमें तैमूर का नाम बदलकर तेनालीराम रख दिया गया था.’
उन्होंने कहा, ‘अब यह तो साफ़ सी बात है कि कोई भी ऐसा कुछ नहीं करेगा, लेकिन फिर भी कुछ लोग इस पर यकीन कर बैठे. सस्ते इंटरनेट और बिना जागरूकता की बदौलत ऐसे लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है.’
स्थानीय बोली/भाषा में खबरें पढ़ने वालों के हालात तो और भी बुरे हैं. मीम पेज ने दप्रिंट को बताया, ‘जब लोग अपनी बोली या भाषा में कुछ पढ़ते हैं तो वे उस पर ज़्यादा यकीन करते हैं. उनकी भाषा में कुछ भी लिख दो, लोग यकीन कर लेंगे. लोगों में मज़ाक और खबर में भेद करने का विवेक देखने को नहीं मिलता.’
ऑल्टन्यूज़ के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा का कहना है,’लोग व्यंग्य को समझने में कम जागरूक हैं और हास्य व्यंग्य को संगीन खबर मानकर आगे भेज देते हैं. ऐसे ही एक मज़ाक, खबर का रूप ले लेता है.’
राणा अयूब ने अपने अनुभव से बताया, ‘असली मुसीबत तो तब बनती है जब सत्ताधारी लोग ऐसी फेक न्यूज़ को शेयर करने लग जाएं.
राणा ने कहा, ‘ऐसा उन पत्रकारों को बदनाम करने के लिए किया जाता है जिनकी अपनी एक आवाज़ होती है और जो सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं. मेरे मामले में फेक फोटोशॉप की गयी तस्वीरें और वीडियो को कई मंत्रियों द्वारा उनके फेसबुक पेज पर डाला गया जिससे बात और भी ज़्यादा बिगड़ गई.’
सोशल मीडिया मंच चलाने वालों की राय
दिप्रिंट द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए ट्विटर प्रवक्ता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘हम ट्विटर के खुले मंच और रीयल टाइम (तत्काल) प्रवृत्ति को सभी प्रकार की झूठी ख़बरों के खिलाफ एक शक्तिशाली हथियार मानते हैं. पत्रकार, एक्सपर्ट्स और जागरूक नागरिक साइड-बाई-साइड झूठी ख़बरों का पर्दाफाश चंद सेकेंड ही कर देते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हमारा फोकस ऐसे प्रोडक्ट, नीति और नयेपन को लागू करना है जो ट्विटर पर लोगों के बीच हो रही बातचीत में बाधा उत्पन्न करने वाले व्यवहार को घटा सकें. अब उदाहरण के तौर पर हम समय-समय पर अपने उन नियमों में बदलाव करते रहते हैं जिनसे हम फर्जी अकाउंट की पहचान करते हैं. हम उन क्रिया कलापों को नियंत्रित करते हैं जो हमारी गाइडलाइन का उल्लंघन करते हैं. स्पैम और द्वेषपूर्ण ऑटोमेशन के खिलाफ तो हम कड़ाई से लड़ ही रहे हैं.’
उन्होंने कहा, ‘इस सन्दर्भ में हमने कुछ तो सफलता हासिल की है, सितंबर के पहले पखवाड़े में ही हमने औसतन 94 लाख अकाउंट पर आपत्ति भी जताई.’
दिप्रिंट द्वारा बार-बार आग्रह किए जाने के बावजूद फेसबुक ने अपना पक्ष नहीं रखा.
क्या कानूनी कार्यवाई मुमकिन है?
पैरोडी पेज और ट्विटर हैंडल जो नफरत उगलने का काम करते हैं, के विपरीत फर्जी कंटेंट डालने वालों के ऊपर कार्यवाई की जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के अनुसार, ‘सबसे पहले ट्विटर (या फेसबुक) में अपनी शिकायत दर्ज करें और कंटेंट को डिलीट करवाएं. दूसरा उपाय यह कि आप पुलिस में आरोपी के खिलाफ आईटी एक्ट की धारा 66-A के तहत शिकायत दर्ज करें. आप क्षति पूर्ति के लिए कोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटा सकते हैं.’
लेकिन न्यायिक ढांचे में कमियां होने के चलते ऐसे केसों में न्याय कब मिलेगा, कह पाना मुश्किल है.
गुप्ता ने बताया, ‘चूंकि इसमें फेक न्यूज़ फ़ैलाने वाले को ढूंढना मुश्किल होता है, ऐसे केस को सुलझाने में काफी वक्त लग सकता है.’
क्या किया जाए
दिप्रिंट ने SM Hoaxslayer, AltNews और Boom FactCheck से इस बारे में बातचीत की. उन्होंने फेक न्यूज़ से बचने के लिए कुछ सुझाव दिए हैं:
गूगल सर्च: SM Hoaxslayer के पंकज जैन कहते हैं कि सोशल मीडिया के यूजर सबसे पहले गूगल पर जानकारी को सर्च करें.
उन्होंने कहा, ‘आम तौर पर फेक कंटेंट या तो इतना अच्छा होता है कि गले से न उतरे, या बहुत ही विवादस्पद होता है. ऐसे में पोस्ट की हैडलाइन को कॉपी करके गूगल पर सर्च करें, यदि सच हुई तो अवश्य ही किसी न किसी विश्वसनीय मीडिया पोर्टल ने रिपोर्ट किया होगा.’
वीडियो मांगें: AltNews के सिन्हा का कहना है कि ‘सोशल मीडिया के यूजर एक स्क्रीनशॉट की बजाय स्क्रीनकास्ट का एक वीडियो मांगें. खासतौर पर तब जब जानकारी प्राइवेट बातचीत की हो. वीडियो सबूत के साथ स्क्रीनशॉट की अपेक्षा छेड़छाड़ करना मुश्किल है.
चौकन्ने रहें: Boom FactCheck के मैनेजिंग एडिटर जेन्सी जैकब कहते हैं कि ‘बिना कोई बेसिक सर्च किये कभी भी किसी जानकारी पर यकीन न करें. ऐसी पोस्ट्स के विश्वसनीय स्रोत खोजें और उस स्रोत के बारे में भी जागरूक रहें.’
इन सबके अलावा, आप गूगल का रिवर्स इमेज सर्च आराम से कर सकते हैं जिसमें गूगल आपको वह हर संभव लिंक देगा जहां उस फोटो का इस्तेमाल हुआ है. ट्विटर की एडवांस्ड सर्च भी किसी खास ट्वीट की तहकीकात कर सकती है.
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