वित्त, मानव संसाधन विकास, आईबी, एवं डब्ल्यूसीडी मंत्रालयों में चार साल में पांच सचिव बदले गए वही गृह एवं स्वास्थ्य विभाग में चार बार
नयी दिल्ली : नरेंद्र मोदी सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकारों की तुलना में स्वयं को मज़बूत और अधिक स्थिर मानती है। हालाँकि यह बात शीर्ष नौकरशाहों पर लागू होती नहीं दिखती – शीर्ष सचिवों को एक मंत्रालय से दूसरे (अक्सर महीनों के अंदर ) में भेजने का आम चलन है।
एक पूर्व वित्त सचिव अरविन्द मायाराम का कहना है – “2014 से ही लगातार अफसरों के तबादले होते आ रहे हैं… सरकार में कहीं भी स्थायित्व का भाव नहीं है जिसके कारण एक दीर्घकालिक सोच का भी अभाव है।
उदाहरण के लिए, मानव संसाधन विकास मंत्रालय में पिछले चार वर्षों में सचिव स्तर के पाँच तबादले हुए हैं। हाल ही में माध्यमिक शिक्षा विभाग के प्रभारी अनिल स्वरुप के सेवानिवृत्त हो जाने पर उनका स्थान रीना राय ने लिया है।
यह कोई अपवाद नहीं है। बार बार परिवर्तन , कार्यकाल का अचानक ख़त्म होना और ऐसे अधिकारियों की नियुक्ति जिनके कार्यकाल के कुछ ही वर्ष बचे हों – यह कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो यूपीए- II के समय से चली आ रही हैं.
ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है : आखिर हम गैर-विशेषज्ञ नौकरशाहों से यह उम्मीद कैसे रख सकते हैं कि वे अपने क्षेत्र में महारथ हासिल कर लें जब हर कुछ महीनों के अंतराल पर उनके तबादले होते हों ?
यहां तक कि सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय भी इस प्रवृत्ति से मुक्त नहीं हैं – मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान वित्त मंत्रालय में सचिव स्तर के 5 बदलाव हो चुके हैं , जबकि गृह मंत्रालय में 4 | आश्चर्य की बात है कि ऐसा तब हुआ है जब सचिवों की नियुक्ति दो वर्षों की निश्चित अवधि के लिए होती है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय ने 5 वर्षों में 4 – 4 सचिव देखे। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) , दोनों में सचिव स्तर पर 5 बदलाव हुए हैं।
दिप्रिंट ने डीओपीटी एवं पीआईबी से बात करने की कोशिश की पर कोई जवाब नहीं मिला।
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आखिर इसका कारण क्या है ?
वर्ष 2013 में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा सुजाता सिंह को विदेशी मामलों का सचिव नियुक्त किया गया था। उनका दो वर्षों का निश्चित कार्यकाल होने के बावजूद उन्हें एक वर्ष के अंदर ही बदल दिया गया। पिछले चार वर्षों के दौरान गृह सचिव रहे चार में से दो नौकरशाहों का कार्यकाल भी उनकी सेवानिवृत्ति के पहले ही ख़त्म कर दिया गया।
मायाराम का तबादला भी 6 महीने के अंदर अंदर कम प्रतिष्ठित अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय में कर दिया गया।
मोदी सरकार के इस रवैये पर सवाल उठाते हुए मायाराम कहते हैं – ” मैं समझता हूँ कि कोई भी सरकार पिछली सरकारों द्वारा नियुक्त किये गए अधिकारियों को बदलती हैं – यह उनका अधिकार है – लेकिन स्वयं द्वारा की गयी नियुक्तिओं को इतनी जल्दी निरस्त करने का कारण मेरी समझ में नहीं आता। ”
यूपीए – II केवल मामूली रूप से बेहतर
हालांकि कई शीर्ष सिविल सेवकों का कहना है कि मौजूदा शासन के तहत स्थानान्तरण अधिक मनमाना है, किन्तु आंकड़ों से पता चलता है कि यूपीए-II में भी हालात ऐसे ही थे,अगर कोई अंतर था तो बहुत ही मामूली।
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मनमोहन सिंह के प्रधान मंत्री के रूप में दूसरे कार्यकाल के दौरान पांच वर्षों में छह अलग-अलग वित्त सचिव थे। वित्त मंत्रालय में मायाराम के पूर्ववर्ती सुमित बोस का सचिव के रूप में कार्यकाल भी केवल चार महीने का ही था। 2011 में सुषमा नाथ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ।
हालाँकि कुछ का कहना है कि इतनी भारी संख्या में तबादले होने के पीछे का कारण लैटरल स्थानांतरण न होकर सचिवों का लगातार सेवानिवृत्त होना था। इस तर्क के विरोध में लोगों का कहना है कि इतने छोटे कार्यकाल के लिए सचिवों की नियुक्ति करना एक गलत फैसला है।
सामाजिक क्षेत्रों के मंत्रालय सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए
सामाजिक क्षेत्र के मंत्रालयों में हालत विशेष रूप से खराब है, क्योंकि इन मंत्रालयों की परियोजनाएं दीर्घकालिक दृष्टि एवं निवेश के बिना सफल नहीं हो सकती जिसके लिए परियोजनाओं को देखने के लिए दीर्घकालिक दृष्टि और निवेश की आवश्यकता होती है।
यूपीए -2 के पूरे कार्यकाल के दौरान केवल एक स्वास्थ्य मंत्री था लेकिन सचिव 6 बार बदले गए। फरवरी 2014 की बात है जब सचिव केशव देशराजू को बड़े हो – हंगामे के बीच बाहर का रास्ता दिखाया गया था। यह तंबाकू लॉबी एवं स्टेंट बनाने वाली एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी के दबाव में हुआ था, ऐसी अटकलें लगायी गयी हैं।
सरकार में बदलाव ने इन मंत्रालयों में शीर्ष नौकरशाहों के भाग्य को ज़्यादा प्रभावित नहीं किया । पिछले चार वर्षों में स्वास्थ्य मंत्रालय के चार सचिव रह चुके हैं, जिनमें से दो – लव वर्मा और बीपी शर्मा – ने अपने कार्यकाल का एक वर्ष भी पूरा नहीं किया था जब उन्हें क्रमशः सामाजिक न्याय मंत्रालय और डीओपीटी में भेज दिया गया।
मोदी सरकार के मूल चुनावी फोकस के क्षेत्रों में से एक, महिला और बाल विकास मंत्रालय में केवल राकेश श्रीवास्तव (चार वर्षों में पांचवें सचिव) ने 12 महीने से अधिक समय तक काम किया है। जून 2016 से मई 2017 तक डब्ल्यूसीडी सचिव के रूप में कार्य करने वाली उनकी पूर्ववर्ती लीना नायर और मेनका गाँधी के बीच के मनमुटाव की बात भी जगजाहिर है।
नाम गुप्त रखने की शर्त पर मानव संसाधन मंत्रालय के एक पूर्व सचिव ने कहा, ” सचिवों के कार्यकाल का लम्बा होना सामाजिक क्षेत्र के मंत्रालयों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहां परिणाम तुरंत नहीं आते हैं ।”
“सामाजिक मंत्रालयों में आपको दीर्घकालिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जिसके लिए आपको कम से कम 2-3 साल की स्थिरता की आवश्यकता होती है। इसके बावजूद माहौल लगातार परिवर्तन, अनिश्चितता और निरंतरता का रहा है। कभी-कभी तो हमें यह भी पता नहीं चलता कि हमारा तबादला एक मंत्रालय से दूसरे में हो चुका है । ”
लैटरल स्थानांतरण
एनडीए के तहत नौकरशाहों के बीच लगातार बढ़ते गुस्से कारण वास्तव में लैटरल स्थानांतरण है।
मायाराम आगे कहते हैं – “पहले की प्रक्रिया यह थी कि एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय में लैटरल स्थानांतरण न के बराबर होंगे … तर्क यह था कि भारत के सरकारी तंत्र में बसी जटिलताओं को समझने के लिए निरंतरता के साथ साथ कुछ हद तक विशेषज्ञता की भी आवश्यकता है । 2014 से, से ही इन प्रक्रियाओं की अनदेखी की जा रही है ।”
उदाहरण के लिए, राजीव महर्षि को वित्त मंत्रालय के सचिव का प्रभार दिया गया था लेकिन केवल दस महीने के अंदर उनका तबादला कर दिया गया ।
एक और भी आश्चर्यजनक मामले में, उत्तर प्रदेश कैडर की आईएएस अधिकारी वृंदा स्वरुप, जिन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय में काम करने का बीस वर्षों का अनुभव है , को माध्यमिक शिक्षा विभाग के सचिव के रूप में केवल पांच महीने का कार्यकाल पूरा करने के बाद बाद स्थानांतरित कर दिया गया था। उन्हें उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय में भेज दिया गया, जिसमें उन्हें कोई पूर्व अनुभव नहीं था।
ठीक उसी तरह डब्ल्यूसीडी सचिव वी. एस. ओबेराय को एक साल के अंदर मानव संसाधन विकास मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया । सी.के. मिश्रा, जो अब पर्यावरण सचिव हैं, ने एक साल भी पूरा नहीं किया था जब उन्हें मंत्रालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया ।
पूर्व मानव संसाधन विकास सचिव आश्चर्य प्रकट करते हुए कहते हैं -“अगर आप किसी को मंत्रालय में एक साल भी पूरा नहीं करने देते तो आखिर आप किसी को जिम्मेदार कैसे ठहरा सकते हैं? वे किसी भी चीज़ का स्वामित्व कैसे ले सकते हैं ? ”
Read in English : Modi govt is very ‘unstable’ for top IAS secretaries, transfers them too often and abruptly