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Friday, 26 April, 2024
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एमजे अकबर को आपराधिक मानहानि का मामला वापस लेना चाहिए: एडिटर्स गिल्ड

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एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि प्रिया रमानी के खिलाफ एमजे अकबर को आपराधिक मानहानि का दावा वापस लेना चाहिए और अगर वे ऐसा नहीं करते हैं तो गिल्ड पीड़ित महिलाओं की हर संभव मदद करेगा.

नई दिल्ली यौन उत्पीड़न के आरोपों में घिरे एमजे अकबर द्वारा प्रिया रमानी के खिलाफ दायर आपराधिक मानहानि मामले की आज पटियाला हाउस कोर्ट में सुनवाई होनी है. प्रिया रमानी ने अकबर पर सबसे पहले यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे.

यौन उत्पीड़न के आरोपों से घिरे अकबर ने बुधवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और मोदी सरकार ने इस्तीफा मंज़ूर करने में देर भी नहीं की.

वे मोदी सरकार के पहले मंत्री हैं जिन्हें दबाव में आकर अपना पद छोड़ना पड़ा. वहीं दूसरी तरफ मंत्री के खिलाफ गवाही देने वाली महिला पत्रकारों की संख्या भी बढ़ती जा रही है.

अब प्रिया रमानी समेत इस मामले में गवाही देने वाली पत्रकारों की संख्या 20 हो गई है. इन महिलाओं ने गंभीर आरोप लगाये हैं और इसके बाद एमजे अकबर का पर पद पर बने रहना मुश्किल हो गया था.

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वहीं उनके खिलाफ आवाज़ उठाने वाली पत्रकारों को सोशल मीडिया पर बहुत समर्थन मिल रहा है.

एडिटर्स गिल्ड का बयान

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा है कि वह महिला पत्रकारों द्वारा दिखाई गई बहादुरी को सलाम करता है, जिन्होंने उनके खिलाफ हुए यौन उत्पीड़न मामले उजागर किये. उनकी लड़ाई न्यूज़रूम में लैंगिक समानता लाने के उच्च विचार पर लड़ी जा रही है और एमजे अकबर का इस्तीफा भी इसकी वजह से हुआ है.

“हम आशा करते हैं कि एमजे अकबर उदारता दिखाते हुए एक  शिकायतकर्ता के खिलाफ़ आपराधिक मानहानि का मामला वापस ले लें. एक नागरिक होने के नाते अकबर के पास अपनी बात सिद्ध करने के लिए कानूनी प्रावधान हैं पर ये एक विरोधाभास होगा कि एक वरिष्ठ पत्रकार आपराधिक मानहानि का इस्तेमाल करे. खासकर जब वे गिल्ड के पूर्व अध्यक्ष थे.”

गिल्ड ने साथ ही कहा कि अगर वे ऐसा नहीं करते या अन्य महिलाओं के खिलाफ भी ऐसे मामले दायर करते हैं तो गिल्ड उन महिलाओं की हर संभव मदद करेगा और वरिष्ठ वकीलों से इन महिलाओं के केस मुफ्त में लड़ने की अपील करेगा.

 राजनीतिक दलों में विशाखा गाइडलाइन का पालन न होना  

सेन्टर फॉर एकाउन्टेबिलिटी एण्ड सिस्टमिक चेंज (सीएएससी) ने भाजपा, कांग्रेस और सीपीआई(एम) के प्रमुखों पर 50,000 का जुर्माना लगाने को कहा है. क्योंकि उन्होंने यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए शिकायत कमेटी नहीं बनाई है.

सेन्टर फॉर एकाउन्टेबिलिटी एण्ड सिस्टमिक चेंज (सीएएससी) थिंक टैंक ने केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी को #मीटू मामले में कानूनी नोटिस भेजा गया है. सीएएससी ने भाजपा, कांग्रेस और सीपीआई(एम) के प्रमुखों पर 50,000 का जुर्माना लगाने को कहा है.

राजनीतिक दल देश के निजी क्षेत्र के सबसे बड़े संगठन हैं और करोड़ों की सदस्यता का दावा करते हैं पर उस कानून का पालन नहीं करते जो 10 कर्मचारी होने वाली कंपनियों को करना पड़ता है. आंतरिक शिकायत समिति न होने के कारण पीड़ितों को शिकायत करने और उसकी सुनवाई का सही मौका नहीं मिलता. राजनीतिक दल राज्य सरकारों से संबंधित होते हैं और माना जाता है कि उनका पुलिस प्रशासन पर भी प्रभाव रहता है. इसलिए पीड़िताओं को पुलिस के समक्ष जाने में भी दिक्कत आती है.

नोटिस के अनुसार राजनीतिक दलों द्वारा विशाखा मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और संसद द्वारा 2013 में पारित कानून का पालन नहीं किया जा रहा है.

देश में 7 राष्ट्रीय, 59 राज्य स्तरीय और 2000 से ज़्यादा छोटे दल हैं जिनको मान्यता नहीं मिली है. ज़्यादातर सभी दल अपने चुनाव घोषणापत्र में महिला अधिकारों का बात कहते हैं पर कई में तो कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) से सम्बन्धित अधिनियम 2013 के तहत जो आतंरिक शिकायत कमेटी गठित करना अनिवार्य है वो भी कुछ राजनीतिक दलों ने स्थापित नहीं की है.

केन्द्रीय मंत्री एमजे अकबर अपने खिलाफ मामलों को भले ही मीडिया के समय का पुराना मामला बता रहे हैं. नोटिस में ऐसे अनेक मामलों का ज़िक्र है जिसमें राजनीतिक दलों के नेता यौन उत्पीड़न के आरोपी पाए गए पर दलों में आंतरिक समिति की व्यवस्था नहीं होने से पीड़ित महिलाओं को न्याय नहीं मिल सका.

नोटिस के अनुसार सरकार यदि एक सप्ताह में कार्यवाही करने में विफल रही तो मामले को अदालत में ले जाया जाएगा.

नोटिस सीएएससी के सह-संस्थापक अधिवक्ता विराग गुप्ता ने भेजा है.

#मीटू मुहिम ने भारत के सिनेमा, पत्रकारिता और कला क्षेत्र की कई प्रमुख हस्तियों के कथित यौन दुराचार के आरोपों के घेरे में खड़ा कर दिया है.

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