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Friday, 22 November, 2024
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सिविल सेवाओं में लेटरल एंट्री: आईएएस उम्मीदवार खुश,आईआईटी वालों की ख़ुशी का ठिकाना नहीं

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दिल्ली के कोचिंग हब में यूपीएससी उम्मीदवारों और आईआईटी के इंजीनियरों ने इस कदम का जश्न मनाया है लेकिन आगाह भी किया है कि पारदर्शिता और निष्पक्षता से समझौता हो सकता है।

नई दिल्ली: देश का स्टील फ्रेम कही जाने वाली ‘नौकरशाही’ की रैंक में शामिल होने वाले आकांक्षी छात्र निजी क्षेत्र के पेशेवरों और डोमेन (विशिष्ट ज्ञानक्षेत्र) विशेषज्ञों को शामिल करने हेतु प्रणाली को खोलने के सरकार के कदम से प्रसन्न हैं।
दिल्ली के मुखर्जी नगर, जो कि राजधानी में कोचिंग स्कूलों का तंत्रिका केंद्र है, और आईआईटी दिल्ली के कुलीन गलियारों में यह समाचार बहुत उत्साह के साथ प्राप्त हुआ।

बेहतर प्रबंधन

अधिकांश आईएएस उम्मीदवार यह मानते हैं कि लेटरल एंट्री स्कीम कार्य की उत्पादकता को बढ़ावा देगी। मुखर्जी नगर में चर्चा थी कि डोमेन ज्ञान वाले लोग निश्चित रूप से अच्छा प्रदर्शन करेंगे।

कोलकाता के यूपीएससी उम्मीदवार अमित डे ने कहा, “एक व्यक्ति जिसने एक ही क्षेत्र में कई वर्षों का काम किया हो, निश्चित रूप से हमारी तुलना में उसके पास ज्यादा अनुभव होगा।”

कानपुर के रहने वाले देव ठाकुर ने कहा, “लोग अपने जूनून को जी सकने में सक्षम होंगे जो उन्हें अत्यधिक उत्पादक बना देगा और उन्हें अपने कार्य के साथ न्याय करने में मदद करेगा।”

नोएडा से एक आईएएस आकांक्षी पूजा चौबे ने कहा कि यह कदम उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो अपने क्षेत्र में लंबे समय से काम कर रहे हैं और काफी अनुभव संचितकर चुके हैं।

मुखर्जी नगर में एक निजी कोचिंग सेंटर चलाने वाले गौतम चौधरी ने भी इस कदम की सराहना की।

“शीर्ष स्तर पर हमें विशेषज्ञों के प्रदर्शन की आवश्यकता होगी। हमने देखा है कि कैसे निजी क्षेत्र में लोग उच्चतर प्रदर्शन दिखाने में सक्षम हुए हैं।इसलिए उन्हें सार्वजनिक क्षेत्र में शामिल करना एक अच्छा कदम होगा।”
पिछले दरवाजे से प्रवेश

लेकिन चौधरी ने सावधानी बरतने की सलाह भी दी। उन्होंने कहा कि कागज पर ऐसा लग सकता है कि नौकरी सर्वश्रेष्ठ पुरुष या महिला को दी जा रही है लेकिन सम्भावना है कि एक सरकार अपने खुद के लोगों को ज्यादा तवज्जो देकर सिविल सेवा को भर सकती है।

उन्होंने कहा, “पिछले दरवाजे से प्रविष्टि, यानि कि सरकार और अनुमानित निष्पक्ष सिविल सेवा के मध्य विश्वास,के सवाल पर चर्चा होनी चाहिए।”

पटना से एक आईएएस पदाभिलाषी रविशंकर इससे सहमत हुए। उन्होंने इंगित किया कि “पूर्वाग्रह का सवाल” गंभीर है और इस पर चर्चा होनी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि “इस बात की संभावना है कि नौकरशाह अपने मित्रों और परिवार का पक्ष लेंगे।”

छात्र भी चिंतित हैं कि उनकी कड़ी मेहनत बर्बाद हो जाएगी।

देव ठाकुर ने कहा, “मुझे इंजीनियरिंग छोड़नी पड़ी थी और मैंने यूपीएससी परीक्षा के लिए पढ़ाई शुरू कर दी थी। यह दूसरी बार है जब मैं इसका प्रयास कर रहा हूँ। क्षेत्रों के बदलने के कारण मेरा समय बर्बाद हो गया है।”

आईआईटी दिल्ली में मनोदशा

इसके ठीक विपरीत,आईआईटी दिल्ली के अधिकांश छात्रों और शोधकर्ताओं ने इस कदम का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि लेटरल एंट्री स्कीम भारत के कामकाज के तरीकों में सुधार करेगी और प्रशासनिक दक्षता को महत्वपूर्ण रूप से बेहतर बनाएगी।

पोस्ट डॉक्टोरल फेलो विकास शर्मा ने कहा, “निर्णय लेने की गुणवत्ता में सुधार होगा। आज सिविल सेवाओं के लोगों को उन क्षेत्रों में निर्णय लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है जिनके बारे में उन्हें कुछ भी पता नहीं होता।”

उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिए, मानविकी पृष्ठभूमि वाले एक अधिकारी को विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे विशेष क्षेत्रों में निर्णय लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसका कोई मतलब नहीं बनता। लेकिन बाहरी विशेषज्ञों, जिनके पास डोमेन ज्ञान है,के साथनिर्णयों की गुणवत्ता निश्चित रूप से सुधर जाएगी।”

शर्मा के अनुसार, भारत की नौकरशाही ने अपनी प्रतिस्पर्धी धार को खो दिया है। “यदि यह कदम वृहत्तर दक्षता की ओर जाता है, तो यह इसकी छवि को बेहतर बना सकता है।”

लेकिन, एक परियोजना सहयोगी जन्मेजय कुमार ने महसूस किया कि सुधरी हुई दक्षता केवल कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित होगी।

कुमार ने कहा, “वित्त, वाणिज्य, व्यापार और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में कौशल और अनुभव की एक अलग श्रेणी की आवश्यकता होगी जो शायद कॉर्पोरेट दुनिया और अनुभव से आने वाले लोगों में बेहतर पाया जा सकता है। लेकिन अन्य पदों के लिए जहां तकनीकी जानकारियां आवश्यक नहीं हैं वहां साधारण सिविल कर्मचारी भी प्रदर्शन कर सकते हैं।”

यूपीएससी परीक्षा पास करने के अपने दूसरे प्रयास में लगे गुरजिंदर सिंह ने कहा कि यह कदम सिविल सेवकों को अपने पुराने तरीकों को छोड़ने और बाहरी दुनिया के विशेषज्ञों के साथ प्रतिस्पर्धा करना सीखने के लिए प्रेरित करेगा।

उन्होंने कहा, “वे अपनी नौकरियों को हल्के में लेना बंद कर देंगे। उन्हें साबित करना होगा कि वे उस पद पर बने रहने लायक क्यों हैं।” गुरजिंदर कहते हैं कि नई योजना के कारण वह आराम महसूस करते हैं। “मैंने सोचा था कि यदि मैं सिविल सेवा परीक्षा पास नहीं कर पाया तो मैं सिस्टम में कभी भी प्रवेश नहीं पा सकूंगा। लेकिन अब मैं जानता हूँ कि मैं अगले 15 सालों के लिए अपनी नौकरी में अच्छा कर सकता हूँ और उसके बाद भी सिस्टम में प्रवेश पा सकता हूँ।
प्रतिभा पलायन

कई छात्रों ने महसूस किया कि लेटरल एंट्री स्कीम गुण-संपन्न इंजीनियरों को बेहतर जिंदगी की तलाश में विदेश की ओर रुख करने के बजाय अपने देश में रुकने और इसकी सेवा करने के लिए प्रोत्साहित करेगी।

शर्मा ने कहा, “नए अवसरों को पैदा करने से पलायन हो चुकी प्रतिभा को वापस लाने में भी मदद मिल सकती है जैसा कि लोग विदेशों में कमाए गए अपने अनुभव को भी अपने साथ लाते हैं।”

लेकिन बलवंत चौहान, जिन्होंने इस साल एम.टेक पूरा किया है, ने कहा कि नौकरशाही के साथ वास्तविक समस्या यह थी कि इसे पर्याप्त कायापलट की जरूरत थी और लेटरल एंट्री जैसे कदम सिस्टम में थोड़ी-बहुत ही मरम्मत कर पाते हैं।
चौहान ने तर्क दिया, आखिरकार रघुराम राजन और अरविंद पनगढ़िया जैसे लोग आरबीआई और नीति आयोग में लेटरल प्रवेशकर्ता ही तो थे लेकिन क्या वे इन संस्थानों की आंतरिक प्रक्रियाओं को बदलने में सक्षम थे?

उन्होंने कहा, “आईआईटी में प्रोफेसर बनने के लिए आपको थीसिस लिखकर और शोध करके खुद को लगातार साबित करने की आवश्यकता होती है।भर्ती नीति कठोर है, यही कारण है कि उच्च गुणवत्ता वाले शिक्षण उच्च गुणवत्ता वाले छात्रों का निर्माण करने में सक्षम हैं। यूपीएससी को भी अपने संभावित कैडर के लिए ऐसी ही मानसिकता के साथ आगे बढ़ना चाहिए।”

आगे की चिंताएं

सिंह ने जोर देकर कहा कि नए कदम केवल तभी काम करेंगे जब भर्ती प्रक्रियाओं को पारदर्शी रखा जाए। उन्होंने कहा, “यदि प्रमुख पदों को फिर भी राजनेताओं द्वारा निर्धारित किया जाता है तो यह नीति शायद उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकती है।”

कुमार ने यह भी बताया कि संस्थानों की स्वायत्तता जोखिम में पड़ सकती है। उन्होंने कहा, “आज भारत जैसे क्रियाशील लोकतंत्र में नियंत्रण और संतुलन बनाये रखने के लिए आवश्यक प्रमुख संस्थानों पर सरकार का नियंत्रण है।उदाहरण के लिए, सीबीआई या चुनाव आयोग।ये अधिकारी ज्यादातर निष्पक्ष हैं औरउनके पास अधिक स्वायत्तता नहीं है। लेकिन यदि लोगों को सरकार द्वारा चुना जाता है और इन प्रमुख पदों पर बिठाया जाता है तो उन संस्थानों की स्वायत्तता बिगड़ सकती है।”

Read in English: Lateral entry into civil services: IAS aspirants happy, IITians happier

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