भारतीय सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत द्वारा प्रस्तावित सुधार को सेना में ही भितरघात का सामना करना पड़ रहा है.
नई दिल्ली: भारतीय सेना मुख्यालय के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया है कि भारतीय सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत द्वारा प्रस्तावित सुधार को सेना में ही आंतरिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है.
7 में से 2 भारतीय सेना कमांडरों ने कैडर और सैन्य बल पुनर्गठन पर “असहमति व्यक्त की है” जिसका उद्देश्य जनशक्ति को कम करना और पीस स्टेशनों में डिवीज़न जैसी संरचनाओं को खत्म करना है.
मंगलवार से शुरू होने वाले सेना कमांडरों के सम्मेलन में इस मुद्दे पर चर्चा होगी. जनरल रावत ने सुधार पर चार अध्ययनों को समझाने के लिए बैठक में समापन दिवस पर 14 अक्टूबर को चर्चा करेंगे.
आर्मी के एक आधिकारिक बयान में कहा गया है, “इस कॉन्क्लेव में भाग लेने वाले, कमांडर और निदेशक महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करेंगे और भविष्य की चुनौतियों से निपटने के बारे में बात करेंगे.”
आधिकारिक बयान में कहा गया है, “सेना और मुख्यालयों के साथ-साथ मानव संसाधन प्रबंधन पहलुओं के परिचालन और अनुकूलन मुद्दों की जांच के चार अध्ययन भी हैं.”
अध्ययन में शामिल एक अधिकारी ने कहा, “हम मंथन के बीच में हैं, एक अकादमिक बहस है जो चल रही है. जब तक आप अलग रहना चाहते हैं, रहें लेकिन कोई समस्या न पैदा न करें.
सेना कमांडर उपाध्यक्ष के रैंक के समतुल्य होता है. सेना कमांडर के पास जिम्मेदारी के उनके क्षेत्रों पर पूर्ण अधिकार होता है. किसी भी सुधार प्रस्ताव, या मुख्यालय से किसी भी आदेश पर उनकी पूर्ण भागीदारी होनी चाहिए.
सात सेना कमांडर जो अभी हैं- इनमें लेफ्टिनेंट लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवाने (पूर्व), लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह (उत्तर), लेफ्टिनेंट जनरल सुरिंदर सिंह (पश्चिम), लेफ्टिनेंट जनरल चेरीश मैथसन (दक्षिण पश्चिम), लेफ्टिनेंट जनरल सतिंदर कुमार सैनी (दक्षिण), लेफ्टिनेंट जनरल पी सी थिमाय्या (सेना प्रशिक्षण कमांड) और लेफ्टिनेंट जनरल अभय कृष्णा (सेंट्रल) और उपाध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल देवराज अन्बू हैं.
‘कम सहयोगी, ज्यादा जवान’
अगस्त में, सेना मुख्यालय ने प्रस्तावित सुधारों का दस्तावेज वितरित किया था. इसके कहा गया कि उनका उद्देश्य जवानों की तुलना में उनके सहयोगियों को कम करना है. सम्मेलन के बयान में, यह भी कहा गया है कि अध्ययनों पर चर्चा की जाएगी. “भविष्य के लिए तैयार होने के लिए सेना के भीतर संरचनाओं को मजबूत करने के उद्देश्य से जवानों और उनके सहयोगियों के अनुपात में सुधार करना है.”
जवानों और सहयोगियों का अनुपात (The tooth-to-tail ratio) युद्ध सैनिकों की इकाइयों को बनाए रखने के लिए आवश्यक सहायक कर्मियों की संख्या है. सहयोगियों की संख्या कम और अधिक कुशल जवानों की संख्या ज्यादा रखना है.
सेना मुख्यालय ने पेपर में दावा किया कि प्रस्तावित सुधार, जिसमें 35 वर्षों में पहली बार कैडर का पुर्नगठन करने का प्रयास शामिल है, यह ‘भारतीय सैन्य मामलों में क्रांतिकारी कदम होगा.’
सेना के भीतर सबसे ज्यादा बहस होने वाला मुद्दा जिसकी चर्चा कमांडरों के सम्मेलन में हावी होने की उम्मीद है, डिवीज़न को खत्म करने और “एकीकृत ब्रिगेड” या युद्ध समूहों को बनाने का प्रस्ताव है जो सीधे मुख्यालयों को रिपोर्ट करेगा.
सैन्य दल भारतीय सेना को सबसे बड़ा बनता है. आम तौर पर, सैन्य दल में लगभग तीन डिवीजन होते हैं, एक डिवीज़न में तीन ब्रिगेड होते हैं, और एक ब्रिगेड के पास तीन बटालियन होती है. परिचालन क्षेत्र के आधार पर संख्याएं बदलती रहती है.
वर्तमान में, लेफ्टिनेंट जनरल द्वारा सैन्य दल को आदेश दिया जाता है, डिवीज़न में मेजर जनरल आदेश देता है और ब्रिगेड को ब्रिगेडियर आदेश देता है. अगर एकीकृत युद्ध समूहों (आईबीजी) के प्रस्ताव को लागू कर दिया जायेगा तो यह अनुक्रम बदल सकता है. एक प्रस्ताव के मुताबिक, आईबीजी की अध्यक्षता मेजर जनरल करेंगे. यह ब्रिगेडियर की रैंक को निरर्थक बना सकता है. प्रत्येक आईबीजी में चार से पांच बटालियन होंगे.
आर्मी कमांडरों का सम्मेलन साल में दो बार आयोजित किया जाता है. अक्टूबर में आयोजित होने वाले सम्मेलन में पदोन्नति बोर्ड भी शामिल होता हैं जो ब्रिगेडियर, मेजर जनरल और लेफ्टिनेंट जनरल के वरिष्ठ रैंकों के लिए अधिकारी चुनता है.
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