इन आंकड़ों की वजह से स्वयं सरकार भी आश्चर्यचकित है और इस समस्या के कारणों का पता लगाने की दिशा में जोड़-घटाव बदस्तूर जारी है।
नई दिल्ली: मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने संसद को सूचित किया है कि भारत में स्कूल स्तर पर शिक्षकों के 10 लाख से भी अधिक पद खाली पड़े हैं।
वहीं मंत्रालय द्वारा किये गए एक आंतरिक सर्वेक्षण की मानें तो स्कूल स्तर पर चार लाख शिक्षक ऐसे हैं जो अतिरिक्त हैं।
उलझन में पड़ गए? आप अकेले नहीं हैं; सरकार की समझ में भी कुछ नहीं आ रहा। मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी उलझन में अपने सिर खुजा रहे हैं और इन “आंकड़ों की जांच” में लगे हैं। आखिर ऐसे दो विरोधाभासी आंकड़े एक ही हफ्ते में कैसे आये? हालांकि यह साफ है कि इसके लिए भारत का अफसर तंत्र एवं लालफीताशाही ज़िम्मेदार है।
रिक्तियां
30 जुलाई 2018 को लोकसभा में मानव संसाधन विकास विभाग के मिनिस्टर ऑफ स्टेट, उपेंद्र कुशवाहा द्वारा दिये गए आंकड़ों के अनुसार प्राथमिक विद्यालयों में 9,00,316 रिक्तियां हैं । वहीं माध्यमिक विद्यालयों में 1,07,689 पद खाली हैं।
सर्वाधिक रिक्तियों के साथ उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है जबकि बिहार दूसरे स्थान पर। राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं बंगाल भी सूची के अंत में ही आते हैं।
आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि कुछ ऐसी जगहें भी हैं जहाँ विद्यालयों में केवल एक या दो शिक्षक हैं वहीं कुछ अन्य स्कूलों में आवश्यकता से अधिक।
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कम नामांकन वाले स्कूलों को बंद करने अथवा उनका विलय करने के कारण भी इन आंकड़ों पर असर हुआ है। एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्र के पास स्कूलों के विलय को लेकर पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है अतः यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि इस वजह से शैक्षणिक रिक्तियों पर कैसा असर पड़ा है। यही कारण है कि ऐसे बेमेल आंकड़े प्राप्त हुए हैं।
कुछ जगहों पर शिक्षक नियुक्त तो हैं लेकिन उनकी नियुक्ति स्कूलों में न होकर अन्य जगहों, जैसे, शिक्षा के राज्य निदेशालय में है। अधिकारी ने बताया कि सरकार जानती है कि कुछ शिक्षक सिफारिश के बल पर इन निदेशालयों में पोस्टिंग ले लेते हैं ताकि उन्हें दूर दराज़ के स्कूलों में पढ़ाने न जाना पड़े।
अधिकारी आगे बताते हैं, “शिक्षकों की नियुक्ति ऐसे स्थानों पर की गई है जहां उनकी कोई आवश्यकता नहीं। उदाहरण के तौर पर, हमें एक राज्य शिक्षा निदेशालय में 2,000 शिक्षक मिले। वे सरकार से शिक्षक की तनख्वाह लेकर गैर-शैक्षणिक कार्यों में नियुक्त हैं। इस वजह से रिक्तियां पैदा होती हैं।”
आवश्यकता से अधिक
इसके बाद आते हैं मंत्रालय के एक आंतरिक सर्वेक्षण के माध्यम से प्राप्त हुए चार लाख अतिरिक्त्त पदों के विरोधाभासी आंकड़े।
अधिकारी ने समझाया, “हमारे विश्लेषण के अनुसार देश में छात्र शिक्षक अनुपात 1:24 है जोकि 1:35 के मानक अनुपात से काफी बेहतर है। इस अनुपात के अनुसार गणना करने पर हम पाते हैं कि चार लाख अतिरिक्त शिक्षक हैं।
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निदेशालयों आदि में नियुक्ति भी इन आंकड़ों पर असर डालती है, जैसाकि ऊपर बताया जा चुका है। उनकी गिनती शिक्षकों में होती तो है लेकिन वे कोई असली शैक्षणिक कार्य नहीं करते।
उपाय
हालांकि सरकार इन आंकड़ों में उपजी विसंगतियों की जांच में लगी है लेकिन इसका पहला समाधान है और ज़्यादा आंकड़े लाना। मानव संसाधन विकास मंत्रालय राज्यों के लिए हर साल एक मांग-आपूर्ति विश्लेषण को अनिवार्य करने की दिशा में भी कदम उठाने वाला है। राज्य अब तक इसे नज़रंदाज़ करते आ रहे थे।
अधिकारी की मानें तो “राज्यों को चाहिए कि वे हर वर्ष केंद्र सरकार को मांग-आपूर्ति विश्लेषण भेजें लेकिन वे ऐसा नहीं करते हैं जिसके नतीजतन इतनी सारी रिक्तियां दिख रही हैं।
एक बार यह विश्लेषण पूरा हो जाये और आंकड़ों में मेल बिठा लिया जाए, उसके बाद मंत्रालय शिक्षकों को तैनात करने की योजना बना रहा है।
Read in English : India has 10 lakh teaching vacancies. India has 4 lakh excess teachers. Go figure.