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Wednesday, 17 April, 2024
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लोहिया आज़ादी के पहले भी जेल गए, आज़ादी के बाद भी

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राम मनोहर लोहिया की 51वीं पुण्यतिथि पर दिप्रिंट उनको याद कर रहा है. समाजवादी राजनेता राम मनोहर लोहिया ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़े और उन्होंने सामाजिक सुधार के लिए काम भी किया.

नई दिल्ली: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वो लोहिया ही थे जिन्होंने भूमिगत रहते हुए भी अपने काम के दम पर आंदोलन को ज़िंदा रखा था. उस समय तमाम बड़े नेताओं को ब्रिटिश शासन ने जेल में डाल दिया था.

राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में व्यापारी परिवार के घर हुआ था. उनका पालन पोषण दादा-दादी ने किया था. जब वह 2 वर्ष के थे तब उनकी मां का देहांत हो गया था. उनके पिताजी श्री हीरालाल ने दोबारा शादी करने से इंकार दिया था. वह हृदय से सच्चे राष्ट्रभक्त थे.


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अपने पिता के कदमों पर चलते हुए 11 वर्ष की आयु में असहयोग आंदोलन में कूद गए जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी कर रहे थे.

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लोहिया ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से अपने इंटरमीडिएट की शिक्षा को पूरा किया. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और बाद में बर्लिन के हम्बोल्ट विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की, जहां पर उन्होंने अर्थशास्त्र और राजनीति का अध्ययन किया.

स्वतंत्रता संग्राम

1934 में, लोहिया कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए जोकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वामपंथी दल के रूप में कार्य करता था.

वह पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट नामक पत्रिका का संपादन भी किया. 1936 में वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के विदेश विभाग के सचिव बन गए.

नेहरू के उलट लोहिया ने द्वितीय विश्व युद्ध में भारत की सहभागिता का विरोध किया. उन्हें 1939-40 में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध टिप्पणी करने के मामले में गिरफ़्तार कर लिया गया था.

11 मई, 1940 को दोस्तपुर, उत्तर प्रदेश में एक जनसभा में लोहिया ने कहा कि “शोषण और गुलामी की बुनियाद पर खड़ी ब्रिटिश सरकार की विशाल इमारत अब हिल रही है.”

उन्होंने कहा, “देश के 10 प्रांतों में लोकप्रिय सरकारों को गवर्नरी निरंकुशता के द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है. यह एक सत्याग्रह शुरू करने के लिए पर्याप्त समर्थन प्रदान करता है.

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू समेत सभी शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था, तब लोहिया और जयप्रकाश नारायण ने समर्थन जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

द हिंदू द्वारा प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, “लोहिया ने बॉम्बे और कलकत्ता में ‘कांग्रेस रेडियो’ नामक भूमिगत रेडियो स्टेशनों की स्थापना की ताकि वे “नेतृत्वविहीन आंदोलन को बनाए रखें और जनता तक आवश्यक जानकारी प्रसारित कर सकें.” जेपी ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से निपटने के लिए एक गुरिल्ला संगठन बनाया. इसके परिणामस्वरूप 1944-46 में लोहिया को फिर से जेल भेज दिया गया.

फरवरी 1947 में लोहिया कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष चुने गए थे.

स्वतंत्रता के बाद

लोहिया ने नेहरू के साथ मतभेद के कारण 1948 में कई नेताओं के साथ कांग्रेस पार्टी छोड़ दी. मेनस्ट्रीम की एक रिपोर्ट के अनुसार, लोहिया का मानना था कि नेहरू ने समाजवाद के बारे में काफी बड़ी-बड़ी बातें की थीं, लेकिन वास्तव में उसे लागू नहीं किया था.

वे 1952 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए और बहुत कम समय के लिए महासचिव के रूप में कार्य किया. उन्होंने 1955 में पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया. बाद में उन्होंने एक नई सोशलिस्ट पार्टी लॉन्च की और मैनकाइंड नामक मासिक पत्रिका का संपादन किया. लोहिया ने सामाजिक अन्याय के खिलाफ कई बार सत्याग्रह किया और इस दौरान वे कई बार जेल गए.

मई 1963 में फर्रुखाबाद से उपचुनाव में लोहिया तीसरी लोकसभा के लिए चुने गए थे. वो लोहिया ही थे जिन्होंने संसद में कृषि मज़दूरों के बीच भुखमरी की व्यापक समस्या को उजागर किया था. 1964 के बजट बहस में लोहिया ने बताया कि 27 करोड़ भारतीय एक दिन में तीन तीन आना यानि 19 पैसे पर जीवन यापन करते हैं.

समाज सुधारक

लोहिया मानते थे कि जब तक जातिगत भेदभाव ख़त्म नहीं होगा तब तक भारत विकास नहीं कर पायेगा. उन्होंने सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य अंतर्जातीय विवाह और सामुदायिक त्यौहारों सहित जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिए कई सुझाव दिए.


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जातिगत भेदभाव को ख़त्म के लिए वो अक्सर ‘रोटी और बेटी’ का ज़िक्र किया करते थे. वो चाहते थे कि लोग जातिगत भेदभाव से ऊपर उठ कर एक दूसरे के यहां खाएं और अपने बेटे-बेटियों का विवाह अन्य जातियों में भी करें.

12 अक्टूबर, 1967 को नई दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल यानि अब राम मनोहर लोहिया अस्पताल में उनका देहांत हो गया था.

लोहिया अपने पीछे समाजवादी विचारधारा की विरासत अगली पीढ़ी के नेताओं के लिए छोड़ कर चले गए. समाजवादी विचारधारा के प्रमुख नेता मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव इत्यादि है.

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