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Sunday, 22 December, 2024
होमसमाज-संस्कृतिनागार्जुन: 'बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक'

नागार्जुन: ‘बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक’

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बाबा नागार्जुन ने अपनी कविताओं में एक तरफ इंदिरा गांधी जैसे नेताओं की खबर ली तो दूसरी तरफ आम अवाम के जीवन को जबान दी. आज नागार्जुन की पुण्यतिथि है.

नागार्जुन हिंदी के ऐसे कवि हैं जिन्हें निर्विवाद रूप से जन​कवि माना जाता है. लोकतंत्र की पहरेदारी और राजनीति पर कटाक्ष करने के मामले में वे सभी कवियों में सबसे आगे खड़े मिलते हैं. वे जनता की तरफ प्रतिबद्धता से खड़े होकर सत्ता से बहुत कड़े सवाल पूछते हैं, चाहे वह तानाशाह होने की हद तक पहुंच चुकीं आपातकाल लगाने वाली इंदिरा गांधी ही क्यों न हों.

एक तरफ वे घनघोर राजनीतिक होकर समकालीन सत्ता को लताड़ लगाते हैं तो दूसरी तरफ अपनी बेटी के लिए गुलाबी चूड़ियां ले जाने वाले बस ड्राइवर, अकाल के बाद पसरा सन्नाटा, काम से लौट रहे मज़दूर, सुअर, जेल का साथी नेवला आदि भी उनकी कविता के केंद्र में हैं. आज के दौर में जब सत्ता अपने आलोचकों से सीधे भिड़कर उन्हें घोर अपराधी घोषित करना चाहती है, तब बाबा नागार्जुन को याद करना उस आलोचना पक्ष के साथ खड़े होना है जो लोकतंत्र को मजबूत बनाती है. पेश है उनकी कुछ राजनीतिक कविताएं:

शासन की बंदूक

खड़ी हो गई चांपकर कंकालों की हूक
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक

उस हिटलरी गुमान पर सभी रहे हैं थूक
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक

बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक

सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक
जहां-तहां दगने लगी शासन की बंदूक

जली ठूंठ पर बैठकर गई कोकिला कूक
बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक

बाकी बच गया अंडा

पांच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूंखार
गोली खाकर एक मर गया, बाकी रह गए चार

चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन
देश-निकाला मिला एक को, बाकी रह गए तीन

तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गए वो
अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच गए दो

दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक
चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया एक

एक पूत भारतमाता का, कंधे पर है झंडा
पुलिस पकड़ कर जेल ले गई, बाकी बच गया अंडा

हिटलर के तंबू में

अब तक छिपे हुए थे उनके दांत और नाखून
संस्‍कृति की भट्ठी में कच्‍चा गोश्‍त रहे थे भून
छांट रहे थे अब तक बस वे बड़े-बड़े कानून
नहीं किसी को दिखता था दूधिया वस्‍त्र पर खून
अब तक छिपे हुए थे उनके दांत और नाखून
संस्‍कृति की भट्ठी में कच्‍चा गोश्‍त रहे थे भून
मायावी हैं, बड़े घाघ हैं,उन्‍हें न समझो मंद
तक्षक ने सिखलाये उनको ‘सर्प-नृत्‍य’ के छंद
अजी, समझ लो उनका अपना नेता था जयचंद
हिटलर के तंबू में अब वे लगा रहे पैबंद
मायावी हैं, बड़े घाघ हैं, उन्‍हें न समझो मंद.

बर्बरता की ढाल ठाकरे

बाल ठाकरे! बाल ठाकरे!
कैसे फासिस्टी प्रभुओं की
गला रहा है दाल ठाकरे!
अबे संभल जा, वो पहुंचा बाल ठाकरे!
सबने हां की, कौन ना करे!
छिप जा, मत तू उधर ताक रे!
शिव-सेना की वर्दी डाटे, जमा रहा लय-ताल ठाकरे!
सभी डर गए, बजा रहा है गाल ठाकरे!

गूंज रहीं सह्याद्री घाटियां, मचा रहा भूचाल ठाकरे!
मन ही मन कहते राजा जी, जिये भला सौ साल ठाकरे!
चुप है कवि, डरता है शायद, खींच नहीं ले खाल ठाकरे!
कौन नहीं फंसता है देखें, बिछा चुका है जाल ठाकरे!
बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे!
बर्बरता की ढाल ठाकरे!
प्रजातंत्र का काल ठाकरे!

धन-पिशाच का इंगित पाकर, ऊंचा करता भाल ठाकरे!
चला पूछने मुसोलिनी से, अपने दिल का हाल ठाकरे!
बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे! बाल ठाकरे!

इन्दु जी क्या हुआ आपको

क्या हुआ आपको?
क्या हुआ आपको?
सत्ता की मस्ती में
भूल गई बाप को?
इन्दु जी, इन्दु जी, क्या हुआ आपको?
बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!
क्या हुआ आपको?
क्या हुआ आपको?

आपकी चाल-ढाल देख- देख लोग हैं दंग
हकूमती नशे का वाह-वाह कैसा चढ़ा रंग
सच-सच बताओ भी
क्या हुआ आपको
यों भला भूल गईं बाप को!

छात्रों के लहू का चस्का लगा आपको
काले चिकने माल का मस्का लगा आपको
किसी ने टोका तो ठस्का लगा आपको
अन्ट-शन्ट बक रही जनून में
शासन का नशा घुला खून में
फूल से भी हल्का
समझ लिया आपने हत्या के पाप को
इन्दु जी, क्या हुआ आपको
बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!

बचपन में गांधी के पास रहीं
तरुणाई में टैगोर के पास रहीं
अब क्यों उलट दिया ‘संगत’ की छाप को?
क्या हुआ आपको, क्या हुआ आपको
बेटे को याद रखा, भूल गई बाप को
इन्दु जी, इन्दु जी, इन्दु जी, इन्दु जी…

रानी महारानी आप
नवाबों की नानी आप
नफाखोर सेठों की अपनी सगी माई आप
काले बाजार की कीचड़ आप, काई आप

सुन रहीं गिन रहीं
गिन रहीं सुन रहीं
सुन रहीं सुन रहीं
गिन रहीं गिन रहीं
हिटलर के घोड़े की एक-एक टाप को
एक-एक टाप को, एक-एक टाप को

सुन रहीं गिन रहीं
एक-एक टाप को
हिटलर के घोड़े की, हिटलर के घोड़े की
एक-एक टाप को…
छात्रों के खून का नशा चढ़ा आपको
यही हुआ आपको
यही हुआ आपको

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