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Thursday, 21 November, 2024
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आईआईटी की बदौलत सिविल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में अब प्रवेश ले सकेंगी और भी ज़्यादा महिलाएं

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देश की विभिन्न आईआईटीयों में 779 अतिरिक्त सीटें बनाई गयी हैं, ज्यादातर उन शाखाओं में जहाँ परंपरागत रूप से महिलाओं की हिस्सेदारी नहीं रहती है।

नई दिल्ली: आईआईटी ने न सिर्फ प्रमुख इंजीनियरिंग संस्थानों में लिंग संतुलन में सुधार के लिए इस वर्ष छात्राओं के लिए और सीटों को जोड़ा है बल्कि यह भी चाहती है कि ये युवा छात्राएं बड़े पैमाने पर मैकेनिकल और सिविल (शाखाएं, जिनमें परंपरागत रूप से महिलाओं की हिस्सेदारी नहीं होती है) इंजीनियर बनें।

आईआईटी द्वारा सीट आवंटन के एक विश्लेषण से पता चलता है कि नयी जोड़ी गयी सीटों में से एक तिहाई सीटें मैकेनिकल और सिविल शाखाओं में केन्द्रित हैं।

शुरुआत में, कुछ आईआईटी जैसे आईआईटी गुवाहाटी में मैकेनिकल शाखा में महिला उम्मीदवारों के लिए कोई भी सीट नहीं थी जबकि आईआईटी कानपुर में केवल दो सीटें थीं। इन दोनों संस्थानों में अब सिविल और मैकेनिकल शाखाओं में महिला सीटों की उचित संख्या है।

इस वर्ष पूरे आईआईटी में महिला छात्रों के लिए कुल 779 अतिरिक्त सीटें बनाई गई हैं।

लिंग संतुलन में सुधार

मानव संसाधन विकास मंत्रालय को सौंपी गई एक रिपोर्ट के आधार पर पिछले साल अतिरिक्त सीटों को शामिल करने का फैसला लिया गया था। रिपोर्ट कहती है कि भारत में हर साल लगभग 3 लाख महिलाएं इंजीनियरिंग में शामिल होती हैं, जिनमें से केवल 8 प्रतिशत ही आईआईटी में शामिल होती हैं।

रिपोर्ट में कहा गया था कि, “बी.टेक. पाठ्यक्रमों में केवल 8 प्रतिशत छात्राएं हैं जबकि भारतीय समाज में महिलाओं का प्रतिशत 48.5 है। आईआईटी बी.टेक. पूरी तरह से देश की सेवा नहीं कर रहे हैं। हम लगभग आधे सबसे अच्छे भारतीय युवाओं को शिक्षा नहीं दे रहे हैं।“

तदनुसार, आईआईटी को इस साल से महिलाओं के 8 प्रतिशत को बढ़ाकर 14 प्रतिशत करने के लिए अपनी शाखाओं में और सीटें बढ़ाने के लिए कहा गया था। इसका विचार 2020 तक अंततः 20 प्रतिशत महिलाओं को शामिल करना है।

आईआईटी में लिंग संतुलन के मुद्दे की निगरानी के लिए गठित संयुक्त आवंटन बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, सभी आईआईटीज़ में 848 महिलाओं को बी.टेक. पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश कराया गया था जबकि इसके लिए 1400 महिलाओं ने अर्हता प्राप्त की थी लेकिन उन्होंने विभिन्न कारणों के चलते दाखिला नहीं लिया था, इन कारणों में विशिष्ट शाखाओं के लिए वरीयता या स्थानांतरण शामिल थे।

इसके अलावा, करीब 2400 महिला छात्रों ने कम अंको के साथ जेईई-एडवांस की अर्हता प्राप्त की थी। अतिरिक्त सीटें इन सभी महिलाओं के दाखिले को पूरा करेंगी।

हिमाचल प्रदेश में आईआईटी मंडी के निदेशक और जेएबी उप समिति का नेतृत्व कर चुके टिमोथी गोंज़ालवेज़ ने दिप्रिंट को बताया कि, “परंपरागत रूप से मैकेनिकल जैसी शाखाओं में कई महिलाएं प्रवेश नहीं लेती हैं। यही कारण है कि ऐसी शाखाओं में अधिक सीटें शामिल की गई हैं ताकि आईआईटी का हिस्सा बनने की चाहत रखने वाली महिलाओं को अतिरिक्त लाभ मिल सके।“

रोजगार की संभावनाएं

गोंज़ालवेज़ ने यह भी बताया कि वर्तमान में, जब नौकरियों की बात आती है तो विभिन्न शाखाओं के बीच समानता का स्तर दिखाई नहीं देता है।

उन्होंने कहा, “एक छात्रा जो मैकेनिकल इंजीनियरिंग लेती है, उसके पास ऑटोमोबाइल कंपनी में अच्छा प्लेसमेंट पाने का एक उचित मौका होता है क्योंकि अधिकांश काम इन दिनों स्वचालित रूप से ही हो जाते हैं।”

स्रोतों के मुताबिक, सीट मैट्रिक्स ने सरकार को शुरुआत में चिंतित कर दिया था जब जेईई-एडवांस में चुने गए उम्मीदवारों की संख्या 18,000 थी – जो सात साल में सबसे कम थी। तब आईआईटी को फिर एक और कट ऑफ सूची घोषित करने के लिए कहा गया ताकि कम अंक अर्जित करने वालों को अतिरिक्त सीटें मिल सकें। बाद में, उम्मीदवारों की संख्या लगभग 32,000 हो गई।

यदि प्रवेश के लिए छात्राओं की संख्या बहुत कम होती है तो 27 जून से काउंसलिंग शुरू होने के बाद, महिलाओं के लिए बढ़ाई गई अतिरिक्त सीटों का क्या होगा, स्पष्ट हो जायेगा।

एमएचआरडी द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2017 तक पूरी आईआईटी में 17.74 प्रतिशत छात्राएं थीं। इस आंकड़े में स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी स्तर की महिलाएं शामिल हैं।

Read in English : Thanks to IITs, India to see a lot more women in civil and mechanical engineering

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