सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या जन्म भूमि विवाद की आखिरी सुनवाई से अड़चन दूर कर दी है. अब सुनवाई 29 अक्टूबर से होगी
नई दिल्ली: अयोध्या भूमि विवाद मामलें में सुनवाई 29 अक्टूबर से होगा. सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई में अंतिम अड़चन भी दूर कर ली है जब उसने कहा कि मस्जिद में नमाज़ पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है.
बहुमत वाला 2:1 के इस फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने 1994 के इस्माइल फारूखी फैसले को बड़ी बेंच को देने से ये कह कर इंकार कर दिया कि मस्जिद में नमाज़ पढ़ना इस्लाम का ज़रूरी हिस्सा नहीं है. इसी मामले में अदालत ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि के अधिग्रहण की अनुमति भी दे दी थी जहां 1992 के पहले बाबरी मस्जिद थी.
न्यायाधीष अशोक भूषण जिन्होंने ये बहुमत वाला निर्णय लिखा ने कहा, “मौजूदा मामले को अपने तथ्यों के आधार पर तय किया जाएगा और इस्माइल फारूखी मामले का इसपर कोई असर नहीं होगा.”
मुख्य न्यायाधीष उनसे सहमत थे वहीं न्यायाधीष अब्दुल नज़ीर ने अपनी असहमति व्यक्त की.
नज़ीर ने कहा कि, “फारूखी मामले में जो विवादास्पद टिप्पणियां हुई है उन्होंने 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर असर डाला.” वे उच्च न्यायालय के उस फैसले के बारे में बात कर रहे थे जिसमें विवादित भूमि का तीन हिस्सों में बटवारा किया गया था. अब सर्वोच्च न्यायालय इसके खिलाफ की गई अपीलों की सुनवाई कर रही है.
नज़ीर ने कहा कि इस्लाम में मस्जिद की भूमिका एक अहम मसला है और उसे बड़ी संविधान पीठ को सौंपा जाना चाहिए.
20 जुलाई को शीर्ष अदालत ने इस सवाल पर कि क्या मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
मामले की सुनवाई में तीन सदस्यीय पीठ ने विचार किया कि क्या 1994 के फारूखी फैसले को बड़ी बेंच के पास भेजने की ज़रूरत है.
इस्माइल फारूखी फैसले में ये तो कहा गया था कि इस्लाम में नमाज़ पढ़ना ज़रूरी है पर साथ ही ये भी कहा था कि “इस्लाम धर्म के अनुपालन में मस्जिद अहम नहीं है और मुसलमान नमाज़ कही भी पढ़ सकते है, खुले में भी.”
2010 का हाई कोर्ट का फैसला
यह खंडपीठ इलाहबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले को चुनौती देती याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी. यह मामला “राम जन्मभूमि” नाम से जानी जाने वाली ज़मीन को लेकर था जिसमें मस्जिद के महत्त्व के सीमित मुद्दे पर सवाल उठाये गए थे.
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6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों द्वारा तोड़ी गयी बाबरी मस्जिद इसी ज़मीन के एक हिस्से पर बनी थी.
2010 के फैसले ने 2: 1 बहुमत वाले अपने निर्णय में जमीन को तीनों दावेदारों – सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर हिस्से में बांटा था.
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा था कि वह टुकड़ों में निर्देश देने की बजाय इस मामले को (इस ख़ास मुद्दे पर) सम्पूर्णता में सुनना चाहता था.
मुसलमानों ने क्या कहा
मुस्लिम दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने तर्क दिया कि हर धर्म का हरेक पूजास्थल , तुलनात्मक महत्व के से सुरक्षा का हकदार था. उन्होंने कहा कि यह तुलनात्मक महत्व, विभिन्न धर्मों से जुड़े मुद्दों को हल करने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था.
उन्होंने कहा, “भारत की एक अरब आबादी में छह मुख्य जातीय समूह और पचास प्रमुख जनजातियां शामिल हैं; छह प्रमुख धर्म और 6,400 जातियां और उप-जातियां; अठारह प्रमुख भाषाएं और 1,600 मामूली भाषाएं. ”
“भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को सही ढंग से तभी दर्शाया जा सकता है जब एक रिलीफ मैप बनाया जाए जिसमें यह एक अरब की आबादी नक़्शे में लगे पत्थर के टुकड़ों की तरह होंगे.”
“प्रत्येक व्यक्ति – चाहे उसकी कोई भी भाषा, जाति, धर्म हो – अपनी व्यक्तिगत पहचान का हकदार है जिसे संरक्षित किया जाना चाहिए ताकि एक साथ जोड़े जाने पर यह भारत की विभिन्न भौगोलिक विशेषताओं के साथ खुलकर सामने आये.”
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वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने तर्क दिया था कि मामले के राजनैतिक महत्व और धार्मिक संवेदनशीलता को देखते हुए उसे एक बड़ी खंडपीठ को सौंपा जाना चाहिए था.
हिंदुओं ने क्या कहा
हिंदुओं का तर्क है कि वर्तमान मुद्दा पूर्णतया “संपत्ति विवाद” था, और पक्षों की धार्मिक संवेदनाओं या राजनैतिक महत्त्व के अनुसार इस मामले को बड़ी बेंच को देने का समर्थन नहीं किया जा सकता.
मूल शिकायतकर्ताओं में से एक – गोपाल सिंह विशारद – का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि इस मुद्दे को सुनने के लिए एक बड़ी खंडपीठ की आवश्यकता नहीं थी देश मुगल सम्राट बाबर द्वारा 16वीं शताब्दी में बनायी गयी इस मस्जिद के विध्वंस से आगे बढ़ चुका है और अब इस मुद्दे का फैसला पूर्णतया भूमि विवाद के तौर पर किये जाने की आवश्यकता है.
Read in English : Final hearing of Ayodhya Ram Mandir land dispute to start 5 months before Lok Sabha polls