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Sunday, 3 November, 2024
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मांगलिक बेटी की शादी तय होने पर शुक्रिया कहने की रस्म ने ली बुराड़ी परिवार की जान

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एक परिवार के सभी सदस्यों की मौत की मनोवैज्ञानिक शव चिकित्सा या साइकोलोजिकल ऑटोप्सी से पता चला है कि परिवार के 15 से 77 साल के सदस्यों में आत्महत्या की प्रवृति नहीं थी,पर वे एक ‘ग़लत हुई रस्म’ का शिकार हुए है.

नई दिल्ली: दिल्ली के परिवार के मनोवैज्ञानिक शव चिकित्सा से पता चला है कि एक जुलाई को फांसी लगा कर मरने की धटना एक ‘गलत हुई रस्म’ के कारण हुई है.

परिवार के 11 सदस्य माना जाता है कि भगवान को अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए एक रस्म कर रहे थे. वे परिवार की सबसे बड़ी पोती, जो कि एक मांगलिक है, की होने वाली शादी के लिए आभार व्यक्त कर रहे थे.

सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (सीएफसीएल) और सीबीआई की तीन सदस्यीय टीम का कहना है कि परिवार के सदस्यों के ज़हन में ‘आत्महत्या के ख्याल’ नहीं थे.

“ ये घटना आत्महत्या नहीं बल्कि एक एक्सीडेंट था जोकि रस्म करने के दौरान हो गया. किसी भी मरने वाले की अपना जीवन समाप्त करने की मंशा नहीं थी, ”ऑटोप्सी रिपोर्ट का कहना है.

परिवार की मुख्या नारायणी देवी (77) का शव बुराड़ी के घर में ज़मीन पर मिला था, उनके पुत्र भुवनेश(50) और ललित(45) बहुएं सविता(48) और टीना (42), बेटी प्रतिभा(57) और पोती प्रियंका (33) निधि (25), मेनका (23), ध्रुव(15) और शिवम(15) गोलाई के आकार में झूलते पाए गये थे.

दस लोगो के हाथ बंधे हुए थे, उनकी आँखों पर पट्टी थी और उनके मुंह को सर्जिकल टेप से बंद किया हुआ था, जोकि सब एक ‘आभार व्यक्त करने की रस्म’ का हिस्सा था.

दिमाग की सोच की ऑटोप्सी

साइकोलोजिकल ऑटोप्सी तकनीक से जांचकर्ता मृत व्यक्ति की दिमागी हालत का उसकी मौत के ठीक पहले जायज़ा लेते है.

ऐसा करने के लिए वो मृतक के रिश्तेदारों से पूछताछ करते है, पड़ोसियों, दोस्तों से बात करते है और उनके व्यवहार और मेडिकल इतिहास पता करते है. बुराड़ी मामले में इस ऑटोप्सी में घर में मिली उन आठ डायरियों की भी जांच की गई जिसमें पिछले 11 सालों का लेखा जोखा था.

वरिष्ठ कॉंग्रेस नेता शशि थरूर की पत्नी और व्यापारी सुनंदा पुष्कर की जनवरी 2014 में मौत की जांच में भी साइकोलोजिकल ऑटोप्सी की गई थी. विशेषज्ञों का तब मानना खा कि उनकी “आत्महत्या करने की प्रवृति” थी.

पुलिस के मामले को पुख्ता करते सबूत

सूत्रों का कहना है कि ऑटोप्सी की रिपोर्ट ने पुलिस जांच के निश्कर्ष को पुख्ता किया था जिन्होंने किसी तरह की साजिश से मृत शरीरों की जांच के बाद इंकार किया था.

“ गला घोंटने में पूरी गर्दन की गोलाई पर निशान होता है, पर लटकने की स्थिति में आंशिक निशान होता है- उस तरफ जहां फंदा गले को छूता है,” एक पुलिस सूत्र ने बताया.

“ ये आधा लटकने की घटना है जो आत्महत्या में हमेशा होती हैं,” इस सूत्र ने जोड़ा.


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“ अगर कोई किसी का गला दबाता है और फिर उसे फांसी के फंदे पर लटकाता है तो चोट के निशान एकदम अलग होते है, वो ट्रेकिया को पूरी तरह से तोड़ देता है जोकि इस मामले में नहीं हुआ था. अगर उनकी हत्या कर के उनको लटकाया गया होता तो हाथापाई के निशान होते,” सूत्र ने कहां.

“ ये मौतें न्यूरोजेनिक शॉक के कारण हुई जब लटकने के कारण दिमाग में खून की सप्लाई रुक गई,” उन्होंने जोड़ा.

जब ललित उनके पिता की आवाज़ में बोलने लगे

इस परिवार के रहस्यमय रीति रिवाज़ों को परिवार के मुखिया भोपाल सिंह की 2006 में मौत से जोड़ कर देखा जा सकता है जिसका ललित पर गहरा असर पड़ा था.

सिंह की मौत के कुछ महीनों बाद, ललित का एक्सीडेंट हुआ और उनकी आवाज़ चली गई. उनके रिश्तेदारों के अनुसार किसी भी चिकित्सा का कोई असर नहीं हुआ.. हालांकि कुछ हफ्तों बाद वे बोलने लगे पर अपने पिता की आवाज़ में.

“ उनके पिता का पूरा वर्चस्व था,” एक जांचकर्ता ने कहा. “विशेषज्ञों की जांच कहती है कि ललित पर उनकी पिता की मौत का इतना गहरा असर हुआ था कि उन्हें भ्रम होता था कि उनके पिता उनसे बात कर रहे है. अंतत: उन्होंने अपने परिवार को ये बात मनवा दी की भोपाल सिंह की आत्मा विशेष दिनों में उनके शरीर में प्रवेश करती थी और उनसे बातचीत करती थी.”

कहा जाता है कि ललित भी अपने पिता की तरह व्यवहार करने लगे थे, उनके हावभाव अपनाने लगे थे. वे उसी जगह बैठते जहां उनके पिता बैठते थे और परिवार के सदस्यों को प्रवचन देते- कैसे व्यापार करना है, पढ़ाई करनी है और परिवार को एकजुट रखना है.

पुलिस के अनुसार परिवार के दूसरे सदस्यों को वो जो कहे उसे नोट करने को कहा जाता. “ प्रियंका और निधि का काम डायरियों में लिखना था जो भी वे कहते. ये 11 साल तक चलता रहा,” एक पुलिस अधिकारी ने कहा.

“एक ही दिमागी हालत सब की हो गई थी, जोकि परिवार पर भी थोपी गई ,” एक जांचकर्ता ने कहा.

“ललित और उनकी पत्नी ने सबको आश्वस्त करवा दिया कि भोपाल सिंह ललिक के पास आते है और परिवार की समस्याओं का समाधान देते है. उन्होंने सब को इस बात पर विश्वास करने पर मजबूर कर दिया कि चूकि भोपाल सिंह भगवान के करीब है, उनकी सुनी जानी चाहिए,” जांचकर्ता ने आगे बताया.


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आभार की रस्म

बड़ तपस्या की रस्म के बारे में डायरी में विस्तृत रूप से दिया गया है जोकि इन मौतों के कुछ दिन पहले ही लिखी गई थी.

जांचकर्ताओं के अनुसार ये रस्म भगवान का प्रियंका की शादी तय करवाने के आभार में की जानी थी. प्रियंका मांगलिक थी.

“ विचार ये था कि इस पूजा में वट वृक्ष की शाखाओं की तरह लटका जाएगा,” एक जांचकर्ता ने कहा. “परिवार के सदस्यों का मानना था कि एसा करके वे आभार व्यक्त करेंगे पर उन्हें विश्वास था कि वे मरेंगे नहीं,” जांचकर्ता ने कहा.

इस रस्म की एक डायरी एंट्री कहती है, “चाहे धरती हिले, आकाश हिले, तुम्हें शून्य के बारे में सोचना है. भगवान को पता चलना चाहिए कि तुम श्रद्धा से कर रहे हो.”

डायरी एंट्री की फिर से किया

जांचकर्ताओं का कहना है कि सभी शव वैसे ही मिले जैसे डायरी में लिखा था.

“ डायरी में कहा गया था कि बालक मंदिर के पास छोटे स्टूल पर खड़ा होगा और बाकी सब गोलाकार में एक समान दूरी पर खड़े होंगे. हर व्यक्ति कासे खड़ा होगा ये भी डायरी में लिखा था. और सारे वैसे ही पाये गये,” एक जांचकर्ता ने बताया.

ये रस्म मध्यरात्री को की जानी थी जब खाना खा लिया गया है. खाना बाहर से आना था और किसी को घर का बना खाना नहीं खाना था.

“डायरी में लिखा था, ‘ खाना बाहर से मंगवाना, माँ के हाथ से खाना’’. जब हमने जांच की तो पाया कि परिवार ने ढ़ाबे से 200 रुपये का खाना मंगवाया था,” एक जांचकर्ता ने बताया.

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