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Friday, 22 November, 2024
होमशासनपकड़े जाने का ज़रा भी खतरा होता तो हम सर्जिकल स्ट्राइक का फैसला रद्द कर देते: भारतीय सेना के सेवानिवृत जनरल

पकड़े जाने का ज़रा भी खतरा होता तो हम सर्जिकल स्ट्राइक का फैसला रद्द कर देते: भारतीय सेना के सेवानिवृत जनरल

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लेफ्टीनेंट जनरल राजेन्द्र निंबोरकर (सेवानिवृत), जिन्होंने जम्मू कोर्प्स की कमान संभाली थी कहते है कि भारत सरकार ने हवाई शक्ति के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी थी और इस ऑपरेशन का लाइव फीड लेने का खतरा मोल नहीं लिया था.

नई दिल्ली: भारतीय सेना पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में अपना सर्जिकल स्ट्राइक करने का फैसला फैसला रद्द कर देता अगर उसे पैरा कमांडोस जोकि पाकिस्तानी सैन्य के लान्च पैड को ध्वस्त करने जा रहे थे, उनका पता पाकिस्तान को चल जाता.

जम्मू कोर्प्स की कमान संभालने वाले एक वरिष्ठ जनरल ने दिप्रिंट को बताया कि सेना ने हवाई शक्ति के इस्तेमाल की अनुमति भी नहीं दी थी.

लेफ्टीनेंट जनरल राजेन्द्र निंबोरकर ( सेविनिवृत) ने दिप्रिंट को बताया,“आधी लड़ाई को तब ही जीत ली थी जब हम सीमापार बिना पकड़े पहुंच गए. अगर हमें पकड़े जाने का ज़रा भी शक होता या हमारी शिनाख्त का खतरा होता तो हम इस ऑपरेशन को रद्द कर देते.”

निंबोरकर जोकि उस समय 16 (नगरोटा) कोर्प्स  ने बताया “फिर मिशन नाकामयाब कोशिश हो जाती. पर हम बिना पकड़े घुस गए और तब हमें पता था कि अब मिशन के सफल होने का शत प्रतिशत मौका था.” जम्मू में पीर पंजाल के दक्षिण का क्षेत्र उनके मातहत आता था.


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सितंबर 28-29, 2016, 4 पैरा स्पेशल फोर्सेस बटैलियन की तीन टीमें जोकि निंबोरकर के कार्य क्षेत्र में आती थी.उस रात पाकिस्तान अधिकृत कशमीर में धुसीं थी.

9 पैरा स्पेशल फोर्सेस की चार अन्य टीमें भी पीर पंजाल के उत्तर की ज़िम्मेदारी लिए 15(वैली) कोर्प्स क्षेत्र में कार्यरत थी.

उस समय 15 कोर्प्स की कमान लेफ्टीनेंट जनरल सतीश दुआ के हाथ थी जो अब चीफ ऑफ स्टाफ कमिटी के अध्यक्ष के तहत इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के प्रमुख है.

स्पेशल फोर्सेस की हर टीम में 30-35 कमांडो थे.

इन दोनो कोर्प्स कमाडरों ने उत्तरी सेना कमांडर, ले. जनरल डीएस हूडा (सेवामिवृत) के मातहत मिलकर ये पूरी योजना तैयार की थी.

‘अंधेरा एक सहयोगी था, सामरिक किलाबंदी में मददगार’

निंबोरकर ने कहा कि अंधेरे ने इस ऑपरेशन की बहुत मदद की, “हम घुप्प अंधेरे के समय घुसे और अंधेरा रहते ही वापिस भी आ गए.”

टीमों को लाइन ऑफ कंट्रोल के गांवों और बारूदी सुरंगों जैसी अड़चनों को पार करना पड़ा.

निंबोरकर मे कहा कि टीमों को बहुत अच्छा सामरिक सहयोग मिला. चूकि इस ऑपरेशन को तेज़ी से घुस कर, अपना काम करके, तेज़ी से बाहर आना था.इसलिए कमांडोस को बहुत सारा राशन पानी ले जाने का बोझ नहीं था इसलिए वो ज़्यादा गोला बारूद ले जा सके

जैसा कि कॉमिक स्ट्रिप्स में  सर्जिकल स्ट्राइक  को दर्शाते वैसा कुछ भी नहीं था. ले. जनरल ने दिप्रिंट को बताया कि हवाई शक्ति की मांग नहीं हुई हालांकि हेलीकॉप्टर तैयार खड़े थे.

निंबोरकर ने बताया कि “आर्मी एविएशन कोर्प्स स्टैंड बाई पर था. पर हमें ज़्यादा ज़रूरत नहीं पड़ी क्योंकि उनके उपकरण युद्ध के लिए बने है और इस तरह के ऑपरेशन के लिए उपयुक्त नहीं था.”

निंबोरकर से जब पूछा गया कि क्या भारतीय सेना एलओसी पार कर के गई थी या उसे सेना को हवाई मार्ग से भेजा गया, “ भारतीय वायु सेना का इस ऑपरेशन में कोई महत्व नहीं था.

ले. जनरल ने कहा कि इस एक्शन का कोई लाइव फीड नहीं था- जैसा कि अमरीकी सील्स के ओसामा बिन लादेन वाले ऑपरेशन में हुआ था. ऐसा करने से पकड़े जाने का खतरा बढ़ जाता.

उन्होंने बताया, “जब आप लाइव फीड देते हो ता खतरा रहता है कि कोई उसे सुन लेगा. हमने लाइव फीड नहीं दी पर हमने सारे ऑपरेशन को रिकॉड ज़रूर किया.” उन्होंने आगे कहा कि “ऐसे ऑपरेशन का सुरक्षित होना ज़रूरी है. जीवन पर खतरा हो सकता है. पकड़े जाने का डर होता है अगर हम लाइव फीड के लिए सिग्नल का इस्तेमाल करते है तो.


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निंबोरकर ने कहा कि किसी को उस जगह पर जाकर उसकी पहचान करने की ज़रूरत नहीं थी क्योंकि भारतीय सेना चप्पे -चप्पे को पहचानती है और निरंतर उस पर नज़र रखती है.

जब उनसे पूछा गया कि क्या फिर सर्जिकल स्ट्राइक फिर की जा सकती है तो उन्होंने कहा कि अगर ज़रुरत हो तो किया जा सकता है.

उन्होंने कहा, “करने का तरीका हालांकि बदला जायेगा. वैसी ही कार्यवाही फिर करने से पकड़े जाने का खतरा होता है. क्योंकि दुश्मन को पता चल चुका है कि पहले क्या तरीका अपनाया गया था. हमारे पास इस तरह के ऑपरेश्न्स करने के लिए बहुत अनुभव है जोकि हमारी सेना के लिए मददगार हो सकते है.

Read in English : Any hint of detection and we would’ve called off surgical strikes: Retd Indian Army general

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