सुप्रीम कोर्ट का गुरूवार का फैसला अयोध्या मामले में अंतिम सुनवाई का रास्ता साफ़ करता है. यही नहीं, 2019 से पहले फैसला आने से भाजपा की जीत की सम्भावना भी बढ़ेगी.
नई दिल्ली: आधार के मुद्दे पर आये मनोनुकूल फैसले के एक दिन बाद सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए एक और अच्छी खबर आयी जब गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या भूमि विवाद की अंतिम सुनवाई के लिए रास्ता साफ कर दिया.
पार्टी के सूत्रों ने बताया कि इस फैसले के बाद भाजपा “उत्साहित है और साथ ही आशा कर रही है कि मुख्य अयोध्या मामले में कोई देरी नहीं होगी”.
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सुनवाई 29 अक्टूबर से शुरू हो जाएगी और अंतिम निर्णय 201 9 के लोकसभा चुनावों से पहले आ सकता है और यह संभव है कि उससे भाजपा को चुनाव में फायदा मिले.
अदालत ने 1994 के उस फैसले को पांच न्यायाधीशीय संविधान खंडपीठ को भेजने से इंकार कर दिया जिसमें कहा गया था कि मस्जिद इस्लाम के अभ्यास का अभिन्न अंग नहीं थी.
यह देखते हुए कि इस फैसले का विवादित अयोध्या भूमि विवाद मामले पर असर पड़ता है, इसे एक बड़ी खंडपीठ को न भेजने से इसका फैसला जल्दी आने की उम्मीद की जा सकती है.
अगर इस मामले को बड़ी बेंच में भेजा जाता तो फैसला किसी भी सूरत में 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले नहीं आता. लेकिन अब फैसले के जल्दी आने की सम्भावना बनती दिख रही है.
भगवा खेमे में ख़ुशी की लहर
अदालत के फैसले ने भाजपा के मनोबल को बढ़ावा दिया है.
हालांकि भाजपा ने आधिकारिक तौर पर खुशी व्यक्त नहीं की लेकिन इसके विचारधारात्मक गुरु आरएसएस ने निर्णय का स्वागत करने में देर नहीं की.
आरएसएस ने एक बयान में कहा, “आज, सुप्रीम कोर्ट ने 29 अक्टूबर से तीन सदस्यीय खंडपीठ द्वारा श्री राम जन्माभूमि मामले पर सुनवाई करने का फैसला किया है. हम इस फैसले का स्वागत करते हैं और आश्वस्त हैं कि इस मामले पर जल्द ही फैसला सुनाया जाएगा. ”
विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने भी अपने विचार प्रकट किये. वीएचपी के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा, ” राम जनभूमि की अपील की सुनवाई के लिए अब रास्ता साफ़ है, अड़चन खत्म हो गयी है.
भाजपा ने साधी चुप्पी
दो भगवाधारी नेताओं को छोड़कर (केंद्रीय मंत्री उमा भारती जो राम जनमभूमि आंदोलन का हिस्सा थीं और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ) किसी वरिष्ठ भाजपा नेता ने फैसले पर टिप्पणी नहीं की है.
भारती ने कहा, “यह मामला धार्मिक विवाद नहीं है क्योंकि अयोध्या शुरू से ही हिंदुओं के लिए धार्मिक महत्व का स्थान रहा है, ठीक वैसे जैसे मक्का मुस्लिमों के लिए है. इसे भूमि विवाद मामले में परिवर्तित कर दिया गया था.
आदित्यनाथ ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा- “यह मामला जितनी जल्दी हल हो जाए, देश के लिए उतना ही अच्छा होगा. हम इस मामले का जल्द से जल्द समाधान निकालने की अपील करते हैं.”
जहां तक भाजपा की बात है तो उन्होंने इस विवाद में न पड़ने और जीत का जश्न न मनाने का फैसला सोच समझकर किया है.
पार्टी के सूत्रों ने बताया कि नेताओं को आलाकमान द्वारा सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर टिप्पणी न करने के निर्देश दिए गए हैं. भाजपा चाहती है कि अब इस मामले की अगुवाई आरएसएस और वीएचपी करें.
उन्होंने कहा कि भाजपा को “आधिकारिक तौर पर सशक्त प्रतिक्रिया करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि यह मुख्य फैसला नहीं है. लेकिन साथ ही पार्टी मानती है कि इससे भाजपा को बहुत फायदा होगा और उसकी राजनीति पर सकारात्मक असर पड़ेगा.
एक वरिष्ठ पार्टी नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यदि राम मंदिर मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हिंदुओं के पक्ष में फैसला दिया जाता है, तो कोई भी “भाजपा को इसे मुस्लिमों पर थोपने के लिए ज़िम्मेदार नहीं ठहरा सकता.”
पार्टी यह भी मानती है कि अंतिम निर्णय 2019 से पहले आये या नहीं, गुरुवार के फैसले से भाजपा को “ऑप्टिक्स ऐंड परसेप्शन ” युद्ध में मदद मिलती है और यह हिंदुत्व की राजनीति के कथानक में सही तरीके से फिट भी बैठती है.
भाजपा की राम पर राजनीति
एक तरह से देखा जाए तो भाजपा को राजनैतिक एवं चुनावी बढ़त 1990 के दशक की शुरुआत में मिली जब इस पार्टी ने अयोध्या में विवादित स्थल पर मंदिर बनाने के लिए अपना अभियान शुरू किया. बाबरी मस्जिद का विध्वंस और भाजपा द्वारा राम मंदिर की मांग ने साथ मिलकर पार्टी की बहुसंख्यक हिंदुत्ववादी राजनीति के ब्रांड के लिए मज़बूत आधार बनाया.
तब से अब तक, भाजपा नेता किसी भी महत्वपूर्ण चुनाव में इस सामाजिक और राजनैतिक रूप से महत्वपूर्ण मुद्दे का उल्लेख करके फायदा उठाने से नहीं चूके हैं.
राम मंदिर बनाने के सदाबहार वादे के साथ भाजपा ने अपने मूल वोट बैंक को बरकरार रखने का प्रयास किया है.
सूत्रों के अनुसार, भाजपा मानती है कि कि मुख्य अयोध्या मामले में कोई भी फैसला उनके पक्ष में काम कर सकता है. सबसे बुरी स्थिति, यहां तक कि एक “वर्स्ट केस सिनेरियो” का इस्तेमाल भी “उन्माद भड़काने के लिए किया जा सकता है.”
यह मुद्दा उत्तर प्रदेश में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहां 543 में से 80 लोकसभा सीटें है. इनमें से ने 2014 में भाजपा ने अपने दम पर 71 सीटें जीतीं थीं. हालांकि, केंद्र में पांच साल की एंटी-इनकंबेंसी (राज्य में दो साल) और साथ ही गोरखपुर, फूलपुर और कैराना में उपचुनाव में अपने दयनीय प्रदर्शन को देखते हुए पार्टी कुछ हद तक राज्य में अपनी साख खोने के बारे में चिंतित है.
यह देखते हुए कि यह यूपी था जिसने भाजपा को 2014 में जादुई आंकड़ा पार करने में मदद की थी, पार्टी को यह अहसास है अयोध्या भूमि विवाद मामले में फैसला इसकी जीत की संभावनाओं में काफी वृद्धि कर सकता है.
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बेशक पार्टी अच्छी तरह से जानती है कि इस मुद्दे का महत्त्व यूपी से कहीं आगे तक है और इससे सवर्णों में बढ़ता गुस्सा शांत होने की उम्मीद है. पारम्परिक रूप से भाजपा के समर्थक रहे सवर्ण पार्टी से खासे दुखी हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि भाजपा दलितों और पिछड़ी जातियों को खुश करने में लगी है.
कांग्रेस का क्या कहना है
इस बीच कांग्रेस ने एक बार फिर दावा किया है कि भाजपा इस मुद्दे पर लोगों को “गुमराह करने और मूर्ख बनाने” की कोशिश कर रही है.
एआईसीसी संचार कक्ष की संयोजक और राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा, “कांग्रेस ने हमेशा यह माना है कि राम मंदिर-बाबरी मस्जिद मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सर्वमान्य होगा और उसे सरकार द्वारा लागू किया जाना चाहिए. लेकिन दुर्भाग्यवश, 30 वर्षों तक भाजपा ने राम मंदिर मुद्दे पर लोगों को केवल भ्रम में डाला और बेवकूफ बनाया है … हर चुनाव से छह महीने पहले भाजपा ने भगवान राम का इस्तेमाल वोट हासिल करने के लिए किया है.”
Read in English : https://theprint.in/governance/after-aadhaar-ayodhya-verdict-another-leg-up-for-bjp-camp/125913/