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Friday, 22 November, 2024
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बाल बलात्कारियों को रासायनिक तरीके से नपुंसक करने की मांग पर होगी जांच

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महिला वकीलों ने पीएमओ को लिखा था कि बलात्कार के सबसे दुर्लभ मामलों में बाल-बलात्कारियों को मृत्युदण्ड के अलावा सजा से कुछ घंटे पहले रसायनिक तत्वों से नपुंसक करने की सजा दी जाए।

नई दिल्लीः महिला वकील के एक समूह द्वारा दिए गएअभ्यावेदन की जाँच करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से कहा है, जिसमें बाल बलात्कारियों को रसायनिक तत्वों से नपुंसक करने की सजा की माँग की गई है।

सर्वोच्च न्यायालय की महिला वकील एसोसिएशनद्वारा अभ्यावेदन 18 अप्रैल को पीएमओ को सौंपा गया था, महिला वकील का एक निजी समूह शीर्ष अदालत में पेशेवर है,पीएमओ ने इसे “उचित कार्रवाई” के लिए डब्ल्यूसीडी मंत्रालय को भेज दिया है।

अभ्यावेदन कहता है कि “दुर्लभ मामलों में बलात्कारियों को अतिरिक्त दंड प्रदान करने के लिए मृत्युदंड के अलावा, रसायनिक तत्वों से अपराधी को नपुंसक करने की सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए।“

पिछले महीने, जम्मू-कश्मीर में कठुआ में बक्करवाल समुदाय की आठ वर्षीय लड़की के बलात्कार और हत्या के खिलाफ राष्ट्रीय आक्रोश के बाद,मोदी सरकार ने एकअध्यादेश के माध्यम से बाल बलात्कारियों के लिए मृत्युदंड के प्रावधान का आदेश दिया था।

एससीडब्लूएलए की अध्यक्ष महालक्ष्मी पावनी ने दिप्रिंट को बताया कि बलात्कारियों के दिमाग में भय पैदा करने के लिए रसायनिक तत्वों से नपुसंकता की सजा का प्रावधान एक लंबा रास्ता तय करेगी। उन्होंने कहा, “कामेच्छा को हटाकर, आप एक आदमी के अहंकार को लक्षित कर रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि केमिकल कैस्ट्रेशन, मूल रूप से फिजिकलकैस्ट्रेशन से अलग है, जिसमें शल्य चिकित्सा के माध्यम से शरीर के अंग को काटना शामिल होता है। जबकि, पहले, केवल एक इंजेक्शन में दवा भरकर लगाने से कामेच्छा समाप्त हो जाती थी।

उन्होंने कहा कि इससे पहले पवानी ने संसद और सुप्रीम कोर्ट से बच्चों के बलात्कार के खिलाफ कठोर कानूनों के लिए याचिका दायर की थी, लेकिन वर्तमान माहौल में बाल-बलात्कार के मामलों में खतरनाक वृद्धि ने एसोसिएशन को फिर से इस मामले के खिलाफ बोलने के लिए मजबूर कर दिया है।

इसके अलावा, अभ्यावेदन “बच्चे” शब्द को फिर से परिभाषित करने के लिए भी कहता है।

“बच्चे की परिभाषा में 0 महीने से 12 साल तक की आयु वर्ग के बीच छोटी लड़कियां और लड़के दोनों शामिल होने चाहिए। क्योंकि हाल के दिनों में अनगिनत घटनाएं हुई हैं जिनमें छोटे लड़कों का भी यौन शोषण तथा बलात्कार किया गया है एवं उन्होंने भी दर्द और पीड़ा का सामना किया है।

डब्ल्यूसीडी मंत्रालय पहले से ही यौन अपराध (पीओसीएसओ) अधिनियम 2012 के खिलाफ बच्चों के संरक्षण में संशोधन पर विचार कर रहा है ताकि छोटे लड़को के यौन उत्पीडन, बलात्कार को भी लडकियों के बलात्कार के मामलें में सजा के प्रवाधान के समतुल्य रखा जा सके।

मद्रास उच्च न्यायालय ने पूर्व में केंद्र से नाबालिगों पर यौन हमले की सजा के रूप में कथन पर विचार करने के लिए कहा था। लेकिन निर्भया गैंगरेप के मामले के बाद 2013 में गठित न्यायमूर्ति वर्मा कमेटी ने माँग को खारिज कर दिया था।
समिति ने पाया कि नपुंसकता”बलात्कार की सामाजिक नींव का इलाज करने में विफल रहता है “जबकि न्यायमूर्ति वर्मा ने यह भी कहा था कि यह कदम असंवैधानिक और अमानवीय होगा।

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