scorecardresearch
Sunday, 24 November, 2024
होमएजुकेशनभारतीय इंजीनियरों के लिए विदेशों में खुलने वाले हैं और भी अधिक रोजगार के अवसर

भारतीय इंजीनियरों के लिए विदेशों में खुलने वाले हैं और भी अधिक रोजगार के अवसर

Text Size:

सरकार द्वारा भारतीय संस्थानों में 1,000 कार्यक्रमों की आधिकारिक मान्यता की सहमति। ‘वाशिंगटन समझौते’ के तहत, यह विदेशी रोजगार के लिए स्नातकों की संभावनाओं में सुधार करेगा।

नई दिल्लीः देश के संस्थानों में 1,000 से अधिक कार्यक्रमों को विश्व स्तर पर स्वीकार किए जाने को मान्यता देने के लिए भारत सरकार की सहमति से, इंजीनियरिंग स्नातकों के लिए वैश्विक रोजगार के दरवाजे बडे स्तर पर खुलने को तैयार हैं।
यह मान्यता मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत नेशनल ब्यूरो ऑफ एक्रीडीटेशन (एनबीए) द्वारा दी जाएगी, जो 2014 में भारत द्वारा हस्ताक्षरित वाशिंगटन समझौते का एक हिस्सा है। समझौता, स्नातकों को विदेशों में रोजगार पाने के अवसर को आसान बनाता है।

एनबीए द्वारा सभी संस्थानों में सम्मलित किए गए कुछ कार्यक्रम जैसे एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग, कैमिकल इंजीनियरिंग, सिविल इंजीनियरिंग, बायोमेडिकल इंजीनियरिंग और कंप्यूटर इंजीनियरिंग शामिल हैं। यह विचार बड़े पैमाने पर समान कार्यक्रमों के लिए मान्यता देने के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, चीन, दक्षिण कोरिया, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और न्यूजीलैंड जैसे देशों में स्नातकों के लिए काम करने की संभावना को बढ़ाने के लिए भी है।

वर्तमान में, विदेशी कंपनियों में नौकरी पाने वाले स्नातकों का प्रतिशत बहुत कम है। यहां तक कि प्रमुख भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों के स्नातक छात्र भी संघर्ष कर रहे हैं, स्थिति यह है कि हर साल 9,000 से 10,000 छात्र आईआईटी से स्नातक करते हैं जिसमें से एक प्रतिशत से भी कम छात्र अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों में प्लेसमेंट प्राप्त कर पाते हैं।
कैसे समझौता चीजों को आसान बनाता है?

वाशिंगटन समझौते की सिफारिश यह है कि किन्हीं भी हस्ताक्षर करने वाले निकायों (signatory bodies) द्वारा मान्यता प्राप्त कार्यक्रमों के स्नातकों को अपने अधिकार क्षेत्र में इंजीनियरिंग के अभ्यास में प्रवेश के लिए शैक्षणिक आवश्यकताओं को पूरा करने के रूप में अन्य निकायों द्वारा मान्यता प्राप्त होगी।

समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले अन्य देश ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, आयरलैंड, जापान, कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, रूस, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका हैं।

हस्ताक्षरित समझौते पर सरकार ने पिछले चार सालों से इन संस्थाओं को मान्यता देने पर ध्यान केंद्रित नहीं किया था, लेकिन अब यह कार्य बड़े पैमाने पर प्रगति कर रहे हैं।

मंत्रालय के एक सूत्र ने कहा, “हम वर्ष के अंत तक लगभग 1,000 कार्यक्रमों को मान्यता प्रदान करने पर काम कर रहे हैं, जो कि हमारे लिए एक दोहरे प्रयोजन को पूरा करेगा। पहला, यह एक गुणवत्ता नियंत्रण उपाय होगा जिससे हमें कार्यक्रमों की संख्या और संस्थानों की अच्छी तरह से जांच करने में आसानी हो जाएगी। दूसरी ओर, यह भारतीय छात्रों के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोजगार की संभावनाओं की उन्नति में भी मदद करेगा।

share & View comments