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Thursday, 3 October, 2024
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इंस्टाग्राम स्किन केयर एक गड़बड़ झाला और फर्ज़ी दावों का एक फलता-फूलता उद्योग है

ये किसी इनफ्लुएंसर की पोस्ट पर एक ‘लाइक’ से शुरू होता है- फिर आते हैं इंस्टाग्राम एड्स, रील्स, और इससे पहले कि आप कुछ समझ पाएं, आप ‘दमकती’ त्वचा का शिकार बन जाते हैं.

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नई दिल्ली: अगर साफ त्वचा और सदाबहार जवानी का वादा एक चारा है तो सोशल मीडिया वो कांटा है जो लाखों लोगों को स्किन केयर का प्रयोग करने के लिए लुभाता है. इंस्टाग्राम एक गैलरी है जिसमें स्किन केयर की ज़रूरी चीज़ों के, ख़ूबसूरती से पैक किए हुए जार, बोतलें, और ट्यूब्स भरे हैं– जिनमें सीरम, एक्सफॉलिएटर्स, नाइट क्रीम्स, डे क्रीम्स, टोनर्स, मॉयस्चराइज़र्स, फेस मास्क, पोर मिनिमाइज़र्स, क्लेंज़र्स, ऑयल्स और न जाने क्या क्या है. इनके अंदर आमेज़ॉन पर मड पैक, हिमालय से मिनरल और अटलांटिक की गहराई से निकली सीवीड हो सकती है.

ये उत्पाद सदाबहार जवानी से बस ज़रा कम हर चीज़ का वादा करती हैं, लेकिन इन्हें कौन जवाबदेह ठहरा रहा है? स्किन केयर इंडस्ट्री में नियमों और पार्दर्शिता का अभाव और ऊपर से सोशल मीडिया पर स्किन ‘केयर समाधानों ने’ त्वचा को बचाने से ज्यादा बिगाड़ कर रख दिया है.

अमरावती की फ्लेम यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान की छात्रा पृशा राजा इसी अजीबो गरीब दावों में फंस गईं. स्किन केयर की दुनिया में उसका प्रवेश मामूली दिलचस्पी से शुरू हुआ, लेकिन ऑनलाइन तलाश को गूगल एडसेंस और इंस्टाग्राम एलगॉरिदम ने बढ़ावा दिया, और वो इसमें और गहरी उतर गई. एक महीने के बाद त्वचा में सूजन (डरमेटाइटिस) के साथ वो स्किन स्पेशलिस्ट के पास पहुंच गई.

कितनी बार ऐसा हुआ है कि उपभोक्ताओं ने एक के बाद एक चीज़ें ख़रीद लीं, और बाद में उनकी समझ में आया कि उन्होंने अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा, एक अच्छे से डिज़ाइन किए गए ई-स्टोर में ख़र्च कर दिया है? किसी इनफ्लुएंसर की पोस्ट पर लापरवाही से किए गए एक ‘लाइक’ से शुरू होकर, स्वचालित विज्ञापन स्वत: ही उन्हें संबंधित पेज पर ले जाते हैं, और फिर वहां आवेश में उनसे ख़ूब ख़रीदारी कराते हैं. और इस ख़रीदारी की क़ीमत सिर्फ बिल के साथ ख़त्म नहीं हो जाती. इसके नतीजे में आपको स्किन केयर की इतनी सारी समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जिनके बारे में कभी आपने सोचा भी नहीं होगा.

सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स की छोटी सी सेना, और उत्पादों को परख कर सलाह देने वाले तथाकथित स्किन केयर एक्सपर्ट्स समस्या को और बढ़ा देते हैं.


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फर्ज़ी दावे

इंस्टाग्राम पर 98,000 से अधिक फॉलोअर्स के साथ, सरीन स्किन सॉल्यूशंस की एक स्किन स्पेशलिस्ट डॉ जुष्या भाटिया के पास, बाज़ार के बहुत से ब्रान्ड्स अपने विज्ञापन या सहयोग के लिए आते हैं. लेकिन डॉ भाटिया सामने आने वाली उत्पाद को लेकर बहुत होशियार रहती हैं, और उन्होंने कहा, ‘हमें बेहद सोच समझकर चुनना होता है. पिछले हफ्ते ही एक ब्रान्ड्स ने मुझसे अपनी सन स्क्रीन को प्रमोट करने के लिए कहा, जिसमें कुछ ऐसी सामग्री थी जिसके बारे में मुझे पता था, कि वो अच्छे सन स्क्रीन फिल्टर्स नहीं हैं. मैंने ब्रांड से पूछा कि क्या उन्होंने कोई स्टडीज़ कराई हैं, या कुछ सुबूत जुटाए हैं. उसके प्रतिनिधि फिर कभी मेरे पास लौटकर नहीं आए’.

कहानी वहीं ख़त्म नहीं हुई. हाल ही में, जब डॉ भाटिया हैदराबाद एयरपोर्ट पर थीं, तो उन्होंने वही सन स्क्रीन एक स्टोर के शेल्फ पर रखी देखी.

कुछ डॉक्टरों को जिस चीज़ की चिंता सता रही है वो ये, कि बहुत से स्किनकेयर ब्राण्ड्स ने परामर्श सेवाएं देने वाली वेबसाइट्स शुरू कर दी हैं. सरीन स्किन सॉल्यूशंस के डॉ अंकुर सरीन कहते हैं, ‘समस्या ये है कि ये परामर्श असली स्किन स्पेशलिस्ट के बजाय, इनफ्लुएंसर्स या समर्थकों द्वारा किया जाता है. सोशल मीडिया पर बहुत से ग़ैर-डॉक्टर ऐसी मेडिकल ड्रग्स को प्रमोट करते हैं, जिनके गंभीर परिणाम हो सकते हैं’.

ये स्थिति भारतीय बाज़ार में विशेष रूप से ज़्यादा ख़तरनाक है, जहां स्किन प्रोडक्ट को लेकर कोई एडिक्वेट कानून नहीं  शेड्यूल एच दवाओं के लिए प्रिस्क्रप्शन भी नहीं मांगा जाता है. डॉ सरीन ने कहा, ‘हमारे पास एक बार एक मरीज़ आई, जिसे अपना गर्भपात इसलिए कराना पड़ा क्योंकि वो ओरल रेटिनॉयड्स ले रही थी. इस जोड़े को पता नहीं था कि प्रेग्नेंसी के दौरान ओरल रेटिनॉयड्स नहीं लेने चाहिए. उन्होंने बिना किसी प्रिस्क्रिप्शन के उसे ख़रीदा था’.

हैदराबाद में जब एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनमोल की त्वचा बुरी तरह फटनी शुरू हुई, तब जाकर उसे इनफ्लुएंसर्स की सलाह से होने वाले नुक़सान की समझ आई. जब उसे कुछ दाने दिखने शुरू हुए तो इसके समाधान के लिए वो यूट्यूब पर पहुंच गया. उसने वही चीज़ें ख़रीदीं जिन्होंने एक इनफ्लुएंसर के लिए काम किया था, लेकिन दुर्भाग्यवश इनसे उसकी त्वचा और ज़्यादा फट गई.

सच्चाई ये है कि त्वचा की समस्याओं के लिए कोई एक सार्वभौमिक समाधान नहीं है- जितने ज़्यादा मरीज़ हैं उनके निदान भी उतने ही ज़्यादा हैं.

डॉ जुष्या ने कहा, ‘हमारे पास ऐसे मरीज़ भी आए हैं, जो पहले इनफ्लुएंसर्स से सलाह ले चुके होते हैं. आपको अंतर  देखने की ज़रूरत होती है. इनफ्लुएंसर्स एक्सपर्ट्स नहीं होते. उनमें से कुछ इनफ्लुएंसर्स दूसरे ब्राण्ड्स के कमीशन से भी प्रभावित होते हैं’.

उपभोक्ताओं को क़दम उठाने की ज़रूरत

यूट्यूब पर ऐसे ‘एक्सपर्ट्स’ की भरमार है जो ग्लाइकोलिक एसिड, सेलिसाइक्लिक एसिड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड, विटामिन्स ए, बी और ई, सिरेमाइड, कोलेजन और पेपटाइड्स आदि पर ज्ञान बघारते रहते हैं.

इन इनफ्लुएंसर्स की इस सार्वजनिक क्षेत्र में बहुत ज़िम्मेदारी होती है. लेकिन सिर्फ यही नहीं उनमें से बहुतों का मानना है कि अच्छी स्किन केयर सिर्फ काली और सफेद नहीं होती, और इसे सिर्फ निर्माण के मोर्चे पर विनियमित नहीं किया जा सकता. सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर निवे, जो इंस्टाग्राम पर @skincarebynive के नाम से सक्रिय हैं, कहती हैं, ‘इस पर उपभोक्ता मोर्चे पर भी नज़र रखने की ज़रूरत है. इसे और विश्वसनीय बनाने के लिए उपभोक्ताओं को भी आगे आने की ज़रूरत है. एक समय था जब बहुत से ब्राण्ड्स अपनी एसपीएफ रेटिंग्स के बारे में सन स्क्रीन टेस्ट रिपोर्ट्स प्रकाशित नहीं करते थे. लेकिन पिछले 6-12 महीनों में लोग इस बारे में ज़्यादा सवाल उठा रहे हैं, जिससे ये कंपनियां उपभोक्ताओं के प्रति ज़्यादा जवाबदेह बन रही हैं’.

कोविड लॉकडाउन ने बहुत से इनफ्लुएंसर्स और ब्राण्ड्स को ऑनलाइन स्किन केयर के क्षेत्र में घुसने का मौक़ा दे दिया. निवे ने नोटिस किया कि बिना लाइसेंस या बिना टेस्टिंग किए हुए उत्पादों के प्रति ध्यान आकृष्ट कराने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है. उन्होंने कहा, ‘देखकर हैरत होती है कि इतने सारे घरेलू ब्राण्ड्स प्रसाधन सामग्री से जुड़े फॉर्मूले लेकर आ गए हैं, जिनके पास इसके लिए कोई पेशेवर प्रशिक्षण नहीं है. ये दायित्व अंत में आख़िरी उपयोगकर्ताओं पर आ जाता है, कि ख़रीदने से पहले उनकी बहुत अच्छे से जांच करें’.

एक स्किन केयर और हेयर इनफ्लुएंसर अनन्या ने भी, जो इंस्टाग्राम पर @skincarebebe नाम से हैं, त्वचा की देखभाल के तौर-तरीक़ों पर जागरूकता फैलाने में सोशल मीडिया की भूमिका पर बल दिया, जो दुनिया के दूसरे हिस्सों में भी तवज्जो आकर्षित कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘कोरियन ब्यूटी जिसमें स्किन बैरियर की मरम्मत पर ज़ोर दिया जाता है, भारत के लिए नई है और इसमें लोगों को इस बारे में शिक्षित किया जाता है’.

अनन्या सोशल मीडिया पर स्किन केयर क्षेत्र में तब दाख़िल हुईं, जब वो अपनी त्वचा की समस्याओं को बेहतर ढंग से समझना चाहती थीं. एक उपभोक्ता के नाते, उन्हें ऐसे ब्राण्ड्स के इस्तेमाल के बारे में चिंता थी जिनकी सुरक्षा और प्रभाव के लिए जांच नहीं की गई थी. उन्होंने आगे कहा, ‘मैं हमेशा सुनिश्चित करती हूं कि मैं जिन ब्राण्ड्स को प्रमोट करती हूं, वो लाइसेंस शुदा उत्पाद हों. मैंने ब्राण्ड्स को बहुत सी अनैतिक चीज़ों का इस्तेमाल करते हुए देखा है. मैंने नोटिस किया कि गोरा करने वाली एक क्रीम में स्टिरॉयड्स इस्तेमाल किए गए थे, जो त्वचा को अपना आदी बना सकते हैं. पूरी जानकारी न देना एक समस्या है, इसलिए हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि ये वस्तुएं जांची-परखी हों’.

सोशल मीडिया एक दोधारी तलवार

भारत में सौंदर्य प्रसाधन और निजी देखभाल का अनुमानित बाज़ार 2022 में 24.53 बिलियन डॉलर का है, और 2027 तक इसके 33.33 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाने की अपेक्षा है. इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने में सोशल मीडिया एक अहम रोल अदा करता है. जहां एक ओर इनफ्लुएंसर-प्रेरित स्किन केयर का एक विशाल उद्योग है, वहीं कुछ दूसरे लोग भी हैं जो मज़बूत तरीक़ों से अपनी प्रेक्टिस को वैध करने की कोशिश कर रहे हैं. उन ब्राण्ड्स के बीच, जिनमें वैधता स्थापित करने और एक निष्ठावान ग्राहक आधार को लेकर कड़ी प्रतिस्पर्धा है, वहां पारदर्शिता की अहमियत और बढ़ जाती है.

एक स्किन केयर ब्राण्ड जूसी केमिस्ट्री, जिसमें प्रकृति और विज्ञान को मिलाया गया है और जो 2014 में एक फेसबुक पेज के साथ शुरू हुआ था, अब एक अग्रणी स्किन केयर ब्राण्ड बन चुका है, जो उच्च-क्वालिटी की प्राकृतिक सामग्री इस्तेमाल करने में गर्व महसूस करता है. टीम की एक प्रतिनिधि गौरी कहती हैं, ‘ये सिर्फ हमारे उत्पाद नहीं हैं जो हमें दूसरों से अलग करते हैं, बल्कि हमारी पारदर्शिता भी है जो इनफ्लुएंसर्स और ग्राहकों में हमारे ब्राण्ड के प्रति विश्वास पैदा करती है. सभी उत्पादों का चर्मरोग परीक्षण किया गया है, और उन्हें सुरक्षित पाया गया है. हम एक आईएसओ 9001 और आईएसओ 140001 प्रमाणित ब्राण्ड हैं, और जीएमपी (अच्छी विनिर्माण प्रथा) प्रमाणित भी हैं’.

एक और लोकप्रिय ब्राण्ड एन ब्यूटी ने भी स्किन केयर उत्पादों की लाइसेंसिंग की अहमियत पर बल दिया. एक कंपनी प्रतिनिधि ने कहा, ‘एफडीए (खाद्य एवं औषधि संघ) लाइसेंस सबसे महत्वपूर्ण है. कोई ब्राण्ड अपने लेबल्स पर जो भी दावा करता है, वो प्रमाणपत्रों द्वारा अनुमोदित होने चाहिए. लेकिन वो ब्राण्ड्स जो ऑर्गेनिक और प्राकृतिक होने का दावा करते हैं, उसमें ग़लती की गुंजाइश रहती है क्योंकि नियम बहुत स्पष्ट नहीं हैं. अमेरिकी एफडीए में भी वो नियम-क़ायदे अच्छे से तय नहीं हैं’.

स्किन केयर निर्माताओं और कंपनियों से जुड़े क़ानूनों को अभी एक लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन उपभोक्ता भी ऑनलाइन एड्स, इनफ्लुएंसर्स, या ब्राण्ड्स द्वारा प्रमोट किए जाने वाले उत्पादों के बारे में और अधिक जागरूक होकर अपनी भूमिका निभा सकते हैं. मुंहासे, ब्लैकहेड्स, या पिगमेंटेशन बहुत विशेष स्थितियां हैं जिन्हें योग्य चिकित्सक ही ध्यान दे सकते हैं. इसलिए, अगली बार कोई मुंहासा नज़र आता है तो डॉक्टर की घंटी बजाईए- और सिर्फ इंस्टाग्राम की ताज़ा रील्स पर भरोसा मत कीजिए.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करूं)


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