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Thursday, 21 November, 2024
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प्रशासनिक सेवाओं में महिलाओं का परचम, तमिलनाडु के बाद यूपी में हैं सबसे ज़्यादा महिला डीएम

उत्तर प्रदेश में 14 महिला जिला मजिस्ट्रेट हैं, जिनमें बहराइच सबसे ऊपर है, क्योंकि यहां पूरी तरह से महिला प्रशासन है. इनमें से कई महिलाएं पिंक ऑटो चलाने से लेकर फीडिंग रूम तक महिला केंद्रित उपाय कर रही हैं.

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नई दिल्ली: अगर जयपुर भारत की पिंक सिटी है, तो उत्तर प्रदेश का बहराइच पिंक डिस्ट्रिक्ट है, अपनी चमचमाती इमारतों के लिए नहीं बल्कि अपने साहसिक प्रशासन के लिए — डीएम और एसपी से लेकर विधायक और सिटी मजिस्ट्रेट तक, सभी जगहों पर महिलाओं का नेतृत्व है. वह पिंक ऑटो-रिक्शा और स्वयं सहायता समूहों जैसी पहलों की देखरेख कर रही हैं और महिलाओं को ‘सशक्त’ बनाने के लिए ख्याति अर्जित कर रही हैं, लेकिन क्या यह इस बात का संकेत है कि महिला आईएएस अधिकारियों के लिए कांच की छत आखिरकार जिलों में टूट रही है?

देश भर में दिप्रिंट द्वारा विश्लेषित 774 जिलों में से 126 महिलाएं जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) के शक्तिशाली पद पर हैं. तमिलनाडु इंडस्ट्रियल पावरहाउस है, जहां भारत की लगभग आधी महिलाएं फैक्ट्री में कर्मचारी हैं, इसके लगभग 40 प्रतिशत (38 में से 15) जिलों में महिला डीएम हैं.

लेकिन उत्तर प्रदेश, जहां पारंपरिक रूप से महिलाएं सार्वजनिक क्षेत्र में लगभग नहीं दिखती हैं, कम से कम पूर्ण संख्या के मामले में आगे बढ़ रही है. वर्तमान में इसके 75 जिलों में 14 महिला डीएम हैं, जो 2022 में 12 से बढ़कर 16 प्रतिशत से लगभग 18 प्रतिशत हो गई हैं.

बेशक, बहराइच सबसे सबसे आगे है, लेकिन महिला डीएम वाले यूपी के अन्य जिले भी प्रगति कर रहे हैं. उदाहरण के लिए हापुड़ में डीएम और एक अतिरिक्त डीएम दोनों महिलाएं हैं. फरवरी 2023 में हापुड़ डीएम का पदभार संभालने वाली आईएएस अधिकारी प्रेरणा शर्मा के अनुसार, वे यह सुनिश्चित करने को प्राथमिकता देती हैं कि महिलाओं से संबंधित योजनाएं पात्र लोगों तक पहुंचें.

ग्राफिक: वासिफ खान/दिप्रिंट

फिर औरैया है, जहां 2023 में एक महिला डीएम और एसपी के तहत पहली बड़ी पहल कामकाजी माताओं के लिए जीवन को आसान बनाने के लिए हर तहसील में स्तनपान कक्ष स्थापित करना था. प्रशासन ने महिलाओं, खासकर निराश्रित लोगों के लिए कई पहल शुरू की हैं. इनमें महिलाओं के कल्याण के लिए एक नया आशा ज्योति केंद्र और लिंग आधारित हिंसा से बचे लोगों की सहायता के लिए वन स्टॉप सेंटर शामिल हैं. प्रशासन महिलाओं को बेहतर कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए पुलिस के साथ भी सहयोग कर रहा है.

औरैया की डीएम नेहा प्रकाश ने कहा, “अधिकारी के रूप में अपना कर्तव्य निभाने के अलावा, महिला होने के नाते हम हमेशा महिलाओं और बच्चों के प्रति संवेदनशील और भावनात्मक लगाव रखते हैं और हम हमेशा उनके उत्थान के लिए काम करने की कोशिश करते हैं.”

औरैया की जिला मजिस्ट्रेट नेहा प्रकाश एक गौशाला का स्थल निरीक्षण करती हुईं | फोटो: एक्स/@DMAuraiya

दिप्रिंट से बात करने वाली कई महिला डीएम ने संकेत दिया कि उन्हें अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में बढ़त हासिल है, न केवल उनके लिंग-संवेदनशील दृष्टिकोण के कारण बल्कि उनके जोश के कारण.

हापुड़ डीएम शर्मा ने कहा, “एक अधिकारी के काम करने के तरीके में कोई अंतर नहीं है, लेकिन मुझे लगता है कि महिला अधिकारी अधिक मेहनती होती हैं क्योंकि उन पर हमेशा खुद को साबित करने का दबाव होता है. महिलाएं हमेशा अन्य महिला अधिकारियों के लिए अधिक मुखर और खुली होती हैं.”

वर्कप्लेस में और शीर्ष पद पर अधिक महिलाओं का होना हमेशा अधिक परिवारों और महिलाओं को आगे आने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करेगा — अपने सपनों के लिए कड़ी मेहनत करना

—प्रेरणा शर्मा, हापुड़ डीएम

हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर प्रगति धीमी रही है. इंडियास्पेंड के विश्लेषण के अनुसार, 1951 में, जब भारत ने अपनी पहली महिला आईएएस अधिकारी नियुक्त की थी, और 2020 के बीच, महिलाएं आईएएस अधिकारियों का केवल 13 प्रतिशत थीं. 1950 के बाद से आईएएस अधिकारियों का सबसे बड़ा उत्पादक उत्तर प्रदेश की बात करें तो महिलाएं कुल प्रतिशत का लगभग 10 प्रतिशत ही हैं.

जबकि 2022 की सिविल सेवा परीक्षा में नियुक्ति के लिए अनुशंसित उम्मीदवारों में से 34 प्रतिशत से अधिक महिलाएं थीं, फिर भी नेतृत्व के पदों पर पहुंचने वाली महिलाओं में राज्यों में व्यापक असमानताएं बनी हुई हैं.

कई डीएम ने जोर देकर कहा कि महिला नेता अपने जूनियर्स के लिए मार्ग प्रशस्त करने की अधिक संभावना रखती हैं, जिससे सिस्टम के भीतर सकारात्मक बदलाव का प्रभाव पड़ता है.

 

उतार-चढ़ाव

हर दो कदम आगे बढ़ने पर दो कदम पीछे भी रहे हैं. 2022 में दिप्रिंट ने पाया कि 716 जिलों में से 142 या 19 प्रतिशत में महिला डीएम थीं. हालांकि, यह संख्या घटकर 774 जिलों में से 126 या वर्तमान में 16 प्रतिशत रह गई है, जबकि कुछ राज्यों ने दो वर्षों में महिला डीएम में 2-3 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हासिल की, अन्य में गिरावट देखी गई, जिनमें पहले से ही कम संख्या वाले राज्य भी शामिल हैं.

अच्छा पक्ष यह है कि 55 जिलों वाले मध्य प्रदेश में अब 14 प्रतिशत महिला डीएम हैं, जबकि 2022 में यह 10 प्रतिशत थी. गुजरात में 9 प्रतिशत से बढ़कर 15 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 7 प्रतिशत से 9 प्रतिशत और आंध्र प्रदेश में 13 से 26 जिलों की वृद्धि के बाद 15 प्रतिशत से 19 प्रतिशत हो गया. 31 जिलों वाले कर्नाटक में महिला डीएम की संख्या 20 प्रतिशत से बढ़कर 29 प्रतिशत हो गई.

ग्राफिक: वासिफ खान/दिप्रिंट

ऐसे राज्य जो कम खुशनुमा तस्वीर पेश कर रहे हैं, उनमें राजस्थान भी शामिल है, जहां जिलों की संख्या 33 से बढ़ाकर 50 करने के बाद महिला डीएम की संख्या 21 प्रतिशत से घटकर 8 प्रतिशत रह गई. दिल्ली में 2022 में 11 जिलों में 9 महिला डीएम थीं, लेकिन अब केवल 5 रह गई हैं. इसी तरह, बंगाल में 39 प्रतिशत से घटकर 21 प्रतिशत, बिहार में 7 प्रतिशत से घटकर 8 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 22 प्रतिशत से घटकर 16 प्रतिशत रह गई.

कुछ राज्यों में संख्या स्थिर रही. हरियाणा, जो अपने गिरते लिंगानुपात और ऑनर किलिंग के लिए कुख्यात है, में 2022 में एक महिला डीएम थी और अब भी एक है, हालांकि, जिला हिसार से बदलकर पलवल हो गया है.

दिप्रिंट से बात करने वालीं कईं डीएम ने तर्क दिया कि महिला प्रशासक उन क्षेत्रों में सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए अद्वितीय स्थिति में हैं, जहां उनकी ज़रूरत है.

हापुड़ डीएम शर्मा ने कहा, “कार्यबल में और शीर्ष पद पर अधिक महिलाओं का होना हमेशा अधिक परिवारों और महिलाओं को आगे आने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करेगा — अपने सपनों के लिए कड़ी मेहनत करना.”

हापुड़ डीएम प्रेरणा शर्मा महिलाओं के लिए स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान का उद्घाटन करती हुई | फोटो: एक्स/@DmHapur

इतना ही नहीं, कई डीएम ने जोर देकर कहा कि महिला नेता अपने जूनियर्स के लिए मार्ग प्रशस्त करने की अधिक संभावना रखती हैं, जिससे सिस्टम के भीतर सकारात्मक बदलाव का प्रभाव पड़ता है.

अरुणाचल प्रदेश के कुरुंग कुमे की डीएम विशाखा यादव ने कहा, “अगर कोई महिला किसी टीम का नेतृत्व कर रही है, तो वह हमेशा अन्य जूनियर कामकाजी महिलाओं को आगे बढ़ाने की कोशिश करती है.”

उद्योगों में काम करने वाली लगभग 70 प्रतिशत महिलाएं तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल के दक्षिणी राज्यों में कार्यरत हैं. शायद यह संयोग नहीं है कि अधिकांश में महिला डीएम का औसत से अधिक प्रतिनिधित्व भी है.


यह भी पढ़ें: ‘ये सब सपने जैसा है’ — पिंक-ई रिक्शा ड्राइवर आरती ने कैसे तय किया बहराइच से बकिंघम पैलेस तक का सफर


बहराइच — महिलाओं की दुनिया

उत्तर प्रदेश के सबसे गरीब जिलों में से एक बहराइच में आखिरकार महिलाएं आगे बढ़ रही हैं. यह संदेश पूरे देश को तब मिला जब पिंक ई-ऑटो रिक्शा चलाने वालीं आरती अमल क्लूनी महिला सशक्तिकरण पुरस्कार जीतने के बाद बकिंघम पैलेस तक गई.

आरती का सफर तब शुरू हुआ जब उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की मिशन शक्ति योजना के तहत पिंक ई-ऑटो रिक्शा चलाना शुरू किया. पर्दे के पीछे डीएम मोनिका रानी के नेतृत्व में एक मजबूत टीम थी, जो पिछले साल पद संभालने के बाद से न केवल अकेली माताओं को ऑटो चलाने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं, बल्कि डीएम कार्यालय कैंटीन के लिए महिलाओं की रसोई भी स्थापित की है.

डीएम मोनिका रानी ने गर्व से कहा, “पूरा जिला महिलाओं द्वारा महिलाओं के लिए चलाया जाता है.”

बहराइच डीएम मोनिका रानी ने ग्राम पंचायत जंगल गुलहरिया का दौरा किया और बाढ़ की तैयारियों को सुनिश्चित किया | फोटो: एक्स/@DMBahraich
बहराइच डीएम मोनिका रानी ने ग्राम पंचायत जंगल गुलहरिया का दौरा किया और बाढ़ की तैयारियों को सुनिश्चित किया | फोटो: एक्स/@DMBahraich

दिप्रिंट से बात करने वाली कई महिला ई-रिक्शा ड्राइवर्स ने प्रशासन की हमेशा उनकी मदद करने के लिए प्रशंसा की.

एक महिला ड्राइवर ने कहा, “डीएम से लेकर सिटी मजिस्ट्रेट तक, सभी हमेशा हमारी समस्याओं को सुनने के लिए उपलब्ध रहते हैं, जो हमारे लिए बहुत मददगार है.”

पुलिसिंग के मोर्चे पर एसपी वृंदा शुक्ला अपनी छाप छोड़ रही हैं. पिछले साल चित्रकूट एसपी के तौर पर गैंगस्टर मुख्तार अंसारी की बहू को गिरफ्तार करने के लिए जानी जाने वाली वृंदा शुक्ला न केवल अपराधियों को सलाखों के पीछे डाल रही हैं, बल्कि अपने कार्यालय में मदद मांगने वाली महिलाओं की लंबी कतारों को भी धैर्यपूर्वक सुन रही हैं. वे अपना नरम पक्ष दिखाने से नहीं डरती हैं, उन्होंने एक छोटे से बंदर को पालने के बारे में ट्वीट किया जिसे उन्होंने बचाया था.

शुक्ला ने कहा, “उच्च पदों पर महिलाओं का सबसे बड़ा फायदा यह है कि अन्य महिलाएं आसानी से और खुलकर उन्हें अपनी समस्याएं बता सकती हैं.”

शुक्ला के अनुसार, बहराइच में महिलाओं के खिलाफ अपराध घर के बाहर की तुलना में घर के अंदर अधिक प्रचलित हैं. उनका कहना है कि वे रोजाना घरेलू हिंसा के लगभग 10 से 15 मामलों को संभालती हैं. शुरुआती हस्तक्षेप के बाद, एक महिला अधिकारी 15 दिनों के बाद फॉलो-अप के लिए पीड़िता के घर जाती हैं.

बहराइच एसपी वृंदा शुक्ला जिले के ग्रामीण इलाकों में लोगों की समस्याओं को सीधे सुनने का प्रयास करती हैं, जिसे वे सार्वजनिक सेवाओं की अंतिम-मील डिलीवरी कहती हैं | फोटो: एक्स/@VrindaShukla_

शुक्ला ने कहा, “अधिकारी के तौर पर हम पूरे समाज के लिए एक ही तरह से काम करते हैं, लेकिन अब बहराइच में घर के पुरुष अक्सर अपनी महिलाओं को अपनी समस्याएं बताने के लिए यहां भेजते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इससे उनका काम जल्दी हो जाएगा. इससे हमें पता चलता है कि बहराइच में महिलाओं और अधिकारियों के बीच एक रिश्ता बन गया है, जहां वह अपनी समस्याएं आराम से साझा कर सकती हैं.”

उन्होंने कहा कि महिला अधिकारियों के बीच भी भाईचारे की भावना है, जिससे वे अपनी समस्याएं साझा कर सकती हैं और साथ मिलकर काम कर सकती हैं.

बहराइच का महिला प्रशासन अशिक्षित और वंचित महिलाओं को लगातार प्रासंगिक सरकारी योजनाओं के बारे में शिक्षित करके उन्हें सक्रिय रूप से सशक्त बनाता है. वे जागरूकता शिविर आयोजित करते हैं, मध्यस्थता सेवाएं प्रदान करते हैं और आगे की सहायता के लिए महिलाओं और परिवारों को विभिन्न योजनाओं और गैर सरकारी संगठनों से जोड़ते हैं. एसपी और डीएम कार्यालयों में आयोजित जन शिकायत सुनवाई एक और तरीका है जिससे वे समुदाय की सहायता करते हैं और उपयोगी कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं.

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आरती का पिंक ई-रिक्शा | फोटो: दानिशमंद खान/दिप्रिंट

एक नया महिला थाना ‘पिंक डिस्ट्रिक्ट’ के लिए एक और मील का पत्थर है. यह जिले का तीसरा ऐसा थाना है, जिसमें एसपी सिन्हा मामलों पर नज़र रखने के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं.

जून में ‘पिंक डिस्ट्रिक्ट’ ने एकीकृत शिकायत निवारण प्रणाली (IGRS) पोर्टल पर जन शिकायतों के समाधान के लिए राज्य में शीर्ष स्थान प्राप्त किया, जो फरवरी में प्राप्त 73वें स्थान से ऊपर था.

दिप्रिंट ने महिला डीएम की बढ़ती संख्या पर टिप्पणी के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह से फोन, मैसेज और ईमेल के ज़रिए संपर्क किया. उनका जवाब आने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.


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दक्षिणी लाभ

तमिलनाडु में न केवल भारत में सबसे अधिक महिला जिला मजिस्ट्रेट (जिन्हें यहां कलेक्टर कहा जाता है) हैं, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं की उच्चतम दरों में से एक है. महिला कार्यबल भागीदारी में यह मजबूत आधार संभवतः तमिलनाडु की अग्रणी औद्योगिक राज्य के रूप में स्थिति के कारण है — महिलाओं के लिए कई रोजगार के अवसर पैदा करना — और राज्य की अपेक्षाकृत उच्च साक्षरता दर.

दिप्रिंट ने नीलगिरी की जिला कलेक्टर एम अरुणा, तिरुवरुर की टी चारुश्री और मदुरै की एमएस संगीता से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनमें से किसी से भी कोई जवाब नहीं मिल पाया है.

हालांकि, इस साल की शुरुआत में एक ग्राम सभा की बैठक के दौरान, संगीता ने महिलाओं को अपना खुद का व्यवसाय स्थापित करने और वित्तीय स्वतंत्रता हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया.

उन्होंने कहा, ‘‘एक समाज तभी आत्मनिर्भर बनता है जब महिला आबादी शिक्षित और रोज़गार प्राप्त करती हैं.’’

मदुरै कलेक्टर एमएस संगीता (दाएं से दूसरी) | फोटो: इंस्टाग्राम/@madurai_collector

गौरतलब है कि संगीता ने पिछले साल भी तब हलचल मचाई थी जब उन्होंने मदुरै के सरकारी राजाजी अस्पताल में मातृ मृत्यु की जांच करते समय विसंगतियां पाई थीं और कथित तौर पर मौतों को ‘छिपाने’ के लिए एक डॉक्टर को निलंबित करने की सिफारिश की थी.

तमिलनाडु राज्य चुनाव आयुक्त और कन्याकुमारी जिले की पूर्व कलेक्टर बी जोति निर्मलासामी ने दिप्रिंट से कहा, “जिस तरह से महिलाएं घर को अच्छे से संभालती हैं, उसी तरह वे अपनी अधिक समझदारी और मानवीय दृष्टिकोण के साथ प्रशासन को भी अच्छे से संभालती हैं. हालांकि, पुरुष खुद को बहुत सफल अधिकारी साबित कर सकते हैं, लेकिन वह अपने जिले या राज्य में महिलाओं की ज़रूरतों को समझने की स्थिति में नहीं हो सकते हैं, मगर, महिलाएं पुरुषों और महिलाओं दोनों की ज़रूरतों को समझ सकती हैं क्योंकि वे हमेशा घर पर उन्हें समझती हैं.”

औद्योगिक क्षेत्र में काम करने वाली सभी महिलाओं में से लगभग 70 प्रतिशत तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल के दक्षिणी राज्यों में कार्यरत हैं. शायद यह संयोग नहीं है कि आंध्र को छोड़कर अधिकांश राज्यों में महिला डीएम का प्रतिनिधित्व औसत से अधिक है. तमिलनाडु सबसे आगे है, उसके बाद कर्नाटक 29 प्रतिशत और केरल 35 प्रतिशत पर है. यहां तक ​​कि इंडियास्पेंड की स्टडी में भी उल्लेख किया गया है कि दिसंबर 2021 तक अन्य क्षेत्रों की तुलना में अधिक महिला आईएएस अधिकारी ‘‘दक्षिणी और अमीर राज्यों में सेवा कर रही थीं’’.

बदलाव आपसे शुरू होता है. हमारी महिला अधिकारियों और उनके बच्चों के लिए एक कमरा बनाकर, हमने बदलाव की शुरुआत की है

—विशाखा यादव, कुरुंग कुमे डीसी

जिन राज्यों में महिला कार्यबल अधिक है, वहां प्रगतिशील नीतियां लागू करने की संभावना अधिक है. उदाहरण के लिए, तमिलनाडु सरकार ने लिंग आधारित भेदभाव को रोकने, शिक्षा को बढ़ावा देने, सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित करने और महिलाओं के स्टार्टअप को तेज़ी से आगे बढ़ाने के लिए महिलाओं के लिए राज्य नीति 2024 जारी की. केवल महाराष्ट्र, एक और औद्योगिक राज्य जहां महिलाओं की श्रम भागीदारी अधिक है, में भी ऐसी ही नीति है. हालांकि, इसके 36 जिलों में सिर्फ 6 महिला डीएम हैं, जो 16 प्रतिशत की हिस्सेदारी है.

इस बीच, पूर्वोत्तर के राज्यों में देश में डीएम का प्रतिनिधित्व सबसे कम है. क्रमशः 16 जिलों वाले मेघालय और नागालैंड में कोई महिला डीएम नहीं है. मणिपुर और त्रिपुरा में क्रमशः 16 और 8 जिलों में 1-1 महिला डीएम हैं. हिस्सेदारी के मामले में इस क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्य अरुणाचल प्रदेश हैं, जहां 28 जिलों में 21 प्रतिशत डीएम महिलाएं हैं, असम में 35 जिलों में 14 प्रतिशत और सिक्किम में 6 जिलों में 33 प्रतिशत डीएम महिलाएं हैं.

अरुणाचल के कुरुंग कुमे जिले की डिप्टी कमिश्नर विशाखा यादव क्षतिग्रस्त पुल के जीर्णोद्धार कार्य का निरीक्षण करती हुईं | फोटो: एक्स/@kumey_kurung
अरुणाचल के कुरुंग कुमे जिले की डिप्टी कमिश्नर विशाखा यादव क्षतिग्रस्त पुल के जीर्णोद्धार कार्य का निरीक्षण करती हुईं | फोटो: एक्स/@kumey_kurung

अरुणाचल के कुरुंग कुमे जिले की डिप्टी कमिश्नर विशाखा यादव के अनुसार, जैसे-जैसे हर क्षेत्र में महिलाओं की संख्या बढ़ेगी, नेतृत्व की भूमिका में महिला आईएएस अधिकारियों की संख्या भी बढ़ेगी. (पूर्वोत्तर में डीसी डीएम के बराबर होता है.)

उन्होंने कहा, “धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से, हर क्षेत्र में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है. महिलाओं को यहां तक पहुंचने में बहुत समय लगा है, लेकिन शायद यह कमी जल्द ही पूरी हो जाएगी, क्योंकि अब परिवार भी जागरूक हो गए हैं और अपनी बेटियों को लगातार आगे बढ़ा रहे हैं.”

लेकिन अधिकार की स्थिति में एक महिला के रूप में, यादव का कहना है कि “परिवर्तन पहले अपने आप से शुरू होता है”.

कुरुंग कुमे जिले में, उनके कार्यालय में एक अलग कमरा बनाया गया है जहां महिला अधिकारी और कर्मचारी अपने बच्चों को खाना खिला सकती हैं और ज़रूरत पड़ने पर उन्हें काम पर भी ला सकती हैं.

यादव ने गर्व के साथ कहा, “किसी भी चीज़ की शुरुआत खुद से ही करनी होती है और हमारी महिला अधिकारियों और उनके बच्चों के लिए एक कमरा बनाकर हमने बदलाव की शुरुआत की है.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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