मेनचुखा: मेनचुखा शहर के पास दोर्जिलिंग गांव में एक पहाड़ी ढलान पर कई वर्षों से जमीन का छोटा सा टुकड़ा पिछले नवंबर में बैंगनी रंग से ढक गया. पहाडों से आने वाली ठंडी हवा मधुरता, मादकता और सुगंध से भर गई. यह अरुणाचल प्रदेश का पर्पल ब्लूम था, इसकी केसर की पहली फसल. और इसे अरुणाचल प्रदेश की समृद्धि के नए द्वार के रूप में देखा जा रहा है.
लेकिन जिन महिलाओं ने केसर के लिए इन फूलों के इस खेती के विकल्प को चुना, रात-दिन सवाल उनका पीछा करते रहे.
सीमा से लगभग 30 किलोमीटर दूर अपने खेत में जाते हुए यापुंग डोलो कहती हैं, “इसका उपयोग किस लिए किया जाता है? कोई इसे क्यों खरीदेगा? मुझे नहीं लगता कि मेनचुखा में कोई इसे चाहेगा.”
डोलो उन 45 महिलाओं में से एक हैं, जिन्होंने तीन प्लॉट्स पर काम करके अरुणाचल प्रदेश में एक नई केसर क्रांति का बीजारोपण किया है. उन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक इस फसल के मूल्य को समझने वाली महिलाओं द्वारा मदद किया जा रहा है.
कश्मीर का केसर दुनिया का सबसे महंगा मसाला है. 3.25 लाख रुपये प्रति किलोग्राम से अधिक की कीमत वाला यह चांदी से भी अधिक महंगा है, और अरुणाचल प्रदेश इस पर नज़र गड़ाए हुए है.
अब, इसकी मार्केटिंग की बात आती है. सीमा से बमुश्किल 29 किमी दूर, मेनचुखा और शि-योमी जिले के पड़ोसी हिमालयी गांव देश के बाकी हिस्सों से पूरी तरह से कट गए हैं.
इस साल जनवरी में, डोचे चुक्ला (55) ने केसांग नाकसांग (55) और याजुन सैमचुंग (26) के साथ अपने खेतों से भरपूर ताज़ी उपज लेकर राज्य के पहले अरुणाचल अनानास महोत्सव के लिए 180 किमी दूर पश्चिम सियांग जिले की यात्रा की. जैविक रूप से उगाई गई किवी, दालचीनी, बाजरा और दालों के बीच, केसर का एक छोटा पैकेट बागरा गांव में उनके स्टॉल पर सबसे महत्त्वपूर्ण था. वे इसे बेच नहीं रहे हैं, अभी तक नहीं—NECTAR अभी भी मूल्य निर्धारण के बारे में सोच विचार कर रहा है. लेकिन महिलाएं यह बात फैलाने की योजना बना रही हैं कि यह कीमती मसाला जल्द ही उपलब्ध होगा.
चुक्ला चेहरे पर मुस्कान लिए हुए कहते हैं, “हमने पहले कभी ऐसा नहीं किया है, और कई महिलाओं को नहीं पता कि वे क्या उपजा रही हैं. लेकिन हमें पूरी उम्मीद है कि हम सब मिलकर केसर के सफल किसान बनेंगे.”
सभी बाधाओं के बावजूद कर रहे खेती
लेकिन इस सुदूर स्थान पर केसर उगाना चुनौतियों के पहाड़ का सामना करने जैसा है. पिछले साल सितंबर में, पास के ल्हालुंग गांव में अचानक बादल फटने से विनाशकारी बाढ़ आ गई, जिससे शि-योमी जिले में दो जल विद्युत स्टेशन गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो गए. तब से, मेनचुखा टाउनशिप और उसके आसपास के इलाकों में बिजली आपूर्ति बाधित हो गई है.
शहर वर्तमान में जनरेटर पर चलता है. एकमात्र कार्यात्मक मोबाइल नेटवर्क टावर हर दिन केवल दो घंटे काम करता है – सेल फोन सिग्नल प्राप्त करना सौभाग्य की बात है. संचार का सबसे विश्वसनीय तरीका अभी भी लोगों के दरवाज़ों पर जाना है.
विशाल समतल भूमि वाले उत्तरी मैदानी इलाकों के विपरीत, इस पहाड़ी क्षेत्र में खेती श्रम-केंद्रित है.
दोर्जिलिंग के एक अन्य किसान यासर चिजे (30), जिन्होंने केसर उगाना शुरू कर दिया है,कहते हैं, “हम अपने खेतों में ट्रैक्टर या मशीनों का उपयोग नहीं कर सकते. सब कुछ हाथ से किया जाता है.”
अपनी उपज बेचने के लिए, अधिकांश किसानों को अपनी पीठ पर सब्जियों के बैग लेकर मेनचुखा शहर तक पैदल चलना पड़ता है. इस क्षेत्र की ओर जाने वाली सड़कें ऊबड़-खाबड़ हैं और लगभग चलने लायक नहीं हैं. बस या ट्रेन नेटवर्क नहीं होने के कारण, जिन किसानों के पास कार नहीं है वे बस पैदल चलते हैं. अक्सर, शहर के एकमात्र पेट्रोल पंप में ऑयल नहीं होता है.
NECTAR के महानिदेशक अरुण सरमा कहते हैं, ”मेन्चुखा में खेती में इतनी चुनौतियाँ हैं कि ज़मीन के कई भूखंड खाली पड़े हैं.” उनकी आशा उच्च मूल्य वाली, जैविक रूप से उगाई गई फसलों की खेती को प्रोत्साहित करना है.
और तो और, मेनचुखा बदलाव के शिखर पर है. पिछले पांच वर्षों में, पर्यटकों की संख्या में वृद्धि ही हुई है. कैब ड्राइवर धन अली के मुताबिक, 2018 में मेनचुखा एडवेंचर फेस्टिवल के लिए बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान के आने के बाद लोग यहां आने लगे. पर्यटकों की लगातार आमद ने शहर में होमस्टे के व्यवसाय को बढ़ावा दिया है. हालांकि यह केसर किसानों के लिए आय का एक और स्रोत है, लेकिन यह बात फैलाने का एक तरीका भी है.
दोर्जिलिंग के किसान यासर चिजे (30) ने कहा, “हर कोई होम-स्टे और होटल बना रहा है – ताकि हमें काम मिल सके. हम अपनी अधिकांश कृषि उपज मेनचुखा में बेचते हैं.”
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केसर एक्सपेरिमेंट
केसर उगाने के प्रयोग के शुरुआती दिनों में, कश्मीर से केसर के कॉर्म (बल्ब जैसे भूमिगत तने) को दिरांग और सेइजोसा भेजा गया था, लेकिन मेनचुखा सबसे उपयुक्त पाया गया. चूंकि केसर एक पतझड़ में खिलने वाला स्टेराइ क्रोकस है, इसलिए इसे इसके कॉर्म या भूमिगत तनों के ज़रिए उपजाया जा सकता है.
जब अरुणाचल राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (ArSRLM) के लिए मेनचुखा में ब्लॉक मिशन अधिकारी यापुंग चिजे से NECTAR टीम ने संपर्क किया, तो उन्होंने सुझाव दिया कि महिला स्वयं सहायता समूहों का एक फेडरेशन इस पहल में भाग ले.
यापुंग चिजे ने कहा, “हमारी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक महिलाओं को केसर की खेती शुरू करने के लिए राजी करना था. यह बहुत कठिन था क्योंकि वे केसर के बारे में कुछ भी नहीं जानते थे.” उन्होंने एक किसान याचाक चिजे को स्वयं सहायता समूह को इस उद्देश्य के लिए अपनी एक एकड़ जमीन का उपयोग करने की अनुमति देने के लिए राजी किया.
किसानों को केसर की खेती के लिए जमीन तैयार करने में लगभग एक महीने का समय लगा, जिसमें जुताई करना, चट्टानों को हटाना और सीधी रेखाओं में मिट्टी के ढेर बनाना शामिल था.
स्कूल शिक्षक और स्वयं सहायता समूह के सदस्य यापुंग यारुंग ने कहा, “हमारे एसएचजी में हर कोई युवा नहीं है. हमारी माताएं भी अपने नवजात शिशुओं के साथ मैदान पर काम कर रही थीं. लेकिन जब हम केसर का पौधा लगाने गए, तो हमें नहीं पता था कि इसे कैसे करना है.”
ब्लॉक अधिकारी चिजे अक्टूबर में NECTAR प्रोजेक्ट फेलो सुनीता भट्टाराई और बायामोनलंगकी सुत्ंगा के साथ पहुंचे. वे किसानों के साथ रहे, खेती के चरणों का पालन किया और उन्हें फूल आने के बाद खेत के प्रबंधन के बारे में भी बताया. चार दिवसीय नियोजित प्रवास को 12 दिनों तक बढ़ा दिया गया क्योंकि बारिश और बर्फबारी ने मेनचुखा से बाहर जाने वाली सड़कों को अवरुद्ध कर दिया.
खेत में उगी केसर पूरी तरह से जैविक है.
जैविक खाद तैयार करने के लिए, किसान सुअरबाड़े में एक पत्ता फैलाते हैं, जिसे स्थानीय रूप से पासो या ताओंग कहा जाता है, जो मेनचुखा के लगभग हर किसान के पास होता है.
यारुंग ने समझाया, “जब जानवर इस पर चलते हैं और लोटते हैं तो यह गीली हो जाती है और सुअर के गोबर में मिल जाती है. एक बार जब यह ठीक से मिश्रित हो जाए, तो हम इस मिश्रण को लेते हैं और इसे अपने खेतों में उर्वरक के रूप में उपयोग करते हैं.”
फूलों की पैदावार के अलावा, केसर की फसल की सफल खेती का एक और मार्कर यह है कि कॉर्म – जो लहसुन की कलियों की तरह दिखते हैं – मिट्टी में बढ़ते हैं. फिर इन कॉर्म्स को अलग किया जा सकता है और दोबारा लगाया जा सकता है.
किसान अब NECTAR टीमों की मदद के बिना खेती का क्षेत्र बढ़ा सकते हैं.
वर्तमान में केसर की खेती के लिए उपयोग किए जाने वाले तीन परीक्षण भूखंडों में से एक को अस्थायी ग्रीनहाउस – या पॉलीहाउस के नीचे रखा गया है, जिसे असम से मेनचुखा लाया गया था.
पॉलीहाउस खेती के अंतर्गत भूखंड फल-फूल रहा है.
सरमा ने कहा, ”यह हमारे लिए अच्छी खबर है. अरुणाचल में भारी बारिश होती है और अगर केसर पॉलीहाउस के नीचे पनप रहा है, तो इसका मतलब है कि हम इसे आसानी से बारिश से बचा सकते हैं.”
लेकिन खुले में बागान के कुछ हिस्सों को मुर्गियों ने चोंच मार दी है. नियमित रूप से भूखंडों की निराई-गुड़ाई करने के लिए कहे जाने के बावजूद, किसानों ने – केसर की फसल की बाजार क्षमता से अनभिज्ञ – खेत के कुछ हिस्सों पर खरपतवार उग जाने दिया है.
विपणन और भविष्य की योजनाएं
नवंबर में पहली उपज से, इसका आधा हिस्सा NECTAR टीम द्वारा परीक्षण के लिए लिया गया था.
NECTAR के साथी भट्टाराई ने दिप्रिंट को बताया, “हम बायोएक्टिव यौगिकों (सैफ्रानल, क्रोसिन और पिक्रोक्रोसिन) की मात्रा, कुल फेनोलिक और फ्लेवोनोइड सामग्री और एंटीऑक्सीडेंट क्षमता जैसे मापदंडों पर केसर की गुणवत्ता का मूल्यांकन कर रहे हैं.”
वे अभी भी परीक्षा परिणाम का इंतजार कर रहे हैं. फसल का शेष हिस्सा उन महिलाओं के पास है जो यह पता लगा रही हैं कि अरुणाचल प्रदेश के भीतर अपने उत्पाद का विपणन कैसे किया जाए. NECTAR पहले से ही उत्पाद की पैकेजिंग और मार्केटिंग पर काम कर रहा है. किसानों को सूचित किया गया है कि NECTAR उत्पाद को बढ़ावा देने, आपूर्ति श्रृंखला बनाने और अंतिम उत्पाद के लिए एक बाजार स्थापित करने में मदद करेगा.
यापुंग यारुंग स्थानीय बाज़ारों का दौरा करके और निवासियों से बात करके अपना खुद का ‘बाज़ार सर्वेक्षण’ कर रही है.
उसने कहा, “ग्रामीणों को लगता है कि मेनचुखा में कोई भी केसर का इस्तेमाल नहीं करता – लेकिन मुझे एहसास हुआ कि यह सच नहीं है. बौद्ध मठों द्वारा कुछ कर्मकांडों में केसर के धागों का उपयोग किया जाता है.”
मेनचुखा में कम से कम तीन मठ हैं – और यारुंग को भरोसा है कि अगर शहर के भीतर मसाला उपलब्ध हो जाता है, तो अमीर लोग निश्चित रूप से इसे खरीद लेंगे.
उन्होंने कहा, “मैंने केसर का सिर्फ छह रेशों वाला एक बॉक्स 30 रुपये में बिकते देखा है.”
मेनचुखा में महिलाएं पहली उपज को बचाकर पूरे राज्य में विभिन्न मेलों और त्योहारों पर बेच रही हैं.
परीक्षणों की सफलता के बाद, कई अन्य किसान और अन्य सरकारी विभागों और मिशनों के प्रमुख मेनचुखा किसानों से कुछ केसर के पौधे चाहते हैं – लेकिन दो सालों की कोशिश के बाद, शुरू में ट्रायल करने वाले लोग बाज़ार पर नियंत्रण खोना नहीं चाहते.
यारुंग ने कहा, “हम वे लोग हैं जिन्होंने सारी कोशिशें कीं और जोखिम उठाए. क्या अब हमें दूसरों की तुलना में बढ़त नहीं मिलनी चाहिए?”
मेनचुखा से आलो जाने वाली सड़क पर, सूरज डूबने के बाद, शि-योमी जिले के युवाओं का एक समूह सड़क के किनारे खड़ा हुआ अपने फोन को नेटवर्क पाने की उम्मीद में हवा में उठाए हुए है ताकि अपने बाहर की दुनिया की एक झलक पा सके.
कुछ लोग ऐसी फिल्में डाउनलोड करने का प्रयास करते हैं जिन्हें वे बाद में गांवों में अपने खाली समय में देख सकें.
अनानास महोत्सव में अपने स्टॉल पर अपने एसएचजी की मेहनत के नतीजे को दिखाते हुए चूक्ला ने कहा, “वहां कोई उद्योग नहीं है और युवाओं के पास पर्याप्त सरकारी नौकरियां नहीं हैं. हमें उम्मीद है कि केसर की खेती, जैविक किवी और दालचीनी जैसे अन्य उत्पादो खेती को और ज्यादा पैसे वाला बना पाएंगे.”
फिलहाल, मेनचुखा में लोग बिजली और संचार बहाल होने और अधिक पर्यटकों के आने का इंतजार कर रहे हैं.
यारुंग ने कहा, “एक दिन, हमें उम्मीद है कि जब लोग अरुणाचल की यात्रा करेंगे, तो उनके परिवार उनसे मेनचुखा से कुछ केसर लाने के लिए कहेंगे.”
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