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Wednesday, 24 April, 2024
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गुजरात के इस कैफे को क्यों पसंद है प्लास्टिक कचरा, वजह जानकर होगा गर्व

एकदम घर के जैसा खाना और वो भी मुफ्त में मिलना ग्राहकों को इस कैफे तक खींच लाता है. यहां प्रतिदिन सैकड़ों किलो प्लास्टिक के बदले खाने-पीने की चीजें उपलब्ध कराई जाती हैं.

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जूनागढ़ में एक कैफे है जहां खाने-पीने की चीजें खरीदने के लिए आपको पैसों की कोई जरूरत नहीं है. इसने सामानों की अदला-बदली की पुरानी प्रणाली अपना रखी है. अब जबकि हर जगह प्लास्टिक को लेकर कोई नैतिक मूल्य नहीं रह गए हैं, यह गुजराती कैफे प्लास्टिक को ऐसे मानता है जैसे यह कोई बहुत कीमती चीज हो. और कई मायनों में ऐसा है भी.

जूनागढ़ के प्राकृतिक प्लास्टिक कैफे में एक किलोग्राम प्लास्टिक कचरे के बदले में आप आराम से एक प्लेट ढोकला ले सकते हैं. वहीं, आधा किलो प्लास्टिक बदलने वाले को एक गिलास संतरे का जूस या नींबू सोडा उपलब्ध हो सकता है.

कैफे मालिकों में एक रेखाबेन ने कहा, ‘कैफे में एकत्र होने वाला सारा प्लास्टिक कचरा एक स्थानीय एजेंसी को दिया जाता है जो इसे रिसाइकिल कराती है.’ डाइनिंग एरिया में थोड़ी भीड़भाड़ देखकर उनकी 21 वर्षीय बेटी भी काउंटर पर उनके साथ आकर खड़ी हो जाती है.

प्लास्टिक कचरे के बदले भोजन उपलब्ध कराना एक सरकारी पहल का हिस्सा है और इसका प्रबंधन तीन महिलाएं संभालती है. वे यहां एकदम घर के जैसे स्वाद वाला पौष्टिक भोजन और ढोकला, आलू पराठा, और इडली जैसे स्नैक्स उपलब्ध कराती है. इसमें मैदे से परहेज किया जाता है, ताजी सब्जियां ली जाती हैं और बहुत ज्यादा तेल का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.

रेखाबेन के मुताबिक, रोजाना करीब 15 ग्राहक खाने के बदले बोतल, प्लेट, कंटेनर और कटलरी जैसा प्लास्टिक कचरा लाते हैं. हर खेप को एक मशीन पर तौला जाता है और यदि किसी का कचरा 500 ग्राम से कम होता है तो वह एक ‘टैब’ बना सकता है.

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रेखाबेन मुस्कुराते हुए बताती हैं, ‘अगर कोई ग्राहक केवल 300 ग्राम प्लास्टिक कचरा ही लेकर आता है, तो हम इसे नोट करके रख लेते हैं. वे मुफ्त भोजन ले सकते हैं और फिर और ज्यादा प्लास्टिक अगले एक-दो दिन में ला सकते हैं.’

एकदम घर के जैसा खाना और वो भी मुफ्त में मिलना ग्राहकों को बार-बार इस प्राकृतिक कैफे तक खींच लाता है.

एक सरकारी पहल

कैफे का आइडिया जूनागढ़ के कलेक्टर रचित राज का था, जो प्लास्टिक की खपत घटाने और जहां तक संभव हो इसकी रीसाइकिलिंग करने की जरूरत को लेकर जनजागरूकता बढ़ाने की सरकारी पहल का हिस्सा है. सरकार ने कैफे के लिए जगह निशुल्क उपलब्ध कराई है. सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम), जूनागढ़ भूमि केसवाला ने बताया, ‘हमने इसे तैयार करने और अधिक आकर्षक बनाने पर 1.5 लाख रुपये खर्च किए.’

सरकार प्लास्टिक कचरे को लेकर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने की कोशिशों में जुटी है. 2019-20 में गुजरात में 24.85 एलएमटी खतरनाक अपशिष्ट उत्पन्न हुआ जो देश का करीब 28 फीसदी हिस्सा है. उस साल रिसाइकिलिंग भी कम रही और कुल उत्पन्न 24.85 एलएमटी में सिर्फ 12.25% को रिसाइकिल किया गया. इसकी तुलना में महाराष्ट्र और तमिलनाडु ने 2019-20 में क्रमशः 9.99 एलएमटी और 9.64 एलएमटी का ही उत्पादन किया.

इस कैफे में 10-15 पर्यावरण संरक्षकों के बैठने की व्यवस्था है और इसका पूरा इंतजाम तीन महिलाए संभालती हैं. रेखाबेन किचन ने किचन का जिम्मा ले रखा है जबकि वैशाली और सीमा यहां आने वाले ग्राहकों की खाने-पीने की चीजें उपलब्ध कराती हैं.

The building is covered with cafe's banners and paintings encouraging green environment | Satendra Singh/ThePrint
कैफे के बाहर लगे बोर्ड, फोटो- सतेंद्र सिंह, दिप्रिंट

दिल खुश कर देता है आदर-सत्कार का भाव

भोजन करने आने वालों को ‘वेस्ट फॉर फूड’ का आइडिया काफी पसंद आ रहा है. एक खास बात यह भी है कि मेनू में कोई भी आइटम 100 रुपये से अधिक का नहीं है. हालांकि, इसे खुले अभी केवल तीन महीने ही हुए हैं, लेकिन यह काफी लोकप्रिय हो चुका है. और शायद ही कभी ऐसा होता हो कि कैफे खाली मिले.

योगेश (27 वर्ष) ऐसे ही एक ‘रेग्युलर’ ग्राहक हैं और उन्हें यहां का ढोकला काफी पसंद हैं. उन्होंने दीवार पर लगी एक पेंटिंग की तस्वीर खींचने के लिए अपना फोन निकालते हुए कहा, ‘सबसे अच्छी बात यह है कि यहां का खाना एकदम घर जैसा, पौष्टिक और सस्ता है. इसके अलावा प्लास्टिक के बदले खाने की पहल भी अनूठी है. मैं खुद ही तमाम लोगों को इस आउटलेट के बारे में बता चुका हूं.’ वहीं, पहली बार इस कैफे में आया उनका दोस्त ढोकले का आनंद लेने में व्यस्त दिखा.

यहां की गुजराती थाली काफी पॉपुलर है जो 100 रुपये में उपलब्ध है. एक ग्राहक ने अपनी रोटी को दाल की कटोरी में डुबोते हुए कहा, ‘यह टॉप क्लास है.’ यह थाली कलरफुल होती है जिसमें छोटी-छोटी कटोरियों में सब्जी, सलाद, चावल, पापड़ आदि परोसा जाता है. साथ में एक गिलास ताजा छाछ भी होता है.

यहां के कर्मचारी जो कहते हैं उसका पालन भी करते हैं और जहां तक संभव है प्राकृतिक सामग्री का ही इस्तेमाल करते हैं. कैफे या किचन में आपको कहीं भी प्लास्टिक का नामो-निशान नहीं दिखेगा. टोकरी जूट से बनी होती है और प्लेट और गिलास मिट्टी के बने होते हैं.

रेखाबेन एक ग्राहक ललिता को आलू परांठे परोसते हुए कहती हैं, ‘लोगों को यहां पर भोजन के साथ-साथ इसके पीछे का कांसेप्ट भी काफी पसंद आता है. हम मिट्टी के बर्तन बेचते भी हैं.’

ललिता पहली बार इस कैफे में आई हैं, और अन्य ग्राहकों की तरह वह भी यहां के स्वागत सत्कार के तरीके, शांत माहौल और स्वादिष्ट भोजन की तारीफ करते नहीं थकती हैं. उन्होंने बताया, ‘मैं किसी काम से जूनागढ़ आई थी और खाने के लिए कोई जगह तलाश रही थी. तभी सड़क पर लगे पीला और भूरे रंग के एक बोर्ड पर मेरी नजर पड़ी, जिस पर ‘प्राकृतिक प्लास्टिक कैफे’ लिखा था.

रेखाबेन कहती हैं कि पहली बार आने वाले कई लोगों के लिए यह भरोसा करना मुश्किल होता है कि वास्तव में कोई ऐसा कैफे है जो प्लास्टिक के बदले में खाना उपलब्ध कराता है. दिन के अंत में प्लास्टिक कचरा एक रिक्शे पर लादकर रीसाइक्लिंग सेंटर पहुंचा दिया जाता है.

20 वर्षीय श्वेता ने जब पहली बार इस कैफे के बारे में सुना तो उसे यकीन ही नहीं हुआ. उसने कहा, ‘फिर मैंने यहां आकर देखा कि यह सब सच है.’ उसने प्लास्टिक की हर बेकार और टूटी-फूटी चीज एकत्र करनी शुरू कर दी. श्वेता ने बताया, ‘और अगली बार जब मैं यहां आई तो मेरे पास दो प्लेट ढोकला लेने के लिए पर्याप्त प्लास्टिक कचरा था.’

(इस फीचर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


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