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Thursday, 21 November, 2024
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यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए पत्र किसने लिखा? छात्राओं पर केंद्रित है सिरसा यूनिवर्सिटी का फोकस

हरियाणा में चौधरी देवीलाल यूनिवर्सिटी के डीन पर छेड़छाड़ का आरोप लगाने वाले एक गुमनाम पत्र से उथल-पुथल मच गई.एक हफ्ते से भी अधिक समय बीत चुका है, लेकिन अभी तक न तो कोई पीड़िता सामने आई है और न ही कोई एफआईआर दर्ज हुई है.

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सिरसा: पुलिस अधिकारी घनश्याम देवी ने सिरसा की चौधरी देवीलाल यूनिवर्सिटी में एक चमकदार रोशनी वाले हॉल में बैठीं छात्राओं से आगे बढ़ने और बोलने का आग्रह किया. वे कहती हैं, “आप इस प्रोफेसर के बारे में जो भी महसूस करती हैं उसे लिख दें और डरने की कोई ज़रूरत नहीं है; किसी को कुछ नहीं होगा.”, एक सीनियर प्रोफेसर और डीन द्वारा युवतियों के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगाने वाले एक गुमनाम पत्र द्वारा सीडीएलयू में उथल-पुथल होने के एक हफ्ते से भी अधिक समय बाद, पुलिस ने कोई नई प्रगति नहीं की है, कोई पीड़ित और कोई एफआईआर नहीं है.

पुलिस की एक पूरी टीम आरोपों की जांच कर रही है. प्रोफेसरों से पूछताछ जारी है, छात्र काउंसलिंग सेशन में भाग ले रहीं हैं, माता-पिता जवाब मांग रहे हैं और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी उन पर और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर निशाना साध रहे हैं.

हिंदी में लिखे गए इस दो पेज के पत्र को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर, राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, राज्य महिला आयोग और एक स्थानीय पत्रकार को भेजा गया था.

पत्र में लिखा है, “हमारा डीन सुशील कुमार महीनों से हमारा यौन उत्पीड़न कर रहा है, वो हमें प्रैक्टिकल परीक्षाओं में अच्छे अंक देकर लुभाने की कोशिश करता है. उसने हमारे निजी अंगों को छुआ और हमें धमकी दी कि अगर हमने उसकी शिकायत की, तो हमारे लिए अच्छा नहीं होगा.”

लेकिन हरियाणा में जहां पितृसत्ता के नियम सख्त हैं, जहां जन्म के समय लिंगानुपात लड़कों के पक्ष में बहुत अधिक झुका हुआ है (राष्ट्रीय औसत 933 की तुलना में 906 पर काफी कम है) और महिलाओं की स्वतंत्रता एक ऐसे समाज के साथ विरोधाभासी है जो सभी चीज़ों से ऊपर “सम्मान” को महत्व देने के बावजूद, गुमनाम पत्र अभी भी दुर्व्यवहार का सामना करने वालीं महिलाओं और लड़कियों के लिए पसंद का हथियार बने हुए हैं.

दो महीने पहले नवंबर में एक गुमनाम पत्र ने इसी तरह के एक घोटाले का पर्दाफाश किया था, जहां जींद में एक पब्लिक स्कूल के प्रिंसिपल पर कम से कम 150 छात्राओं से छेड़छाड़ का आरोप था. जांच के शुरुआती दिनों में केवल 5 लड़कियां ही पुलिस के सामने आईं.

सीडीएलयू में सच तक पहुंचने के लिए SHO देवी के प्रयासों को खंडन, कैंपस में राजनीति के आरोप और प्रोफेसर के शानदार रिकॉर्ड की रिपोर्टों का सामना करना पड़ता है. उन्हें एक ऐसी यूनिवर्सिटी में ग्रेजुएशन के छात्रों का भरोसा जीतने की मुश्किल चुनौती का सामना करना पड़ता है जहां ज्यादातर फैकल्टी आश्वस्त है कि यहां असल में डीन ही पीड़ित है. उन्हें निलंबित नहीं किया गया है या प्रशासनिक छुट्टी लेने के लिए नहीं कहा गया और 200 से अधिक शिक्षकों ने खट्टर को उनके कई गुणों की प्रशंसा करते हुए एक पत्र पर हस्ताक्षर भी किए हैं.

यूनिवर्सिटी के कुलपति अजमेर सिंह ने कहा, “वे ईमानदार और मेहनती हैं, मैं काम को लेकर उन पर भरोसा कर सकता हूं. जो भी अच्छा और योग्य है उसे जिम्मेदारी मिलती है.” उन्हें भी गुमनाम पत्र मिला, लेकिन वे इसे सीडीएलयू को अस्थिर करने के प्रतिशोधात्मक प्रयास के रूप में लिखने पर आमादा हैं. 5 जनवरी को जैसे ही यह खबर सामने आई, आरोप लगाने वाली छात्राओं की संख्या बढ़कर 500 हो गई – यह आंकड़ा राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बना और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के एक एक्स पोस्ट में इसे जगह मिली.

पिछले हफ्ते देवी ने कईं छात्राओं से बात की है जो परीक्षा और व्यावहारिक छुट्टी पर थीं, लेकिन जांच में मदद के लिए उन्हें वापस कैंपस बुला लिया गया, ज्यादातर छात्राओं ने दावा किया कि उन्हें यह भी नहीं पता कि सुशील कुमार हैं कौन. सीडीएलयू के यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ ग्रेजुएट स्टडीज़ के डीन जिनके पास प्रशासनिक कर्तव्यों का बड़ा पहाड़ है, वे शायद ही कभी कक्षाएं लेते हैं.

डीन सुशील कुमार का ऑफिस | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट
डीन सुशील कुमार का ऑफिस | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

फैकल्टी के एक छोटे वर्ग का आरोप है कि कुलपति और डीन के पास बहुत अधिक शक्ति है. हालांकि,यूनिवर्सिटी की महिला शिकायत समिति आरोपों की जांच कर रही है, लेकिन कुमार लगातार काम पर आ रहे हैं. सीडीएलयू के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि डीन ने इस्तीफा दे दिया है, लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया गया है.

कुमार ने मीडिया से कहा, “यह राजनीतिक प्रतिशोध के अलावा और कुछ नहीं है. मुझे इसलिए निशाना बनाया जा रहा है क्योंकि मैं यूनिवर्सिटी में कुछ काम में सक्रिय रहता हूं. मैं अपने खिलाफ किसी भी जांच का सामना करने के लिए तैयार हूं.”


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कैंपस, ठंड और गपशप

9 जनवरी की एक सर्द सुबह, स्कार्फ, स्वेटर, दस्ताने और जैकेट पहने युवतियां शौचालय में बहादुरी पर चर्चा कर रही थीं. उन्हें पुलिस को अपना बयान देने के लिए बुलाया गया है.

खुद को आइने में देखते हुए एक छात्रा कहती हैं, “अगर आरोप सच हैं, तो उन लड़कियों को सामने आना चाहिए और पुलिस से बात करनी चाहिए.” उसकी दोस्त आश्वस्त नहीं है.

एक अन्य लड़की कहती है, “मुझें नहीं पता. शायद वो डरी हुई है क्योंकि वे कुछ शक्तिशाली लोग हैं. हर कोई तुम्हारी तरह साहसी नहीं है.” दरवाज़े पर तेज़ आवाज़ से चर्चा खत्म हो जाती है. एक छात्रा कहती हैं, “सभी क्लास में आ जाओ, मेम ने सेशन शुरू कर दिया.” हर कोई एपीजे अब्दुल कलाम भवन के बड़े ‘हॉल’ की तरफ चल देता है.

अपने 24 अकादमिक डिपार्टमेंट, हॉस्टल्स, साफ-सुथरी चौड़ी सड़कों और पर्याप्त पार्किंग स्थान के साथ 280 एकड़ का ये विशाल कैंपस एक मॉडल यूनिवर्सिटी के सभी मानकों को पूरा करता है. हॉल में भूरे रंग की गद्देदार सीटें और एक छोटा ऊंचा मंच है. हॉल के बाहर, प्रोफेसर उन छात्राओं को घबराहट में कॉल कर रहे हैं जिन्होंने अपनी अटेंडेंस दर्ज नहीं की है. कक्षाएं अभी शुरू नहीं हुई हैं और ज्यादातर छात्राएं अभी भी छुट्टियों के मूड में हैं.

चौधरी देवी लाल यूनिवर्सिटी (सीडीएलयू), सिरसा, हरियाणा में यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ ग्रेजुएट स्टडीज (यूएसजीएस) बिल्डिंग | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

ग्रेजुएशन की छात्रा इशिता शर्मा को तब तक नहीं पता था कि हंगामा क्यों बरपा था, जब तक कि वह कैंपस में अपने दोस्तों के साथ नहीं गईं.

उन्होंने कहा, “मुझे कॉलेज नहीं आना, लेकिन प्रोफेसर ने बहुत सख्त मैसेज भेजा; उन्होंने कहा कि हमें एक आधिकारिक उद्देश्य से आना होगा. अब मुझे पूरे मामले की जानकारी मिली है. मैंने पहले कभी डीन को नहीं देखा. मुझे नहीं पता कि यह (आरोप) सच है या नहीं.” एक अन्य छात्रा का दावा है कि उन्हें फेसबुक पर आरोपों के बारे में पता चला.

अगर छात्राएं उत्सुक हैं, तो प्रोफेसर स्पष्ट रूप से सतर्क हैं. उन्हें यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि यूएसजीएस में नामांकित हर महिला पुलिस के साथ सेशन में शामिल हो.

एक व्हाट्सएप ग्रुप में प्रोफेसर का मैसेज था, “सभी छात्राओं को एक आधिकारिक उद्देश्य के लिए कल कॉलेज आना होगा और इसे सबसे ज़रूरी, समयबद्ध माना जाए और आदेश का सख्ती से अनुपालन किया जाना चाहिए.” ये वे छात्राएं हैं जिनकी अटेंडेंस की जांच की जा रही है.

एक बार आरोपी डीन हॉल में आता है, लेकिन जल्दी से निकल जाता है. हॉल के बाहर, वो अटेंडेंस शीट्स की जांच करता है और उन छात्राओं के बारे में पूछता है जिन्होंने पुलिस को रिपोर्ट नहीं किया.

दिप्रिंट ने जिन 50 से अधिक छात्राओं से बात की, उनमें से अधिकांश ने कहा कि वे कुमार से कभी नहीं मिलीं. जिन मुट्ठी भर लोगों ने उनसे बातचीत की है, वो उन्हें “कड़क मिज़ाज” वाला बताते हैं.

पूजा सहरावत कहती हैं, “मैं फिजिक्स डिपार्टमेंट से हूं. एक बार मैं और मेरी दोस्त कुछ ब्रीफिंग के लिए सर (कुमार) से मिलने गए थे, लेकिन उन्होंने हमारी बात नहीं सुनी और हमें वापस भेज दिया.” उनके पास फिजिक्स के प्रैक्टिकल के बारे में कुछ सवाल थे, लेकिन कुमार ने उन्हें दूसरे प्रोफेसर के पास भेज दिया.

हॉल में SHO देवी A4 साइज़ की शीट्स देती हैं और छात्राओं से कुमार और अन्य प्रोफेसरों के साथ बातचीत के अपने अनुभव के बारे में लिखने के लिए कहती हैं. छात्राएं स्तब्ध हैं. “हम क्या लिखे? हमें क्या कहना चाहिए?” वो एक-दूसरे से कानाफूसी कर रहीं थीं. कुछ लड़कियां काम में जुट गईं और जल्द ही अन्य लोग उनके ‘जवाब’ की नकल करने लगे. यह एक अनिवार्य स्कूल परीक्षा की तरह था, लेकिन लगभग पांच प्रोफेसर्स की निगरानी में हर कोई ‘नकल’ कर रहा था.

स्टाफ से बात करते डीन सुशील कुमार | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

एक प्रोफेसर ने घोषणा की, “एएसपी मैडम आ रही हैं”. जैसे ही सहायक पुलिस अधीक्षक दीप्ति गर्ग कमरे में प्रवेश करती हैं, फुसफुसाहट अचानक बंद हो जाती है. जांच का नेतृत्व कर रहीं 2020 बैच की आईपीएस अधिकारी हॉल का सर्वे करती हैं और कॉलेज स्टाफ को वहां से जाने का निर्देश देती हैं. हालांकि, देवी की कठोर आवाज़ के विपरीत — वह मीठा बोलती हैं. हर कोई बिना किसी सवाल के उनकी बात मान रहा है. 15 मिनट तक गर्ग छात्राओं से अकेले में बात करती हैं.

गर्ग पूछती हैं, “अगर कोई कुछ कहना चाहता है, तो वो सीधे मेरे पास आ सकता है और आपकी पहचान सुरक्षित रखी जाएगी. हमने आपके बयान यहां ले लिए हैं, लेकिन अगर किसी को लगता है कि उन्हें कुछ कहना है तो मैं अपना नंबर दे रही हूं. आप मुझे कॉल करें या टेक्स्ट करें.” छात्राएं सिर हिलाती हैं, लेकिन चुप रहती हैं.

किसी के पास पूछने के लिए कोई सवाल ही नहीं था.

एएसपी बाकी समय छात्राओं को उनके अधिकारों, साइबर अपराध और महिला हेल्पलाइन के बारे में काउंसलिंग देने में बिताती हैं. यह साइबर क्राइम धोखाधड़ी थी जिसने सभी का ध्यान खींचा. बहुतों ने बात की. एक छात्रा ने कहा, “साइबर धोखाधड़ी में मैंने 10,000 रुपये खो दिए” और बताया कि उन्हें अपने पैसे कभी वापस नहीं मिले.

गर्ग इसके तुरंत बाद चली गईं, लेकिन देवी और तीन अन्य महिला अधिकारी कम से कम 200 छात्राओं के बयान लेने के लिए वहीं रुक गईं. सेशन पांच-छह घंटे तक चला, इस दौरान छात्राओं को उनके माता-पिता के फोन आते रहते हैं.

बयान लिखवाते छात्राओं का मार्गदर्शन करतीं पुलिसकर्मी | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट
बयान लिखवाते छात्राओं का मार्गदर्शन करतीं पुलिसकर्मी | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

पिछले कुछ दिनों से पुलिस पूरे कैंपस में लगे सीसीटीवी से फुटेज इकट्ठा कर रही है, लेकिन पत्र लिखने वालों ने आरोप लगाया कि कुमार के पास सीसीटीवी और फुटेज का नियंत्रण था.

गर्ग ने कहा, “जांच अभी भी प्रक्रियाधीन है. अभी तक कोई एफआईआर नहीं हुई है. हम लड़कियों के बयान ले रहे हैं और हमारे पास सीसीटीवी फुटेज भी है.”


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यूनिवर्सिटी की राजनीति

सुशील कुमार (54) के पास सीडीएलयू में फैकल्टी और कर्मचारियों के बीच समर्थकों की एक छोटी सी सेना है. वे 2007 में बतौर फिजिक्स के प्रोफेसर यूनिवर्सिटी में आए और तब से लगातार रैंक में ऊपर उठे हैं. अब, वह यूएसजीएस के डीन के साथ-साथ सेंटर ऑफ इंस्ट्रूमेंट फैसिलिटीज के निदेशक और यूनिवर्सिटी आईटी, डेटा और कंप्यूटर सेंटर के प्रमुख हैं. कुलपति सिंह के साथ उनके घनिष्ठ संबंध उन्हें सीडीएलयू के आंतरिक घेरे के केंद्र में रखते हैं.

8 जनवरी को टीचर वेलफेयर और नॉन-टीचींग वेलफेयर एसोसिएशन ने गुमनाम पत्र पर चर्चा के लिए एक संयुक्त बैठक की. अंत में उन्होंने पत्र लिखने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए खट्टर, सिंह और पुलिस अधीक्षक को एक ज्ञापन लिखा.

202 हस्ताक्षरकर्ताओं के वाले ज्ञापन में लिखा, “हम आपसे उन लोगों के बारे में पता लगाने का अनुरोध करते हैं जिन्होंने हमारी यूनिवर्सिटी की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की. इस मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए.”

केवल मुट्ठी भर प्रोफेसरों ने ही सिंह और कुमार के खिलाफ खुलकर बात की, लेकिन जिस तरह से यूएसजीएस चलाया जा रहा था, उसके संदर्भ में.

नाम न छापने की शर्त पर एक प्रोफेसर ने कहा, “वह (कुलपति अजमेर सिंह) अहंकारी, असंवेदनशील और नॉन-प्रोफेशनल हैं और डीन उनके बहुत करीबी हैं. इससे साफ है कि वीसी उन पर बहुत भरोसा करते हैं और इसलिए उन्हें इतने सारे प्रभार दिए गए हैं, इसलिए डीन इतने शक्तिशाली हो गए हैं.” प्रोफेसर ने कुमार पर अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने और अन्य विभागों को उपकरण प्रयोगशाला तक पहुंच से वंचित करने का आरोप लगाया.

कुमार ने पत्र या सत्ता के दुरुपयोग के आरोपों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

डीन के विपरीत, सिंह सीडीएलयू में अपेक्षाकृत नए हैं. उन्हें दिसंबर 2020 में इसका कुलपति नियुक्त किया गया था और दिसंबर 2023 में उनका कार्यकाल पूरा होना था, लेकिन सीडीएलयू के इतिहास में पहली बार, उनका कार्यकाल एक और साल के लिए बढ़ा दिया गया.

नाम न छापने की शर्त पर एक अन्य प्रोफेसर ने कहा, “उन्हें यह विस्तार राजनीतिक संबंधों के जरिए मिला. वह अहंकारी हैं और उनकी भाषा नॉन-प्रोफेशनल है.”

हालांकि, सिंह ने इन आरोपों से पल्ला झाड़ लिया. उनका कहना है कि ये उन कर्मचारियों द्वारा बनाए गए हैं जो काम नहीं करना चाहते.

सिंह ने कहा, “मुझे सेवा विस्तार मिला क्योंकि मैंने यूनिवर्सिटी को आगे बढ़ने में मदद की और यहां कईं प्रोफेसर भी चाहते थे कि मैं यहीं रहूं. मेरे खिलाफ बहुत सारी शिकायतें हैं, लेकिन मुझे एक भी चेतावनी नहीं मिली है.”

जींद स्कूल के विपरीत, जहां गुमनाम पत्र के दो महीने बाद प्रशासन ने ‘हिंसक प्रिंसिपल’ के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए खुद को उकसाया, सिरसा पुलिस और सीडीएलयू ने तुरंत कार्रवाई की.

सीडीएलयू की महिला शिकायत समिति, जो विशाखा दिशानिर्देशों का पालन कर रही थी और इसमें दो बाहरी सदस्य हैं, ने इस मामले को उठाया है. समिति के एक पूर्व सदस्य ने कहा कि यह पहली बार है जब कुमार के खिलाफ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया गया है.

यूनिवर्सिटी के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “जब प्रोफेसरों और उनके साथियों के बारे में शिकायत करने की बात आती है तो इस कॉलेज की महिलाएं खुली और मुखर हैं.” उन्होंने कहा, सबसे हालिया मामला तब था जब कई छात्राओं द्वारा यौन उत्पीड़न की शिकायतों के बाद अक्टूबर 2022 में एक प्रोफेसर को बर्खास्त कर दिया गया था. उन्होंने कहा, “इतिहास के डिपार्टमेंट में एक मामला था और जांच के बाद, शिक्षक को इस्तीफा देने के लिए कहा गया था. हम ऐसी शिकायतों को बहुत गंभीरता से लेते हैं.”

पहले भी इसी आधार पर एक अन्य शिक्षक को बर्खास्त किया गया था. हालांकि, न तो प्रशासक और न ही सिंह इसमें शामिल महिलाओं की गोपनीयता का हवाला देते हुए अधिक जानकारी देने को तैयार थे.

हालांकि, सीडीएलयू की स्थापना 2003 में हुई थी, यूनिवर्सिटी स्कूल फॉर ग्रेजुएट स्टडीज़ (USGS) एक अपेक्षाकृत नई इकाई है. 2021 में स्थापित, यह नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का पालन करता है और चार साल और छह साल के डिग्री प्रोग्राम्स प्रदान करता है. प्रशासन विभाग के अधिकारी ने कहा, पूरी यूनिवर्सिटी में 52 स्थायी फैकल्टी हैं और 200 से अधिक प्रोफेसर कॉन्ट्रैक्ट पर हैं. जब यूएसजीएस में नामांकन की बात आती है, तो पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक है, जो छात्र संख्या का केवल 36 प्रतिशत हैं. 1,164 छात्रों में से केवल 430 महिलाएं हैं. नौ जनवरी तक, कम से कम 200 लोग पुलिस को अपना लिखित बयान देने आए थे.

सीडीएलयू का कैंपस | फोटो: नूतन शर्मा/दिप्रिंट

कैंपस में मौजूद कानून के एक पूर्व छात्र को यकीन है कि यह पत्र सीडीएलयू की प्रतिष्ठा को निशाना बनाने का एक प्रयास है. उनका दावा है कि यह बहुत अच्छा लिखा गया है.

उन्होंने कहा, “मैं आपको गारंटी दे सकता हूं कि कोई भी पोस्ट ग्रेजुएट छात्र ऐसे नहीं लिखता है. ये पूरा मामला प्रोपेगेंडा है. जिस व्यक्ति ने यह किया उसे नहीं पता कि यह इतना बड़ा हो जाएगा.”

पुलिस और संघर्ष

पुलिस ने आरोपों की प्रामाणिकता पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, लेकिन जांच की जा रही है कि पत्र किसने भेजे. टीमें डाकघरों में हैं, उपलब्ध सभी सीसीटीवी फुटेज की जांच चल रही है.

लेकिन कैंपस के बाहर, चाय बेचने वालों से लेकर वहां के निवासियों तक हर कोई कुमार, सिंह और छात्राओं के बारे में बात कर रहा है.

कैंपस के पीछे आवासीय कॉलोनी में रहने वाले अशोक सांगवान* (बदला हुआ नाम) ने कहा, “जहां तक मैं समझ सकता हूं, यह (आरोप) निराधार है. मैंने अपनी बेटी और उसके दोस्तों से पूछा है. वे ऐसी किसी लड़की को नहीं जानते थे जिसने ऐसा कुछ अनुभव किया हो.”

देर दोपहर तक, जब तापमान अभी भी 8 डिग्री सेल्सियस से कम था और सूरज कहीं दिखाई नहीं दे रहा था, लोग सड़क के किनारे अलाव के पास इकट्ठा होकर चाय पीते हुए इस मामले पर चर्चा कर रहे थे.

चाय की चुस्की लेते हुए एक व्यक्ति ने कहा, “पत्र स्थानीय पत्रकार को लिखा गया है. लेखक उन्हें कैसे जानता था? ग्रेजुएशन का कोई स्टूडेंट इतना होशियार नहीं हो सकता. उन्होंने वह पत्र बड़े-बड़े नेताओं और मीडिया को भेजा. बिना नाम के, यह संदेहास्पद है.”

अन्य लोगों ने सवाल किया कि क्या यह सच में किसी छात्रा ने लिखा था. महिलाएं इतनी अच्छी हिंदी नहीं लिखतीं. एक अन्य निवासी ने कहा, “यह स्पष्ट रूप से अनुभव वाले किसी व्यक्ति द्वारा लिखा गया है.”

छोटे समूह में किसी ने भी यौन उत्पीड़न पर विचार नहीं किया. सांगवान ने अपनी 20-वर्षीय बेटी को बाइक पर कैंपस छोड़ना शुरू कर दिया है और अब खबरों पर बहुत बारीकी से नज़र रख रहे हैं. उनकी बेटी ने उन्हें बताया कि वह कुमार को नहीं जानती, लेकिन वो कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता.

इस बीच, बेटी इस बात से नाराज़ है कि उसकी यूनिवर्सिटी लोगों के ध्यान का केंद्र बन गई है, लेकिन वह पत्र पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहती.

सांगवान ने कहा, “सिरसा जैसे छोटे शहर में अपनी बेटी को कॉलेज भेजना बहुत मुश्किल है और जब ऐसी चीज़ें होती हैं, तो मेरे जैसे लोग ऐसा करने से अनिच्छुक हो जाते हैं.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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