नई दिल्ली: इस साल जब मानसून आया, तो 21-वर्षीय आशा को पढ़ाई करने के लिए बहुत कम समय मिल पाया. उन्होंने फर्श को पोंछने और बेसमेंट में अपने छोटे से कमरे में घुसे बारिश के पानी को निकालने में घंटों बिताए. सीढ़ियों, छत और अलग-अलग कोनों से पानी अंदर आ रहा था. उन्होंने पानी इकट्ठा करने के लिए हर जगह फर्श पर छोटे-छोटे स्टील के कंटेनर रखे. बल्कि उन्होंने मकान मालिक से इस दिक्कत को ठीक करने की गुहार लगाई, लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिली.
अब, दिल्ली के ओल्ड राजिंदर नगर में राऊ आईएएस स्टडी सर्किल के बेसमेंट में बनी लाइब्रेरी में पानी भर जाने से तीन यूपीएससी एस्पिरेंट्स की मौत के बाद, आशा की चिंता दोगुनी हो गई है.
आशा ने अपने फर्श पर पोछा लगाते हुए, जो रविवार को फिर से पानी से भर गया था, कहा, “इस बेसमेंट लाइब्रेरी की घटना के बाद, हम डर में जी रहे हैं. हम अपनी ज़िंदगी के लिए डरे हुए हैं. हमारे साथ भी ऐसा कुछ हो सकता था.” उस दिन यह चौथी बार था जब उन्होंने अपने कमरे की सफाई की थी.
बिहार के दरभंगा में एक जूनियर सरकारी अधिकारी की बेटी के लिए यूपीएससी कोचिंग करने दिल्ली आना उनके परिवार के लिए एक बड़ा फैसला था. वे अपने खर्चे का हर पैसा गिनती हैं और सख्त नियमों और सावधानियों के साथ रहती हैं. वे बीमार पड़ने और पढ़ाई का समय गंवाने का जोखिम नहीं उठा सकतीं.
आशा ने कहा, “किराए, खाने-पीने और स्टडी मटेरियल के साथ, मेरा मासिक खर्च 20,000-22,000 रुपये तक पहुंच जाता है, लेकिन अगर मैं बीमार पड़ गई, तो यह 25,000 रुपये से अधिक हो जाता है. मैं इतना खर्च नहीं उठा सकती.
यूपीएससी एस्पिरेंट्स की आबादी भारतीय युवाओं में सबसे बेहतरीन है. उनमें जोश, महत्वाकांक्षा और गतिशीलता कूट-कूट कर भरी है, जैसा कि कोई और नहीं कर सकता. वह लाखों रुपये खर्च करते हैं और किराए के कमरों में रहते हैं, जो गंदे, सीलन भरे और छोटे-छोटे होते हैं, कभी-कभी तो वह ठूस दिए जाते हैं. तीन छात्रों की मौत पर उनका गुस्सा ओल्ड राजिंदर नगर की हर गली में साफ झलकता है, जहां 20 साल की उम्र के करीब एक लाख पुरुष और महिलाएं रहते हैं.
एक यूपीएससी एस्पिरेंट ने बताया कि शोषण उसी दिन शुरू हो जाता है, जब कोई एस्पिरेंट बड़ा बाजार वाली गली में पहुंचता है, जहां बड़े कोचिंग संस्थान हैं.
उनकी रहने की स्थिति अब सुर्खियों में है, लेकिन कोचिंग संस्थानों, दलालों और मकान मालिकों के माफिया जैसे गठजोड़ ने सालों की शिकायतों को अनसुना कर दिया है. सरकारी अधिकारियों ने लगातार गंभीर चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया है.
एक हफ्ते पहले ही मैन्स की परीक्षा देने जा रहे एक एस्पिरेंट की करंट लगने से मौत हो गई थी. 26-वर्षीय नीलेश राय जलभराव वाली सड़क से अपने कमरे में लौट रहे थे, तभी यह घटना हुई. तीन महीने पहले ओल्ड राजिंदर नगर में एक हॉस्टल की इमारत में आग लग गई थी. उससे कुछ महीने पहले एक लाइब्रेरी में आग लग गई थी, हालांकि, कोई हताहत नहीं हुआ था. पिछले साल मुखर्जी नगर में आग लगने की घटना के दौरान छात्रों को बचने के लिए इमारत से कूदते देखा गया था.
ओल्ड राजिंदर नगर में विरोध प्रदर्शन कर रहे एस्पिरेंट शिव कुमार ने कहा, “अधिकारियों के लिए एस्पिरेंट्स की जान सस्ती है. ऐसा नहीं है कि ऐसी लापरवाही पहली बार हुई है, लेकिन अब यह एक मुद्दा बन गया है क्योंकि इसने तीन लोगों की जान ले ली है. हम तैयारी की एक व्यापक प्रक्रिया से गुज़रते हैं, लेकिन दलालों से लेकर मकान मालिकों और कोचिंग से लेकर अधिकारियों तक, हर कोई हमें अलग-अलग तरीकों से धोखा देता है.”
रविवार को सैकड़ों छात्र तानिया सोनी (25), श्रेया यादव (25) और नवीन डेल्विन (28) की मौत के विरोध में सड़कों पर उतर आए, जिनकी कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में डूबने से मौत हो गई थी. विरोध प्रदर्शन में लगे एक पोस्टर पर लिखा था, “मौत हुई है, मज़ाक नहीं.”
शनिवार को हुई इस घटना ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा और कई नामचीन हस्तियों ने सोशल मीडिया पर इस बारे में पोस्ट किए. भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को राज्यसभा में अपने संबोधन में इस मामले का ज़िक्र किया. उन्होंने कहा कि वह सदन में “एक छोटी अवधि की चर्चा या ध्यानाकर्षण करना उचित समझते हैं” और इस मुद्दे पर अपने कक्ष में सभी दलों के नेताओं के साथ बैठक करेंगे.
करोल बाग में विरोध स्थल पर छात्रों ने दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) आयुक्त से मिलने की मांग की. 29 जुलाई को दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना छात्रों से मिलने वहां पहुंचे.
उनकी (प्रदर्शनकारियों) आवाज़ भारत के किसी भी अन्य छात्र समूह की तुलना में ज़्यादा तेज़ है. विकास ठाकुर और सुधीर किशोर ने इस घटना की निंदा की है. उन्होंने सड़कों पर नारे लगाए और घटना की तस्वीरें और वीडियो पोस्ट किए. ओल्ड राजिंदर नगर के कोनों पर भारी पुलिस बल तैनात किया गया है. इस बीच, राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहे.
यह उन युवा हताश उम्मीदवारों की दुखद कहानी है जो ओल्ड राजिंदर नगर और मुखर्जी नगर में अपने माता-पिता के IAS-IPS-IFS सपनों और मामूली बचत के अलावा कुछ नहीं लेकर आते हैं. उन्हें केवल तंग इलाकों में स्थित अति-प्रतिस्पर्धी कोचिंग संस्थानों की भीड़-भाड़ वाली संस्कृति का हिस्सा बनना पड़ता है, जहां बहुत कम जांच और सुरक्षा मानक हैं. वे पश्चिमी दिल्ली में एक स्वतंत्र शोषक गणराज्य की तरह काम करते हैं, जिसे भारत के महान IAS सपने का शिकार करने वाले शिकारी व्यवसायों द्वारा चलाया जाता है.
पिछले दो साल से यूपीएससी परीक्षा की तैयारी कर रहीं ओल्ड राजिंदर नगर में रहने वालीं महाराष्ट्र की 26-वर्षीय लुम्बिनी ने कहा, “शोषण उसी दिन शुरू होता है जब कोई एस्पिरेंट बड़ा बाज़ार की गली में पहुंचता है, जहां बड़े कोचिंग संस्थान हैं. कोचिंग संस्थान में प्रवेश लेने के बाद, अस्तित्व की असली लड़ाई शुरू होती है. दलाल और मकान मालिक बहुत ज़्यादा पैसे मांगते हैं, जिससे छात्रों के पास सालों से चल रहे इस चक्र में फंसने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता.”
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जीने का संघर्ष
हर साल जून में, बड़ा बाज़ार की सड़क कोचिंग संस्थानों में प्रवेश के लिए मार्गदर्शन देने वाले लोगों से भर जाती है, जिसके बाद घर की तलाश और जगह खोजने और उसमें रहने की कठिन प्रक्रिया शुरू होती है.
एस्पिरेंट्स के लिए यह अवधि उनकी ज़िंदगी का सबसे महत्वपूर्ण वक्त होता है, क्योंकि वे अपने सबसे प्रोडक्टिव साल यूपीएससी परीक्षाओं की तैयारी में समर्पित करते हैं, लेकिन दलालों, मकान मालिकों और यहां तक कि कोचिंग संस्थानों के लिए यह छात्रों से जितना संभव हो उतना पैसा वसूलने का मौसम होता है.
दलालों के लिए, यह हमेशा की तरह एक बिजनेस है.
ओल्ड राजिंदर नगर में एक दलाल 32-वर्षीय उमेश गिरी ने कहा, “यह एक ऐसा पेशा है जो दशकों से चला आ रहा है. ओल्ड राजिंदर नगर में एक अच्छे कमरे की कम से कम कीमत 15,000 से 25,000 रुपये से शुरू होती है. लोगों ने बेसमेंट में भी कमरे बना लिए हैं, इसलिए अगर कोई सस्ता विकल्प चाहता है, तो हम उन्हें दिखाते हैं. हमें कभी कोई समस्या नहीं हुई. यह केवल एक बिजनेस है, इसके अलावा और कुछ नहीं, बिल्कुल दूसरे व्यवसायों की तरह.”
सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी के पहले साल में, एक एस्पिरेंट कोचिंग फीस में लगभग 2 लाख से 5 लाख रुपये खर्च करते हैं, हर महीने 15,000 रुपये किराए पर खर्च करते हैं, फिर खाना-पीना और अन्य खर्च आते हैं.
एक बहुत छोटे, तंग और गंदे कमरे का कम से कम किराया 12,000 रुपये से अधिक है, जिसमें अक्सर रसोई और बाथरूम शेयरिंग होते हैं. कभी-कभी, मकान मालिक साल के बीच में किराया बढ़ा देते हैं, जिससे एस्पिरेंट्स के पास कोई विकल्प नहीं रह जाता. जब कमरे की मरम्मत की बात आती है, तो मकान मालिक किराएदार को भगाना शुरू कर देते हैं.
अंशुल कुमार ने कहा, लगभग हर बार, मकान मालिक सिक्योरिटी डिपॉजिट वापस करने से इनकार कर देते हैं और कोई भी इसके बारे में कुछ नहीं कर सकता.
रहने और पढ़ने के लिए किफायती कमरे की तलाश करने वाले एस्पिरेंट्स को आमतौर पर तीन विकल्प मिलते हैं: बारास्ती, पोर्टा केबिन और बेसमेंट रूम. ये नियमित फ्लैट और कमरों के सबसे सस्ते विकल्प हैं, जिनकी कीमत 20,000 रुपये से अधिक है. बरसाती छत पर बना एक कमरा है जिसकी छत प्लास्टिक की बनी होती है. इन कमरों में किराएदारों को बहुत ज़्यादा गर्मी और ठंड का सामना करना पड़ता है और मानसून के दौरान जब बारिश का पानी नीचे रिसता है तो हालात और भी खराब हो जाते हैं.
स्टडीआईक्यू में यूपीएससी एस्पिरेंट्स को पढ़ाने वाले और ओल्ड राजिंदर नगर में आठ साल तक रहने वाले अमित किल्होर ने कहा, “पोर्टा केबिन एक जुगाड़ वाला कमरा होता है, जिसमें मकान मालिक लकड़ी का कार्डबोर्ड रखकर केबिन जैसा स्थान बना देता है, जहां छात्र अपने बिस्तर लगा सकते हैं और अगर मकान मालिक जगह के मामले में उदार है, तो कुर्सी भी रख सकते हैं.”
एस्पिरेंट्स को सबसे ज़्यादा सिक्योरिटी डिपॉजिट और नकद राशि के मामले में संघर्ष करना पड़ता है. जब कोई एस्पिरेंट कमरा किराए पर लेता है, तो उसे एक महीने का किराया एडवांस में देना पड़ता है, एक महीने के किराए के बराबर सिक्योरिटी और ब्रोकरेज अलग से, जो कि किराए का लगभग आधा होता है.
अंशुल कुमार, जो पिछले चार सालों से ओल्ड राजिंदर नगर में रह रहे हैं, ने कहा, “लगभग हर बार, मकान मालिक सिक्योरिटी डिपॉजिट वापस करने से इनकार कर देते हैं और कोई भी इसके बारे में कुछ नहीं कर सकता. यह यहां चलन बन गया है. वो जानते हैं कि हम इस बारे में कुछ नहीं कर सकते.”
उन्होंने कहा, “सिक्योरिटी डिपॉजिट आमतौर पर उन स्थितियों को कवर करने के लिए होता है जब किराएदार एक महीने का किराया दिए बिना चला जाता है या कमरे में कुछ तोड़ देता है, लेकिन अगर सब कुछ ठीक भी हो, तो भी वो सिक्योरिटी डिपॉजिट वापस नहीं करते हैं.”
एस्पिरेंट्स का शोषण करने की यह संस्कृति सालों से चली आ रही है. छात्र मांगों के आगे इसलिए झुक जाते हैं क्योंकि वे तुरंत सारी रसद निपटाना चाहते हैं और अपनी पढ़ाई शुरू करना चाहते हैं. उनके लिए समय सबसे कीमती चीज़ है.
ओल्ड राजिंदर नगर में पांच मंजिला इमारत के एक मकान मालिक ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “अब इस बाढ़ वाले बेसमेंट की घटना के साथ, यह एक बड़ा मुद्दा बन गया है, लेकिन बेसमेंट हमेशा से वहां था और छात्र उसमें रह रहे थे. यह मकान मालिक की संपत्ति है, उन्हें किराए पर कोई भी जगह देने का अधिकार है. अगर किसी एस्पिरेंट को कोई समस्या है, तो दूसरा आ जाएगा.”
पिछले कुछ सालों में एस्पिरेंट्स की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है. 2013-2014 में एस्पिरेंट्स की संख्या लगभग 5 लाख थी और 2021-2022 में यह संख्या दोगुनी होकर 10 लाख हो गई. एस्पिरेंट्स की बढ़ती संख्या के साथ, बुनियादी ढांचे और सुविधाओं की गुणवत्ता में गिरावट आई है.
किल्होर ने कहा, “पिछले एक दशक में स्थिति काफी खराब हो गई है. कीमतें आसमान छू गई हैं, जबकि बुनियादी ढांचे और सुविधाओं में लगातार गिरावट आई है. एस्पिरेंट्स की संख्या तीन से चार गुना बढ़ गई है, जिससे कई लोगों को पैसे बचाने के लिए पटेल नगर और शाहदादपुर जैसे अधिक किफायती, लेकिन गरीब इलाकों में जाना पड़ रहा है. भोजन एक लगातार समस्या बनी हुई है, जिसमें कई छात्र अपने भोजन के लिए अस्वास्थ्यकर टिफिन सेवाओं पर निर्भर हैं.”
पिछले साल दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा आग की घटना का स्वत: संज्ञान लेने के बाद शहर के 500 कोचिंग सेंटरों के दिल्ली अग्निशमन सेवा (DFS) ऑडिट के अनुसार, केवल मुट्ठी भर में ही बुनियादी अग्निशमन उपकरण थे.
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एस्पिरेंट्स — आय का स्रोत
एक यूपीएससी एस्पिरेंट ने कहा, कोई भी हमें इंसान नहीं समझता, उनके लिए हम सिर्फ आय का स्रोत हैं. लोगों में मानवता नहीं बची.
लंबे समय तक पढ़ाई करने से लेकर कपड़े धोने से लेकर परीक्षाओं की चिंता तक, ऐसी कई चीज़ें हैं जो एस्पिरेंट्स को तनाव देती हैं. कई लोग पहली बार अपने परिवार से दूर, नए शहर में अकेले रह रहे हैं. नया कमरा ढूंढ़ने और वहां से जाने की प्रक्रिया समय लेने वाली और महंगी दोनों है, जो एस्पिरेंट्स के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती हैं.
लुम्बिनी ने कहा, “कोई भी हमें इंसान नहीं समझता, उनके लिए हम सिर्फ आय का स्रोत हैं. लोगों में मानवता नहीं बची, वो बस हमारा शोषण करते हैं. कोचिंग संस्थानों से लेकर दलालों और जमींदारों तक. कोचिंग माफिया, जमींदार माफिया और दलाल माफिया हैं. उन्हें सिर्फ पैसे की समझ है.”
दिल्ली में यूपीएससी के दो कोचिंग संस्थान हैं, एक मुखर्जी नगर में और दूसरा ओल्ड राजिंदर नगर में. कथित तौर पर यह इंडस्ट्री 3,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा की है और यह अभी भी बढ़ रही है. बिहार, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से और यहां तक कि ग्रामीण और आदिवासी इलाकों से भी बच्चे यहां पढ़ने के लिए आते हैं, लेकिन इसके बजाय उन्हें जीवनयापन के लिए संघर्ष करना पड़ता है.
महाराष्ट्र में रहने वाले सुशील शिंदे ने बताया, “मैंने अपने बेटे को यूपीएससी की तैयारी के लिए दिल्ली भेजने के लिए अपनी ज़मीन बेच दी, लेकिन जब मैं ऐसी खबरें देखता हूं कि छात्र सिर्फ वही करने के लिए मर जाते हैं जो उन्हें करना चाहिए था, तो मुझे दुख होता है. आईएएस के सपने से ज्यादा कीमती ज़िंदगी है.”
करीब एक हफ्ते पहले, यूपीएससी एस्पिरेंट 26-वर्षीय अंजलि गोपनारायण ने ओल्ड राजिंदर नगर में अपने किराए के कमरे में आत्महत्या कर ली. वे यूपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा में असफल होने के बाद परेशान थी और अपने मकान मालिक के किराए को 15,000 रुपये से बढ़ाकर 18,000 रुपये करने के फैसले से परेशान थीं, जिसकी जानकारी उन्हें परीक्षा से ठीक एक दिन पहले दी गई थी.
उनके पिता महाराष्ट्र के अकोला जिले में सहायक उपनिरीक्षक हैं. वे सिविल सेवा प्रवेश परीक्षा की तैयारी जारी रखने के लिए सरकारी छात्रवृत्ति पर दिल्ली आई थीं.
अंजलि की एक दोस्त लुम्बिनी ने कहा, “मकान मालिक को हमारे स्वास्थ्य, परीक्षा या किसी और चीज़ की परवाह नहीं है. उनके लिए सिर्फ पैसे मायने रखते हैं. अंजलि मर गई और इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा.”
अंजलि मर गई है, लेकिन जिस कमरे में उसने अपनी जान दी, उसमें से उसकी यादें मिट गई हैं और अब वो कमरा नए किराएदार के लिए तैयार है. कोचिंग उद्योग चलता रहेगा. यह किसी के लिए भी नहीं रुकता. जल्द ही उस कमरे में एक नया महत्वाकांक्षी एस्पिरेंट होगा जो फिर से महत्वाकांक्षा की अथक ट्रेडमिल पर दौड़ेगा.
लुम्बिनी ने दूसरे छात्रों के साथ विरोध प्रदर्शन करते हुए कहा, “एक हफ्ते में मकान मालिक दूसरे लोगों को कमरा दिखा देगा. शोषण का चक्र किसी की मौत के बाद भी नहीं रुकता.”
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