उन्होंने क्लास में प्रोजेक्टर घुमाया और स्क्रीन पर झट से एक सवाल नजर आने लगा: ‘मुझे पता है कि यह थोड़ा जल्दी है, लेकिन क्या मैं आपको एक शर्टलेस तस्वीर भेज सकता हूं?’ यह सुनते ही खचाखच भरी क्लास में कॉलेज के तकरीबन 80 छात्र आपस में फुसफुसाने लगे. इंस्ट्रक्टर केविन ली और श्रुति जानी का पूरा ध्यान उन्हीं पर था. उन्होंने छात्रों से पूछा- क्या यह रेड या ग्रीन फ्लैग की स्थिति है या फिर एक ग्रे एरिया है.
ऐप और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए लोगों, खासकर कॉलेज स्टूडेंट के बीच लोकप्रिय होने वाले पारंपरिक डेटिंग में सुरक्षा एक हॉट टॉपिक बन गया है. यही कारण है कि 18-20 साल के सभी युवा छात्रों ने शुक्रवार दोपहर मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज में ‘कॉन्सेंट और सेफ डेटिंग’ पर एक 90 मिनट की वालेंटरी वर्कशॉप में भाग लेने के लिए साइन अप किया. भले ही वो पूरा दिन ‘लेक्चर’ सुनकर थक चुके थे और वीकेंड इंजॉय करना चाहते थे लेकिन वर्कशॉप में उनकी उपस्थिति बता रही थी कि ये टॉपिक उनके लिए उतना ही महत्वपूर्ण है.
वर्कशॉप युवा मीडिया प्लेटफॉर्म ‘युवा और लव मैटर्स’ इंडिया के सहयोग से ऑनलाइन डेटिंग प्लेटफॉर्म टिंडर की एक पहल है. इरादा बिलकुल साफ था- युवाओं को एक सुरक्षित वातावरण में डेटिंग और सहमति के महत्व के बारे में सिखाना.
टिंडर इंडिया की संचार निदेशक अहाना धर ने बताया, ‘इस तरह के टॉपिक्स पर खुली व साफ बहस को सामान्य बनाने और छात्रों के बीच उचित, प्रामाणिक जानकारी पहुंचाने में मदद करने के लिए यह अपनी तरह की पहली पहल है.’
पहली वर्कशॉप में बच्चों की दिलचस्पी देखते हुए तो लगता है कि वे सही रास्ते पर हैं. टिंडर इंडिया के लिए YouGov की एक रिपोर्ट के अनुसार, 65 फीसदी से ज्यादा युवा विदड्रॉ करने या सहमति मांगने में संकोच करते हैं. सर्वे में शामिल 70 फीसदी युवाओं ने महसूस किया कि डेट/पार्टनर के साथ सहमति को लेकर खुलकर चर्चा करने की ज्यादा जरूरत है. जबकि 67 प्रतिशत ने महसूस किया कि इसे औपचारिक रूप से स्कूलों और कॉलेजों में सिखाया जाना चाहिए.
धर ने कहा, ‘हमने पिछले साल एक कन्सेंट कैंपेन शुरू किया था. उसी दौरान हमने यह सर्वे भी किया था. डेटिंग आज के जीवन में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. लोग इससे जुड़ी चेतावनियों के बारे में बात तो करते हैं लेकिन सुरक्षा के बारे में नहीं.’
यह भी पढ़ें: ‘सिटी ऑफ जॉय’ की लाइफलाइन ट्राम के पहियों की रफ्तार हो रही धीमी, विरासत को बचाए रखने की जद्दोजहद जारी
‘फ्लैग’ को समझना
वर्कशॉप का संचालन ‘युवा’ के केविन ली और श्रुति जानी ने किया. उन्होंने इसे ‘उपदेश’ देने की तरह डिजाइन नहीं किया बल्कि छात्रों के साथ बातचीत करने और उन्हें समझने और समझाने के लिए तैयार किया था.
ली ने युवा छात्रों को समझाया, ‘सहमति लेने के लिए होती है न कि उसे बिना कहे अपने दिल से मान लेने के लिए.’
‘शॉर्ट फिल्मों, स्थितियों, संदर्भ, पॉप कल्चर और बॉलीवुड में रिश्तों का चित्रण’ इन्हें लेकर अपनी बात उन तक पहुंचाने के लिए तैयार किया गया था.
स्टूडेंट के ग्रुप बनाए गए और उन्हें अलग-अलग एक्टिविटी करने के लिए दी गयी. प्रेजेंटर्स ने प्रोजेक्टर पर कुछ दृश्य दिखाए. ग्रुप को एक बोर्ड और रंगीन स्टिकी नोट्स दिए गए. बोर्ड को चार हिस्सों में बांटा गया था.
युवा की एडिटर-इन-चीफ ली ने कहा, ‘मैं चाहता हूं कि आप सभी पूछे गए सवालों या बयानों के बारे में विचार करें और उन्हें अपने मुताबिक रेड, ग्रीन और ग्रे फ्लैग में रखते हुए लाल, हरा, पीला पोस्ट-इट नोट लगाएं.’ अगर कोई सिचुएशन ‘कम्पलीट नो-नो’ है, तो छात्रों को बोर्ड पर एक रेट चिट चिपकानी होगी. हरे रंग की चिट का मतलब होगा ‘आगे बढ़ो’ या फिर ‘कोई समस्या नहीं’ है. पीले रंग की चिट ग्रे एरिया के लिए है.
‘शर्टलेस फोटो भेजने’ के सवाल पर मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली और छात्रों के बीच खूब बहस हुई. एक छात्र ने इसे ग्रे एरिया में रखा.
एक लड़के ने कहा, ‘दरअसल हमें वास्तविक सिचुएशन के बारे में नहीं पता है. बातचीत की शुरुआत कैसे की गई, यह जानने के लिए महत्वपूर्ण है कि वे किस तरह के रिश्ते में हैं. इस सीन में स्थिति क्लियर नहीं है.’
तो वहीं दूसरी छात्रा ने इसे ग्रीन फ्लैग दिया. ‘व्यक्ति पहले से पूछ रहा है. यहां सहमति मांगी जा रही है और इसलिए यह एक ग्रीन फ्लैग है.’ लेकिन कई प्रतिभागियों ने इसे रेड फ्लैग के रूप में भी देखा क्योंकि यहां सीमाएं लांघी जा रही हैं.
छात्रों के सामने इस तरह के कई सिचुएशनल बयानों के साथ एक्टिविटी आधे घंटे तक चली. एक-एक करके हर सवाल या सिचुएशन पर कई विचारों के साथ चर्चा की गई.
पहली डेट से जुड़ी एक बातचीत- ‘मैं आपको घर तक छोड़ना चाहता हूं क्योंकि काफी देर हो चुकी है. मुझे थोड़ी चिंता हो रही है’- अधिकांश छात्रों ने इसे ग्रीन फ्लैग दिया. और कहा कि ऐसा करना सेफ है. लेकिन कुछ छात्र ऐसे भी थे जिन्होंने इसे ग्रे और रेड एरिया में रखा.
वर्कशॉप एक सुरक्षित स्थान है. कोई भी सवाल सही या गलत नहीं है. किसी के भी जवाब से उसे आंका भी नहीं जा रहा था. ली ने कहा, ‘लेकिन हम जवाबों के पीछे के तर्क को समझना चाहते हैं.’
टिंडर के सर्वे के मुताबिक, टॉप-5 ग्रीन फ्लैग में एक पार्टनर आपके बारे में क्या महसूस करता है, इसके बारे में साफतौर पर बताना, अपने आपको कम्फर्टेबल महसूस करना, समय को अहमियत देना, रिलेशन की सीमाओं पर चर्चा करना और उनकी कमजोरियों को उजागर करना शामिल है.
इसके उलट टॉप-5 रेड फ्लैग में व्यक्तिगत/अंतरंग फोटो के लिए पूछना, किसी व्यक्ति के हितों या आस्था का मजाक उड़ाना, किसी को चुप करना, सहानुभूति की कमी और पार्टनर के कहने के बावजूद मिलने के बजाय फोन पर चैट करना शामिल है.
ली ने कहा, ‘Gen-Zs और युवा मिलेनियल्स अक्सर सहमति के बारे में बातचीत करने की जरूरत के बारे में जानते हैं क्योंकि वे इंटरनेट पर बड़े हुए हैं. लेकिन ऑफलाइन दुनिया में उन्हें इसका इतना समर्थन नहीं मिलता है. उन्हें यहां इसके बारे में खुलकर बात करने से रोका जाता है. हमारे संस्थानों को युवा लोगों के लिए बेहतर करने की जरूरत है.’ उन्होंने बताया कि ‘युवा’ का मिशन युवाओं को कम अकेलापन महसूस कराना है.
यह भी पढ़ें: तमिल गौरव, ‘नरम’ हिंदुत्व, मोदी सरकार की योजनाएं- BJP की तमिलनाडु में सेंध लगाने की कोशिश
पॉपुलर कल्चर का असर
वर्कशॉप ने सामाजिक रीति-रिवाजों और लोकप्रिय संस्कृति के बीच मतभेदों के बारे में भी बातचीत की. धर ने कहा, ‘अक्सर भारतीय पॉप संस्कृति में विचारों का महत्व नहीं होता है, बच्चे फिल्मों, गानों में जो दिखाया जाता है, उसका अनुसरण करने लगते हैं. वास्तविक जीवन में जिस चीज की जरूरत है या जो हो रहा है यह उससे परे हो सकता है.’
कई छात्रों ने बताया कि फिल्मों में ज्यादातर भारतीय सुपरहिट फिल्मों में सहमति सतही तौर पर होती है. फिल्म का हीरो कभी भी हीरोइन और उसकी इच्छाओं पर ध्यान नहीं देता बल्कि अपनी मर्जी उस पर थोपता नजर आता है.
इस बात पर जोर देते हुए जानी ने कहा कि ऐसा व्यवहार स्वीकार्य नहीं है. लेकिन जानी ने यह सुझाव कतई नहीं दिया कि छात्र लोकप्रिय संस्कृति या फिल्मों को ब्लॉक कर दें. जानी ने कहा, ‘दरअसल विचार आपको यह समझाने के लिए है कि सहमति क्या होती है. इसलिए आगे बढ़ें और अगर आप फिल्में देखना चाहते हैं तो जरूर देखें, लेकिन सही को गलत से अलग करना हमेशा ध्यान में रखें.’
टिंडर इंडिया को महाराष्ट्र के कई कॉलेजों में अगले तीन महीनों के लिए पायलट आधार पर अधिक सत्र आयोजित करने की उम्मीद है. धर ने कहा, ‘यह सब कई कारकों पर निर्भर करता है- कॉलेजों से अनुमति और हमें मिलने वाली प्रतिक्रिया. और यह भी उम्मीद है कि शायद अगले साल पहली तिमाही में हम कुछ ऐसा करें जो बिना किसी स्थान की कमी के भी सुलभ हो सके.’
अधिकांश छात्र इस सत्र से काफी खुश थे. खुले तौर पर एक बुजुर्ग के साथ सहमति, डेटिंग और रिश्ते के मुद्दों पर बात करना अजीब है. लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं था. छात्रों ने कहा कि वास्तव में इस सेशन के दौरान इंस्ट्रक्टर ने हमें जो माहौल मुहैया कराया, वह आमतौर पर दोस्तों के साथ भी नहीं मिल पाता है. यहां हमने खुलकर अपनी बात रखी.
(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य | संपादन: कृष्ण मुरारी)
(इस फीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: मस्तराम, सविता भाभी से सुबोध भैया तक: हिंदी इरोटिका की दुनिया कुछ यूं बदली