scorecardresearch
Thursday, 26 December, 2024
होमफीचरथिंक टैंक वॉर रूम की तरह हैं, भारतीय राजनीतिक दल 2024 की इन तैयारियों में जुटे

थिंक टैंक वॉर रूम की तरह हैं, भारतीय राजनीतिक दल 2024 की इन तैयारियों में जुटे

नेशन विद नमो, वाराहे एनालिटिक्स, इनक्लूसिव माइंड्स और कई अन्य राजनीतिक दल – बीजेपी से लेकर कांग्रेस, आप, बीजेडी, एनसीपी, एसपी, डीएमके और टीएमसी के लिए डेटा इकट्ठा करने के लिए चौबीसों घंटे काम करते हैं.

Text Size:

कांग्रेस की कर्नाटक जीत के अगले दिन, इन्क्लूसिव माइंड्स नामक एक नागरिक समूह ने ट्विटर पर एक वीडियो पोस्ट किया. 70 सेकंड की ये क्लिप बहुत एनर्जेटिक थी, जिसमें तेज़ संगीत, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के शॉट्स और अंधेरे बैकग्राऊंड में धुंधली होती मोदी-शाह की तस्वीरें थीं. संदेश स्पष्ट था – कांग्रेस की ज़मीनी स्तर की राजनीतिक मशीनरी काम कर रही है.

‘कर्नाटक व्हाईट कॉलर वाले व्यक्तियों के दृष्टिकोण में विश्वास करता है’ शीर्षक वाली क्लिप विशेष रूप से कांग्रेस पार्टी के लिए काम करने के लिए प्रमुख कॉलेजों से भर्ती किए गए युवा पुरुषों और महिलाओं के लगातार और कठोर प्रयासों का परिणाम थी. उनके कार्यों में ब्रांड निर्माण, इमेज पुनरुत्थान और अधिक जीत हासिल करना शामिल है.

हालांकि, राजनीतिक दलों का अपने चुनाव अभियानों को आकार देने के लिए पेशेवर सलाहकारों पर भरोसा करना कोई नई घटना नहीं है, लेकिन उद्योग वर्तमान में एक महत्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रहा है. पार्टियां अब अपने-अपने भीतर विशेषज्ञों की टीमें गठित कर रही हैं. उद्योग जगत के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के अलावा बीजू जनता दल (बीजेडी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), समाजवादी पार्टी (एसपी), द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) जैसी पार्टियां भी इस चलन में शामिल हो रही हैं. उन्होंने या तो राजनीतिक रणनीतिकारों को शामिल कर लिया है या छोटे स्वतंत्र निजी सलाहकारों को शामिल कर लिया है. उद्योग सूत्रों के अनुसार, इनमें से कई टीमें अभी भी नोन-ऑपरेशनल नामहीन संस्थाएं हैं.

शोटाइम कंसल्टिंग के संस्थापक और प्रशांत-किशोर के नेतृत्व वाले सिटीजन्स फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (सीएजी) जिसने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी का अभियान भी संभाला था के संस्थापक सदस्यों में से एक रॉबिन शर्मा कहते हैं, “इन-हाउस राजनीतिक परामर्शों का विकास उद्योग की स्वाभाविक प्रगति है.” उन्होंने आगे कहा, “आखिरकार, हर कोई ऐसी टीम चाहेगा जो वैचारिक रूप से पार्टी के साथ जुड़ी हो.”

इनक्लूसिव माइंड्स कथित तौर पर कांग्रेस से जुड़ा हुआ है, जबकि वाराहे एनालिटिक्स और नेशन विद नमो बीजेपी के साथ जुड़े हैं. आप के पास भी एक समर्पित टीम है जो पार्टी की लोकप्रियता को बढ़ाने और चुनावी योजनाओं के लिए टाइम-टू-टाइम फीडबैक इकट्ठा करने पर काम करती है.

हालांकि, इन आंतरिक टीमों को लेकर रहस्य का माहौल बरकरार है. इन्हें अक्सर गुप्त रखा जाता है या पार्टी के सोशल मीडिया या आईटी विंग के रूप में छिपाया जाता है. भाजपा और कांग्रेस की अंदरूनी टीमें यह दावा करके पार्टी से दूरी बनाए रखती हैं कि वे केवल पार्टी की विचारधारा के साथ “गठबंधन” करते हैं.

इन परामर्शियों की स्वामित्व संरचना और वित्त पोषण स्रोत अस्पष्ट हैं. वे कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के साथ निजी संस्थाओं के रूप में रजिस्टर्ड हैं और उनमें से अधिकांश का उन पार्टियों के साथ ऑफिशियल ऑन-पेपर कॉन्ट्रैक्ट नहीं है जिनकी वो सेवा करते हैं.

दिप्रिंट ने विभिन्न पक्षों के कई इन-हाउस कंसल्टेंसी के वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों से बात की, लेकिन कई ने अपने वर्तमान या पूर्व कंपनियों के संभावित नतीजों के बारे में ऑन-रिकॉर्ड कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

न तो इन-हाउस राजनीतिक परामर्श फर्मों और न ही निदेशकों और प्रबंधकों के रूप में उनका नेतृत्व करने वाले व्यक्तियों ने दिप्रिंट के सवालों का जवाब दिया.

दिप्रिंट ने कॉमेंट के लिए राजनीतिक दलों से भी संपर्क किया. बीजेपी और आप ने कोई जवाब नहीं दिया. उनके जवाब आने के बाद इस खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.


यह भी पढ़ें: मोदी को इंदिरा गांधी से सीखना चाहिए, मणिपुर में बीरेन सरकार कोई समाधान नहीं बल्कि खुद एक समस्या है


ट्रेंडसेटर बीजेपी

वाराहे एनालिटिक्स और नेशन विद नमो के साथ बीजेपी इस खेल में सबसे आगे है. उन्होंने युवा वकीलों, इंजीनियरों और सामाजिक वैज्ञानिकों से युक्त गतिशील टीमें इकट्ठी की हैं. उनकी प्राथमिक भूमिका भाजपा को विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवारों के प्रदर्शन और जनता की धारणा पर अंतर्दृष्टि प्रदान करना है.

सूत्रों ने कहा कि वराहे एनालिटिक्स नोएडा, मुंबई और बेंगलुरु में काम करती है और चंडीगढ़, रांची और भुवनेश्वर में कंपनी का विस्तार करने की प्रक्रिया में है. संगठन में राजनीतिक खुफिया, अनुसंधान, विश्लेषण, अभियान और मीडिया और संचार जैसे विभिन्न कार्यक्षेत्र हैं.

उनके कार्यक्षेत्र में पार्टी को सूचित चुनावी निर्णय लेने में समर्थन देने के लिए बड़ी मात्रा में प्राथमिक और माध्यमिक डेटा एकत्र करना और उसका विश्लेषण करना शामिल है. इसके अतिरिक्त, ये टीमें सांसदों के साथ मिलकर काम करती हैं, बिल और विधायी संक्षिप्त विवरण तैयार करने में सहायता करती हैं.

नाम न छापने की शर्त पर एक कर्मचारी ने बताया, “राजनीतिक परामर्श सिर्फ चुनाव जीतने के बारे में नहीं है, बल्कि एक ही एजेंडे को ध्यान में रखते हुए देश को चलाने में सरकार की सहायता करना भी है.”

सीमित ऑनलाइन उपस्थिति के बावजूद, नेशन विद नमो और वाराहे एनालिटिक्स दोनों ने राजनीतिक रूप से प्रेरित छात्रों को आकर्षित किया है. इसीलिए कॉलेज परिसर इन संगठनों के मुख्य शिकारगाह हैं. वे लिंक्डइन पर वैकेंसी के बारे में पोस्ट तो करते हैं, लेकिन यह मौखिक प्रचार है जिसने उन्हें आईआईटी, आईआईएम और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (एनएलयू) जैसे संस्थानों के छात्रों के बीच लोकप्रिय बना दिया है.

वराहे के एक पूर्व कर्मचारी के अनुसार, युवा ग्रुजेएट्स के लिए राजनीतिक परामर्श का क्षेत्र लगभग छह से सात साल पहले विकसित हुआ था, लेकिन पिछले तीन से चार वर्षों में इसमें तेजी आई है. “(ये) कंपनियां अब शीर्ष कॉलेजों में जाती हैं, जहां राजनीति की अच्छी समझ रखने वाले वैचारिक रूप से प्रेरित छात्रों को अच्छी सैलरी के आधार पर चुना जाता है.”

चयन के लिए वैचारिक संरेखण “पहला फिल्टर” है. उदाहरण के लिए, नेशन विद नमो ने अंतिम वर्ष के छात्रों के लिए ग्रेजुएट इम्पैक्ट लीडरशिप प्रोग्राम लॉन्च किया है. हालांकि, वेबसाइट स्पष्ट रूप से भाजपा के साथ संगठन की संबद्धता का उल्लेख नहीं करती है.

लिंक्डइन पर, इसमें राजनीतिक सलाहकारों के लिए नौकरी के अवसर हैं और यह खुद को “श्री नरेंद्र मोदी के न्यू इंडिया मूवमेंट के बारे में जागरूकता पैदा करने और भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए अखिल भारतीय नागरिक सहभागिता मंच” के रूप में दर्शाता है. कुछ पोस्ट में इसने खुद को “भारत के अग्रणी राजनीतिक परामर्श संगठन” के रूप में संदर्भित किया है जो “2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों सहित विभिन्न महत्वपूर्ण चुनाव अभियानों का अभिन्न अंग रहा है”.

2018 में स्थापित और दिल्ली में स्थित नेशन विद नमो, विभिन्न राज्यों में भाषण और सामग्री लेखकों, मीडिया सहयोगियों और राजनीतिक सलाहकारों की तलाश कर रहा है, जिनके वर्किंग कॉन्ट्रैक्ट अप्रैल 2024 तक बढ़ाए जा रहे हैं.

वराहे एनालिटिक्स का कहना है कि यह एक राजनीतिक परामर्श फर्म है जो एक ‘राष्ट्रीय पार्टी’ के साथ काम करती है. यह चुनावी अभियानों का प्रबंधन करने, शासन प्रतिक्रिया प्रदान करने, नीति निर्माण और विश्लेषण में सहायता करने का दावा करता है. यह तीन चुनावों – 2021 में असम और 2022 में गोवा और उत्तराखंड में भाजपा के लिए अभियानों के प्रबंधन और कार्यक्रमों के आयोजन का दावा करता है. इसने भाजपा के गोवा घोषणापत्र को डिजाइन और लॉन्च किया, उत्तराखंड में आभासी रैलियों का आयोजन किया, हरिद्वार में एक रोड शो आयोजित किया और पार्टी के नेताओं के लिए भाषण के मुख्य बिंदु प्रदान किए.

लेकिन वराहे में नौकरी पाना आसान नहीं है. पिछले साल, पॉलिसी, पॉलिटिक्स एंड गवर्नेंस फाउंडेशन (पीपीजीएफ) नामक एक संबंधित संगठन ने वराहे में वैकेंसी के बारे में पोस्ट किया था. उम्मीदवारों से कर्नाटक में पिछले तीन विधानसभा चुनावों की व्याख्या करने और अन्य सवालों के अलावा कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले छात्रों के लिए राष्ट्रव्यापी नकद हस्तांतरण योजना की लागत का विश्लेषण करने के लिए कहा गया था.


यह भी पढ़ें: कांग्रेस और बसपा साथ आए तो सपा को नुकसान होगा, बदल सकती है उत्तर भारत की राजनीति


कांग्रेस के ‘दिमाग की उपज’

हैदराबाद में मुख्यालय, इन्क्लूसिव माइंड्स की स्थापना 2022 की शुरुआत में हुई थी. इसकी वेबसाइट कहती है कि यह “कांग्रेस के साथ जुड़ा हुआ है”, जबकि सोशल मीडिया पर, यह खुद को “भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मूल्य के आधार भारत के धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक भविष्य के लिए नागरिकों की सामूहिक लड़ाई” के रूप में संदर्भित करता है.

इनक्लूसिव माइंड्स भी डेटा एनालिटिक्स, राजनीतिक रणनीति, विकास और प्रदर्शन विपणन, अनुसंधान और संचार जैसे कार्यक्षेत्र चलाता है. यह चुनाव प्रचार में ग्राहकों की सहायता करता है, ज़मीनी स्तर की रणनीतियों को लागू करता है और नीति और शासन संबंधी सलाह प्रदान करता है. हालांकि, कांग्रेस अब तक इसकी एकमात्र ग्राहक रही है.

संगठन 20 ग्रेजुएट्स को राजनीति और चुनाव में 12 महीने की नेहरू फेलोशिप प्रदान करता है. इसका उद्देश्य राजनीतिक परामर्श के लिए काम करने का ‘व्यावहारिक अनुभव’ और चुनावी वॉर रूम का हिस्सा बनने का अवसर प्रदान करके युवा प्रतिभाओं को फर्म की विचारधारा की ओर आकर्षित करना है.

नाम न बताने की शर्त पर एक अन्य अधिकारी ने कहा, “इनक्लूसिव माइंड्स ने हर चुनावी राज्य में टीमें गठित की हैं. वे सर्वेक्षणों, फील्ड रिपोर्टों और प्रभावशाली लोगों से बात करके डेटा एकत्र करते हैं. सभी ज्ञान का उपयोग अभियानों को डिजाइन करने और उम्मीदवार के चयन के लिए किया जाता है.”

कांग्रेस की डेटा एनालिटिक्स टीम के प्रमुख प्रवीण चक्रवर्ती बताते हैं कि कैसे चुनाव प्रचार रणनीतिक हो गया है और राजनीतिक दलों को विकसित होने की जरूरत है.

वे कहते हैं, “ऐसी मान्यता है कि राजनीतिक दलों को चुनावों के लिए विशेष कौशल सेट की आवश्यकता होती है, लेकिन कांग्रेस जैसी परंपरागत रूप से उम्मीदवार-संचालित पार्टी के लिए कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर बाहरी परामर्श कंपनियां काम नहीं करती हैं.”

ऐसी पार्टियों में उम्मीदवार अपनी टीम बनाते हैं और अपना फंड जुटाते हैं. उनका कहना है कि बाहरी सलाहकार तभी काम करते हैं जब निर्णय लेने की प्रक्रिया केंद्रीकृत होती है.

उनकी टीम ज़मीनी स्तर से मिले इनपुट का विश्लेषण करती है और चुनाव न होने पर भी कांग्रेस नेतृत्व को मुद्दों और उम्मीदवारों के बारे में फीडबैक देती है. उनका कहना है कि यह “फ्री टाइम” (गैर-चुनाव) कार्य “युद्ध समय” (चुनाव) गतिविधियों से अधिक महत्वपूर्ण है.


यह भी पढ़ें: सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को AIMPLB की दया पर छोड़ दिया है, UCC लाएं लेकिन पहले हमसे बात तो करें


अन्य लोग भी दौड़ में शामिल

आप और टीएमसी की अपनी आंतरिक टीमें भी हैं जो राजनीतिक खुफिया जानकारी इकट्ठा करती हैं. हालांकि, भाजपा और कांग्रेस के विपरीत, इन टीमों की अलग पहचान या विशिष्ट नाम नहीं हैं.

एक सलाहकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि AAP की 200 से अधिक लोगों की टीम का प्रबंधन पंजाब से राज्यसभा सांसद संदीप पाठक द्वारा किया जाता है, जबकि टीएमसी की लगभग 20-25 लोगों की टीम पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बन्रजी को रिपोर्ट करती हैं. सलाहकार ने बताया, “लेकिन ये (टीमें) या को पार्टियों के आईटी या सोशल मीडिया विंग के साथ एकीकृत हैं.”

दिप्रिंट ने इस बारे में टिप्पणी के लिए पाठक और बनर्जी से संपर्क किया था, लेकिन उन्होंने जवाब नहीं दिया.

उद्योग सूत्रों ने कहा कि एसपी, एनसीपी, बीजेडी और डीएमके जैसी पार्टियों के पास भी छोटी टीमें हैं. ओथमैन कंसल्टेंसी के संस्थापक वकार उस्मानी कहते हैं, “सलाहकारों और स्वयंसेवकों को पार्टी के शीर्ष नेताओं के अधीन काम करने के लिए लाया जाता है. इसीलिए ऐसी टीमों को कोई नाम नहीं दिया गया है.” ओथमैन पहले महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी की एक टीम के साथ काम करती थी और अब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के साथ है.

जबकि सपा के मुख्य कार्यालय ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. एनसीपी के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि टीम वर्तमान में नॉन-ऑपरेशनल है. हालांकि, पार्टी एक एकीकृत, इन-हाउस राजनीतिक परामर्श विकसित करना चाहती है.

एनसीपी के नेता ने कहा, “एनसीपी में प्रत्येक नेता की अपनी टीम है. यह अभी भी बहुत खंडित है.”

तमिलनाडु में डीएमके ने अतीत में चुनाव प्रचार का काम राजनीतिक रणनीतिकारों को आउटसोर्स किया था. हालांकि, अन्ना नगर विधायक कार्तिक मोहन के नेतृत्व वाली वन माइंड जेनरेशन रिसर्च फाउंडेशन नामक एक निजी, गैर-लाभकारी कंपनी कथित तौर पर पार्टी के लिए रणनीति बनाती है. मोहन डीएमके की आईटी विंग के राज्य उप सचिव भी हैं. 2021 तक फाउंडेशन के निदेशक त्रिची विधायक महेश अंबिल पोय्यामोझी थे, जो सीएम एमके स्टालिन के करीबी हैं. सरकारी रिकॉर्ड में इसकी सक्रिय स्थिति के बावजूद, फाउंडेशन के वर्तमान कार्य की प्रकृति अस्पष्ट बनी हुई है.

दिप्रिंट ने मोहन और डीएमके के संगठनात्मक सचिव आरएस भारती से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. फाउंडेशन की ईमेल आईडी पर भेजे गए सवालों के भी जवाब नहीं आए थे.

ओडिशा में बीजू जनता दल (बीजेडी) ने भी सांसदों की सहायता के लिए पार्लियामेंट्री रिसर्च पहल (पीआरआई) नामक एक संगठन के साथ प्रयोग किया, लेकिन इसका कार्यक्षेत्र रिसर्च हेल्प प्रदान करने तक ही सीमित था.

संस्थापक और निदेशक अंशुमान शर्मा जो स्वतंत्र परियोजनाएं भी चलाते हैं, ने कहा, “पीआरआई की शुरुआत 2019 में नवनिर्वाचित सांसदों की मदद के लिए वकीलों और नीति विशेषज्ञों की एक छोटी टीम के साथ की गई थी और इसे पार्टी द्वारा वित्त पोषित किया गया था. लेकिन संस्थापक सदस्य अब स्वतंत्र रूप से ग्लोबल पॉलिसी रिसर्च फाउंडेशन चलाते हैं.”

बीजेडी के राज्यसभा सांसद सुजीत कुमार बताते हैं कि पीआरआई चुनावी रणनीति, प्रबंधन या परामर्श में नहीं था. “यह वैसा ही है जैसा LAMB फेलो करते हैं. यह पूरी तरह से स्वैच्छिक है और अगर सांसदों को मदद की जरूरत होगी तो वे मदद के लिए पहुंचेंगे.”

कुमार ने कहा कि बीजेडी एक लचीले मॉडल पर काम करती है, अपनी पहुंच को अनुकूलित करने के लिए घरेलू और बाहरी दोनों टीमों का उपयोग करती है.

कुमार ने समझाया, “चुनाव प्रबंधन एक विज्ञान बन गया है. हालांकि, हमारे पास एक विशाल इन-हाउस आईटी और सोशल मीडिया टीम है, बहुत सारे विशिष्ट कार्य भी आउटसोर्स किए जाते हैं, विशेष रूप से सर्वे करना और खुफिया जानकारी एकत्र करना. आप बड़े डेटा का प्रबंधन कैसे करते हैं? वोटिंग पैटर्न देखने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता का कैसे उपयोग करते हैं? आपको संसाधनों, ट्रेनिंग और अनुभव की आवश्यकता है. किसी भी पार्टी के लिए पूरी तरह से घरेलू टीम रखना संभव नहीं हो सकता है.”

पीआरआई की शुरुआत करने वाले बीजेडी के आईटी विंग के प्रमुख अमर पटनायक टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे.


यह भी पढ़ें: डिफेंस PSUs बिना नेतृत्व के हैं, सत्ता के लिए संघर्ष राष्ट्रीय सुरक्षा को चोट पहुंचा रहा है


धुंधला पहलू

जबकि राजनीतिक परामर्श निस्संदेह रणनीति बनाने का एक अभिन्न अंग बन गया है, पार्टियां अपनी घरेलू इकाइयों से सुरक्षित दूरी बनाए रखना पसंद करती हैं और इन फर्मों के साथ सीधे जुड़ाव से बचना पसंद करती हैं.

उदाहरण के लिए, नेशन विद नमो के झुकाव के बारे में कोई संदेह नहीं है, लेकिन इस पर कोई सार्वजनिक जानकारी नहीं है. सूत्रों का कहना है कि यह एसोसिएशन ऑफ बिलियन माइंड्स (एबीएम) का री-ब्रांडेड संस्करण है, जो अतीत में बीजेपी से जुड़ा रहा है. टीएमसी के राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने 2018 में इसकी फंडिंग के स्रोत पर सवाल उठाए थे.

यह भी स्पष्ट नहीं है कि नेशन विद नमो एक अलग इकाई के रूप में पंजीकृत है या नहीं. हालांकि, कथित तौर पर प्रभारी व्यक्ति नोएडा के एमिटी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता स्नातक हिमांशु सिंह है, जो पहले सीएजी में प्रशांत किशोर के अधीन काम करते थे, एबीएम से जुड़े थे, और फिर पार्टी की 2015 के बिहार चुनाव में हार के बाद विशेष रूप से भाजपा के साथ काम करना शुरू कर दिया. उनके लिंक्डइन प्रोफाइल में लिखा है कि वे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ काम करने वाले एक राजनीतिक सहयोगी हैं.

एक पूर्व कर्मचारी ने कहा, “हिमांशु नेशन विद नमो के प्रबंध निदेशक हैं और सीधे पार्टी के शीर्ष नेताओं को रिपोर्ट करते हैं.”

दूसरी ओर, वराहे एनालिटिक्स को व्यावसायिक गतिविधियों के लिए 26 अगस्त 2021 को चेन्नई में शामिल किया गया था. कंपनी का संचालन रंगेश श्रीधर द्वारा किया जाता है, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे 2014 से भाजपा से जुड़े हैं और इसके निदेशकों – पत्नी धन्या, पिता उरुप्पात्तूर कृष्णास्वामी और सुरेश श्रेयस भारद्वाज द्वारा सूक्ष्म प्रबंधन किया जाता है.

दिप्रिंट ने भारद्वाज से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. श्रीधर ने एक जवाब दिया, लेकिन घरेलू मुद्दों का हवाला देते हुए आगे बात करने से इनकार कर दिया.

वराहे के एक पूर्व कर्मचारी के अनुसार, वराहे के शीर्ष नेता और निदेशक आधिकारिक तौर पर भाजपा का हिस्सा नहीं हैं. “वे राजनीति से प्रेरित पेशेवर हैं जो हिंदुत्व की विचारधारा साझा करते हैं.”

नेशन विद नमो और वाराहे का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति इन संगठनों द्वारा एकत्र की गई खुफिया जानकारी और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बीच एक कड़ी के रूप में काम करते हैं. जहां नेशन विद नमो उत्तरी राज्यों पर ध्यान केंद्रित करता है, वहीं वराहे की जड़ें दक्षिणी राज्यों में गहरी हैं.

पिछले साल इनक्लूसिव माइंड्स की स्थापना के समय, कांग्रेस ने चुनाव रणनीतिकार सुनील कनुगोलू को अपने पाले में आते देखा. कनुगोलू सीएजी और एबीएम के संस्थापक सदस्य थे और उनके नाम कई चुनावी जीत दर्ज हैं. वे एक निजी कंसल्टेंसी फर्म, माइंडशेयर एनालिटिक्स चलाते थे, जो कथित तौर पर इनक्लूसिव माइंड्स के साथ एकीकृत हो गई है.

सूत्रों के अनुसार, राजनीतिक परामर्श उद्योग का प्रबंधन कुछ व्यक्तियों द्वारा किया जाता है जिन्होंने सीएजी और बाद में भारतीय राजनीतिक कार्रवाई समिति (आई-पैक) की शुरुआत की. माइंडशेयर कानुगोलु के तहत एबीएम से अलग हो गया और माइंडशेयर के आगे द्वि-विभाजन के कारण वाराहे की शुरुआत हुई.

एक चुनाव परामर्श फर्म पोलिटिक मार्केर के संस्थापक, एबिन थीपुरा कहते हैं, “इन-हाउस कंसल्टेंसी फर्म पार्टियों द्वारा बनाई और वित्त पोषित की जाती हैं, लेकिन उनके स्वामित्व में नहीं होती हैं. [इन फर्मों] के पास एक विशिष्टता खंड है… वे किसी और के साथ काम नहीं कर सकते हैं. [उन्हें] पार्टी नेतृत्व के प्रति वफादार रहना चाहिए,” , .

अंतर्निहित अपील

2014 में भाजपा की शानदार जीत ने अधिक रणनीतिक रूप से लड़ी गई राजनीतिक लड़ाई के लिए रास्ता तैयार किया. यह एक विजयी रणनीति थी जिसने राजनीतिक रूप से उत्साही और वैचारिक रूप से प्रेरित युवाओं के लिए करियर के नए अवसर पैदा किए. ये युवा व्यक्ति चुनावी युद्ध कक्षों की अराजक दुनिया में गोता लगाने, धूप सेंकने और राजनीतिक खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए उत्सुक थे. 2018-19 में ऐसी फर्मों के प्रसार ने इस युवा समूह के लिए काम के दायरे को और बढ़ा दिया.

एक फर्म के एक कर्मचारी का कहना है, “युवा राजनीतिक रूप से जिज्ञासु होते हैं. इस क्षेत्र में काम करने से एक उद्देश्य की पूर्ति होती है. आपको लगता है कि आप देश में बदलाव ला रहे हैं और उस चीज़ में योगदान दे रहे हैं जिस पर आप विश्वास करते हैं और यदि आप अच्छा वेतन कमाते हैं, तो यह एक जीत की स्थिति है.”

कर्मचारी ने आगे कहा, इन-हाउस पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में काम इस धारणा को चुनौती दे रहा है कि सरकार के लिए काम करने का एकमात्र तरीका सरकारी नौकरी है. “हम उस मानसिकता को बदलना चाहते हैं. ऐसे कई प्रतिभाशाली लोग हैं जो न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि देश के विकास में भी योगदान दे सकते हैं.”

ये राजनीतिक परामर्श कंपनियां कॉर्पोरेट नौकरियों के बराबर वेतन की पेशकश कर रही हैं और डेटा एनालिटिक्स से लेकर इवेंट मैनेजमेंट और राजनीतिक दलों के लिए अभियान डिजाइन तक विभिन्न क्षेत्रों में अनुभव प्रदान कर रही हैं.

I-PAC के एक पूर्व सलाहकार का कहना है, “यह रोमांचकारी होता है जब आप जो कुछ लिखते हैं उसे एक रैली के दौरान एक प्रमुख नेता द्वारा पढ़ा जाता है और वह सुर्खियां बन जाता है. या जब आपके द्वारा डिज़ाइन किया गया घोषणापत्र बजट में वादों को मंजूरी देता है. आपको यह जानकारी मिलती है कि सार्वजनिक नीतियां कैसे बनाई जाती हैं और राजनीतिक निर्णय लोगों के जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं. आपको ऐसा लगता है जैसे आप समाज में बदलाव ला रहे हैं. इस तरह का अनुभव आपको किस नौकरी में मिलेगा?”

एक्सेल शीट, पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन, निर्वाचन क्षेत्र रिपोर्ट और युवा सलाहकारों द्वारा सर्वेक्षण के निष्कर्ष अत्यधिक चार्ज किए गए राजनीतिक अभियानों को आकार देते हैं. थ्री-डी रैलियों से लेकर ‘खाट सभा’ और ‘चाय पे चर्चा’ तक, राजनीतिक दिग्गजों की छवि निर्माण इन युवा पुरुषों और महिलाओं के दिमाग की उपज है जिन्होंने पिछले दशक में राजनीतिक क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत की है.

शर्मा, जिन्होंने पीएम मोदी के ‘चाय पर चर्चा’ अभियान को डिजाइन किया था, ने कहा, “हर कोई राजनीति पर चर्चा करता है और मुद्दे हर चुनाव में समान रहते हैं. चाय की दुकानों और सैलूनों पर लोग इनके बारे में बात करते हैं. जब हम अभियान डिज़ाइन करते हैं, तो हम चाहते हैं कि उम्मीदवार उस बातचीत का हिस्सा बनें. हम चाहते हैं कि लोगों से जुड़ें.”

राजनीतिक दल अब विचार-मंथन के लिए घरेलू टीमों को काम पर रख रहे हैं, उद्योग परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है. हालांकि, केवल समय ही बताएगा कि क्या ये टीमें किसी पार्टी या उम्मीदवार के लिए काम करने वाली बाहरी मशीनरी की कठोरता का मुकाबला कर सकती हैं.

चक्रवर्ती भारतीय राजनीति में पेशेवर कौशल सेट के लाभों को स्वीकार करते हैं, लेकिन केवल व्यावसायिक हितों के लिए चुनाव और राजनीति को नया रूप देने के प्रति आगाह करते हैं. उन्होंने चेतावनी दी, “एक राजनीतिक दल का विचार ऐसे लोगों को शामिल करना है जो आपकी विचारधारा, नेतृत्व और कार्य के समर्थक हों. यदि हम उस संरचना को दरकिनार करते हैं और राजनीति के विचार का व्यवसायीकरण करते हैं, तो हम बहुत गलत रास्ते पर जा रहे हैं. यह लंबी अवधि में नुकसानदेह हो सकता है.”

थीपुरा का कहना है कि इसके बावजूद, राजनेताओं को अनुसंधान और रणनीति के लिए अभी भी पेशेवरों की आवश्यकता होगी. उन्होंने कहा, “इन-हाउस टीमें अपनी ही पार्टियों की आलोचना करने का जोखिम नहीं उठाना चाहतीं. उनके पास अपने निष्कर्षों की दोबारा जांच करने के लिए कोई तंत्र नहीं हो सकता है. बाहरी टीमों को रचनात्मक प्रतिक्रिया, आलोचना और समाधान प्रदान करने के लिए भुगतान किया जाता है. इसके अलावा, बहुत सी पार्टियां परिवर्तन के प्रति प्रतिरोधी हैं और अभी भी पारंपरिक सोच पर कायम हैं, लेकिन राजनीतिक परामर्श उद्योग धीरे-धीरे विकसित हो रहा है. वरिष्ठ नेता इन बदलावों को स्वीकार कर रहे हैं.”

पार्टी के भीतर और उसके उम्मीदवारों के बीच तटस्थता बनाए रखना इन-हाउस फर्मों के लिए एक और मुद्दा हो सकता है. इनक्लूसिव माइंड्स के सलाहकार शशांत शेखर कहते हैं, “यदि राजनेताओं को इन-हाउस सेल का नियंत्रण दिया जाता है, तो अन्य नेता जो उस राजनेता के साथ नहीं मिलते हैं, वे उस टीम के सुझावों को स्वीकार नहीं कर सकते हैं. इसका असर पूरी टीम के काम पर पड़ेगा.”

जैसे-जैसे राजनीतिक दल अपनी आंतरिक टीमें स्थापित करते हैं, आगामी चुनाव उनकी सफलताओं और विफलताओं का प्रतिबिंब होंगे. तब तक, राजनीतिक सलाहकार राजनीतिक कथानक को आकार देते रहेंगे.

जैसा कि इनक्लूसिव माइंड्स के एक वर्तमान कर्मचारी कहते हैं,“नेता को बोलना क्या है, वो नेता नहीं कोई और फैसला कर रहा है.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘मोदी-बाइडेन के ‘मूल्यों’ की बात करने का एक ही लक्ष्य है, लोकतंत्र के उद्देश्यों को मजबूत करना’, है न?


 

share & View comments