चेन्नई: छह साल पहले, जब जिया कुमारी बिहार में अपने पैतृक गांव गई थीं, तो उनकी तमिल भाषा की धाराप्रवाहता उनके रिश्तेदारों के लिए ईर्ष्या का कारण बन गई. उन्हें लगा कि जिया और उनकी बहनें जानबूझकर ऐसी भाषा में बात करके उन्हें परेशान कर रही हैं, जो उन्हें समझ में नहीं आती.
चेन्नई के बाहरी इलाके पल्लवरम के पास अपने एक कमरे के घर में बैठी उनकी बड़ी बहन 17 साल की रिया ने दिप्रिंट से कहा, “सच तो यह है कि तमिल भाषा तो बस फ्लो में आ जाती है.”
करीब 17 साल पहले बिहार से पलायन करने वाले एक दिहाड़ी मजदूर की बेटी जिया हाल ही में दसवीं कक्षा की तमिल परीक्षा में टॉप करने के बाद सुर्खियों में आई थीं. जल्द ही, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने भारतीय भाषा समर कैंप में जिया की उपलब्धि का ज़िक्र किया. प्रधान ने इस कार्यक्रम को तमिल में 100 में से 93 नंबर लाने के लिए जिया को समर्पित किया. उनका यह बयान डीएमके सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कुछ पहलुओं को लागू करने से इनकार करने पर केंद्र और तमिलनाडु के बीच तीखी नोकझोंक के बीच आया है. राज्य तीन-भाषा नीति को हिंदी थोपने की कोशिश के तौर पर देखता है.”
16 साल की जिया कुमारी अपने घर के दरवाजे पर गर्व से खड़ी हैं, जिस पर पारंपरिक कोलम डिजाइन किए गए हैं, यह एक ऐसा हुनर है जो उन्होंने अपने परिवार के तमिलनाडु में आने के बाद सीखा.
बहनें हिंदी थोपे जाने के सख्त खिलाफ खड़ी थीं. सुप्रिया ने कहा, “यहां के लोगों से यह उम्मीद करना सही नहीं होगा कि वह हमसे बातचीत करने के लिए हिंदी सीखें. तमिलनाडु से कोई भी व्यक्ति उत्तर भारत में जाकर यह उम्मीद नहीं कर सकता कि लोग उनसे तमिल में बात करेंगे.”
जिया के पिता धनंजय तिवारी और उनकी मां रीना देवी मूल रूप से भोजपुरी भाषी हैं, जो निर्माण कार्य के लिए लगभग 17 साल पहले बिहार के सीवान जिले से तमिलनाडु के चेन्नई चले गए थे.

जिया ने 500 में से 467 अंकों के साथ दसवीं की बोर्ड परीक्षा पास की. वे परिवार की पहली सदस्य नहीं जिसने स्कूल में तमिल सीखी है. जिया की बड़ी बहन रिया कुमारी, जो अब 12वीं क्लास में हैं, उन्होंने भी तमिल को दूसरी भाषा के रूप में लेकर दसवीं की परीक्षा पास की थी.
रिया ने कहा, “मैं तमिल पढ़ रही हूं और मैंने दसवीं की परीक्षा भी तमिल में ही पास की है, जिसमें मुझे 80 से ज़्यादा स्कोर मिले हैं, लेकिन सिर्फ जिया को ही सब जानते हैं. हम खुश हैं कि आखिरकार हमें तमिल सीखने के लिए पहचाना जा रहा है.”
तीनों में सबसे छोटी सुप्रिया कुमारी भी तमिल बोलती हैं. उनकी मां रीना ने भी तमिल सीखी है जिसे वह भोजपुरी लहज़े में बोलती हैं.
रिया जहां 12वीं के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने का मन बना रही हैं, वहीं जिया मेडिसिन की पढ़ाई करना चाहती हैं.
रीना ने तमिल सीखने का क्रेडिट तमिलनाडु के लोगों को दिया.
रीना ने कहा, “मैं लगभग 17 साल पहले चेन्नई आई थी, तब से मुझे एक बार भी बाहरी व्यक्ति के तौर पर नहीं देखा गया. शुरुआती दिनों में, जब मुझे तमिल बोलने में दिक्कत होती थी, तब भी दुकानदार मेरी बात समझने की कोशिश करते थे और मेरी मदद करते थे. पड़ोसियों की मदद से ही मैंने यहां तमिल सीखी.”
रीना के पति धनंजय, जो 700 रुपये की दिहाड़ी पर वेल्डर का काम करते हैं, तमिल समझ सकते हैं, लेकिन उन्हें यह भाषा बोलने में दिक्कत होती है.
धनंजय ने कहा, “चाहे काम हो या घर, तमिल में बात करने की कोई ज़रूरत नहीं थी क्योंकि मेरे ज़्यादातर मालिक हिंदी जानते हैं. मेरे साथ काम करने वाले भी उत्तरी राज्यों से थे और हिंदी बोल सकते थे. इसलिए, मैंने इसके बारे में नहीं सोचा, लेकिन मैं तमिल समझ सकता हूं.”
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‘चेन्नई लड़कियों के लिए सुरक्षित’
प्रवासी परिवार के लिए तमिल सिर्फ एक भाषा नहीं बल्कि बेहतर मौकों का एक पुल है जो उन्हें बिहार में अपने घर पर नहीं मिल पाता.
रीना ने दिप्रिंट से कहा, “मुझे संदेह है कि अगर मेरे सभी बच्चे बिहार में होते तो वह हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूल तक पहुंच भी पाते.” धनंजय ने कहा कि उनके गृह राज्य में महिलाएं सुरक्षित नहीं है.
धनंजय ने कहा, “वहां के गांवों में स्कूल नहीं हैं. गांवों में प्री-स्कूल और प्राइमरी स्कूल हो सकते हैं, लेकिन हाई स्कूल के लिए भी हमें लगभग 10 से 15 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है और हायर सेकेंडरी के लिए हमें शहर जाना पड़ता है, जो लड़कियों के लिए असुरक्षित है.”
रीना तमिलनाडु सरकार की मिड-डे मील योजना और निःशुल्क वर्दी योजना, जूते और किताबों की आभारी हैं.
रीना ने कहा, “मुझे अब केवल बोझ महसूस होता है क्योंकि निःशुल्क वर्दी योजना केवल आठवीं कक्षा तक ही है. मेरी सबसे छोटी बेटी नौवीं कक्षा में जा रही है और जिया ग्याहरवीं में जा रही है. इसलिए, हमें उनके लिए वर्दी लानी होगी. अगर तमिलनाडु सरकार के स्कूल नहीं होते, तो मुझे नहीं पता कि मैं उन्हें 10,000 रुपये की मामूली राशि से कैसे पढ़ा पाती, जो वह (धनंजय) कमाते हैं और मैं 7,000 रुपये कमाती हूं.”
सभी में सबसे छोटी सुप्रिया न केवल तमिल में पारंगत है, बल्कि उन्होंने चेन्नई की भाषा भी सीख ली है, जिससे किसी के लिए यह बताना और भी मुश्किल हो जाता है कि वह बिहार से है.
रीना ने कहा, “जब हम तमिलनाडु आए थे, तब जिया कुछ महीने की थीं और उनकी बड़ी बहन रिया कुमारी उनसे सिर्फ दो साल बड़ी थीं. रिया और जिया से ज़्यादा, सुप्रिया तमिल की लगती हैं क्योंकि उनका जन्म और पालन-पोषण तमिलनाडु में हुआ है.”
परिवार ने अपना सरनेम न रखने की संस्कृति को भी अपनाया है.
रीना ने कहा, “हम यहां किसी को भी सरनेम के साथ नहीं देखते हैं, जैसे कि मेरे पति का नाम तिवारी है. हमें समझ में नहीं आता कि लोग सरनेम क्यों नहीं रखते हैं.” हालांकि, वे शायद द्रविड़ आंदोलन से अनजान हैं जिसने लोगों को राज्य में सरनेम को अस्वीकार करने के लिए प्रेरित किया.
रीना ने अपनी बेटियों को सरनेम देने से परहेज़ किया है. उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता. यहां लोगों के पास अपना सरनेम क्यों नहीं है, इसलिए मैंने अपने बच्चों को भी सरनेम नहीं दिया है. शादी के बाद, अगर वह सरनेम रखना चाहेंगी, तो वह रख सकती हैं.”
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