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बुधवार, 21 मई, 2025
होमफीचरसायन से कोलाबा तक: मुंबई में रिडेवलपमेंट की होड़, 2,000 से अधिक इमारतों की सूरत बदल रही है

सायन से कोलाबा तक: मुंबई में रिडेवलपमेंट की होड़, 2,000 से अधिक इमारतों की सूरत बदल रही है

तेज़ी से हो रहे रिडेवलपमेंट की वजह से बांद्रा, कोलाबा, अंधेरी और चेंबूर जैसे पहले से भरे हुए इलाकों में भी नए मकान बन रहे हैं. मुंबई में करीब 2,050 बिल्डिंग्स अलग-अलग रिडेवलपमेंट के चरणों में हैं.

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मुंबई: मुंबई के पॉश कार्टर रोड, बांद्रा पर स्थित एक बिल्डिंग, जहां ऐसा कहा जाता है कि अभिनेता शाहरुख़ ख़ान का एक शानदार टैरेस अपार्टमेंट है, अब पुनर्विकास (रीडेवलपमेंट) के लिए तैयार है. इस प्रोजेक्ट में लगभग 30 कंपनियों ने शुरुआती रुचि दिखाई है और करीब दो दर्जन कंपनियों ने बोली भी लगाई है, ऐसा इस प्रोजेक्ट से जुड़े कई डेवलपर्स ने बताया.

हालांकि शाहरुख़ ख़ान का नाम सैटेलाइट टीवी से लेकर बेडशीट, फेयरनेस क्रीम और टॉयलेट क्लीनर तक बेचने में मददगार रहा है, लेकिन इस बिल्डिंग को लेकर डेवलपर्स की रुचि का कारण उनका नाम नहीं है.

बल्कि, यह मुंबई के रियल एस्टेट बाजार में एक बड़े बदलाव का संकेत है.

जमीन की कमी से जूझ रही मुंबई में अब ऊंची इमारतें ही भीड़ को समेटने का रास्ता बन रही हैं. एक तरफ महाराष्ट्र सरकार धारावी, बीडीडी चॉल्स और रामाबाई नगर जैसे बड़े स्लम और सार्वजनिक आवास कॉलोनियों के पुनर्विकास को आगे बढ़ा रही है. वहीं दूसरी तरफ निजी बिल्डिंग्स और को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसायटियां भी रीडेवलपमेंट का रास्ता अपना रही हैं. जैकहैमर, ड्रिल और भारी मशीनों की आवाजें अब मुंबई की आम ध्वनियों में शामिल हो गई हैं.

यह तेज़ और बेतहाशा रीडेवलपमेंट अब बांद्रा, कोलाबा, अंधेरी और चेंबूर जैसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में भी नया हाउसिंग स्टॉक तैयार कर रहा है. डेवलपर्स का अनुमान है कि मुंबई में लगभग 2,050 बिल्डिंग्स अलग-अलग रीडेवलपमेंट फेज में हैं. लगभग हर मोहल्ले में बैरिकेड्स के पीछे छिपी इमारतें दिखती हैं, जहां तोड़फोड़ का काम जारी है. मलबा, धूल और लगातार चलने वाली निर्माण गतिविधि एक और चिंता खड़ी करती है—क्या इससे पहले से भीड़ वाले इलाकों में लोगों की संख्या और बढ़ेगी?
चेंबूर में दो निकटवर्ती भूखंडों का पुनर्विकास किया जा रहा है | फोटो: मानसी फड़के | दिप्रिंट

फिलहाल, प्लॉट लेने के लिए बिल्डरों की लाइन लगी है. बिल्डरों में होड़ मची है सोसायटी के सदस्यों को लुभाने के लिए, जिन्हें ज़्यादा जगह, बेहतर किराया और ज़्यादा कॉर्पस फंड जैसे कई ऑफर दिए जा रहे हैं.

एमसीएचआई क्रेडाई के प्रेसिडेंट डॉमिनिक रोमेल ने कहा, “अभी मार्केट बहुत ज़्यादा कॉम्पिटिटिव है. लेकिन हर किसी की अपनी गणित होती है.” सोसायटी कोई डेवेलपर इसलिए चुन सकती है क्योंकि उसका ऑफर आकर्षक लगता है, लेकिन मामला इतना सीधा नहीं होता.

प्रोजेक्ट के दौरान, डेवेलपर को वो वादे निभाना मुमकिन नहीं लग सकता जो उसने किए थे—जैसे कि ऊंची छत या अतिरिक्त जगह, जिसके लिए खरीदार करोड़ों खर्च करने को तैयार होते हैं, भले ही घर 500 स्क्वेयर फीट का हो.

“सोसायटी के सदस्य खुद को मुश्किल में फंसा पा सकते हैं. तब दोबारा बातचीत शुरू होती है.”

फिर भी, रोमेल ने कहा कि कुछ प्लॉट इतने आकर्षक होते हैं कि डेवेलपर उस डील को पाने के लिए पूरा ज़ोर लगा देते हैं, भले ही उसमें तुरंत फायदा न दिखे.

रोमेल ने कहा, “इससे उस इलाके में कंपनी की पहचान बनती है और उनकी प्रोफाइल ऊंची होती है.”

इसी बीच, रहवासी इन सौदों को किसी बड़ी कॉरपोरेट डील की तरह ले रहे हैं—जानकारी को सिर्फ अपने सदस्यों तक ही सीमित रख रहे हैं और मीटिंग्स में आर्किटेक्ट, वकील और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट एक्सपर्ट्स के साथ बैठ रहे हैं.

अंधेरी के सेवन बंगला की एक सोसायटी के प्रबंधन समिति के सदस्य ने कहा, “ये प्रक्रिया बहुत तनावभरी होती है. सदस्यों के बीच लगातार झगड़े होते हैं. हमने कुछ महीने पहले डेवेलपमेंट एग्रीमेंट पर साइन किया, अब डेवेलपर परमिशन लेने में लगे हैं, जिसमें समय लगेगा. कई सदस्य परेशान हैं कि डेवेलपर कहीं भाग तो नहीं गया. डील को सुरक्षित रखने और अपनी मानसिक शांति के लिए हम कम से कम जानकारी बाहर देना ही ठीक समझते हैं.”

इस समय की तेज़ी के बावजूद, कई डेवेलपर और मार्केट एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ये लहर ज्यादा टिकने वाली नहीं है. आखिर में ये बुलबुला फूटेगा, कैलकुलेशन काम नहीं आएंगी और लोगों को अपने सपनों को छोटा करना पड़ेगा.

नाइट फ्रैंक इंडिया के सीनियर एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर गुलाम ज़िया ने कहा, “मुंबई के रीडेवलपमेंट सीन में हम एक डरावनी स्थिति में पहुंच गए हैं. हम मार्केट की चोटी पर हैं. जब दाम गिरने शुरू होंगे, तब कोई भी गणित काम नहीं आएगी और सोसायटी के सदस्य फंस सकते हैं.”

कंपटीशन में आगे निकलने की होड़ में डेवेलपर सोसायटी को सब कुछ दे रहे हैं, अक्सर खुद को पूरी तरह निचोड़ कर.

“लेकिन दो साल बाद वही डेवेलपर वापस आकर कह सकता है कि 70 प्रतिशत नहीं, अब सिर्फ 50 प्रतिशत अतिरिक्त जगह दी जा सकती है, क्योंकि बाकी टिकाऊ नहीं है,” ज़िया ने जोड़ा.

मुंबई के पुनर्विकास की लहर के पीछे के कारण

चेतन दाबके, जो एक फार्मा मार्केटिंग प्रोफेशनल हैं, इस हफ्ते ही एक नए और शानदार रीडेवलप्ड बिल्डिंग के फ्लैट में शिफ्ट हुए हैं.

उनकी पुरानी सांताक्रूज़ की बिल्डिंग, जो 1970 में बनी थी, इतनी खराब हालत में थी कि “अगर कोई फोटो फ्रेम लगाने के लिए दीवार पर कील भी ठोकता, तो दीवार टूट जाती.”

इस 60 परिवारों वाली सोसायटी ने 2007 से ही रीडेवलपमेंट पर विचार करना शुरू कर दिया था. लेकिन कोई भी बिल्डर उस बिल्डिंग को हाथ लगाने को तैयार नहीं था.

इसके कई कारण थे: बिल्डिंग एयरपोर्ट के फनल ज़ोन में थी, जिससे इसकी ऊंचाई 45 मीटर (यानि लगभग 14-15 मंज़िल) तक ही सीमित थी; पास में बदबूदार और नाले जैसी दिखने वाली मीठी नदी थी; और एक झोपड़पट्टी भी नजदीक थी.

Mumbai redevelopment
सांताक्रूज़ में ध्वस्त होने का इंतज़ार कर रही एक इमारत | फोटो: चेतन दाबके | दिप्रिंट

दाबके ने कहा, “सौ से ज़्यादा बिल्डरों ने हमारी साइट देखी और मना कर दिया.”

2020 में कोविड-19 महामारी शुरू होने से ठीक पहले सोसायटी ने एक नया टेंडर निकाला. एक साल बाद उनकी किस्मत बदल गई.

महाराष्ट्र सरकार ने अगस्त 2020 से अप्रैल 2021 के बीच स्टांप ड्यूटी में छूट की घोषणा की. इसके तुरंत बाद, बीएमसी ने साल 2021 के लिए प्रीमियम चार्ज पर 50 प्रतिशत की छूट दी—इसका मकसद संकट से जूझ रहे रियल एस्टेट सेक्टर को राहत देना था. दाबके की सोसायटी अकेली नहीं थी जिसे फायदा मिला.

जेएलएल इंडिया के सीनियर डायरेक्टर रितेश मेहता ने कहा, “2016 से 2019 के बीच बहुत से प्रोजेक्ट लागत बढ़ने के कारण अटक गए थे. जब ये छूटें मिलीं, तो रीडेवलपमेंट की लागत 10-15 प्रतिशत कम हो गई.” उन्होंने कहा कि इससे पहले जो प्रोजेक्ट संभव नहीं थे, उनमें से 30-40 प्रतिशत को दोबारा शुरू किया जा सका.

छूटों ने मदद की, लेकिन असली वजह कई चीज़ों का मिला-जुला असर था—जिसमें सबसे अहम था बढ़ती मांग—जिससे मार्केट फिर से चल पड़ा.

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सांताक्रूज़ में पुनर्विकसित इमारत | फोटो: चेतन दाबके | दिप्रिंट

लग्जरी की मांग ने खेल को नया रूप दिया

कोविड महामारी से पहले के वर्षों में भारत के शेयर बाजारों में जबरदस्त उछाल आया, वरिष्ठ अधिकारियों की सैलरी बढ़ी और सफल निवेशों से अचानक दौलत बनी. फिर कोविड और उसके बाद के लॉकडाउन ने अमीर खरीदारों में अपने ही शहर में बड़े और निजी स्पेस की चाह बढ़ा दी.

इसी बीच, 2018 और 2019 में आए रेगुलेटरी बदलावों के तहत खाड़ियों और नदियों से 50 मीटर के भीतर निर्माण की अनुमति दी गई (पहले यह सीमा 100 मीटर थी) और फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) को कोस्टल रेगुलेशन ज़ोन (सीआरजेड) नियमों से अलग कर दिया गया. इससे मुंबई के प्रमुख कोस्टल ज़ोन में उसी एफएसआई का उपयोग करते हुए रीडेवलपमेंट करना आसान हो गया जो शहर के अन्य हिस्सों में लागू होता है.

नतीजा: पॉश इलाकों में घरों की मांग बढ़ी और सप्लाई की संभावना भी बनी.

एक लिस्टेड रियल एस्टेट कंपनी के बिजनेस डेवलपमेंट हेड ने कहा, “अचानक ऐसा माहौल बना कि इनवेस्टर्स पॉजिटिव हो गए और सभी कोस्टल एरिया खुल गए—बांद्रा, वर्ली, कोलाबा, मलाबार हिल, नेपियन सी रोड, वर्सोवा. इतिहास में, इन सी-फेसिंग लोकेशनों पर हर साल औसतन 300 प्राइमरी सेल्स होती थीं. ये वो घर हैं जिनकी कीमत 15 करोड़ रुपये से ज्यादा होती है.”

उन्होंने आगे कहा, “अब हर सी-फेसिंग सोसायटी रीडेवलपमेंट के लिए जा रही है, तो अमीर खरीदारों के पास ज्यादा विकल्प हैं.”

इंडिया की सोथबी इंटरनेशनल रियल्टी और सीआरई मैट्रिक्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई 2023 से जून 2024 के बीच मुंबई में 10 करोड़ रुपये से ऊपर के 1,040 लग्जरी घर बिके. सिर्फ 2024 की पहली छमाही में ही 12,300 करोड़ रुपये से ज्यादा की बिक्री हुई, जिसमें आधे से ज्यादा खरीदारों की उम्र 35 से 55 साल के बीच थी.

अल्ट्रा-लक्ज़री घर—जिनकी कीमत 40 करोड़ रुपये से ऊपर है—की मांग भी बढ़ी है. एनारॉक ग्रुप के अनुसार, 2024 में देशभर में हुई 59 में से 52 डील सिर्फ मुंबई में हुईं—जबकि 2022 में यह संख्या सिर्फ 11 थी.

शीर्ष डेवलपर्स, जो पहले सिर्फ 5-7 फ्लैट देने वाले छोटे प्लॉट्स पर काम करने से हिचकते थे, अब उनमें भी दिलचस्पी दिखा रहे हैं. प्रेस्टिज़ डेवलपर्स बांद्रा के पाली हिल में 1 एकड़ के प्लॉट का रीडेवलपमेंट कर रहे हैं; कलपतरु अल्टामाउंट रोड पर 0.37 एकड़ के प्लॉट पर 4 बीएचके और 7 बीएचके डुप्लेक्स बना रहे हैं.

एक रियल एस्टेट कंसल्टेंट ने कहा, “मैंने प्रेस्टिज़, गोदरेज के कई बिजनेस डेवलपमेंट टीमों और सीनियर मेंबर्स से मुलाकात की। वे पहले काफी हिचकते थे. वे कहते थे कि सात या नौ अपार्टमेंट की बिल्डिंग वे नहीं बनाएंगे क्योंकि ओवरहेड कॉस्ट बहुत ज्यादा होता है.”

“लेकिन जब लग्ज़री होम्स की डिमांड बढ़ी, तो डेवलपर्स को समझ में आया कि मुंबई के प्रीमियम लोकेशनों तक पहुंचने का एकमात्र तरीका अब रीडेवलपमेंट ही है.”

पिच, तनाव और आंसू

मई 2023 की गर्मी में तपी हुई एक शाम को मुंबई के दादर में एक बैंक्वेट हॉल किसी शादी के मंडप जैसा लग रहा था—सामोसों, सैंडविच, ढोकले, जलेबी के ट्रे, और चाय, कॉफी व ताजे जूस सर्व करने वाले वेटर्स. लेकिन यह कोई शादी नहीं थी—यह एक पिच बैटल थी.

कई डेवलपर एक बड़े सायन हाउसिंग सोसायटी के रेसिडेंट्स को लुभाने के लिए जमा हुए थे. वे बड़े गार्डन, बच्चों के खेलने की जगह, इनफिनिटी पूल, जॉगिंग ट्रैक और शिकागो जैसे दिखने वाले स्काईलाइन व्यू वाली बालकनी का वादा कर रहे थे.

ऐसी ही एक इवेंट अंधेरी सेवन बंगला सोसायटी के लिए भी हुई. ग्यारह डेवलपर्स को शॉर्टलिस्ट कर पांच तक लाया गया, और 60 किरायेदारों वाली सोसायटी ने दो संडे तक सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक डेवलपर्स की पिच सुनी.

ऐसे आयोजन प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट्स कराते हैं, जो अब ज्यादातर रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स की रीढ़ बन चुके हैं.

“आज की सोसायटीज़ बहुत ज्यादा जानकार और सोच-समझ कर मोलभाव करती हैं,” हिरेनंदानी ग्रुप के को-फाउंडर और नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल (NAREDCO) के चेयरमैन नीरंजन हिरेनंदानी ने कहा.

आमतौर पर कंसल्टेंट्स, आर्किटेक्ट्स और लीगल टीमें सोसायटी के साथ 2 से 2.5 साल तक काम करती हैं—प्लान बनाना, अंदरूनी मुद्दे सुलझाना, सदस्यों की उम्मीदों पर सहमति बनाना और बिड डॉक्यूमेंट तैयार करना शामिल होता है. इसके बाद टेंडर निकाले जाते हैं और बिड का मूल्यांकन किया जाता है. जो डेवलपर चुना जाता है, वह डिवेलपमेंट एग्रीमेंट साइन करता है, लीगल चेक करता है और फ्लैट का साइज तय करता है (क्योंकि पुराने बिल्डिंग्स में लेआउट अलग-अलग होते हैं).

अंत में, एक परमानेंट ऑल्टरनेटिव अकॉमोडेशन एग्रीमेंट (PAAA) सभी सदस्यों के साथ साइन किया जाता है, और वे अपने अपार्टमेंट की चाबियां सौंप देते हैं. फिर बुलडोजर चलता है, अतीत को मलबे में बदलते हुए नए स्ट्रक्चर और मुंबई के वर्टिकल फ्यूचर का रास्ता साफ करता है.

Mumbai redevelopment
दादर में समुद्र के सामने स्थित एक इमारत का पुनर्विकास किया जा रहा है, जिसके बोर्ड पर एक रियल एस्टेट परियोजना की घोषणा की गई है, जिसमें वादा किया गया है कि “प्रत्येक दिन छुट्टी जैसा महसूस होगा.” | फोटो: मानसी फड़के | दिप्रिंट

पूरी प्रक्रिया—शुरुआती सहमति से लेकर चाबी सौंपने तक—करीब छह से आठ साल लगती है, यह प्रोजेक्ट के दायरे पर निर्भर करता है. इस दौरान अक्सर झगड़े, गर्मागर्म बहसें, डर, निराशा और आंसू होते हैं.

जैसे कि सेंट्रल मुंबई की एक सोसायटी में, एक नाराज़ निवासी ने वोटिंग में अपनी पसंद का डेवलपर न चुने जाने पर बैलट पेपर फाड़ दिए. मीटिंग में मौजूद लोगों के अनुसार, एक ऑफिस बेयरर को उसे शांत करने के लिए लीगल एक्शन की धमकी देनी पड़ी.

एक प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंसी के सीनियर एक्जीक्यूटिव ने बताया, “मेरी टीम 13 से ज्यादा रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स देख रही है. मैं कई इनुअल जनरल मीटिंग्स और एक्स्ट्राऑर्डिनरी जनरल मीटिंग्स में जाता हूं, और हमारा सबसे मुश्किल काम होता है—नाराज़ सदस्यों की सारी भड़ास सुनना.”

डेवलपर्स के लिए जरूरी होता है कि ये अंदरूनी मतभेद उनके आने से पहले ही सुलझा लिए जाएं. तकनीकी रूप से 51 प्रतिशत साधारण बहुमत से रीडेवलपमेंट आगे बढ़ सकता है. लेकिन व्यवहार में डेवलपर्स लगभग सर्वसम्मति चाहते हैं, ताकि बाद में कोई बाधा या लीगल परेशानी न हो. यही कारण है कि जब तक एग्रीमेंट साइन नहीं हो जाता, सोसायटी और डेवलपर दोनों ज्यादा जानकारी साझा करने से बचते हैं—खासकर अब, जब सदस्यों के पास विकल्पों की कोई कमी नहीं है.

परियोजनाओं को हथियाने की होड़

इस महीने की शुरुआत में, ब्रिच कैंडी की एक बिल्डिंग ने अपने सदस्यों को डेवलपर्स के ऑफर्स का सारांश बताने वाला एक टर्म शीट सर्कुलेट किया. इसमें दिलचस्पी दिखाने वाले डेवलपर्स की संख्या दो अंकों में थी. टॉप आठ बिड्स में सबसे कम ऑफर में भी रेसिडेंट्स की मौजूदा कार्पेट एरिया से 78 प्रतिशत ज्यादा जगह देने का वादा था, जबकि सबसे ऊंचे ऑफर में 105 प्रतिशत तक ज्यादा एरिया देने की बात कही गई, एक कंसल्टेंट ने बताया जो इस डील से जुड़ा था.

डेवलपर्स अब डील को आकर्षक बनाने के लिए ज्यादा कॉर्पस फंड और ऊंचा किराया भी दे रहे हैं.

“पहले 25-30 प्रतिशत अतिरिक्त एरिया देना सामान्य बात थी. लेकिन आज डेवलपर्स काफी ज्यादा जगह, बेहतर रेंटल डील और बड़ा कॉर्पस फंड दे रहे हैं,” नीरंजन हिरेनंदानी ने कहा. “यह बढ़ती प्रतिस्पर्धा जमीन की कमी के कारण है. यही वजह है कि रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स डेवलपर्स के लिए मुंबई के प्रीमियम इलाकों में खुद को स्थापित करने का बेहतरीन मौका बन चुके हैं.”

यह होड़ सिर्फ मुंबई के स्थापित डेवलपर्स तक सीमित नहीं है. दूसरे शहरों के बिल्डर्स—यहां तक कि असंबंधित इंडस्ट्री की कंपनियां भी—अपना ब्रांड नाम लेकर रियल एस्टेट में कदम रख रही हैं, और बड़े प्रोजेक्ट्स के जरिए बाजार में जगह बनाने की कोशिश कर रही हैं.

उदाहरण के तौर पर, सायाजी ग्रुप की होटल और हॉस्पिटैलिटी बिजनेस से जुड़ी सायाजी रियल्टी ने अंधेरी के सेवन बंगला में 60 रेसिडेंट फैमिलीज़ की एक सोसायटी का रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट अपने नाम किया.

सोसायटी की मैनेजमेंट कमेटी की एक सदस्य ने कहा, “हमने सायाजी रियल्टी को उनके कंस्ट्रक्शन रिकॉर्ड की वजह से चुना, यहां तक कि कोविड के दौरान भी. वे सिर्फ 30 प्रतिशत अतिरिक्त एरिया दे रहे थे, जबकि बाकी डेवलपर्स इससे कहीं ज्यादा देने को तैयार थे. लेकिन हमें उनके डिलीवरी ट्रैक रिकॉर्ड पर भरोसा था.”

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दादर, शिवाजी पार्क में सुगी द्वारा पुनर्विकास की गई इमारतें | फोटो: मानसी फड़के | दिप्रिंट

जैसे ही सोसायटी ने सायाजी रियल्टी को चुना, बाकी डेवलपर्स ने अपने ऑफर्स बढ़ा कर 50-60 प्रतिशत अतिरिक्त एरिया देना शुरू कर दिया. कुछ डेवलपर्स, जो बिडिंग प्रोसेस में शामिल भी नहीं थे, अनौपचारिक रूप से रेसिडेंट्स से संपर्क करने लगे ताकि बैकडोर एंट्री मिल सके.

उन्होंने कहा, “लेकिन हमने तय किया है कि हम अपने फैसले पर कायम रहेंगे. हम चाहते थे कि सारा प्रोसेस नियम से चले.”

इसी तरह, सायन की एक सोसायटी ने रेमंड रियल्टी को चुना, जो रेमंड ग्रुप का हिस्सा है और टेक्सटाइल व कपड़ों के लिए जाना जाता है, जबकि कुछ अनुभवी रियल एस्टेट डेवलपर्स भी लाइन में थे.

फिर हैं हाइपरलोकल प्लेयर्स—जो अपने मोहल्ले से बाहर ज्यादा प्रसिद्ध नहीं हैं, लेकिन स्थानीय सोसायटीज में भरोसेमंद माने जाते हैं.

जैसे दादर-शिवाजी पार्क में, पिछले तीन-चार सालों में स्काईलाइन काफी बदल गई है. इस इलाके की कई नई टावरों पर एक जाना-पहचाना नीऑन साइन दिखता है: ‘सुगी.’ यह कंपनी देशमुख परिवार चलाता है (जो राज और उद्धव ठाकरे के रिश्तेदार हैं)। कंपनी ने दादर में 12 प्रोजेक्ट पूरे किए हैं और 10 और चल रहे हैं.

सुगी के लेटेस्ट प्रोजेक्ट्स में से एक दादर के पोर्तुगीज चर्च के पीछे की एक पुरानी सोसायटी है, जो 4,000 स्क्वायर मीटर में फैली हुई है.

एक रेसिडेंट ने बताया, “सोलह बिल्डर्स ने बिड डॉक्यूमेंट खरीदा, छह ने असल में बिड जमा की. उनमें से तीन को हटा दिया गया. हमने सुगी को इसलिए चुना क्योंकि उनका ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा है. साथ ही उनका राजनीतिक जुड़ाव भी है, जिससे अलग-अलग सरकारी परमिशन लेना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा.”

अन्य माइक्रो-मार्केट्स में भी अपने भरोसेमंद नाम होते हैं—जैसे बांद्रा-खार में सुप्रीम यूनिवर्सल और सतगुरु बिल्डर्स, बोरीवली-दहिसर में एच ऋषभराज, और जुहू में लोटस डेवलपर्स.

जेएलएल के रितेश मेहता ने कहा, “किसी भी माइक्रो-मार्केट में, जो डेवलपर वहां जाना-पहचाना हो, जरूरी नहीं कि वही सबसे अच्छा ऑफर दे. लेकिन वह नाम उस इलाके में जानामाना होता है. ये माइक्रो-मार्केट प्लेयर्स किरायेदारों से बेहतर डील कर सकते हैं, कम लागत पर प्रोजेक्ट उठा सकते हैं, और काम पूरा भी कर सकते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि अगर एक भी गलती की, तो उनकी साख खत्म हो जाएगी.”

मुंबई पुनर्विकास: क्या कीमतें बढ़ेंगी?

अलग-अलग तौर पर देखा जाए तो हर रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट बहुत ज्यादा बिक्री योग्य मकान नहीं बनाता, लेकिन जब इन सभी प्रोजेक्ट्स की संख्या को एक साथ देखा जाए, तो मुंबई के हाउसिंग मार्केट में बड़ा बदलाव आ रहा है.

शहर के एक डेवलपर के सीनियर एग्जीक्यूटिव ने बताया कि सिर्फ बांद्रा की माउंट मैरी रोड पर ही अगले 24 महीनों में 10 लाख वर्ग फुट से ज्यादा बिक्री योग्य कार्पेट एरिया बाजार में आ सकता है.

हालांकि, इसका प्राइस पर क्या असर होगा, ये अभी साफ नहीं है.

नाइट फ्रैंक की ज़िया ने कहा कि सिर्फ सोसायटी रिडेवलपमेंट्स से दामों पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा, “ज्यादा सप्लाई स्लम रिडेवलपमेंट्स और सार्वजनिक क्षेत्र के प्रोजेक्ट्स जैसे धारावी का पुनर्विकास या बीडीडी चॉल्स का रीडेवलपमेंट से आएगी.”

जो ज़्यादा संभव है, वो है डिमांड और सप्लाई में असंतुलन.

“मुंबई की हर तीसरी गली में कोई न कोई बिल्डिंग बैरिकेड्स के पीछे है, तो लोगों को लगता है कि बहुत ज्यादा मकान बनने वाले हैं. लेकिन हर रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट से सिर्फ 5 से 40 फ्लैट ही बिक्री के लिए आते हैं,” मेहता ने कहा. “मसला ये होगा कि लोग 1,000 वर्ग फुट के मकान चाहते हैं, लेकिन डेवलपर्स 1,500 वर्ग फुट के फ्लैट बना रहे हैं.”

नारेडको के चेयरमैन हिरेनंदानी ने कहा कि दामों पर असर ऊपर की ओर होगा और मुंबई की रियल एस्टेट मार्केट और भी आकर्षक बन जाएगी.

फिर भी एक चिंता बढ़ रही है: क्या ये सारे डेवलपर्स, जिन्होंने बहुमूल्य प्लॉट पाने के लिए बड़े-बड़े वादे किए हैं और अपने मुनाफे को भी कम कर दिया है, वाकई अपने वादों को निभा पाएंगे?

रियल एस्टेट रिसर्च फर्म लाइएसेस फोरस के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज कपूर ने चेतावनी दी कि डेवलपर्स एक “बहुत जोखिम भरे ज़ोन” में प्रवेश कर रहे हैं, और भविष्य में कीमतें बढ़ेंगी, इसी उम्मीद पर आज की आक्रामक बिड्स कर रहे हैं.

“मुंबई के रिडेवलपमेंट में सबसे बड़ी समस्या ये है कि हर तरह के डेवलपर्स इस दौड़ में कूद पड़े हैं—यहां तक कि वो भी जिनके पास फॉर्मल फंडिंग तक की सुविधा नहीं है, या जिन्हें प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए बहुत महंगा फाइनेंस लेना पड़ेगा. महंगाई की वजह से खर्चा वैसे भी बढ़ेगा, और अगर कीमतें डेवलपर्स की उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ीं, तो जिन प्रोजेक्ट्स पर उन्होंने बिड की है वो घाटे का सौदा बन जाएंगे,” कपूर ने कहा.

अभी तक चीजें ठीक रही हैं. ज़्यादातर प्रोजेक्ट समय पर और वादे के मुताबिक पूरे हुए हैं.

“लेकिन कुल मिलाकर,” कपूर ने जोड़ा, “अब रिडेवलपमेंट मार्केट में ज़रूरत से ज्यादा उम्मीदें पालने की समस्या आ गई है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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