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सोमवार, 26 मई, 2025
होमफीचर‘देखो! वे टीवी पर हैं’ — सैनिक स्कूल से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक, एयर मार्शल भारती पूर्णिया के गौरव हैं

‘देखो! वे टीवी पर हैं’ — सैनिक स्कूल से लेकर ऑपरेशन सिंदूर तक, एयर मार्शल भारती पूर्णिया के गौरव हैं

जब एयर मार्शल अवधेश कुमार भारती ने ऑपरेशन सिंदूर के बारे में देश को जानकारी दी, तो यह पूर्णिया में उनके परिवार और दोस्तों के लिए एक व्यक्तिगत मील का पत्थर था. ‘हमारा दिल गर्व से भर गया है.’

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पूर्णिया: सैनिक स्कूल तिलैया के धूल भरे गलियारों में बिहार के पूर्णिया के दो लड़के सेक्शन सी में एक ही लकड़ी की बेंच पर साथ-साथ बैठे थे. रोल नंबर 1272 और डीएस 80. वे 1977 के 140 लड़कों के बैच का हिस्सा थे, जिन्होंने भावी सैनिकों के लिए प्रिपरेशन स्कूल में पढ़ने के लिए एक टफ एंटरेंस एग्जाम पास किया था.

छह साल बाद, 1983 में, उन्हीं लड़कों के सामने एक और एग्जाम था : राष्ट्रीय रक्षा अकादमी प्रवेश परीक्षा. उनमें से 28 ने कट-ऑफ क्लियर की – 1272 उनमें से एक था, लेकिन डीएस 80 उनमें नहीं था. 2025 में तेज़ी से आगे बढ़ते हुए और रोल नंबर 1272, एयर मार्शल अवधेश कुमार भारती, ऑपरेशन सिंदूर के सबकुछ बन गए. डीएस 80, बैंकर सलिल चौधरी ने मीलों दूर से जयकारे लगाए.

एयर मार्शल एके भारती अब आसमान और युद्ध के मैदान में सेना की कमान संभालते हैं. भारतीय वायुसेना में बतौर महानिदेशक वायु संचालन (DGAO) उन्होंने 7 से 10 मई के बीच किए गए चार दिवसीय सैन्य अभियान का नेतृत्व किया. इसकी शुरुआत पहलगाम नरसंहार के जवाब में पाकिस्तान में नौ आतंकी शिविरों पर सटीक हमलों से हुई. जब पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की, तो भारत ने जवाबी हमला करते हुए 11 सैन्य हवाई अड्डों को निशाना बनाया. चौथे दिन, पाकिस्तान ने संघर्ष विराम के लिए हॉटलाइन कॉल की.

11 मई को, जब चार वरिष्ठ रक्षा अधिकारी ऑपरेशन सिंदूर पर ब्रीफिंग के लिए राष्ट्र के सामने खड़े थे, तो भारती अपने शांत व्यवहार, संक्षिप्त उत्तरों और आश्चर्यजनक कविता के साथ सबसे अलग दिखे. उन्होंने पाकिस्तान के उकसावे के प्रति भारत के दृष्टिकोण में बदलाव का संकेत देने के लिए स्मृति से रामचरितमानस की एक चौपाई उद्धृत की.

यह भगवान राम के बारे में था, जो लंका में जाने से मना किए जाने के बाद समुद्र देवता के सामने अपना धैर्य खो बैठे और अपना धनुष उठा लिया: ‘विनय न मानत जलधि जड़, भये तीन दिन बीत, बोले राम सकोप तब, भय बिन होई न प्रीत’ — समुद्र विनम्र अनुरोधों से अविचलित रहा. तीन दिन बीत गए. फिर भगवान राम ने बढ़ते क्रोध के साथ कहा, भय के बिना प्रेम नहीं हो सकता.

(बाएं से दाएं) डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई, एयर मार्शल एके भारती और वाइस एडमिरल एएन प्रमोद नई दिल्ली में ऑपरेशन सिंदूर प्रेस ब्रीफिंग के दौरान | एएनआई/राहुल सिंह
(बाएं से दाएं) डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई, एयर मार्शल एके भारती और वाइस एडमिरल एएन प्रमोद नई दिल्ली में ऑपरेशन सिंदूर प्रेस ब्रीफिंग के दौरान | एएनआई/राहुल सिंह

वहीं, उनके घर पूर्णिया में पूर्व छात्र समूहों और पारिवारिक हलकों में, संदेशों की बाढ़ आ गई — उस लड़के की जय-जयकार जो कभी उस लकड़ी की स्कूल बेंच पर बैठता था.

चौधरी ने खुशी से चिल्लाए, “देखो! भारती टीवी पर हैं.” , वे अब एक राष्ट्रीय बैंक में एजीएम हैं. वह उस पल को याद कर रहे थे जब उनके पूर्व साथी ने राष्ट्र को संबोधित किया था. चौधरी और बाकी लोग जो भारती को बतौर छात्र जानते थे, कहना था कि हमेशा से मालूम था कि वह बहुत आगे जाएंगे.

भारती न केवल अकादमिक रूप से बेहतरीन थे. वह शारीरिक प्रशिक्षण में भी उतना ही अच्छे थे. वह अंदर से मजबूत हैं, किताबी कीड़ा नहीं, बल्कि दृढ़ विश्वास वाले व्यक्ति हैं

— साहिल चौधरी, पूर्व सहपाठी

चौधरी ने कहा, “वह 82-83 के बैच के लिए वैशाली हाउस के मार्शल भी थे, जिसमें लगभग 80 से 90 छात्र थे.”

एक अन्य तिलैया निवासी विनय कुमार, जो अब पूर्णिया में बी.एड कॉलेज के प्रमुख हैं, उन्होंने कहा कि उन्होंने भारती के संबोधन को अपने फोन पर रिकॉर्ड किया. यह उनके लिए एक व्यक्तिगत मील का पत्थर जैसा था.

कुमार ने कहा, “वह एक राष्ट्रीय नायक हैं. हम हमेशा से जानते थे कि वह महानता के लिए किस्मत में हैं.”

एयर मार्शल भारती के रिश्तेदार विश्वनाथ यादव और उनकी पत्नी पूर्णिया के झुन्नी कलां में अपने घर पर. यादव ने कहा कि भारती हमेशा गांव में अपने दौरे के दौरान सभी से मिलते-जुलते हैं | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट
एयर मार्शल भारती के रिश्तेदार विश्वनाथ यादव और उनकी पत्नी पूर्णिया के झुन्नी कलां में अपने घर पर. यादव ने कहा कि भारती हमेशा गांव में अपने दौरे के दौरान सभी से मिलते-जुलते हैं | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट

भारत भर में भारती का नाम गूंज रहा था — टीवी पर, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर और उन लोगों के घरों में जो कभी उनके साथ पढ़े या सेवा की.

पूर्णिया शहर से लगभग 30 मिनट की दूरी पर झुन्नी कला गांव के एक शांत कोने में, वह साधारण घर जहां से भारती की यात्रा शुरू हुई थी, उस दिन थोड़ा और ऊंचा लग रहा था. उनका नाम घरों और खेतों में, आम के पेड़ों की छाया में सभाओं में, गहरे सम्मान की भावना के साथ गूंजता है.

उनके पिता, 85-वर्षीय जीवछ लाल यादव ने दिप्रिंट को बताया, “हमारा दिल गर्व से भरा हुआ है.”

उनके बगल में बैठी उनकी पत्नी उर्मिला देवी ने धीरे से कहा, “वे हमेशा ईमानदार थे.”

जब ब्रीफिंग प्रसारित हुई, तो ग्रामीण अपने मक्के के खेतों से निकलकर अपने टीवी चालू करने के लिए घर भागे. अब पूरा गांव उनके इस पल को अपने मोबाइल फोन में सहेज कर रखता है और बार-बार देखता है.


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पूर्णिया का बेटा

जब राष्ट्रीय ब्रीफिंग शुरू हुई, तब भारती की मां उर्मिला परिवार के मक्के के खेतों में काम कर रही थीं. एक पड़ोसी उन्हें लेने के लिए दौड़ा और टीवी पर यह दिखाने के लिए घर ले आया.

उनके और उनके पति जीवछ लाल यादव, जो कोसी सिंचाई परियोजनाओं के वित्त विभाग में काम करते थे, उनके लिए चार बच्चों की परवरिश करना आसान नहीं था, लेकिन उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि वह अपने बच्चों के लिए अपने पैतृक गांव से ज़्यादा चाहते हैं और वह 10 किलोमीटर दूर शहर में चले गए.

उनकी मां उर्मिला देवी ने कहा, “शहर वह जगह थी जहां मौके आसानी से मिल जाते थे और हम उन्हें पालने और खेतों की देखभाल करने के बीच तालमेल बिठा पा रहे थे.”

लेकिन जब उनका सबसे बड़ा बेटा अवधेश बड़ा हुआ, तो यह भी काफी नहीं था. उसकी क्षमताओं को देखते हुए माता-पिता ने उसे पूर्णिया शहर से 11 किलोमीटर पश्चिम में परोरा गांव के आदर्श मध्य विद्यालय में भेज दिया. उस वक्त, परोरा इलाके का एकमात्र सरकारी स्कूल था, जहां आसपास के गांवों के छात्रों के लिए आवासीय सुविधाएं थीं.

पूर्णिया के झुन्नी कलां में दो कमरों का घर, जहां एयर मार्शल ए.के. भारती का जन्म जीवछ लाल यादव और उर्मिला देवी के घर हुआ था. वह आम तौर पर साल में एक बार आते हैं | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट
पूर्णिया के झुन्नी कलां में दो कमरों का घर, जहां एयर मार्शल ए.के. भारती का जन्म जीवछ लाल यादव और उर्मिला देवी के घर हुआ था. वह आम तौर पर साल में एक बार आते हैं | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट

उर्मिला देवी याद करती हैं, “हमने उसे आवासीय विद्यालय में भेजा क्योंकि वह हमेशा से ही पढ़ने में बहुत होशियार था.” उन्होंने केवल सातवीं क्लास तक ही पढ़ाई की थी, जबकि उनके पति जीवछ ने 12वीं तक की शिक्षा पूरी की थी.

उन्होंने आगे कहा, “लेकिन हम दोनों ही शिक्षा के महत्व को समझते थे.”

1926 में स्थापित, परोरा में मिडिल स्कूल राजेंद्र प्रसाद का सपना था, जो एक स्थानीय ज़मींदार थे, जिन्होंने शिक्षा के लिए अपनी ज़मीन दान कर दी थी. यह वह जगह थी जहां स्थानीय माता-पिता अपने बच्चों के लिए सशस्त्र बलों या सरकारी नौकरियों में जाने का सबसे अच्छा मौका देखते थे.

चौधरी, जिनके पिता कभी तिलैया में सैनिक स्कूल में गणित पढ़ाते थे, याद करते हैं, “प्रधानाचार्य और शिक्षकों ने अथक परिश्रम किया, छात्रों को नेतरहाट स्कूल, सैनिक स्कूल तिलैया या उस समय की भारतीय पात्रता परीक्षाओं में से किसी एक में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए तैयार किया.”

(एयर मार्शल भारती) साल में एक बार आते हैं. वह बिना किसी अहमियत के इधर-उधर घूमते हैं और सभी से बात करते हैं

— विश्वनाथ यादव, 70

1977 बैच से भारती समेत 21 छात्रों ने सैनिक स्कूल में एंट्री के लिए कट-ऑफ क्लियर किया.

स्कूल में अभी भी ईंट के रंग के बोर्ड लगे हुए हैं, जो समय और बारिश की वजह से खराब हो गए हैं, जिन पर उन छात्रों के नाम लिखे हुए हैं जिन्होंने वर्षों से प्रतिष्ठित परीक्षाओं में सफलता प्राप्त की है.

आदर्श महाविद्यालय के प्रिंसिपल मनोज मयंक बोर्ड पर भारती का नाम सैनिक स्कूल तिलैया के लिए चयनित छात्रों में सूचीबद्ध करते हुए | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट
आदर्श महाविद्यालय के प्रिंसिपल मनोज मयंक बोर्ड पर भारती का नाम सैनिक स्कूल तिलैया के लिए चयनित छात्रों में सूचीबद्ध करते हुए | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट

खेतों से लेकर सीमाओं तक

झुन्नी कलां में भारती की सफलता के राष्ट्रीय जश्न के विपरीत सन्नाटा था. एयर मार्शल के माता-पिता सहित गांव के लोग मक्के की कटाई में व्यस्त थे. यहां के अधिकांश लोग मुश्किलों के आदी हैं और बहुत कम लोग गरीबी के चक्र से बाहर निकल पाए हैं.

लेकिन भारती भाई-बहनों ने ऐसा किया. एक भाई मिथिलेश एक दवा कंपनी में काम करता है. दूसरा राजेश डॉक्टर है. रिश्तेदारों के अनुसार, उनमें से कोई भी अपनी जड़ों को नहीं भूला है.

70-साल के विश्वनाथ यादव, जो भारती को उनकी बड़ी उपलब्धियों के बावजूद ज़मीन से जुड़े हुए देखते हैं, कहते हैं, “(एयर मार्शल भारती) साल में एक बार आते हैं. वे घूमते हैं और सभी से बात करते हैं, बिना किसी अहमियत के.”

पूर्णिया के झुन्नी कलां गांव की एक गली | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट
पूर्णिया के झुन्नी कलां गांव की एक गली | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट

एनडीए में शामिल होने के चार साल बाद, भारती को कैडेटों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान स्वॉर्ड ऑफ ऑनर से सम्मानित किया गया. 1987 में वायु सेना में कमीशन प्राप्त, वह एक लड़ाकू लड़ाकू नेता हैं जिन्होंने अगस्त 2005 से सितंबर 2007 तक सुखोई-30 एमकेआई स्क्वाड्रन की कमान संभाली. उनके प्रमुख पदों में मलेशिया में सामरिक बल कमान में सेवा और प्रयागराज में केंद्रीय वायु कमान में एसएएसओ के रूप में सेवा शामिल है.

पिछले अक्टूबर में डीजीएओ के रूप में उनकी नियुक्ति से पहले भारती को उनकी विशिष्ट सेवा के लिए वायु सेना पदक और अति विशिष्ट सेवा पदक से भी सम्मानित किया गया था.

हालांकि, उनके शानदार करियर की शुरुआत उनके जन्म से पहले ही हो गई थी.

1962 के भारत-चीन युद्ध का पूर्णिया के गांवों पर अप्रत्याशित प्रभाव पड़ा. इसने गरीब टोलों में पले-बढ़े लड़कों को एक नई आकांक्षा और दिशा दी.

पूर्णिया के बाहरी इलाके में, फैले हुए खेतों के बीच, 1963 में चूनापुर एयरबेस का निर्माण शुरू हुआ, जिसे पूर्वोत्तर कॉरिडोर में भारत की रक्षा उपस्थिति को मजबूत करने के लिए बनाया गया था.

1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद शहर के बाहरी इलाके में बने पूर्णिया में एयरफोर्स स्टेशन की ओर इशारा करते हुए एक संकेत | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद शहर के बाहरी इलाके में बने पूर्णिया में एयरफोर्स स्टेशन की ओर इशारा करते हुए एक संकेत | फोटो: ज्योति यादव/दिप्रिंट

उसी साल, सैनिक स्कूल तिलैया का निर्माण ज़रूरत के कारण हुआ — भारतीय सशस्त्र बलों में एक मजबूत और अधिक तैयार अधिकारी कैडर की तत्काल मांग का जवाब. यह स्कूल केंद्रीय रक्षा मंत्री वीके कृष्ण मेनन और बिहार के मुख्यमंत्री केबी सहाय के दिमाग की उपज था, उस समय जब बिहार और झारखंड अभी भी एक राज्य थे.

सलिल चौधरी ने याद किया, “कुछ ही वक्त में सैनिक स्कूल और नेतरहाट एकमात्र ऐसे स्कूल बन गए, जहां माता-पिता – अमीर या गरीब – अपने बेटों को भेजना चाहते थे.”

‘शांत, संयमित, कभी बेकार की बातें नहीं करने वाले’

70 के दशक के आखिर में भारती और चौधरी रात के अंधेरे में पूर्णिया से तिलैया के लिए सरकारी बस में चढ़ते थे. यात्रा में 12 घंटे लगते थे. सुबह वे कोडरमा जिले के उरमा मोड़ पर उतरते थे, जो तिलैया के लड़कों के लिए ड्रॉप-ऑफ पॉइंट के रूप में काम करता था. वहां से स्कूल पहुंचने के लिए सात किलोमीटर पैदल चलते थे.

उस समय, सैनिक स्कूल जैसे अवसर दुर्लभ थे. स्कूल एक संस्थान से कहीं बढ़कर था — यह युवा लड़कों को अनुशासन में रहने वाले लोगों के रूप में ढालने वाला एक कठिन काम था.

दिन मुश्किल थे, सुबह की शुरुआत 40 मिनट की शारीरिक ट्रेनिंग से होती थी. शाम को दो घंटे खेलकूद होते थे.

चौधरी ने कहा, “भारती सिर्फ पढ़ाई में ही अच्छे नहीं थे, वह शारीरिक ट्रेनिंग में भी उतना ही बेहतर थे. वह अंदर से मज़बूत है, किताबी कीड़ा नहीं हैं, बल्कि दृढ़ निश्चय वाले व्यक्ति हैं.”

लड़के अक्सर भारती और दूसरे सहपाठी आनंद बर्धन के बीच उनकी समानता के कारण भ्रमित हो जाते थे, जिससे अक्सर गलतफहमी हो जाती थी. शिक्षक और सहपाठी ‘भारती’ पुकारते थे, और उन्हें जवाब बर्धन देते थे, या इसके विपरीत. बर्धन आगे चलकर आईएएस अधिकारी बने और वर्तमान में उत्तराखंड के मुख्य सचिव के रूप में कार्यरत हैं.

चौधरी ने कहा, “उस वक्त, हमारा बैच बड़ा था. एनडीए में हमारा सबसे ज़्यादा चयन हुआ था. मुझे नहीं पता कि अगले बैच ने वह रिकॉर्ड तोड़ा या नहीं, लेकिन हमारा बैच हमेशा अलग रहेगा.”

आखिरी बार उनकी भारती से मुलाकात 2022 में हुई थी.

उन्होंने याद किया, “वह शांत और संयमित थे और कभी भी बेकार की बातें नहीं करते थे.”

सुरक्षा प्रतिबंधों के कारण तिलैया और भारती के बीच रोज़ाना बातचीत नहीं हो पाती, लेकिन हर बार जब वह पूर्णिया आते हैं, तो लगभग 25 तिलैया — जो अब शहर में बस गए हैं, जिनमें से ज़्यादातर की उम्र 50 के दशक के अंत में है — अपने स्कूल के दिनों की तरह इकट्ठा होते हैं और अपने अच्छे पुराने दिनों को याद करते हैं.

बिनय कुमार ने गर्व से कहा, “वंस अ तिलैयइन, ऑलवेज़ तिलैयइन”.

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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